♥️🤍हुक्म और हसरत♥️🤍
#Arsia ✨✨
अध्याय 8
✨✨✨✨“धड़कनों का धोखा”🌷🌷🌷🌷🌷
महल के गलियारों में अब खामोशी दौड़ रही थी।
महल में आज कुछ अलग था।
सिया और अर्जुन, एक ही जगह थे, लेकिन जैसे दो विपरीत दिशाओं के सितारे।
ना आँखों में मुलाक़ात थी, ना होठों पर कोई बात।
अगर कभी आमना-सामना हो भी जाता — तो अर्जुन मुड़ जाता, और सिया अनकहे सवालों में खो जाती।काव्या ये सब कुछ महसूस कर पा रही थी।
कव्या ने धीरे से सिया को देख कर से कहा,
“कभी-कभी चुप्पी उस चीख से ज़्यादा दर्द देती है, जो दिल से निकलती नहीं...”उसने सिया को अर्जुन की लाल आंखों को देखा जिनमे नींद की चाहत थी या कोई हसरत थी..!
सिया और अर्जुन — जो कभी एक ही नज़र में सबकुछ पढ़ लेते थे,
अब एक ही कमरे में होकर भी एक-दूसरे की तरफ़ नहीं देख रहे।
सिया जब डाइनिंग टेबल पर बैठती, अर्जुन पहले ही उठ जाता।
जब वो बालकनी में जाती, अर्जुन दूसरी तरफ़ चला जाता।
कोई शब्द नहीं, सिर्फ़ सन्नाटा।
“कुछ टूट चुका है,”
सिया ने एक रात कव्या से कहा,
“या शायद कुछ बनने से पहले ही दरक गया है।”सिया ने सामने देखते हुए धीरे से उदास नजरो से कहा।
**
उस शाम अर्जुन अपने कमरे में अकेला बैठा था।
उसका फोन बजा — "दादी माँ"।
“कैसे हो, अर्जुन?”
“जैसा होना चाहिए, वैसा हूँ,” उसने जवाब दिया।
दूसरी तरफ़ से दादी की धीमी आवाज़ आई,
“हर बार ये जवाब क्यों देते हो बेटा?
तुम वो बच्चा नहीं रहे जो अपने माँ-बाप के जनाज़े में भी आँसू रोके खड़ा रहा था।”
अर्जुन की उँगलियाँ काँपीं।
माँ और पापा — जिनकी एक दुर्घटना में मृत्यु हुई थी, जब अर्जुन सिर्फ़ 12 साल का था।उनको भूल पाना आसान नहीं ।
"कब तक यू अकेला रहोगे?..छोड़ दो ये बदला..!आजाओ घर वापिस,मेरे पास...मेरा बेटा,एक आप ही तो है हमारे.!"दादी ने तकड़पकर कहा।
"हमे आपकी जरूरत है, आरव को आपकी जरूरत है और इस रा.."
"माफ करें दादी मां,पर आप मेरा जवाब जानती है,अब में इस
काम को पूरा करने के बाद ही आऊंगा"। अर्जुन ने उनकी बात को काट कर कहा।
“उनके जाने के बाद… मैंने सीखा कि प्यार डराता है, दादी।
कोई भी जिसे मैं चाहता हूँ… वो छीन लिया जाता है।”
“और इसलिए अब तुम किसी को पास नहीं आने देते?”
“नहीं… इसलिए अब जब कोई पास आता है, तो मैं खुद पीछे हट जाता हूँ।”
दादी चुप हो गईं।
“पर वो लड़की,”
"कौन"
“सिया?”...जयगढ़ की राजकुमारी!"
"आपको ...कैसे पता उसके बारे में?"अर्जुन ने पूछा,जब की उसे पता था कि उसकी दादी को कैसे पता चला।
"आपकी दादी हूं.. साब जानती हूं,भला मुझसे कैसे कुछ छुप सकता है?"
“अब जब किसी के लिए दिल धड़क रहा है…
तो क्या तुम खुद से लड़ते रहोगे?”
अर्जुन ने आँखें बंद कर लीं।
"आपको कुछ गलतफहमी हो गई है,मेरा काम बस उनकी हिफाजत करना है!"
"मुझसे तो झूठ बोल लोगे अर्जुन,पर खुद से कब तक बोलोगे?..अपने दिल से कब तक बोलोगे?"
दादी मां की बात पर अर्जुन के जबड़े कस गए ,उस की पकड़ फोन पर कस गई।
"ऐसा कभी नही होगा,दादी मां , मेरी जिंदगी में सिर्फ एक ही मकसद है, उसी के लिए मैं सांस ले रहा हूं,वही पूरा करना मेरा दायित्व है, इस से आप भली भांति परिचित है!"
ये बोलते हुए उसकी आंखे गुलमोहर के फूल पर टिकी हुई थी।
*****
"मैम आज आपको एक डिनर पर जाना है...आप अभी तक तैयार नही हुई?"काव्या सिया के पास उसका सेडयुल ले कर आई। सिया को उसकी बात पर उस दिन का वाक्या याद आया ,जब विक्रांत ने उसे आमंत्रित किया था।
“राजकुमारी सिया,”
विक्रांत सिंह ने दरबार हॉल में विनम्रता से सिर झुकाते हुए कहा,
“कल रात महल से बाहर एक छोटा सा डिनर रखा है।
अगर आप अपने व्यस्त शेड्यूल से थोड़ा वक़्त निकाल सकें, तो ये मेरा सौभाग्य होगा।”
सिया ने थोड़ी देर चुप रहकर देखा।
पास खड़े अर्जुन की निगाहें सीधे उसकी ओर थीं — जैसे शब्द न कहकर भी कुछ पूछना चाह रही हों।
“ठीक है,” सिया बोली, “मैं आऊँगी।”
महल की सीढ़ियों पर जब सिया उतरी — हल्के गुलाबी गाउन में, खुले बालों में मोती जड़े पिन, और होंठों पर हल्की सी मुस्कान…
पूरा माहौल थम-सा गया।
रानी माँ ने मंत्रमुग्ध होकर देखा,
कव्या ने फुसफुसाकर कहा — “आज तो लग रही है जैसे की आप परियों की रानी हो।”
लेकिन एक जो सबसे चुप था — वो था अर्जुन।
उसकी उंगलियाँ मुट्ठी में बंध गईं।
“क्यों ये एहसास हो रहा है, कि मैं उसे किसी और की ओर जाते हुए देख रहा हूँ… और कुछ कर नहीं पा रहा?”
***
सिया जैसे ही बाहर जाने लगी, मीरा ने उसका रास्ता रोक लिया।
“तुम सच में उसके साथ जा रही हो, सिया?”
“वो बस एक डिनर है,” सिया ने कहा।
“नहीं,” मीरा बोली, “वो एक चाल है।
और तुम भूल रही हो, कि उस खेल में तुम्हारी मुस्कान भी एक मोहरा बन सकती है।”
“मीरा—”
“मैंने बहुत करीब से देखा है, सिया।
वो तुम्हें पसंद नहीं करता —
वो तुम्हारी पोज़ीशन, तुम्हारी ताक़त और शायद अर्जुन की कमजोरी पसंद करता है।”
"अर्जुन की कमजोरी ?..वो भी मैं ,अर्जुन एक आम सा अंगरक्षक है, उसका और विक्रांत का कोई मेल नही है?"सिया ने अर्जुन की तरफ देख कर कहा, जी उनसे कुछ दूर खड़ा था,सिया उस और चल दी।
"तुम्हे नही पता सिया,की एक तुम ही हो जो अर्जुन की कमजोरी बन सकती है, तुम्हे नही पता की अर्जुन कौन है?"मीरा ने सिया की पीठ हो देखते हुए मन में बोला।
*****
टेबल पर मोमबत्तियाँ जल रही थीं, हल्का संगीत बज रहा था, और रेशमी पर्दे हवा में लहरा रहे थे।
विक्रांत ने सिया की कुर्सी खींचकर कहा,
"राजकुमारी को आज मेरे साथ खाना खाने की इजाज़त देना…
क्या ये समझा जाए कि अब जयगढ़ थोड़ा नरम पड़ रहा है?"
सिया मुस्कराई, मगर आँखों में सतर्कता थी —
"जयगढ़ कभी नरम नहीं होता, विक्रांत जी।
बस कुछ बातें… मन से होती हैं, मुनासिब से नहीं।"
विक्रांत हँसा,
विक्रांत हँस पड़ा, “आप भी तो हर बात में तलवार छुपाए रखती हैं — बातों में भी और मुस्कान में भी।”
“महलों में पली लड़की हूँ, विक्रांत।
यहाँ हर मुस्कान शास्त्र होती है… और हर बात राजनीति।”
विक्रांत उसकी ओर झुककर बोला,
“राजनीति हो या मोहब्बत, मुझे हर खेल में दिलचस्पी है…
बशर्ते खिलाड़ी आप हों।”
सिया थोड़ी असहज होकर मुस्कराई, लेकिन कुछ बोली नहीं।
दूर खड़े अर्जुन ने सब कुछ देखा।
सिया की हँसी, विक्रांत की झुकी निगाहें… और दोनों के बीच की वह ग़ैर-ज़रूरी नज़दीकी।
उसके मुट्ठियाँ कस गईं।
उसने कान में वायरलेस रेडियो को ठीक किया —
“सिक्योरिटी चैक — कीप डिस्टेंस फ्रोम गेस्ट.”
आवाज़ सख़्त थी।
सामने से आवाज आई?
“सर ,आर यू ओके?”
“उस लड़के की हर हरकत रिपोर्ट करो,”
अर्जुन बोला, "इंक्लूडिंग व्हेर हिज आइज गो”
विक्रांत का झुकना, सिया की मुस्कान… हर लम्हा उसकी धड़कनें तेज़ कर रहा था।
****
कॉलेज कैंटीन में आरव और रोशनी बैठे थे।
तभी एक लड़का – करण – रोशनी को कॉफी ऑफर करता है।
“आपका प्रेजेंटेशन शानदार था। ये आपके लिए।”
रोशनी ने मुस्कराकर कप लिया।
आरव बिना कुछ कहे देखता रहा… फिर धीरे से उठा।
“कहाँ जा रहे हो?” रोशनी ने पूछा।
“तुम्हें बधाई देने वालों की लाइन लंबी है, मैं कहीं पीछे रह जाऊँ — उससे अच्छा है मैं... दूर हो जाऊँ।”
रोशनी कुछ समझती, तब तक आरव जा चुका था।
उसके होंठों से निकला सिर्फ़ एक शब्द —
“बच्चा कहीं का…”
थोड़ी देर बाद रोशनी आरव के पास ही,जो अपनी सीट पे बैठा था।
आरव ने हल्के तंज में कहा,
“शायद अब तुम्हें मेरी ज़रूरत नहीं रही?”
रोशनी चौंकी।
“तो ये बात थी… तुम्हें जलन हो रही है?”
आरव ने नज़रें चुराईं।
“नहीं... मुझे आदत है तुम्हें सिर्फ़ मेरे साथ देखने की।”आरव ने दूसरी ओर देखते हुए कहा।
रोशनी मुस्कराई,
“ओ!...मेरा आरू गुस्सा हो गया,तुझे तो पता है ना,की मैं सिर्फ तेरी बेस्ट फ्रेंड हु,इसमें जलने की कोई बात नही है!”
रोशनी ने आरव के गाल खींचते हुए खिलखिलाकर कहा।
"ऐ!...मुझसे ऐसे आरु मत बोला कर!"आरव ने चीड़ कर कहा।
"मैं तो बोलूंगी, आरू!..
"मेरा आरू!" रोशनी जोर जोर से बोली ।उसकी हरकत पर आरव ने अपना सिर पीट लिया।
"हां.. हां देवी जी मुझे माफ करो"!आरव की इस हरकत पर रोशनी खुल कर हंस दी।
***
सिया उठी तो विक्रांत बोला,
“आपके बॉडीगार्ड जनाब मुझे ज्यादा पसंद नहीं करते लगता है…”
“उन्हें किसी से लगाव नहीं,”
“सिर्फ़ जिम्मेदारियाँ निभाने की आदत है,”
सिया ने बिना देखे कहा।
विक्रांत ने गहराई से सिया को देखा —
“पर क्या आप उनसे कुछ और उम्मीद करतीं है?”
"न..नहीं!"सिया ने हिचकिचाकर कहा"।
**
डिनर के बाद विक्रांत ने सिया को ड्रॉप किया, मगर रास्ते में मौसम बिगड़ गया।
महल लौटते वक़्त, महल की गाड़ी खराब हो गई।
तभी अर्जुन, जो सिया की छुपी सुरक्षा में लगा था, वहां पहुँचा।
“गाड़ी से उतरिए। जंगल का रास्ता शॉर्टकट है, मैं लेकर चलता हूँ।”
सिया कुछ नहीं बोली। दोनों साथ चलने लगे — लेकिन बोल कोई नहीं रहा था।
तभी तेज़ बारिश शुरू हो गई।
सड़क बंद —
दोनों को एक पास के पुराने शिकार घर में रुकना पड़ा।
सिया भीगी हुई, गाउन की भीगी हुई साटन त्वचा से चिपकी हुई थी।
अर्जुन का चेहरा गीला, बालों से पानी टपक रहा था। अर्जुन
ने अपना काली जैकेट उतार कर सिया के कंधो पर डाल दिया।
सिया ने अर्जुन की इस हरकत पर उसकी तरफ देखा।सिया ने उस कोठ को अपनी बाहों ने डाल पहन लिया।अर्जुन की भीनी खुशबू को महसूस कर उसने एक लंबी सांस भरी ,वो उसकी खुशबू में मुस्कुरा दी,उसने पीछे अर्जुन को देखा। इतने दिनो बाद आज वो खुल कर मुस्कुराई।
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“मैं उसकी बाँहों में साँसें गिन रही थी…
और वो — किसी और सन्नाटे में खुद को खो रहा था।”
~सिया
© Diksha
जारी(...)
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रेटिंग्स देते रहे मुझे लिखने में प्रोत्साहन मिलता है!🫂🫂
© Diksha singhaniya "mis kahani"😘