Hukm aur Hasrat - 9 in Hindi Love Stories by Diksha mis kahani books and stories PDF | हुक्म और हसरत - 9

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हुक्म और हसरत - 9

 

     ♥️🤍हुक्म और हसरत ♥️🤍

 

 

# Arsia ♥️✨

 

 

अध्याय 9:✨🤍♥️

 

रात को जंगल में:~

 

सिया भीगी हुई, गाउन की भीगी हुई साटन त्वचा से चिपकी हुई थी।

अर्जुन का चेहरा गीला, बालों से पानी टपक रहा था।

 

“तुम मुझे पूरी तरह नज़रअंदाज़ क्यों कर रहे थे?”सिया बोली।

 

"नही तो..बस मैं बिजी था!"अर्जुन ने कहा।

“क्योंकि अगर ज़्यादा पास आया…तो खुद को खो बैठूँगा।”उसने मन ही मन सिया के खूबसूरत चेहरे को देख कहा।

"आप बताए राजकुमारी,ये बात तो मुझे आपसे पूछनी चाहिए!"अर्जुन की बात पर सिया को सपना याद आ गया ,उसके गाल शर्म से लाल हो गए।

"मैं भी व्यस्त थी!"उसने सकपाकर कहा।

अर्जुन को और कुछ न बोलते देख सिया ने मुंह बनाया।

 

"सडू" सिया ने हल्के से मुंह बना कर कहा।

सिया के मुंह से  इतने दिनो बाद "सडू"सुनकर अर्जुन के दिल को ठंडक मिली। वो दांतो से होठों को दबाए हल्के से दूसरी तरफ मुंह करके मुस्कुराया।

 

"आउच!"😩

"क्या हुआ?"अर्जुन ने झटके से सिया की तरफ देखा, जो मुंह बनए अपने  हील्स को देखने लगी,उसके पैर की एक हील टूट गई,अब वो दोनो पैर का भार एक पैर पर रख खड़ी हुई थी।

 

"लाइए,ये मुझे दीजिए!"

 

"क्या?"सिया ने ना समझी में कहा।

"ये"अर्जुन ने सिया के हाथ से सैंडल्स ले लिए,और एक झटके में सिया को गोद में उठा लिया।

 

सिया उसकी इस हरकत पर हड़बड़ा गई,अनजाने में उसने अपने हाथो का हार अर्जुन के गले में डाल दिया।

"ये क्या कर रहे हैं आप?"सिया ने अर्जुन को पूछा,जो सामने देखते हुए बड़ा जा रहा था, उसने एक हाथ में सिया को उठाया था ,दूसरे हाथ से सिया के हील्स।

 

 

"आपकी हिफाजत"अर्जुन ने सिया की आंखों में देख कर कहा, सिया का दिल तेजी से धड़कने लगा, उसने अपना सूखा गला से कुछ बोलना चाहा, पर अर्जुन की चैतावनी भरी आंखों को देख कर वो चुप हो गई।

 

कुछ देर बाद अर्जुन को एक झोपड़ी जैसा कुछ दिखा।

"वैसे आप ने कितने लोगो की हिफाजत इस की है?"सिया ने आंखे छोटी कर पूछा?

"आप पहली हो!"अर्जुन ने भावहीन चेहरे के साथ कहा,पर सिया का चेहरा ये सुन कर चमक उठा, वो हल्के से मुस्कुरा दी।

 

**

सिया ने उसके गीले बालों को छुआ।

अर्जुन ने उसकी पीठ पर अपना हाथ रखा — धीरे, सहेजकर।

उनकी साँसें मिल रही थीं… एक ही लय में धड़कनें बज रही थीं।

 

“कह दो अर्जुन…”

“कि तुम भी महसूस करते हो…”

 

“हर उस पल को… जब तुम पास होती हो…

मैं सिर्फ़ तुम्हें चाहता हूँ —

तुम्हारी हँसी, तुम्हारा ग़ुस्सा… तुम्हारा सबकुछ।”

 

सिया ने उसका चेहरा छूते हुए कहा:

 

“तो अब और मत रोको खुद को…”

अर्जुन ने सिया को अपने आगोश में भर लिया।

एक धीमा, गहरा चुंबन उनके लबों पर उतरा —

कोई जल्दबाज़ी नहीं, सिर्फ़ वो सब कुछ जो दिलों में दफ़न था।

 

सिया की आँखें खुलीं।

 

वो महल के अपने कमरे में थी।

बैड पर लेटी, पसीने से भीगी हुई।

 

“वो… सपना था?पर..मैं तो अर्जुन के साथ थी ,वहां जंगल में फिर यहां कैसे?” उसने खुद से पूछा।

 

वो उठी, दौड़ते हुए बालकनी पर पहुँची।

 

नीचे लॉन में अर्जुन खड़ा था —

पीठ किए, मोबाइल पर बात करता हुआ।

उसे एक बार भी ऊपर नहीं देखा।

 

सिया की आंखों में कुछ टूटा —

वो ख्वाब, जो बहुत हसीन था… लेकिन सिर्फ़ एक ख्वाब।

 

 

दिल इस बात से दुखी था ,दिमाग इस बात से खुश था,की ये सिर्फ एक सपना था।

 

💗💗💐💐💗💗💐💐💗💗💐💐💗💗💐💐

“मुस्कराना सीख लिया तुमने किसी और के लिए… गुलमोहर।

लेकिन याद रखना…

अगर किसी ने तुम्हारी तरफ़ आँख उठाई —

तो मैं सिर्फ़ अंगरक्षक नहीं…

मौत भी बन सकता हूँ।”😡

 

**

महल में मीरा को एक पुराना ईमेल मिला —

विक्रांत और दुबई के एक व्यापारी के बीच संवाद।

 

उद्देश्य: भावनात्मक मार्ग से शाही सिंहासन तक पहुंच - राजकुमारी सिया।"

 

मीरा की सांस रुक गई।

 

“तो ये एक खेल था… और सिया सिर्फ़ एक चाल।”

 

**

 

रात के तीसरे पहर, अर्जुन अपने कमरे की खिड़की पर बैठा था।

हाथ में एक पुराना वॉलेट…

जिसके अंदर एक थोड़ी मुरझाई हुई पुरानी फ़ोटो थी —

उसमें एक छोटी उम्र का अर्जुन, उसकी माँ और पिता… मुस्कराते हुए।

 

उसने तस्वीर को अपनी उँगलियों से छुआ।

 

“माँ… क्या मैंने वादा तोड़ दिया?

आपने कहा था, किसी को दिल देना मत भूलना…

पर अब दिल देने से डर लगता है।”

फ़्लैशबैक:~

बगीचे में माँ उसे कहानियाँ सुना रही थीं…

“अगर कभी किसी से मोहब्बत हो जाए अर्जुन,”

माँ ने कहा था,

 

“तो उसे फूल की तरह रखना — कोमल, महकती… और झुककर नहीं, संजोकर।”

 

और फिर…

एक हादसे में वो दोनों चले गए।

 

अर्जुन की आँखें भर आईं।

तस्वीर के पीछे एक शब्द लिखा था —

"मुस्कराओ। – माँ"

 

मुस्कुराना तो वो उस हादसे के बाद भूल ही गया था, पर अब उसकी मुस्कुराहट फिर वापिस तो आ गई, सिया की वजह से,पर कितने ही दिन तक ये मुस्कान रहती है ,ये तो आने वाले वक्त में पता चलेगा।

 

 

****

जयगढ़ यूनिवर्सिटी में एनुअल फेस्ट की तैयारी ज़ोरों पर थी।

 

बैकस्टेज में आरव टाई ठीक कर रहा था,

रोशनी उसकी ओर आई — सिल्वर लहंगे में, हल्की मुस्कान लिए।

 

“टाई से ज़्यादा धड़कनों को सेट कर लो, मिस्टर प्रिंस,” रोशनी बोली।

स्टेज पर लाइट्स जलीं।

संगीत चला – “तेरे बिना...”

और आरव–रोशनी की जोड़ी धीरे-धीरे धड़कनों में घुलने लगी।

 

आरव और रोशनी, जो कभी सिर्फ़ दोस्त थे,

अब एक-दूसरे को देखकर मुस्कराने लगे थे —

और ये डांस… उस एहसास को छू रहा था।

 

स्टेज पर जब दोनों थिरकने लगे,

तो हर ताल, हर कदम एक-दूसरे में उलझा सा लगा।

 

रोशनी ने जब घुमकर आरव की आंखों में देखा,

आरव ने उसकी कमर थामते हुए धीरे से कहा —

“अब डर नहीं लगता… क्योंकि तुम साथ हो।”

 

और स्टेज के अंत में…

तालियाँ बजीं, मगर दोनों बस एक-दूसरे को देख रहे थे।

 

नज़रों की भाषा, उंगलियों की टच…

और भीड़ के बीच सिर्फ़ एक-दूसरे की आँखें।

 

महल की लाइब्रेरी, दोपहर।

 

काव्या किताबें चुन रही थी, जब अचानक विवेक सामने आ गया — सिर पर हल्की चोट का बैंडेज।

 

“ओह, फिर से टकरा गए?” काव्या ने हँसते हुए पूछा,पर विवेक की चोट देख उसकी मुस्कुराहट सिकुड़ गई।

 

“नहीं, इस बार सिर्फ़ दिल टकराया… दीवार नहीं,” विवेक मुस्कराया।

"आपको ये चोट कैसे लगी?"काव्या ने अनजाने में विवेक की चोट को अपनी अंगुलियों की एक पोर से छुआ।विवेक का दिल तेज धड़कने लगा।

"कुछ नही ये तो बस छोटी से चोट है"!

 

"आपको मेरी चिंता हो रही है?"विवेक ने उसकी आंखो में झांक कर देखा, काव्या ने तेजी से अपनी उंगली दूर की और दूसरी ओर देखने लगी।

"नहीं तो...शायद हां!"ये बात काव्या ने धीरे में कही।

 

काव्या ने उसकी ओर देख कर अपने हाथ बांध आखें चोटी कर उसको घूरा।

"आप कुछ ज्यादा ही गलत फहमी में रहते है?"

"बिलकुल भी नही.." विवेक मुस्कुराते हुए बोला।

 

“आप वैसे सख़्त लगते हैं, लेकिन असल में… थोड़ा प्यारे हो।”

 

विवेक ने किताब पकड़ाते हुए कहा —

 

“और आप… बेहद तेज़।

जितनी तेज़ी से मुझ पर चिल्लाती हैं, उतनी ही गहराई से… समझ भी लेती हैं।”

 

दोनों ने एक-दूसरे की आँखों में देखा —

और पहली बार… चुप्पी भी मुस्कराई।

***

 

एक शख्स काले सूट में, बुलेटप्रूफ गाड़ी में बैठकर "सिटी कॉर्प टावर" की सबसे ऊँची मंज़िल पर पहुँचा।

एक काली महंगी गाड़ी एक ऊंची बिल्डिंग के आगे रुकी।

 

उस में से एक शख्स काला चश्मा पहने निकला।

 

उसके  चेहरे पर वही ठंडी कठोरता लौटी।उसके आस पास चार बॉडीगार्ड आकर खड़े हो गए।

"इज एवरीथिंग सेट?"उसने धीमे से कहा।

"येस सर..!"

"गुड.."

***

भीतर मीटिंग रूम —

बड़े इन्वेस्टर्स, इंटरनेशनल पार्टनर्स और दो गार्ड्स।

 

उस शख्स का चेहरा बदला हुआ था —

कड़क आवाज़, स्टील जैसी आंखें, और एक नाम:

"मिस्टर एस.(s.)"

 

किसी ने उसका पहला नाम नहीं लिया।

वो सिर्फ़ एक नाम था — एक शख़्स नहीं, एक सत्ता,एक ब्रांड!"

 

“डील फाइनलाइज्ड. आई डोंट रिपीट माइसेल्फ,”

उसने कहा — और सब खामोश हो गए।

 

किसी ने आज तक पलटकर नहीं पूछा था —

मिस्टर एस ने जो कह दिया वो पत्थर की लकीर थी।

 

****

 

"एक नाम के पीछे दो ज़िंदगियाँ… और दोनों की डोर थी – गुलमोहर।”🥺💗♥️🥺

 

कृपया रेटिंग्स और समीक्षाएं देते रहे।

एक भाग को लिखने में 2 दिन लगते है ,😩

फॉलो करे आगे के अध्याय के लिए:~

~©Diksha singhaniya "मिस कहानी"💗🥺