♥️✨♥️✨हुक्म और हसरत ✨♥️✨♥️
🤍🤍#Arsia 🤍🤍
अध्याय 10:✨🫂🤍♥️
राजपरिवार की ओर से सिया को एक दूसरे राज्य — कोटा में सरकारी कार्यक्रम के लिए जाना था।
अर्जुन हमेशा की तरह साथ था, लेकिन कुछ बदला-बदला सा।
वो चुप था, लेकिन हर वक्त उसकी आँखें सिया पर थीं।
प्रेस मीटिंग के दौरान, जब एक पत्रकार ने सिया के कपड़ों पर टिप्पणी की,
अर्जुन ने सख़्त लहजे में कहा —
“मशवरा देने से पहले आइना देखा कीजिए… राजकुमारी की गरिमा आपकी सोच से कहीं ऊपर है।”
सिया चौंकी।
वो कभी नहीं चाहती थी कि अर्जुन इस तरह सबके सामने उसके लिए बोले… पर अंदर कहीं कुछ पिघल गया था।
वो कोई बॉडीगार्ड नहीं लग रहा… वो उसका साया, उसका सवाल… और उसका जवाब बन चुका है।
“तुम्हें अगर मैं खुद से ज्यादा चाहने लगी हूँ अर्जुन,”
“तो क्या तुम भी कभी अपने नाम से बाहर आओगे…?”सिया ने मन में कहा।🥺😩
**
दूसरे दिन सुबह:~
कोटा प्रवास के दूसरे दिन राजकीय दल को जंगल सफारी के साथ एक सांस्कृतिक कार्यक्रम में आमंत्रित किया गया।
शाही प्रतिनिधिमंडल वहां पहुंचा — झीलों, पेड़ों और हल्की हवाओं से भरा जंगल।
महल से सुरक्षा के सारे इंतज़ाम किए गए, पर भीड़ में सिया अकेले पड़ गई।सिया, भीड़ से अलग… अकेली एक पगडंडी पर निकल पड़ी।
उसके चेहरे पर जिज्ञासा थी — लेकिन रास्ते अनजान थे।
कुछ देर में धूप कम हुई, रास्ता भटक गया…
और उसकी साँसें तेज़ होने लगीं।
घबराहट में वो रास्ते से भटक गई… जंगल की पगडंडियों पर,
पेड़ों के बीच, अजीब सी चुप्पी… और दूर तक कोई नहीं।
पेड़, पत्ते… चुप्पी… और अचानक — अंधेरा।
जैसे ही उसने पीछे देखा — अर्जुन कहीं नज़र नहीं आया।
“अर्जुन… अर्जुन…” वो पुकारती रही।🥺🥺
उसके पैर लड़खड़ाए, साँस तेज़ हुई… और अचानक सब धुंधला हो गया।
सिया बेहोश होकर ज़मीन पर गिर पड़ी।
***
जब सिया की आँखें खुलीं,
वो होटल के अपने कमरे में थी।एक सॉफ्ट बेड पर, एसी की आवाज़ के साथ।
मुलायम बिस्तर, गरम चाय, और बाहर हल्की बारिश।
उसे कुछ याद नहीं था —
ना अर्जुन, ना जंगल, ना रास्ता।
“ये… मैं यहाँ कैसे?”
उसने अपने हाथों पर देखा — मिट्टी थी, पत्तों के निशान थे।
पर याद सिर्फ़… जंगल का अँधेरा और वो आवाज़ — "मैं यहाँ हूँ, मोह!🥺 और कोई उसे अपने सीने से लगाए दौड़ रहा था।
सिया ने कमरे से बाहर आकर देखा तो अर्जुन अपने कान में ब्लूटूथ लगाए लैपटॉप के सामने बैठा था।
"आपको कुछ चाहिए?"अर्जुन ने सिया को देख पूछा।
सिया ने ना में गर्दन हिला दी।
सिया ने भीतर अपने कमरे में लगे आईने में खुदको देखा
"क्या ये भी एक सपना था?"😩💗
***
तीसरे दिन, जब सिया और अर्जुन एक NGO के कार्यक्रम में शामिल होने के लिए महल से बाहर निकले,
भीड़ के बीच से अचानक एक बंदूक़धारी ने सिया की ओर निशाना साधा।
“सिया, नीचे झुको!”
अर्जुन ने कूदकर उसे ढक लिया।
गोली अर्जुन के कंधे को छूती हुई निकल गई —
दूसरा वार उसने हाथ से रोका। खून बह रहा था, लेकिन उसकी आँखें सिया पर थीं, न कि ज़ख़्म पर।
सुरक्षा ने हमलावर को पकड़ लिया।
पर सिया अर्जुन को खींचकर कार में ले गई, उसकी आँखों में आँसू थे।
“तुम्हारा क्या होता अगर मैं...”
"मैं हूँ न,” अर्जुन ने उसी बर्फ़ जैसे चेहरे से कहा।
सिया ने एक बार फिर अर्जुन की शर्ट की तरफ देखा, जो खून से लाल थीं।
"आप ठीक हो ?"अर्जुन ने सिया के गाल के आंसुओ को अपने अंगूठे से साफ किए।सिया ने रोते हुए अर्जुन की आंखों में देख कर हां में सिर हिला लिया और उसके सीने से अपना सिर लगा लिया। सिया के करीब आने से अर्जुन के अंदर कुछ पिघला।उसने अपने दूसरे हाथ से सिया के सिर को हल्के से सहलाया और अपने होठ हल्के से उसके बालो में छुवा दिए,अनजाने में।
"सब ठीक है!"हम्म्म...मैं हूं ना!"अर्जुन ने धीरे से बेहद प्यार से सिया से कहा,पर सिया की आंखों से आसू बहे जा रहे थे,अर्जुन की शर्ट गीली हो रही थी, उसके बाल बिखरे हुए थे।हमेशा एक दम परफेक्ट रहने वाला आदमी आज उलझा हुआ था।आज अगर कोई अर्जुन को इस देखे तो उसे एक बड़ा झटका जरूर लगता।
**
अर्जुन दो दिन तक बिस्तर पर पड़ा रहा, डॉक्टर ने आराम की सलाह दी थी।
पर असली दवा थी — सिया की देखभाल।
वो हर दो घंटे बाद उसका पट्टी बदलती,
गरम सूप लाकर पिलाती, और जब वो आँखें बंद करता —
उसकी उंगलियाँ उसके माथे पर चलतीं।
“तुम ऐसे क्यों हो, अर्जुन?”वो हर बार जब आँखें खोलता, सिया को वही मिलती —
गुलमोहर की खुशबू सी चुप, मगर नर्म।
“खुद को मिटा देते हो… किसी को बचाने के लिए जो तुम्हें ठीक से जानता भी नहीं…”
“मुझे जानने की ज़रूरत नहीं…
अगर उसकी साँसें चलती रहें,”
अर्जुन ने जवाब दिया आंखे बंद किए मन में।उसके बाद उसने अपनी आंखे खोली।
“तुम्हें दर्द हो रहा है?”
“नहीं,” अर्जुन बोला, “तुम्हें देखकर सब सहा जा सकता है।”अर्जुन ने मन ही मन कहा।
उसकी आवाज़ धीमी थी — लेकिन असर गहरा।
अब दोनों के बीच सन्नाटा नहीं था।
छोटी-छोटी बातें — खाना कैसा है, बाहर का मौसम, कव्या की शिकायतें…
और बीच-बीच में कुछ गहरी नज़रें।
एक दिन चुप्पी तोड़ते हुए, सिया ने धीरे से पूछा —
“अर्जुन… उस दिन जब मैं जंगल में खो गई थी,
और फिर… अपने कमरे में थी… क्या हुआ था?”
अर्जुन ने उसके चेहरे की तरफ देखा —
फिर खिड़की की ओर मुड़ गया।
मुझे कुछ याद नहीं…”
मैं… ले आया था।”
“कैसे?”
“आपने मुझे खोजा?”
“इतना दूर… अकेले…?”सिया ने उसकी तरफ देख कहा।
“आप बेहोश थी।”
“मैं आपको उठा कर लाया था,बस!"
“इतना ही?”
“तुम कुछ कह रहे थे… मैंने सुना था शायद…” सिया फुसफुसाई।
अर्जुन ने अपनी आँखें बंद कीं, और ठंडी आवाज़ में कहा:
“तुम्हारी धड़कन थी… और मेरा कर्तव्य।”
"आप मेरी ज़िम्मेदारी हो।”
आँखें अब भी बर्फ-सी शांत थीं, लेकिन उस ठंड में जली हुई राख थी।
बस दो शब्द:
“मेरा कर्तव्य।” ये सुनकर सिया अर्श से फर्श पर आकर गिर पड़ी। उसे होश आया, की वो क्या कर रही है?😩
उसका सम्मोहन जैसे टूटा हो!
"मैं उसके लिए साँस ले रही थी…🥺
और वो अब भी मुझे सिर्फ़ एक ज़िम्मेदारी मान रहा था।”😩
सिया ने भींगी आंखो से अर्जुन को देखा और वहां से भाग गई।
वो सीधे जाकर अपने कमरे में रुकी।वो वहीं गेट से टिक खड़ी रह गई — सांसें तेज़, होंठ काँपते।
“क्या ये वही अर्जुन है — जो सिर्फ़ ड्यूटी जानता है…
या वो, जो मुझे खुद से भी ज़्यादा जानता है?”
"मैं उसके लिए साँस ले रही थी…
और वो अब भी मुझे सिर्फ़ एक ज़िम्मेदारी मान रहा था।”
उसी रात…
एक काली गाड़ी महल के बाहर एक ऊँचाई पर रुकी।
अंदर कोई सिया और अर्जुन की तस्वीरें देख रहा था —
“गुलमोहर और पहरेदार।”
उसने फोन उठाया और बस एक वाक्य कहा:
“शुरुआत हो चुकी है…
"जहाँ धड़कन मोहब्बत समझती है… वहाँ कोई इसे सिर्फ़ ‘कर्तव्य’ क्यों कहता है?”
जारी(..)
पाठकों से सवाल
1.क्या अर्जुन वाकई सिर्फ़ अपने कर्तव्य तक सीमित है… या उसकी खामोशी में कुछ और भी छुपा है?
2.जंगल में जो आवाज़ आई — “गुलमोहर”… क्या वो अर्जुन था, या कोई और?
3.वो परछाईं कौन है जो सिया और अर्जुन की हर हरकत पर नज़र रख रही है?
4.क्या "गुलमोहर और पहरेदार" की ये कहानी अब सिर्फ़ मोहब्बत की नहीं, साज़िश की भी बनने जा रही है?
क्या आप तैयार हैं अगले अध्याय के लिए — जहां दिल और राज, दोनों सामने होंगे?कृपया रेटिंग्स और समीक्षाएं देते रहे!
©Diksha singhaniya मिस कहानी