(निशा और उसकी बेटी आद्या नागलोक से लौटती हैं, जहाँ आद्या पर नागचिह्न उभरता है। रास्ते में तांत्रिक का हमला होता हैं, लेकिन गुफा में निशा की अद्भुत शक्तियाँ सामने आती हैं। बाहर वृद्ध नाग बताते हैं कि आद्या “नाग रक्षिका” है—नागलोक की रक्षक शक्ति, जो पीढ़ियों से उसकी मातृवंश में चलती आई है। यह जिम्मेदारी कभी निशा की माँ ने निभाई थी, पर उन्होंने निशा को इससे दूर रखा। निशा इस सच को ठुकरा देती है और आद्या को लेकर चली जाती है, जबकि नाग मानव श्रद्धा से देखते रह जाते हैं। सनी चुपचाप इस रहस्य और खतरे पर विचार करता है। अब आगे)
रक्त और नाग रक्षिका
सनी, निशा और आद्या जंगल से किसी तरह निकलकर घर पहुँचे। घर पहुँचते ही निशा ने आद्या को अपनी बाँहों में कसकर थाम लिया और सीधे कमरे में चली गई। उसने तेजी से दरवाज़ा बंद किया, जैसे बाहर की हर नज़र और खतरे से अपनी बेटी को बचाना चाहती हो। बिस्तर पर आद्या को लिटाते ही उसकी नज़र बेटी के हाथ पर पड़ी—नाग के आकार का गहरा नीला चिह्न। उसके अपने हाथ पर मानव हथेली का सुनहरा निशान चमक रहा था। यह पहली बार था जब दोनों के निशान इतने स्पष्ट दिखाई दे रहे थे।
तभी दरवाज़ा खटखटाने की आवाज़ आई— "जानू! आओ चाय पीते हैं, मैंने बनाई है।"
सनी की आवाज़ में थकान थी, लेकिन अपनापन भी था। निशा ने झिझकते हुए दरवाज़ा खोला। सनी मुस्कुराया, आद्या को गोद में लिया और बाहर निकलने लगा। निशा की आँखों में डर था, फिर अचानक उसका चेहरा टूट गया और वह फफक पड़ी—
"म… मैं कसम खाती हूं… मेरी या आद्या की कोई गलती नहीं। तुम मेरे बिना… मैं तुम्हारे बिना नहीं रह सकती। तुम और आद्या मेरी दुनिया हो। मेरी माँ के बारे में…"
वह बोलते-बोलते रुक गई।
सनी ने बिना कुछ कहे उसे अपनी बाहों में भर लिया। उसकी हथेली धीरे से निशा के सिर पर थी, जैसे कह रही हो—"सब ठीक है।"
"तुम्हें या आद्या को छोड़ना? ऐसा सोच भी मत," उसने कोमल लेकिन गहरी आवाज़ में कहा। आद्या उसकी गोद में खिलखिला रही थी, मानो बाहर के किसी डर से उसका कोई वास्ता न हो।
"आद्या! मम्मी से कहो पापा ने प्यार से चाय बनाई है। अगर तुम और मम्मी साथ नहीं पीओगी, तो मैं अकेला पी लूंगा," सनी ने हंसते हुए कहा। आद्या खिलखिला पड़ी, और निशा के होंठों पर हल्की मुस्कान लौट आई।
ड्राइंग रूम में पहुँचकर सनी ने आद्या को खिलौनों के साथ बैठा दिया। निशा ने चाय का प्याला उठाया, लेकिन सनी ने अचानक उसका हाथ पकड़ लिया।
"ये… निशान कैसा है?"
"तुम्हें दिख रहा है?" निशा की आवाज़ में हैरानी थी।
"हाँ… और आद्या के हाथ में?"
"नहीं," निशा ने झूठ बोला, पर अगले ही पल खुद स्वीकार किया—"मेरे हाथ में मानव चिह्न है, और आद्या के हाथ में नाग चिह्न।"
सनी ने भौंहें चढ़ाईं—"ये पहले कभी क्यों नहीं दिखा?" निशा चुप रही।
"शायद नागरक्षिका को जन्म देने के बाद तुम्हारे पूर्वजों की शक्ति जाग गई हो," सनी ने अंदाज़ा लगाया। निशा ने माहौल हल्का करने के लिए हंसते हुए कहा—"हर पति अपनी पत्नी को नागिन मानता है।"
"बस मेरी…" सनी कुछ कहने वाला था, पर निशा हंसते हुए उसके पीछे दौड़ पड़ी। आद्या भी खिलखिला उठी।
खुशी के इन पलों के बीच, सनी का स्वर अचानक गंभीर हो गया—
"तुम्हें कब पता चला कि हमारी बेटी नागरक्षिका है?" निशा का चेहरा सख्त हो गया। उसने उसकी नज़रों से बचते हुए सिर झुका लिया। सनी ने उसके हाथ पर हल्की पकड़ बनाई—"कोई बात नहीं… जब सही लगेगा, बता देना।" वह जानता था, निशा का डर गहरा है। वह उसका नाम भी कम ही लेता—हमेशा ‘जानू’ कहकर पुकारता, जैसे यह शब्द उसके लिए एक ढाल हो।
दोनों आद्या के पास लौटे, पर वहाँ का दृश्य देखकर ठिठक गए। आद्या कमरे के बीच में बैठी थी, और उसके चारों ओर पाँच-छह नाग—काले, नीले, सुनहरे—चुपचाप घूम रहे थे। उनकी फुफकार में अजीब सा मधुर कंपन था। आद्या हँसते हुए उनके फनों पर हाथ फेर रही थी।
"आद्या!" निशा की चीख गूँज उठी। उसी क्षण उसके हाथ का मानव चिह्न आग की लपटों-सा चमकने लगा।
"रुको… उसे डर नहीं लग रहा," सनी ने धीरे से कहा। निशा की नज़र बेटी की आँखों पर पड़ी—वे गहरे नीले रंग में बदल चुकी थीं, ठीक वैसी जैसी प्राचीन नागों की कथाओं में वर्णित थीं। और… उन नागों की आँखें भी वैसी ही थीं। वे फुफकारते हुए आपस में संवाद कर रहे थे, और आद्या मानो हर शब्द समझ रही थी—कभी सिर हिलाती, कभी खिलखिला देती।
निशा ने एक आदेश-सा दिया—"मानव रूप में आओ!" नीली रौशनी की लहर नागों पर फिसली और वे मानव बन गए—सामान्य रूप, लेकिन नीली आँखें और त्वचा पर ठंडी चमक।
एक अधेड़ महिला-नागिन आगे बढ़ी—"जय नागरक्षिका माता। हम आपके आदेश की प्रतीक्षा में हैं।"
सनी निशा की ओर मुड़ा—"ये सब तुम जानती हो, निशा?" निशा चुप रही। उसकी आँखें बस आद्या की मासूम-सी लेकिन रहस्यमयी नीली आँखों पर टिकी थीं—आँखें जिनमें एक पूरी नाग दुनिया की शक्ति छिपी थी।
सनी ने गहरी सांस ली। उसे समझ आ गया कि निशा कुछ छुपा रही थी, लेकिन वह उसे मजबूर नहीं करना चाहता था। उसने सोचा—"शायद जब सही समय आएगा, वो खुद बताएगी।" दोनों बस खड़े होकर आद्या की ओर देख रहे थे, जो अपने मासूम खेल में पूरी दुनिया की शक्ति समेटे हँस रही थी। उस पल निशा और सनी के बीच एक नया विश्वास और जुड़ाव बन चुका था, और आद्या उनकी ज़िंदगी में केवल मासूम नहीं—बल्कि एक नई शक्ति की प्रतीक बन चुकी थी।
...
1. आद्या की नीली आँखों और नागों के सामने हँसी—क्या सच में वह नागरक्षिका है, या इसमें कुछ और रहस्य छिपा है?
2. निशा सनी से कुछ छुपा रही है—क्या वह आद्या की शक्ति के बारे में पूरी सच्चाई बताएगी, या कोई और राज़ है?
3. ये नाग जो आद्या के आदेश पर मानव रूप धारण कर रहे हैं—क्या वे सिर्फ आद्या के आदेश का पालन करेंगे, या उनका कोई अपना एजेंडा भी है?
आगे जानने के लिए पढ़ते रहिए "विषैला इश्क".