(सबेरे होस्टेल में आद्या, 18 साल की, अपनी बेपरवाह नींद में मस्त है, जबकि उसकी सहेलियां स्नेहा और सुरभि प्रार्थना सभा के लिए तैयार होती हैं। आद्या अचानक वहीं खड़ी होती है, उसकी नीली आँखों में अद्भुत शक्ति झलकती है, और उसे नागों की फुसफुसाहट सुनाई देती है। क्लास में मिस सक्सेना की निपुणता के बीच आद्या नींद से जूझती है। शाम को, सड़क पर स्नेहा पर हमला होता है, लेकिन आद्या अपने अद्भुत शक्तियों के साथ उसे बचाती है। कमरे में वापस, आद्या खिड़की से बाहर नागमानवों को देखती है। फुफकार बुलावा बन चुकी है; कुछ बड़ा होने वाला है। अब आगे)
कहां है रूचिका
सुबह की किरणें कमरों में दस्तक दे रही थीं। हॉस्टल की गलियों में लड़कियों की चहल-पहल शुरू हो चुकी थी।
कमरा नंबर 107
सुरभि स्नेहा को तैयार करने में लगी थी। आद्या, हमेशा की तरह, अपने बिस्तर में लिपटी हुई थी।
"उठ जा, मेरी मां!" स्नेहा ने एक तकिया आद्या के ऊपर फेंकते हुए कहा — "कुछ ही दिन बचे हैं परीक्षा के लिए!"
"उठ रही हूं बाबा, उठ रही हूं..." — आद्या ने आँखें मसलते हुए कहा — "अरे! तू भी स्कूल जा रही है? तुझे तो आराम करना चाहिए।"
"I'm fine, darling." — स्नेहा मुस्कुराई।
"आज प्रार्थना नहीं होगी।" — आद्या ने आलस्य से कहा।"क्यों?"
सुरभि हँसी — "आद्या जी विद्यालय में कोई नई क्रांति ला रही है क्या?"
"देखते रहो..." — आद्या ने अंगड़ाई ली।
स्नेहा बोली — "चल सुरभि! ये तो घोड़े से तेज़ दौड़कर खुद पहुँच जाएगी, हम तो लेट हो जाएँगे।"
और दोनों बाहर निकल गईं। तभी लाउडस्पीकर से आवाज़ गूंजी —"प्रतिभा विद्यालय की सभी छात्राओं को सूचित किया जाता है कि आज की प्रार्थना सभा और कक्षाएं कुछ अपरिहार्य कारणों से स्थगित की जाती हैं। कृपया सभी छात्राएं अपने-अपने कमरों में रहें। I repeat कोई भी छात्रा बाहर न निकले।"
हॉस्टल की हवा जैसे थम गई। स्नेहा और सुरभि हैरानी से एक-दूसरे को देखती हुई अपने कमरे में लौट आईं। आद्या वापस नींद की आगोश में जा चुकी थी।
"सोने दे इसे। वैसे भी छुट्टी हो गई है आज।" — सुरभि ने धीरे से कहा।
"लेकिन स्कूल अचानक बंद… कुछ गड़बड़ तो नहीं?" — स्नेहा चिंतित थी।
"मेरी नींद पूरी करवाने के लिए स्कूल बंद हुआ है।" आद्या की आवाज़ तकिए के अंदर से आई।
तभी दरवाज़ा खुला। एक लड़की अंदर आई — चंचल। "तुम्हें पता है स्कूल बंद क्यों हुआ?" — उसने फुसफुसाकर पूछा।
"सब कुछ हम पता लगाएंगे तो खबरीलाल चंचल का क्या होगा?" आद्या आँखें बंद रखते हुए बोली। चंचल गुस्से से लाल हो गयी।
सुरभि हँस दी — "छोड़ उसे, तू बता न!"
"लेकिन पहले दरवाज़ा बंद कर लो," — चंचल ने फुसफुसाते हुए कहा और पास आकर बोली —"रूचिका… रूचिका गायब है।"
"क्या??!" स्नेहा और सुरभि चौंक उठीं। उसकी आवाज़ बहुत धीमी थी, फिर भी आद्या के कानों में गूंज गई। उसने एकदम से आँखें खोलीं। नींद जैसे किसी गहरे डर ने चुरा ली थी। "ऐसे कैसे हो सकता है?" — स्नेहा फुसफुसाई — "रूचिका तो बहुत जिम्मेदार है…"
उसी वक्त आद्या को अहसास हुआ — कोई उसे देख रहा है।उसने नज़रें बचाईं, कुछ नहीं कहा, और चुपचाप बाथरूम में चली गई। लेकिन उसके मन में कोई हलचल शुरू हो चुकी थी। रूचिका का अचानक इस तरह गायब हो जाना… और वो अजीब सी निगाह…अब यह केवल छुट्टी वाला दिन नहीं था। यह किसी और डरावनी शुरुआत की आहट थी।
बाथरूम के कोने में हलकी भाप उठ रही थी। आद्या बाल्टी में पानी भर रही थी, तभी उसकी नज़र शीशे पर पड़ी। मिरर में एक परछाई बन रही थी। काले रंग का एक अजीब आकार — जो उसकी नहीं लग रही थी। उसका शरीर सिहर गया। उसने तेज़ी से नहाना खत्म किया, कपड़े बदले, और बिस्तर समेटने लगी — लेकिन उसकी आँखें बार-बार उस मिरर की ओर खिंच जातीं। उस परछाई ने कुछ तो कह दिया था — बिन शब्दों के।
दोपहर ढल रही थी। लड़कियां गहरी नींद में डूबी थीं। आद्या चुपके से रूचिका के कमरे में जा घुसी। कमरे में दो सहपाठी सो रहे थे। धीरे-धीरे वह रूचिका के बेड की तरफ बढ़ी।
साफ-सुथरा बेड। सजी हुई अलमारी। कोई डायरी नहीं, कोई खत नहीं — कुछ भी नहीं जो अजीब लगे। फिर भी… कुछ था जो गड़बड़ था।तभी…“खट…” किसी आहट ने उसकी साँसें रोक दीं। वह दरवाज़े की ओर बढ़ी, और बाहर झाँका।सामने एक अनजान शख्स खड़ा था। न कक्षा का हिस्सा, न स्कूल स्टाफ जैसा दिखता था।
"कौन हो तुम?" आद्या फौरन उसकी ओर लपकी। वह शख्स मुड़ा और दौड़ पड़ा। लेकिन आद्या की रफ्तार साधारण नहीं थी। वह छाया की तरह पीछे पहुँची — और कंधे पर हाथ रखते ही...“आहहहह!!” उसके हाथ जल गए। जैसे किसी आग को छू लिया हो। वह ज़ोर से चीख पड़ी।
“आद्या!”“क्या हुआ?” “किसकी चीख थी?” पलभर में स्कूल की भीड़ जमा हो गई। तभी… मिस सक्सेना की कड़कती आवाज़ — "बोला था न! कोई भी कमरे से बाहर नहीं निकलेगा!" सब लड़कियाँ सहमकर लौटने लगीं।
“आप कहाँ जा रही हैं, आद्या साहा?” मिस सक्सेना की आँखें जैसे रडार बन गई थीं।
“मेरा हाथ जल गया…” — आद्या ने हकलाते हुए कहा।
मिस सक्सेना ने उसका हाथ पकड़कर देखा — “हाथ? ये तो बिलकुल ठीक हैं।”
आद्या हतप्रभ रह गई। मिस सक्सेना गरजी — "एक्सरसाइज 13.1 — पाँच बार हल करेगी आप। और अगली बार बाहर दिखी तो डायरेक्ट प्रिंसिपल के पास भेजूँगी। अब जाइए।" "नहीं, नहीं निकलूँगी…"आद्या फुसफुसाई। लेकिन उसके मन में अब सिर्फ एक सवाल गूंज रहा था—"आखिर वो था कौन?""और मेरा हाथ... सच में जला था?"आद्या ने अपना हाथ देखा —उसे छुआ, पर न कोई घाव था, न दर्द।
"क्या सब मेरा भ्रम था?" उसे लगा कोई उसे देख रहा है, लेकिन चारों तरफ सन्नाटा पसरा था। मिस सक्सेना गरजी —“स्पीड बढ़ाइए मिस आद्या साहा!” वह चुपचाप बैठ गई। एक्सरसाइज 13.1 हल करने लगी।
शाम ढल गई। खाने के डिब्बे कमरों में ही भेजे गए। लड़कियां थकी हुई थीं — या शायद डरी हुई — एक-एक कर सब सो गईं। सन्नाटा कुछ कह रहा था। लेकिन आद्या की आँखों में नींद नहीं थी। वह चुपचाप उठी। दरवाज़ा खोला। गलियारे में अजीब सन्नाटा था।तभी—"नाग रक्षिका..." किसी ने फुसफुसाया। आद्या ठिठकी। उसने अनसुना कर दिया। फिर एक आहट। हॉस्टल के बाहर से कोई आवाज़। गेट पर गार्ड बैठा था — लेकिन वह गहरी नींद में झुका पड़ा था। आद्या ने उसका कंधा झिंझोड़ा। वह बेहोश था! "बेहोश? कैसे? क्यों?"तभी… दो परछाइयाँ! एक आवाज़ आई —"अरे! ये तो अपने आप ही आ गई हमारे जाल में!" अचानक एक नकाबपोश ने क्लोरोफॉर्म से भीगा रूमाल उसकी नाक पर रख दिया। लेकिन…आद्या बेहोश नहीं हुई। उसने आँखें खोलीं। "लगता है असर खत्म हो गया..." दूसरा बोला। झट से आद्या ने रूमाल छीना और उसी पर रख दिया। वह आदमी छटपटाकर ज़मीन पर गिर पड़ा — बेहोश। दूसरा डरकर भागा। लेकिन जैसे ही वह मुड़ा — वह चौंक गया! आद्या उसके सामने खड़ी थी। लेकिन… वह दौड़ नहीं रही थी। वह धीरे-धीरे… काली परछाईं की तरह उसके पास आ रही थी।
आद्या ने चीखते हुए आदमी को पकड़ा और पेड़ की शाखा से लटका दिया — लेकिन जैसे ही आद्या की आँखें चमकीं… उसकी आवाज़ बदल गई। राक्षसी, सर्प जैसी, गर्जन भरी— "बता… रूचिका कहां है?"उसकी आवाज सुनकर वह बेहोश हो गया।
...
1. कहां है रूचिका? क्या रूचिका को आद्या बचा पाएगी?
2.नागमानवों ने क्यों डेरा डाल रखा है प्रतिभा स्कूल में?
3. आद्या अपनी शक्तियों के बारे में जानती है? आद्या क्या खुद को नाग रक्षिका स्वीकार कर चुकी है?
आगे जानने के लिए पढ़ते रहिए "विषैला इश्क"।