हुक्म और हसरत
#Arsia
अध्याय 4:~“साज़िश और साया” 😈🔥
जो लफ़्ज़ों में न कहे, वो नज़रों से कह रहा था, एक ताज था सर पर… मगर दिल किसी की बंदगी कर रहा था।”✨🌷
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महल की घड़ी ने सात बजाए। सिया ने तकिये के नीचे से फोन निकाला, स्क्रीन पर उँगली घुमाई और फिर गहरी सांस ली।
“फिर से एक महलनुमा सोमवार...”
बाहर से कव्या की आवाज़ आई, “राजकुमारी जी, आपकी ड्रेस प्रेस हो चुकी है — हल्दी रंग की साड़ी या ब्लू कुर्ता?”
“जो भी कम तंग हो,” सिया ने कहा, “आज तंग दिलों से निपटना है, कपड़ों से नहीं।”
आरामदेह सूती साड़ी पहनते हुए सिया ने कहा — “कभी कभी सोचती हूँ, ये महल मेरे फैशन सेंस का दुश्मन है।”
“नहीं मैम, ये सिर्फ़ अर्जुन सर का सेंस है,” कव्या मुस्कराते हुए बोली, “जो आपको सिर्फ़ सादी और सुरक्षित दिखाना चाहते हैं।”
“तो अब मैं चलती-फिरती ज़िंदगी बीमा पॉलिसी हूँ?”
“नहीं, आप एक क़ीमती हीरा✨ हैं — जिसके ऊपर बहुत सी नज़रें हैं।
वहीं दूसरी ओर, अर्जुन काले जिम ट्रैक सूट में, रोज़ की तरह पांच बजे से ही उठ चुका था।
बॉक्सिंग पंच बैग पर घूंसे बरसाते हुए उसके चेहरे पर एक ही बात थी —
“मैं उसे हर हाल में बचाऊँगा… चाहे दुनिया जल जाए।”🔥
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नाश्ते की मेज़ पर आज खास व्यंजन थे —आलू-पूड़ी, अचार और बादाम का हलवा।
सिया झूठी मुस्कान के साथ थाली देख रही थी, “क्या मुझे खाने से ज़्यादा वजन करने का प्रोग्राम दिया गया है?”
तभी अर्जुन, जो हमेशा दूर बैठता था, अचानक रसोई की ओर चला गया। रसोई में कदम रखते ही उसकी नजर सिंक के पास पड़ी एक मरे हुए चूहे पर गई।
पास ही टूटी हुई शीशी, जिसमें कुछ सफ़ेद पाउडर जैसे दाने थे। उसने तुरंत दस्ताने पहने, रसोई स्टाफ़ को बाहर निकाला और एक बॉक्स में सब कुछ सील कर दिया।
महल के रसोईघर से अचानक शोर उठा — “किसने रखा ये?” अर्जुन की ठंडी मगर कड़क आवाज़ गूंजी। सभी कर्मचारी एकदम सन्न। अर्जुन के हाथ में एक मरा हुआ चूहा था — जिसकी जीभ नीली हो चुकी थी।
"ये क्या तमाशा है?” सिया भागती हुई आई।
“पीछे हटिए,” अर्जुन ने उसे हाथ से रोका।
“ये ज़हर से मरा है। और ये वही प्लेट है, जिसमें आपका नाश्ता तैयार किया जा रहा था।”
“ये अब सिर्फ़ खाना नहीं, किसी की ज़िंदगी का मामला है।” “आपका खाना ज़हरीला हो सकता था।”उसने जबड़े भींच के कहा।
सिया का चेहरा ज़र्द पड़ गया। “क्या... ये मेरे लिए था?”
“तुम कहना चाहते हो कोई मुझे मारना चाहता है?”
“मैं कहना नहीं चाहता... मैं यक़ीन से कह रहा हूँ।”
अर्जुन की आवाज़ ठंडी थी — “आप जयगढ़ की वारिस हैं — और बहुतों की रुकावट।”
"राजकुमारी!...को इनके कक्ष में ले जाइए काव्या".. अर्जुन ने कहा।
"जी..!"
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वही ये खबर सुनकर रानी मां और राजा जी सिया से मिलने गए। राजा कुछ देर बाद अर्जुन के पास आए।
" आपने मेरी बेटी की सुरक्षा की जिम्मेदारी ली थी, अर्जुन।” राजा वीर सिंह का स्वर भारी था।
“और मैं निभा रहा हूँ, महाराज। लेकिन अगर कोई महल के भीतर से ज़हर रख सके — तो खतरा बाहर नहीं, यहीं है।” राजा चुप हो गए।
“ राजकुमारी सिया को बचाना सिर्फ़ मेरा फ़र्ज़ नहीं, मेरा मक़सद भी है। ये बात उसने अपने मन में कही।
किसी को भी उसके आसपास ज़रा सी भी छूट नहीं मिलेगी — चाहे वो आपका आदमी हो या मेरा।” ये कहते हुए उसकी आंखे लाल हो गई थी। "
"आज से राजकुमारी सिया की पूर्ण जिम्मेदारी आपकी है अर्जुन"!
"राजकुमारी का अंगरक्षक नही!..साया बनना है आपको"! राजा साहब ने एलान किया।
"जी ..महाराज!"अर्जुन ने कहा ।
अर्जुन ने पूरे महल की सुरक्षा बढ़ा दी —
•CCTV रूम का निरीक्षण,
•सभी स्टाफ़ की तलाशी
•नया सुरक्षा पास सिस्टम
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जयगढ़ यूनिवर्सिटी:
कॉलेज की कैफ़े टेबल पर आरव बैठा था, किताब में डूबा।
“अगर तुम ऐसे ही अकेले बैठोगे, तो लोग सोचेंगे तुम्हें दोस्त नहीं मिलते,” रोशनी ने कॉफी उसके सामने रख दी।
“मुझे भीड़ से डर लगता है,” आरव ने हल्की मुस्कान दी।
“तो फिर मैं तुम्हें डरा रही हूँ?”
“तुम डर नहीं हो... दिलचस्प हो।” रोशनी हँसी।
“तुम्हारे जैसे शांत लड़के भी फ्लर्ट करना जानते हैं, ये जानकर अच्छा लगा!"
"और तुम्हारे जैसी तेज़ लड़कियाँ भी मुझे पागल कर सकती हैं... ये जानकर थोड़ा डर लगा।”दोनो एक साथ हंस दिए।
आरव और रोशनी एक ही कॉलेज में पढ़ते थे। उनकी दोस्ती के चर्चे पूरे कॉलेज में मशहूर थे। जहां आरव सहज वही रोशनी चंचल थी।
***
महल में नया आदेश लगा —
“राजकुमारी के कमरे, रसोई और गलियारे में कोई भी कर्मचारी अब तक पहुँच नहीं पाएगा जब तक अर्जुन सूर्यवंशी स्वयं अनुमति न दें।”
“मैं कोई पक्षी नहीं, एक इंसान हूँ अर्जुन। 😒
"आप मुझे चार कमांडोज़ के बीच घेरकर क्यों रखते हैं?” सिया ने ज़ोर देकर कहा।
“क्योंकि कोई और आपको इंसान नहीं, ताज समझता है। और ताज की कीमत मौत से बड़ी होती है।”
अर्जुन की आवाज़ शांत थी, मगर आँखों में जिद्द और हुक्म दोनों थे।
सिया भड़क गई।
“क्या मैं अब अपने ही महल में कैदी हूँ?
"आप आज़ाद हैं,” अर्जुन बोला, “पर आपकी आज़ादी दूसरों के लिए मौका बन सकती है।”
“मैं किसी का प्यार नहीं हूँ, राजकुमारी... मैं आपका कवच हूँ। और कवच को कोई पसंद नहीं करता।”ये कहकर वो अपने काम में लग गया। सिया उसे बस देखती रह गई खिज कर।
***
सिया अपने कमरे में अकेली बैठी थी, हाथ में वही पीला कुर्ता।
“अब क्या ये कपड़े भी मौत का खतरा बन जाएंगे?”
शाम को सिया के कमरे में खाना रखा गया।
अर्जुन खुद प्लेट थामे आया।
“ये क्या? अब आप खाना परोसेंगे भी?”
“हाँ। जब तक मैं आश्वस्त न हो जाऊँ कि इसमें ज़हर नहीं है।”
सिया ने बिना बोले प्लेट ले ली। वो खाने लगी।
उसके अंदर अब लड़ने की शक्ति नही थी,उसे चुप रहना ही बेहतर समझा।
अर्जुन कुछ दूर खड़ा, उसे देख रहा था — उसकी पलकों की लचक, उसकी आँखों में थकावट... और होंठों पर हल्की मुस्कान।
उसने मुस्कुरा दिया — अनजाने में।
सिया ने देखा तो चौंकी।🙄
“आप... हँसे?”🤔
“नहीं!"
अर्जुन झिझका, “आदत नहीं रही।”😑
"तो आदत डाल लीजिए"😙
"हस्ते हुए इंसान लगते है..आप!"
"और सुपर हैंडसम भी"... ये बात सिया ने मन ही मन में कही।
और होले से अपनी ही बात पे मुस्कुरा दी।😁
खाने के बाद सिया अपनी जगह से उठ गई। आज रात आपके कमरे के बाहर दो गार्ड रहेंगे।”
“इतना सब कर रहे हैं आप… क्या मेरी परवाह है?” अर्जुन कुछ पल चुप रहा, फिर बोला--
"अगर परवाह होती, तो मैं आपको पास रखता। मैं आपको बचा रहा हूँ, "मोह!💕
— खुद से भी।”
ये बात उसने अपने मन में कही।😑
***
महल के सुरक्षागार में बड़ी स्क्रीन पर सिया की दिनचर्या की लाइव फ़ीड चल रही थी।
“ये सबकुछ ट्रैक करने की क्या ज़रूरत है?” सिया ने नज़रें तरेरीं।
अर्जुन एकदम ठंडे लहजे में बोला, “क्योंकि मौत ट्रैक नहीं करती, वार करती है।”
सिया ने कुर्सी पीछे खींची — “आप जैसे आदमी को रिश्ते नहीं आते। आपको सिर्फ़ आदत है… हर चीज़ पर हुक्म चलाने की।”🙄
अर्जुन थोड़ा झुका — “मैं रिश्तों से नहीं, जिम्मेदारी से चलता हूँ। आप चाहें या न चाहें, अब आप मेरी जिम्मेदारी हैं।”
सिया का चेहरा बुझ गया|
***
वही शख्स अपने प्राइवेट ऑफिस में दाखिल हुआ। कमरे की दीवार पर एक डिजिटल स्क्रीन थी —
“S. Holdings – Tokyo Deal Pending”
"Cancel the negotiation."
(बातचीत रद्द करो)😈🔥
उसने इंटरकॉम में कहा।
"Sir, we invested millions—"
“I invested trust.They failed.”
(सर, हमने लाखों का निवेश किया—" "
मैंने भरोसा निवेश किया। वे असफल रहे।")😈🔥
उस शख्स ने पास रखी कॉफी को अपने होठों से लगाया।
उस की आँखों में झलक रही थी — एक आग!
बस अब युद्ध तलवारों से नहीं, फैसलों से होता था।
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जयगढ़ यूनिवर्सिटी में… रोशनी गुलाबी दुपट्टा उड़ाते हुए भाग रही थी — “अरे आरव! तुम्हारी फाइल मेरी बाइक में छूट गई थी!”
आरव, हमेशा शांत, शांत आँखों वाला लड़का — “तुम्हारे जैसा तूफ़ान मेरी लाइफ में है, इसलिए अब आदत सी हो गई है।”
रोशनी मुस्कराई, “क्या मैं तूफ़ान हूँ?”
“हाँ,”
आरव ने हँसते हुए कहा, “मगर अच्छा वाला। जो ज़िंदगी को हिला दे, मगर गिराए नहीं।”
दोनों के बीच कुछ पल को चुप्पी छा गई।
फिर रोशनी ने कहा, “मैं तुम्हारे प्रोजेक्ट में तुम्हारा नाम पहले रखूँगी।”
“और मैं तुम्हारे लिए अपनी सारी नोटबुक छोड़ दूँगा।” दोनो ने एक साथ एक दूसरे को देखा और जोर से हंस दिए।
***
सिया बालकनी में बैठी थी।
“कभी-कभी लगता है, मैं अपनी ही कहानी में किरदार बन गई हूँ…”🤔
उसने आसमान को देखते हुए बुदबुदाया।
पीछे अर्जुन खड़ा था, पर चुप।😑 वो आया, सिया के पास एक शॉल रखी।
“थोड़ी ठंड है।”😑 सिया ने उसे देखा।
“कभी-कभी आप इंसान लगते हैं।”😁
“और कभी-कभी मैं भूल जाता हूँ, कि मैं पत्थर बना हूँ।” उसने सिया की आंखों में देख धीरे से मन ही मन कहा।😑
“आज कुछ नहीं कहोगे?”
उसने पूछा।
“जब ज़िंदगी मौत के करीब से गुज़रे, तो शब्द कम पड़ जाते हैं।”😑
“और जब कोई हर वक्त पहरेदारी करता है... तो साँस भी भारी लगती है।”🙄
अर्जुन धीरे से बोला — “अगर साँसें रुक जाएं, तो दोष मत देना... क्योंकि मैंने आपको खोने की कसम नहीं खाई है — लेकिन बचाने की ज़िम्मेदारी ज़रूर ली है।”😌
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रात गहरी थी। कमरे की बत्तियाँ बुझ चुकी थीं। सिया सो रही थी। अर्जुन खिड़की से बाहर झाँकता रहा।
“जो जहर में घुली हो मोहब्बत, वो दिल नहीं… तख़्त गिराती है। मैं बचाऊँगा भी, और…खुद को उससे छीनता जाऊँगा।”😙
जारी(...)
©Diksha
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तो मेरे प्यारे Para 💗 hearts फैमिली आपको ये अध्याय कैसा लगा बताना जरूर!..
Please give ratings and likes💕🎀
~Diksha mis kahani 😙
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