Chandrvanshi - 9 - 9.3 in Hindi Thriller by yuvrajsinh Jadav books and stories PDF | चंद्रवंशी - अध्याय 9 - अंक - 9.3

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चंद्रवंशी - अध्याय 9 - अंक - 9.3


"कुछ महीने पहले मैंने अपने आदमियों को पारो के पास भेजा था। उन्होंने उसे मेरे जीवित होने की खबर दी। लेकिन वह खुश होने के बजाय उल्टा निराश हो गई। उन्होंने उसे साथ चलने को कहा। यह सुनकर उसने साफ मना कर दिया। उसने कहा, “कह देना अपने आदमियों से कि देश में सब एक जैसे होते हैं और माँ को बेचकर बहन को बचाने का नाटक मैं अच्छी तरह जानती हूँ।”  
उसकी बात सुनकर मेरे आदमी हैरान रह गए। वे कुछ बोले बिना वापस लौट आए। उन्होंने मुझसे संपर्क किया और उसकी बात सुनाई। बात तो उसकी सही ही थी। लेकिन वह मेरी बहन थी। इसलिए मैंने उसे कुछ समय दिया। लेकिन उस समय भी वह चुप नहीं बैठी और मंदिर की जानकारी वहाँ की सरकार तक पहुँचाने चली गई, पर उसे क्या पता कि जिनसे वह बात कर रही थी वे तो मेरे ही पालतू कुत्ते थे।  
मेरी बहन की नफरत और न बढ़ जाए इसलिए मैंने उसे जबरन लाने के लिए आदमी भेजे। आदमी पहुँचे लेकिन उनके हाथ सिर्फ एक ही आई। मदनपाल की बेटी नहीं।  
एक बार मिलकर मैंने अपनी बहन को समझाया भी था कि तू उसे मेरे हवाले कर दे। लेकिन वह नहीं मानी। दो-तीन दिन तक तो उसे पानी भी नहीं दिया। फिर भी उसने एक शब्द नहीं बोला और अचानक अदित आया और मुझसे कहा, “सर एक अच्छी खबर है और एक बुरी।”  
बुरी खबर सुनकर मुझे हँसी आ गई। फिर भी उससे पहले अच्छी खबर बताने को कहा। तब पता चला कि उसकी भतीजी खुद ही उसे लेने जा रही है और वह भी मेरी ही बिजली कंपनी में नौकरी करने के बहाने। मैं हँसा, बहुत हँसा। फिर उससे बुरी खबर सुनाने को कहा। वह खबर थी कि किसी ने लंदन में मेरे ही घर में चोरी की थी। यह सुनते ही मैं तुरंत वहाँ जाने निकल पड़ा।”  
“मेरी मम्मी को क्या किया?” रोते हुए भी ऊँचे स्वर में जीद बोली।  
इसके बाद आदम ने खतरनाक निर्दयी हँसी हँसी।  
“उसे वहीं आखिरी बार पानी पिलाकर बाँध दिया और सब निकल गए। अब तो उसकी लाश कीड़े-मकोड़ों ने चाट ली होगी।”  
जीद यह नहीं सुन सकी और गुस्से में भरकर उसके पैरों के पास रखी कचरे की बाल्टी आदम पर फेंक दी। कचरे की बाल्टी से कई दवाइयाँ बाहर निकल पड़ीं, साथ में पट्टियाँ और इंजेक्शन भी निकले। जिनमें से कुछ विनय और जॉर्ज के पैरों में भी लगे। यह देख आदम गुस्से में आ गया और बंदूक लेकर हाथ उठाया ही था कि तभी दरवाज़ा खुला और एक आदमी अंदर आ गया।  
उसे देखकर आदम गुस्से में बोला, “अंदर क्यों आया?”  
“माफ कीजिए, लेकिन दो ऑफिसर आए हैं।”  
यह सुनकर आदम ने उसकी टाँग की ओर बंदूक तानी और धड़ाम से एक गोली उसके पैर में उतार दी। वह दर्द से चीखने लगा। जीद उसकी चीखें नहीं सुन सकी, उसने दोनों कान बंद कर लिए।  
“तुझे ये सब भारी पड़ेगा भोला।” यह सब देखकर विनय बोला।  
“भोला नहीं! आदम… (आँखें पोंछते और और भी पोंछते हुए) आदमखोर।” अपने गले की पूरी ताकत लगाकर वह बोला।

***

माही और सायना दोनों ने मिलकर पंडित के दोनों हाथ बाँध दिए थे और उसे एक जगह बैठा दिया था। फिर सब उस घर में एक साथ घूमने लगे। आराध्या रोम से दूर चल रही थी और माही और सायना के पीछे चल रही थी। वे चारों घर में घूम रहे थे। घर बहुत बड़ा था। मकान दो मंज़िल का था लेकिन उसमें लगभग दस कमरे थे। चारों ओर घूमती लॉबी और अंदर अंदर जाते पाँच कमरे नीचे जितने थे, उतने ही ऊपर भी। उसमें अंदर जाने का विचार आराध्या का था। इसलिए रोम ने बिना कुछ सोचे आगे बढ़ना शुरू कर दिया था।  
रोम ने पहला कमरा खोला। घर की खिड़कियाँ बंद थीं लेकिन रंगीन काँचों से सूरज की किरणें आ रही थीं जिससे रंगीन रोशनी निकल रही थी। कमरा बिल्कुल खाली था। पीछे खड़ी माही और सायना भी देख रही थीं। उन्होंने उनके पीछे यानी उसी कमरे के सामने का कमरा भी खोला, वह भी खाली था। उसी तरह तीसरा और चौथा कमरा भी खोला लेकिन कुछ हाथ नहीं लगा।  
इसलिए आराध्या बोली, “अगर यहाँ आदम के आदमी रहते हों तो कमरे खाली क्यों हैं?”  
यह सुनते ही रोम ने पाँचवाँ कमरा भी खोला। वह भी खाली ही था।  
तब सब वापस लौटे और वहाँ आकर खड़े हो गए जहाँ पंडित को बाँधा था। पंडित ने रोम की तरफ देखकर मुँह खोलने का इशारा किया। रोम ने उसका मुँह खोला और बोला, “बोल अब तुझे क्या कहना है?”  
“कहूँगा नहीं, दिखाऊँगा। मेरे पैर खोलो।” पंडित बोला।  
पंडित की बात के अनुसार उसके पैर खोल दिए तो उसने उन्हें अपने पीछे ऊपर की मंज़िल पर चलने को कहा। सब उसके पीछे चले। पंडित के हाथ पीछे से बंधे थे। नीचे जितनी सफ़ाई थी, ऊपर उतनी ही बदबू आ रही थी। जैसे कुछ सड़ा हुआ पड़ा हो, वैसी गंध महसूस हो रही थी। पंडित ने उन्हें डराने के लिए सबसे आखिरी कमरे में जाकर खड़ा रहने को कहा। “जिनका दिल कमजोर है, वे यहाँ न आएं।”  
इतना सुनते ही रोम पीछे लौट गया। दो कदम ही चला था कि सामने खड़ी माही ने धीरे से कहा, “भाई, वह क्या सोचेगी तुम्हारे बारे में?”  
और जोश में आया रोम पंडित के पास दौड़ता हुआ गया और कमरे के दरवाज़े को एक लात मारी।  
लात मारते ही रोम अपना संतुलन खो बैठा और सीधे एक लाश पर गिर गया।  
रोम यह देखकर कुछ नहीं बोला और एकदम मूर्ति की तरह जड़ हो गया। पीछे देख रही आराध्या और सायना एक-दूसरे से चिपक कर चिल्लाने लगीं। उस कमरे में लगभग सत्रह अधेड़ उम्र की महिलाओं को बाँधा गया था ऐसा कपड़ों से अनुमान लगाया जा सकता था। उन डेड बॉडी की पहचान करना बहुत कठिन था।  
रोम जिस महिला पर गिरा था, उसकी लापता होने की ब्लैक एंड व्हाइट तस्वीर उन्हें दी गई थी। उसमें उस महिला का एक हाथ नहीं था और इस बॉडी में भी एक हाथ नहीं था। यह बात उसे याद आ गई।  
पीछे आकर माही ने रोम को हाथ लगाया तो वह एकदम होश में आया और ज़ोर से उछल पड़ा।  
पीछे खड़ी माही फिर धीरे से बोली, “भाई, मैं हूँ माही।”  
उसके साँसों की आवाज़ पूरे कमरे में गूंजने लगी। डगमगाते क़दमों से रोम और माही बाहर निकले। रोम ने फिर से कमरे के अंदर नहीं देखा और बस दरवाज़ा बंद कर दिया। उसी समय पंडित भूत भगाने के मंत्र पढ़ने लगा। लेकिन उसके विचार समझ चुकी माही ने उसे रोका और बोली, “पंडित, तेरे भूत तो मेरे भाई से डर कर भाग गए। बस झूठा ढोंग मत कर।”  
तब पंडित ने काँपते रोम को देखकर कहा, “हाँ, यह तो दिख रहा है। मुझे तो लगा शायद आपकी जीद यहाँ है।”  
यह सुनकर माही निराश हो गई। पंडित भी यही चाहता था कि इस सब में मज़बूत बनी माही को मानसिक रूप से हरा दे।  
उसी समय अचानक पंडित की कुर्ते में एक कीड़ा घुस गया। रोम ने थोड़ी छटपटाने दी, फिर उसके हाथ खोल दिए तो वह ज़ोर-ज़ोर से चिल्लाता हुआ कुर्ता उतारने लगा।  
पंडित के शरीर पर और छाती पर भालू जैसे बालों में एक बंदर जैसा जीव चिपक गया था। उसने एकदम हाथ घिसकर उसे फेंक दिया।  
उसकी जनेऊ पर छत के काँच से आ रही रोशनी के कारण उसका शरीर और साफ़ दिख रहा था। तभी माही की नज़र पंडित के हाथ पर पड़ी।  
जब माही और जीद मंदिर में पहली बार पूजा करवा रहे थे, तब उस पंडित ने अपना नाम शुद्धिनाथन बताया था।  
लेकिन उसके हाथ पर तो बंगाली भाषा में रविनाथन लिखा था। यह देखकर माही ने पंडित से फिर उसका नाम पूछा।  
“पंडित जी, आपका नाम क्या है?”  
“रविनाथन।” कीड़े से डरा पंडित बोला।  
यह सुनकर रोम बोला, “ढोंगी, नाम में भी धोखा किया?”  
एकदम याद करते हुए पंडित बोला, “जी! शुद्धिनाथन।”  
“वह नहीं, पहले तूने क्या बोला?” रोम बोला।  
“शुद्धिनाथन साहब, मैंने वही बोला।”  
उसकी बात का विरोध करते हुए चारों एक साथ बोले, “रविनाथन बोला था।”  
“न-न-न, आपकी सुनने में गलती हो गई होगी। मैं शुद्धिनाथन ही हूँ।”  
“रविनाथन कौन है?” माही बोली।  
“वह तो कोई नहीं। है ही नहीं।”  
पंडित की बात सुनकर माही ने उसका हाथ उठाया और सायना के सामने करते हुए बोली, “यह क्या लिखा है सायना?”  
वैसे तो वहाँ खड़े सभी बंगाली भाषा के जानकार या विशेषज्ञ थे, लेकिन फिर भी बंगाल में जन्मी सायना से माही ने पूछा।  
“रविनाथन।” सायना बोली।  
रोम आगे बढ़ा और पंडित का हाथ पकड़कर खींचा और झटके से बोला, “बोल कौन है तू?”  
डरते हुए पंडित बोला, “मैं… मैं शुद्धिनाथन ही हूँ, वह तो मेरे पिताजी का नाम है।”  
यह सुनकर पंडित को छोड़ दिया गया तो वह एक कमरे के दरवाज़े से टकराकर गिर पड़ा और अंदर चला गया।  
अंदर गिरे पंडित की चीखें बाहर आने लगीं।  
एकदम से सब वहाँ पहुँच गए।  
उस कमरे में एक महिला को अलग से बाँधा गया था। जिसे अभी कुछ महीने पहले ही बाँधा गया हो ऐसा उसके शरीर पर लगे कीड़ों से लग रहा था। उसे एक जगह बैठाकर बाँधा गया था, जिससे उसके पैर सीधे थे और उसके पैरों के सिल्वर पायल पर रोशनी पड़ रही थी जिससे वे चमक रहे थे।  
उस महिला के कपड़े भी फटे हुए थे और वह भयानक दृश्य देखकर सब थोड़ी देर के लिए सब कुछ भूलकर वहाँ से भागने की तैयारी में लग गए।  
उसी समय माही के मन में उन सिल्वर पायल की बात आई। उसे पहले कमरे में बंधी महिलाओं के पैर खाली दिखे थे और उनके कपड़े भी बंगाली जैसे थे। लेकिन इस महिला की पोशाक गुजराती महिला जैसी थी और उसे याद आया कि ऐसे सिल्वर पायल तो जीद की मम्मी के ही हो सकते हैं।  
इसलिए वह फिर से अंदर गई।  
उसके बालों में कीड़े पड़ चुके थे। चेहरा पहचान में नहीं आ रहा था।  
सिर्फ कपड़े ऐसे थे, यह देखकर माही रो पड़ी।  
उसके पैरों के पास एक पानी से भरा गिलास था। बस इससे ज़्यादा कुछ नहीं देख सकी और रोती हुई जीद बाहर चली गई और वहाँ से तुरंत सबको निकलने को कहा।  
पंडित खुश हो गया।

***