Chandrvanshi - 10 - 10.3 in Hindi Thriller by yuvrajsinh Jadav books and stories PDF | चंद्रवंशी - अध्याय 10 - अंक - 10.3

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चंद्रवंशी - अध्याय 10 - अंक - 10.3


जीद की आंखों से आंसू बहने लगे। वह विनय को संभालकर उसके दोनों हाथों के बीच लेकर बैठ गई। पर वह छुरी नहीं निकाल सकी। आगे बढ़ते आदम ने विनय की पीठ में छुरी थोड़ी कम गाड़ी थी, यह उसने देखा। उसके आगे बढ़ने से पहले ही रोम ने गड़ी हुई छुरी बाहर खींच निकाली। आदम का सामना रोम अकेले कर पाए ऐसा नहीं था। उनके सामने राहुल भी कुछ करने की हालत में नहीं था। उसकी त्वचा धीरे-धीरे जलने की दुर्गंध भी फैला रही थी। लेकिन तब भी आदम कुछ कम नहीं था।  
आदम सबको पीछे छोड़कर सोने के उस ढेर में जा पहुंचा। उसने देखा कि यह सब सोना किसी न किसी आकार में था। मतलब कि यह सोना जमीन का नहीं, बल्कि लोगों का ही हो सकता था। वर्षों से पड़े हुए सोने में थोड़ी टूट-फूट के अलावा कोई और खराबी नहीं थी। यह सोना इतना ज्यादा था कि यह उसके बीस साल खुदाई कर के निकाले सोने से भी ज्यादा कीमत दे सकता था। जिसमें अब उसे सोना पाने के लिए किसी मजदूर की भी ज़रूरत नहीं रहेगी। आदम उसे देखकर पागल हो गया था।  
विनय की मरहम पट्टी कर रोम ने अपने रूमाल को मिलाकर दबाकर आराध्या की चुनरी बांधकर खून रोका। फिर जीद ने विनय को संभालकर अपनी गोद में सिर रखकर सुलाया। अब रोम और बाकी सभी आदम के पास आए।  
आदम हंसा। “लड़कियों की फौज लेकर आदम से मुकाबला करने चले हो।” फिर अपना डर फिर से जमाने आदम जोर से हंसा। “हा... हा... हा...”  
उसकी बात सुनकर माही, साइना और आराध्या तीनों उस पर टूट पड़ीं।  
आदम उन्हें मारने गया कि रोम ने उसके हाथ में छुरी घोंप दी।  
“आ... आ... आ... कायर।” चिल्लाते हुए आदम पीछे हटा।  
अपना भयानक चेहरा उसकी आंखों से ज्यादा भयानक बनाता आदम बोल रहा था।  
माही ने सोने के ढेर में पड़ा एक हीरा उठाकर उसकी तरफ फेंका। जैसे ही आदम माही की तरफ देखने गया, हीरा सीधा उसकी आंख में जाकर घुस गया।  
आदम के हाथ और आंखों से खून बहने लगा।  
पीड़ा से मरा जा रहा आदम वहीं चिल्लाता, कराहता, जीने की भीख मांगने लगा।  
आदम को मारने रोम आगे बढ़ता है कि पीछे से विनय रुंधे हुए स्वर में बोला।  
“नहीं... रोम, उसे जाने दो। अभी उसे मारने से भी ज्यादा सोचने वाली बात है कि हम यहां से निकलें कैसे।”  
आदम अब बेहोश होकर पड़ा हुआ था।  
विनय की बात सुनकर रोम रुक गया।  
“इस काले को तो यहीं मार देना चाहिए।” रोम बोला।  
विनय ने अपने भीतर की ताकत का उपयोग कर खड़ा हुआ।  
जीद ने उसे सहारा दिया।  
विनय आदम के सामने गया। फिर बोला,  
“तेरी खान में सोना निकालना बंद क्यों किया?”  
“सोना खत्म हो रहा था।” आदम दर्द से बोलता रहा।  
“तुझे कैसे पता चला?” विनय बोला।  
“उसमें आने वाला पत्थर बहुत ही मजबूत था। जो बम से भी नहीं टूट रहा था।” आदम बोला।  
“मतलब उसका पत्थर इस दीवार जैसा था?” विनय ने फिर सवाल किया।  
आदम के दिमाग में अब रोशनी हुई।  
जहां सोना मिला वहां ही यह सोना भी रखा गया था।  
उसे समझ आया कि, खान में सोना खत्म होते ही उसके भीतर कोई खोजने की कोशिश नहीं करेगा इसलिए वहीं उस सुरंग का द्वार भी बनाया गया था।  
अब समझ आया कि जब तक ध्युत खाड़ी में सोना हो तब तक यह सोना प्राप्त करके कोई चंद्रवंशी राजा भी बाहर नहीं निकल सकता।  
“राउभान और उसके गुरु बहुत ही बुद्धिमान मनुष्यों में से एक थे। इस योजना का परिणाम यही साबित करता है।” विनय बोला।  
विनय ने अपनी आंखें बंद कीं और नक्शे को याद करने की कोशिश की।  
फिर कुछ याद आया हो ऐसा बोल पड़ा।  
“केवलं सः एव धनं प्राप्नोति। यः स्वजीवनं जनसेवायां समर्पयति।”  
“धन मात्र उसे ही मिलता है, जो अपने जीवन को लोगों की सेवा में समर्पित कर देता है।”  
उसकी बात को याद और अनुवाद करता हुआ रोम भी बोला।  
“राउभान को यह धन मिला था। वह चाहता तो उस समय का महान राजा बन सकता था।  
परंतु उसने सेवा को चुना और हमेशा सूबा बनकर जीवन बिताया। उसका वही अर्थ हुआ कि धन उसे ही मिले जो जीवन दूसरों की खुशियों में समर्पित कर दे।”  
विनय बोला।  
“परंतु उसका इससे बाहर निकलने से क्या लेना-देना?”  
माही और साइना एक साथ बोल पड़ीं।  
“यह दीवार उनकी माया का अंतिम चरण है।  
इसका मतलब यह यज्ञ जो मंदिर के प्रांगण में हुआ वह केवल शब्द नहीं थे।  
बल्कि, वह वर्षों पुरानी सोई हुई दीवारों को जगाने की मंत्रणा थी।  
ये दीवारें सुनती भी हैं।”  
विनय बोला।  
फिर सभी एक साथ बोले।  
“केवलं सः एव धनं प्राप्नोति। यः स्वजीवनं जनसेवायां समर्पयति।”  
सभी अपनी आंखों से वह जादू देख रहे थे।  
जो वर्षों पहले वेदों में मंत्रोच्चार से उड़ने वाले पुष्पक विमान की कथाओं में सुना करते थे।  
वह बात सच थी, इसका प्रमाण बनती यह मजबूत दीवार जो बम से भी नहीं हिली थी वह अब खिसक रही थी।  
सभी वहां से बाहर निकल गए।  
ध्युत खाड़ी में स्थित कोयले की खान जब पहली बार आए थे तब बंद थी।  
अब वह कैसे खुली थी।  
विनय ने याद किया।  
उसने देखा कि, उनकी खोज में निकले एक आदमी ने उन्हें देखकर नयन को बुलाया था।  
नयन के साथ हेलिकॉप्टर में मुख्यमंत्री भी उतरे थे।  
आदम के बचे हुए लोगों को मंदिर से पकड़कर गिरफ्तार किया गया था।  
मुख्यमंत्री ने विनय को शाबाशी दी।  
मुख्यमंत्री के कहने पर हेलिकॉप्टर में उसे अस्पताल पहुंचाया गया।  
आदम और राहुल को भी अस्पताल ले जाने का आदेश दिया गया और जल्द से जल्द उन पर मुकदमा चलाया जाए ऐसी सुप्रीम कोर्ट को सिफारिश करता पत्र लिखने का भी आदेश दिया गया।

***

कोर्ट

“आतंकवाद को बढ़ावा देने (भारतीय दंड संहिता की धारा 124A),  
हथियारों की तस्करी करना और उन्हें बेचना तथा उपयोग में लेना (आर्म्स ऐक्ट 25, 54, 61),  
भारत का सोना चुराना और कई लोगों की हत्या करने के लिए (आई.पी.सी. की धारा 302 तथा 303)।  
महिलाओं की मिली लाशों से यह सिद्ध होता है कि भोला उर्फ आदम में जरा भी मानवता नहीं है।  
अतः इन सभी अपराधों को मध्य नजर रखते हुए इस कोर्ट ने निर्णय लिया है कि,  
भोला उर्फ (आदम) नामक इस व्यक्ति को शुक्रवार शाम पांच बजे फांसी देकर फंदे पर चढ़ाया जाएगा।  
तथा स्नेहा केस के आरोपी राहुल को भी उसके साथ ही फांसी देने का सुप्रीम कोर्ट का अंतिम आदेश।  
और आदम की साजिश में शामिल प्रत्येक सरकारी कर्मचारी तथा नेताओं पर भी बहुत ही कड़ी कार्रवाई की जाएगी।”  
पढ़ते-पढ़ते रोम थक गया और पानी का एक गिलास गटक गया।  
अस्पताल में बैठे बाकी सभी उसे ही सुन रहे थे।  
उसे श्रुति की जगह प्रमोशन मिला था।  
आराध्या भी उसके साथ रहना चाहती थी।  
जीद विनय के पास उसका हाथ पकड़कर बैठी थी।  
सभी बहुत खुश थे।  
साइना और नयन भी अपनी प्रेम कहानी को आगे बढ़ा रहे थे।  
माही और उसके मम्मी-पापा, जॉर्ज को जिंदा देखकर बहुत खुश थे।  
श्रेया अब माही की बॉस नहीं, बल्कि आंटी थी।  
थोड़ी ही देर में रोमियो, जीद की मम्मी मतलब पारो को जीद के पास लेकर आया।  
उसे देखकर सभी बहुत खुश हो गए।  
रोम के हाथ से समाचार पत्र लेकर आराध्या पढ़ने लगी।  
“सरकार को मिले खजाने में जिन्होंने मदद की है उन्हें सभी को बीस लाख रुपये का इनाम दिया जाएगा।”  
पढ़ती आराध्या को रोम ने रोक दिया।  
फिर खड़ा होकर बोला। “बीस लाख?”  
रोम को देखकर सभी हँस पड़े।  
समाचार पत्र के पहले पेज की हेडलाइन, मुख्य खबर बनी हुई थी।  
मुख्य पेज के अंत में थोड़ा आगे लिखा था –  
“देश पर आने वाली मुश्किल में जनता की रक्षा हेतु चंद्रवंशी राजाओं की इस संपत्ति का सदुपयोग करने के लिए सरकार ने थोड़ा हिस्सा पूर्व पाकिस्तान को पश्चिम पाकिस्तान की रक्षा के उद्देश्य से भेजने का निर्णय लिया है।  
बाकी खजाने को जनहित में समाहित किया जाएगा।”  

***