Samta ke Pathik: Bhimrao - 10 in Hindi Biography by mood Writer books and stories PDF | समता के पथिक: भीमराव - 10

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समता के पथिक: भीमराव - 10


एपिसोड 10 – संसद के गलियारों से संविधान सभा तक

नई दिशा की खोज

महाड़ तालाब और कालाराम मंदिर आंदोलन ने बाबासाहेब अंबेडकर को केवल एक समाज सुधारक ही नहीं, बल्कि जनता का असली नेता बना दिया था। अब सवाल यह था कि क्या केवल सामाजिक आंदोलन से दलितों का उद्धार होगा?
अंबेडकर समझ चुके थे कि असली ताक़त राजनीति में है। बिना राजनीतिक शक्ति के कोई भी समाज हमेशा दूसरों का गुलाम बना रहेगा।

वे अक्सर कहते—
“जिस समाज के पास सत्ता नहीं होती, वह समाज दूसरों की दया पर जीता है। हमें अपना भविष्य खुद लिखना होगा।”

पहला राजनीतिक कदम – स्वतंत्र श्रमिक पार्टी

1936 में बाबासाहेब ने Independent Labour Party (स्वतंत्र श्रमिक दल) की स्थापना की।
यह पार्टी केवल दलितों की नहीं, बल्कि सभी मजदूरों और किसानों की आवाज़ थी।

मुंबई और आसपास की मिलों में काम करने वाले मजदूर उनकी रैलियों में उमड़ पड़ते।
वे कहते—
“अंबेडकर हमारी जाति के नहीं, हमारी पीड़ा के नेता हैं।”

दलित समाज पहली बार महसूस कर रहा था कि वह राजनीति में भी अपनी पहचान बना सकता है।

चुनावों में सफलता

1937 के चुनावों में बाबासाहेब की पार्टी ने 15 सीटें जीत लीं।
ये जीत भले ही बड़ी न हो, लेकिन दलित समाज के लिए यह पहली ऐतिहासिक विजय थी।
पहली बार उन्होंने विधानसभा के गलियारों में अपनी आवाज़ गूँजाई।

अंबेडकर ने वहाँ खड़े होकर कहा—
“हम इस सदन में भी वही कहेंगे जो सड़कों पर कहा था। अगर दलितों के अधिकार दबाए गए, तो यह सदन हमें शांत नहीं कर पाएगा।”

अंबेडकर और गाँधी का टकराव

इसी बीच, बाबासाहेब और महात्मा गाँधी के बीच कई बार विचारों का टकराव हुआ।
गाँधी मानते थे कि “हरिजन” शब्द से दलितों का सम्मान होगा, जबकि अंबेडकर कहते—
“हमें ‘हरिजन’ कहकर दया मत दिखाइए, हमें बराबरी का अधिकार दीजिए। हम दया नहीं, न्याय चाहते हैं।”

पूना पैक्ट (1932) के समय जो मतभेद उभरे थे, वे आगे भी कई बार सामने आए।
लेकिन अंबेडकर का विश्वास साफ था—
“राजनीतिक शक्ति ही सामाजिक मुक्ति की चाबी है।”

स्वतंत्र भारत और संविधान सभा

1947 में भारत आज़ाद हुआ।
लेकिन यह आज़ादी दलितों के लिए अधूरी थी, अगर उनके अधिकार संविधान में दर्ज न हों।

संविधान सभा के गठन में जब बाबासाहेब को ड्राफ्टिंग कमेटी (संविधान मसौदा समिति) का अध्यक्ष चुना गया, तो यह ऐतिहासिक क्षण था।
अब उनके हाथ में वह कलम थी, जिससे भारत का भविष्य लिखा जाना था।

संविधान सभा का संघर्ष

संविधान सभा में 299 सदस्य थे, और हर कोई चाहता था कि संविधान उनकी सोच को प्रतिबिंबित करे।
बहुत से लोग बाबासाहेब को पसंद नहीं करते थे। उन्हें लगता था कि एक दलित नेता कैसे इतने बड़े काम का नेतृत्व कर सकता है।

लेकिन अंबेडकर ने अपनी विद्वता, तार्किक सोच और अटूट संकल्प से सबको चुप करा दिया।
जब वे बोलते, तो पूरा सदन मंत्रमुग्ध होकर सुनता।

उन्होंने कहा—
“हमारे संविधान का पहला लक्ष्य यही होना चाहिए कि कोई भी नागरिक अपने धर्म, जाति या लिंग के कारण भेदभाव का शिकार न हो।”

संविधान की आत्मा – समानता

बाबासाहेब ने संविधान में कई ऐतिहासिक प्रावधान जोड़े:

समानता का अधिकार (Right to Equality)

अस्पृश्यता का उन्मूलन (Abolition of Untouchability)

आरक्षण की व्यवस्था ताकि दलित और पिछड़े समाज को बराबरी का अवसर मिले।

मौलिक अधिकार (Fundamental Rights) जिससे हर नागरिक अपने अधिकारों के लिए खड़ा हो सके।


उन्होंने साफ कहा—
“राजनीतिक लोकतंत्र तभी सफल होगा, जब वह सामाजिक और आर्थिक लोकतंत्र की ओर ले जाए।”

संविधान का अंगीकरण

26 नवंबर 1949 को संविधान सभा ने भारत के संविधान को अंगीकार किया।
जब बाबासाहेब ने अंतिम मसौदा प्रस्तुत किया, तो उनकी आँखों में नमी थी।
वह जानते थे कि यह केवल एक दस्तावेज़ नहीं, बल्कि करोड़ों दलितों, किसानों, मजदूरों और स्त्रियों की आशाओं का सपना था।

उन्होंने कहा—
“आज मैं देख रहा हूँ कि सदियों से पीड़ित समाज की आवाज़ इस संविधान में दर्ज हो गई है। लेकिन मैं चेतावनी भी देता हूँ—अगर हमने सामाजिक असमानता को खत्म नहीं किया, तो यह लोकतंत्र एक खोखला ढाँचा बन जाएगा।”

देशव्यापी सम्मान

संविधान लागू होने के बाद अंबेडकर को पूरे देश में सम्मान मिला।
लोग उन्हें “भारतीय संविधान के शिल्पकार” कहने लगे।
दलित समाज गर्व से कहता—
“देखो, हमारे बीच से निकला एक बेटा आज पूरे भारत का संविधान लिख रहा है।”

राजनीति में प्रवेश से लेकर संविधान निर्माता बनने तक का सफर आसान नहीं था।
लेकिन बाबासाहेब ने हर अपमान, हर बाधा और हर विरोध का सामना किया।
उन्होंने दिखाया कि अगर संकल्प अटूट हो, तो गुलामी की सबसे मज़बूत जंजीरें भी टूट जाती हैं।

अब अंबेडकर केवल एक दलित नेता नहीं रहे, वे पूरे भारत के पथप्रदर्शक बन चुके थे।