Hukm aur Hasrat - 5 in Hindi Love Stories by Diksha mis kahani books and stories PDF | हुक्म और हसरत - 5

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हुक्म और हसरत - 5

🌷🌷हुक्म और हसरत 🌷🌷
 
 
🤌सिया+अर्जुन=अर्सिया
 
#ArSia
 
 
अध्याय 5 – “रंग और रहस्य”
 
उस हादसे को हुए एक हफ्ता हो गया था,और अर्जुन को आए हुए 2 महीने,सिया और अर्जन के बीच अभी भी बहस होती थी। 
महल के प्रांगण में हलचल थी। आज “जयगढ़ रंगोत्सव” था — जिसमें महल के सदस्य रंगोली बनाते थे, मिठाइयाँ तैयार होती थीं और मेहमानों का स्वागत होता था।
 
 
सिया सफेद अनारकली में सीढ़ियों से उतरी तो महल की सादगी में जैसे चाँद उतर आया हो।
 
उसके लंबे, खुले बाल लहरों की तरह बह रहे थे। बड़ी-बड़ी बादामी आँखें — जिनमें चंचलता भी थी और चुनौती भी। उसकी मुस्कान… जैसे किसी बंद बगीचे में अचानक खिला फूल।
 
और जब वो चलती, तो यूँ लगता जैसे हवा उसकी चाल से दिशा बदलती हो।
 
अर्जुन ने उसे देखते हुए नजरें मोड़ लीं —
लेकिन उसके अंदर कुछ चुभा। वो ठंडी आँखों वाला रक्षक, एक पल के लिए... देखना भूल गया कि वो किसे बचा रहा है, और क्यों।
 
महल के आँगन में रंगोली प्रतियोगिता रखी गई थी।
सिया ज़िद करके खुद भी बैठ गई — रंग बिखेरते हुए।
"आप रंगोली बनाएंगी?”
काव्या ने पूछा।
 
“हाँ,” सिया ने मुस्कराकर कहा, “मैं रंगों से डरती नहीं। चाहे उनमें ज़हर भी छिपा हो।”सिया ने तिरछी निगाहों से अर्जुन को देखा।😏
 
पास ही अर्जुन खड़ा था। उसकी आँखों ने सब कुछ सुना — लेकिन वो अब भी खामोश था।
 
“राजकुमारी भी घुटनों पर बैठती हैं?”😉
अर्जुन ने कहा, हथियारबंद गार्ड्स के बीच।
 
“राजकुमारी को रंग पसंद हैं, लेकिन ज़ंजीरें नहीं।”
 
सिया ने उसकी ओर देखा —
“आप रंगों से डरते हैं?”😉
"नही!"😑
“मैं सिर्फ़ लाल रंग को पहचानता हूँ — खून का।”
सिया,"😳"
"खडूस!" सिया का मुंह बन गया। वो फिर अपने काम में लग गई।
सिया रंगोली बना रही थी, लेकिन अर्जुन दूर एक कोने में खड़ा उसे बस देख रहा था।
 
काव्या ने फुसफुसाया,
“अगर आँखें इज़हार कर सकतीं, तो अर्जुन सर अब तक प्रपोज कर चुके होते।”😂
 
सिया हँसी, “उनकी आँखों में इज़हार नहीं, पहरा होता है।”
"आपको नही पता वे आपको कैसे देखते है?"😁
"कैसे"
"जैसे ..की वो आपके अलावा कुछ देखना ही नही चाहते!"
सिया ने उसे घूरा। काव्या ने नकली मुस्कान दी।
 
अर्जुन धीरे-धीरे आगे बढ़ा और उसके पास आया।
“आप यहाँ बैठी हैं — ये जगह सबसे ज्यादा ओपन है। कोई भी हमला यहाँ से सबसे आसान है।”😑
 
“क्या आपको लगता है कोई मुझे रंगोली बनाते वक्त मार देगा?”🫂
“खतरे टाइम देखकर नहीं आते,😑
 
"हां और न ही आप।😏”सिया फुसफुसाई।अर्जुन ने उसकी साड़ी का पल्लू हल्के से उठाया —
“ये कोना ज़मीन से घिस रहा था, आप गिर सकती थीं।”सिया ने अर्जुन को देखा ,जो उसे ही एकटक देख रहा था,सिया को काव्या की बात याद आई। उसकी नजर काव्या के मुस्कुराते चेहरे पर पड़ी मानो कह रही हो"देखा ?" सिया ने अपना सिर झटका ।💕✨
"थैंक यू!"💕
 
तभी.....
एक रंग की प्लेट खिसककर दूर जा गिरी।
सिया ने उसे उठाने के लिए झुकना चाहा —
लेकिन उससे पहले अर्जुन ने वो प्लेट उठाई… और गलती से उसकी उँगलियाँ सिया की उँगलियों से टकरा गईं।💗
 
 
वो पल… धीमा, गर्म, और कुछ कहता हुआ।
एक पल को सब कुछ ठहर गया।✨💕
 
सिया ने उसकी उँगलियों की पकड़ महसूस की — मज़बूत, मगर निडर हुई।
 
“छोड़िए...”सिया ने हल्की आवाज में कहा।😳
“गिर जातीं आप।”अर्जुन ने सिया के चेहरे को एक बार देखा और उस से बोला। सिया अर्जुन के इस देखने से घबरा गई,उसका चेहरा लाल पड़ गया,उसने काव्या की हंसी महसूस की जो उन्हे देख कुछ के रही थी। सिया और हड़बड़ा गई।😳💕
 
“आपकी पकड़ ज़्यादा भारी है।”सिया ने इस बार पलके झुका ली।😌
 
अर्जुन ने बिना कुछ कहे हाथ छोड़ा, मगर उसकी नज़रें कुछ और कह चुकी थीं —
पहली बार वो सिया को सिर्फ़ एक ज़िम्मेदारी नहीं, एक अहसास की तरह देख रहा था।
तभी कोई आया और उसने अर्जुन के कान के कुछ कहा,अर्जुन का चेहरा गंभीर हो गया, वो वहां से चल दिया।
 
अर्जुन अब सिया के कमरे का निरीक्षण कर रहा था।
 
खिड़की के पास एक पुराना शोपीस जो पहले वहाँ नहीं था।
उसने ध्यान से देखा — उसमें एक छोटा लेंस छुपा हुआ था।
 
“ये... कैमरा है।”
 
उसने तुरंत उसे निकाला और सील किया।
साथ ही सुरक्षा टीम को तलब किया।
 
“अब ये सिर्फ़ सुरक्षा नहीं, एक जंग है। कोई सिया को देख रहा है… उसके हर पल पर नज़र रखी जा रही है।”
****
रंगोली की तैयारी के बीच, एक आदमी सादे ग्रे कुर्ते में आया।
 
विवेक राठौड़ – अर्जुन का पुराना दोस्त और उदयपुर के शाही सचिवालय का सलाहकार। शांत, गंभीर, और आँखों में गहराई।
 
काव्या, जो सिया की पर्सनल असिस्टेंट थी, रंगोली में उलझी हुई थी जब उसके हाथों से गुलाबी रंग गिर गया।
 
“आपका गुलाबी रंग यहाँ गिरा है…”
विवेक ने झुककर रंग उठाया और उसकी हथेली पर रख दिया।
 
कव्या चौंकी।
“थ…थैंक्यू…”
 
“आपका नाम?”
“क…काव्या।”
“कविता में जितना भाव होता है, शायद उतना ही आपके नाम में भी है।”
 
कव्या उसे देखती रह गई… और विवेक मुस्कराते हुए आगे बढ़ गया।
दिल में हल्की सी सरसराहट छोड़कर।
****
 
सिया लाइब्रेरी में बैठी थी, किताबें बिखरीं, चाय का प्याला हाथ में।
 
मीरा अंदर आई —
“आज तुम्हारा चेहरा बता रहा है कि कोई तुम्हारे ज़ेहन में है।”
 
“नहीं, ज़ेहन में कोई नहीं… लेकिन दिमाग में एक नाम घूम रहा है,”
सिया मुस्कराई, “विक्रांत सिंह।”
आ रहे है महल में !"मैने सुना है वे राजनीति खूब पसंद करते है।
 
मीरा हँसी, “वो आदमी हर बात में विवाद डाल सकता है। उसका दिल किसी बहस से ही धड़कता है।”
 
“फिर आप क्यों हर बार उसकी आंखों में उलझ जाती हैं?”
सिया ने चाय का घूँट लिया। सिया होले से मुस्कुरा कर मीरा को देखने लगी।
 
मीरा थोड़ा गंभीर हुई —
“क्योंकि कोई-कोई दुश्मन… तुम्हें खुद से ज़्यादा पहचानता है।
सिया उसकी बात पर उसे ध्यान से देखने लगी।
रात के खाने में सिया अकेले बैठी थी।
अर्जुन थोड़ी दूर बैठा, मगर उसकी नज़रें सिया पर थीं।
 
उसने देखा — सिया के हाथ में हल्की सी खरोंच थी।
 
“आपको क्या हुआ?”
अर्जुन पहली बार खुद चला आया।
 
“रंगोली बनाते वक्त लग गया,” सिया बोली।
 
अर्जुन ने बिना कुछ कहे अपनी जेब से छोटा फर्स्ट-एड बॉक्स निकाला —
और हल्के से पट्टी बांध दी।
 
“मुझे चोट लगती है, तो आपको गुस्सा आता है।”
“आपको परवाह है?”
अर्जुन की आँखों में हल्की सी जलन थी —
“हां, पर एहसास ज़हर बन जाएगा।”सिया एक पल को चुप हो गई। कुछ तो बदल रहा था इनके बीच कुछ अनकहा सा।
 
“मैं सोच रही हूँ… अगर मैं किसी जाल में फँसी हूँ, तो उसका रक्षक इतना सख़्त क्यों है?”😏
 
अर्जुन ने मन ही मन कहा —
 
“क्योंकि मैं भी एक जाल में हूँ… जिसका नाम है ‘बदला’। और उसमें मोहब्बत की कोई जगह नहीं।”😑
 
सिया ने उसकी आँखों में देखा —
 
“आपके अंदर कुछ मर चुका है, अर्जुन। मगर शायद… कुछ अब भी ज़िंदा है।”
 
अर्जुन मुड़ गया।
“जो ज़िंदा है, उसे मरने दीजिए। वो बचा नहीं पाएगा आपको।”😑
 
©Diksha 
जारी(..)
 
"""""💕💕
 
मेरे प्यारे पाठको Para 💕hearts आपको ये अध्याय कैसा लगा बताना जरूर! बहुत धन्यवाद आपके प्यार के लिए।
 
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आपके बिना ये सफर अधूरा है — क्योंकि मैं लिखती हूँ **आपके लिए, मेरे Parahearts के लिए।** ❤️
 
— आपकी लेखिका,  
 ✍️  𝔻𝕚𝕜𝕤𝕙𝕒 𝕄𝕚𝕤 𝕂𝕒𝕙𝕒𝕟𝕚 💌
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