अस्पताल के बाहर हथियार से लैस होकर सौएक लोगों की भीड़ आकर खड़ी हो गई थी। उन सबके बीच एक सफेद रंग की एम्बैसेडर आई और धीरे से ब्रेक लगी। विनय यह सब खिड़की से देख रहा था। इतने में एक कम्पाउंडर तेज़ी से दौड़ता हुआ आया और कमरे में आकर अंदर से दरवाज़ा बंद कर दिया। जॉर्ज, श्रेया और बाकी सब स्तब्ध रह गए। जीद की आंखों में हल्का असर दिखाई दिया। विनय बाकी सब कुछ भूलकर उसकी तरफ देखने लगा। वह खिड़की छोड़कर जीद के बेड के पास आया। जीद का हाथ पकड़ा और अपने दोनों हाथों के बीच दबोच लिया। जीद की आंखों में हर्ष के आंसू आ गए। उसके चेहरे पर एक सुंदर मुस्कान छा गई। अब उसकी नजर आस-पास के लोगों पर पड़ी। वहां चेहरा धोकर उजला दिखता जॉर्ज और उसकी बगल में श्रेया तथा रोमियो खड़े थे। जीद ने अब दरवाज़े की तरफ देखा। वहां दरवाज़ा बंद करके सफेद कपड़ों में एक कम्पाउंडर खड़ा था। वह जोर-जोर से सांस ले रहा था। जीद की नजर रुकते ही विनय ने भी उसकी ओर देखा। फिर वह खड़ा हुआ और कम्पाउंडर के कंधे पर हाथ रखकर बोला।
"क्या हुआ?"
"अ... आ... आदम।" कहते हुए उसके माथे पर पसीना छूटने लगा।
विनय एकदम से खिड़की की ओर दौड़ा। नीचे कोई भी नहीं था। वह कुछ समझ नहीं पाया तभी दरवाज़ा खटका। दो-तीन बार दस्तक हुई। कम्पाउंडर ने दरवाज़ा नहीं खोला तो बाहर से डॉक्टर बोले।
"कमलेश! दरवाज़ा खोल।"
डॉक्टर की आवाज़ सुनकर उसने दरवाज़ा खोला। डॉक्टर अंदर आए। पीछे से एक और आदमी आया। वह विदेशी जैसा लग रहा था। डॉक्टर ने केवल हां में सिर हिलाया। वह आदमी जीद की ओर चलने लगा। एकदम विनय उसके पास आया और बोला, "कौन है?"
वह आदमी कुछ बोले बिना जीद को चढ़ी हुई बॉटल निकालकर उसे खड़ा करने लगा। विनय ने उसे रोकने के लिए डॉक्टर की टेबल से एक छोटी छुरी उठाई और बीच में खड़ा हो गया। एकदम से जॉर्ज उस आदमी के पैरों में गिर पड़ा और विनय से कहा, "नीचे आदम है।"
उसकी बात सुनकर वह आदमी जॉर्ज को जोर से लात मारता है और जॉर्ज ज़मीन पर गिर जाता है।
एक के बाद एक लगभग तीस लोग आए और सबको अपने साथ खींचकर ले गए। नीचे डॉक्टर की ऑफिस के आगे से कई लोग लाइन में दोनों तरफ खड़े थे। दरवाज़ा खोलकर विनय, जॉर्ज और जीद को अंदर धकेल दिया। जीद के पैरों के पास एक कचरे की पेटी थी। उसमें कुछ दवाइयां भी थीं। जो शायद खराब हो गई हों। वहां उस ऑफिस के दरवाज़े के सामने वाली दीवार की ओर कुर्सी लगाकर एक आदमी बैठा था। उसने राखी रंग का सूट पहना था। उसने काफी सारा सोना पहन रखा था। डॉक्टर की टेबल पर तीन बंदूकें पड़ी थीं। ऑफिस में राहुल भी बैठा था। एकदम से खड़ा होकर उसने जॉर्ज का गला पकड़ लिया और बोला, "तूने अदित को मारा? मैं तुझे ज़िंदा नहीं छोड़ूंगा।"
राहुल की बात सुनकर कुर्सी घुमा दी गई और उस आदमी ने हाथ टेबल पर पटका। एक काला और सोने के दांत वाला राक्षस जैसा चेहरा सबके सामने आया। उसके चेहरे पर माथे से गाल और नाक तक चोट का निशान था। उसके आधे सफेद बाल उसकी उम्र दिखा रहे थे या उसका डर, ये कहना मुश्किल था। उसके मुंह से शब्द तीर की तरह निकले।
"अदित को मैंने ही मारा था।"
उसकी बात सुनकर राहुल ने जॉर्ज को धक्का मारकर छोड़ दिया। "क्यों?" थोड़े क्रोधित स्वर में "आपने अपने भाई को मारा!" आदम एकदम से ऊंचे स्वर में बोला, "वो मेरा भाई नहीं है, मेरा तो कोई भाई ही नहीं है। हां! मेरी एक बहन थी... (थोड़ा राक्षसी हंसा) थी।"
उसकी बात सुनकर विनय और जीद एक-दूसरे की ओर आंखें फाड़कर देखने लगे।
उन्हें एक-दूसरे को इस तरह देखते देख आदम हंसने लगा। "हा... हा... हा..." उसकी हंसी बहुत ही भयानक थी। हंसी रोकता हुआ आदम बहुत ही भयानक लग रहा था। उसने अपने हाथ के पास रखी तीन बंदूकों में से एक उठाई। थोड़ी ही देर में दरवाज़ा खुला, डॉक्टर हाथ जोड़कर अंदर आया। "माफ कर दीजिए।" वह रोते हुए बोला। उसी क्षण बंदूक से गोली चलने की आवाज़ आई। दरवाज़े पर और पास खड़े विनय और जॉर्ज पर भी खून के छींटे उड़ गए। यह देखकर जीद के मुंह से एक बड़ी चीख निकल गई।
आदम ने उसकी तरफ बंदूक तानी और जोर से बोला, "चुप।" फिर उसने राहुल की तरफ देखा और बोला, "तू हवन की तैयारी के लिए पंडित शुद्धिनाथन को ले आ।" राहुल ने हां में सिर हिलाया।
विनय तो सोच में ही डूब गया। एक समय छोटे-मोटे युद्धों से भी डरने वाला भोला आज इतना बड़ा हैवान बन गया? विनय बोला, "तुझे क्या चाहिए?"
उसकी बात सुनकर राहुल एकदम से उसकी कॉलर पकड़कर बोला, "तुझे नहीं, आपको कहो।"
राहुल को फिर से जाने का आदेश दिया। फिर भयानक हथियार जैसा आदम उतनी ही भयानक आवाज़ में बोला, "ये लड़की।"
"क्यों? मंदिर, सोना, पैसा, पावर?"
उसकी बात सुनकर आदम घबरा गया। एकदम से कुर्सी से खड़ा हुआ और विनय की शर्ट की कॉलर पकड़कर बोला, "तुझे ये सब कैसे पता चला?"
"तू आदम नहीं है।" विनय बोला।
उसकी बात सुनकर आदम हंसा और बोला, "हां! मैं आदमखोर हूं। आदम को भी खा जाने वाला।"
***
आदम अब अपने भोला से आदम बनने की बात करता है।
“मैं और सुर्यांश जंगीमल के सैनिकों से लड़ रहे थे। उस असली युद्ध के समय कौन किसे मार रहा था यह समझना भी मुश्किल था। उस समय मैंने देखा कि सुर्यांश सेनापति से लड़ रहा था और उसके पीछे एक घुड़सवार उस पर वार करने जा रहा था। एकदम दौड़कर मैंने उस पर वार किया और उसे मारकर घोड़े पर बैठकर आसपास के सैनिकों पर टूट पड़ा। उसी समय सेनापति के वार से गिरकर सुर्यांश ज़मीन पर गिर गया और उसकी तलवार छूटकर मेरे ऊपर आई। पीछे से हुए वार से मैं भी घायल होकर घोड़ी से गिर पड़ा। ऐसे समय में मुझे एक मल्ल ने बचाया और वहाँ से दूर ले गया। होश में आने पर पता चला कि वह घाव सुर्यांश की तलवार का था।
अभी मैं उस मल्ल का धन्यवाद कर ही रहा था कि किसी ने उसे मार डाला। मैं उसके पीछे काफी दूर तक भागा लेकिन वह मेरे हाथ नहीं आया।
जब मैं वापस आया तब तक युद्ध समाप्त हो गया और चंद्रहाटी विजय हुआ। सभी में खुशी का माहौल था। मैं भी उसमें शामिल हुआ लेकिन तभी लोग ज़ोर-ज़ोर से कहने लगे कि भोला युद्ध छोड़कर भाग गया था और अब जश्न में शामिल हो रहा है। किसी ने मेरी बात नहीं सुनी और मुझे भगा दिया गया। राजकुमार और सुर्यांश भी मुझे कायर समझने लगे। इस बात से मैं बहुत निराश हुआ। उन्होंने मुझे सेना से भी निकाल दिया। समय के साथ मैंने वह भी छोड़ दिया, लेकिन लोग उस बात को भूलने को तैयार नहीं थे।
मेरी माँ को पूरे चंद्रहाटी में बेटियों वालों ने यह कहकर मना कर दिया कि उसका बेटा एक भगोड़ा है। राज्य के लिए कितना कुछ किया लेकिन राज्य ने मुझे भागा हुआ घोषित कर दिया।
एक दिन प्रधान मेरे पास आया और उसने अपनी योजना बताई। उन्होंने कहा कि द्युत खाड़ी में अपार सोना है। अगर मैं उनकी योजना में शामिल हो जाऊं तो वे मुझे राज्य का सबसे अमीर व्यक्ति बना देंगे। सेना में रहकर भी मैंने हमेशा दुःख ही देखा – चाहे राजा ग्रहरीपू हो या फिर जंगीमल – मुझे तो कोई लाभ नहीं मिला। इसलिए मैंने उनके साथ मिल जाना स्वीकार किया।
उनकी बातों से ही मेरा रिश्ता भी तय हुआ और उन्होंने ही मुझे मदनपाल की शादी की भी जानकारी दी। जिससे उन्होंने एक योजना बनाई। जब तक सुर्यांश जंगीमल के राज्य में रहेगा, तब तक वे द्युतखाड़ी पर कब्ज़ा करके सोना अपने हाथ में कर लेंगे। मेरी शादी के लिए भी उन्होंने ही मुझे सुर्यांश के साथ उस दिन बारात लेकर शामिल होने को कहा। ताकि मैं सुर्यांश को अधिक समय तक व्यस्त रख सकूं। फिर मैं भी अमीर बन जाने वाला था, शादी भी होने वाली थी।
लेकिन वहाँ सब कुछ उल्टा हो गया। वहाँ से निकलकर मुझे भी पता चला कि वे लोग सिर्फ मेरा उपयोग करके खाड़ी को अपने अधीन करना चाहते थे। मेरा जीवन व्यर्थ निकला। जिसका एकमात्र कारण मेरी शादी में हस्तक्षेप करने वाला सुर्यांश ही था। न तो शादी हुई और न ही अमीर बनने का सपना पूरा हुआ।
उनके बीच में रहने वाले एक व्यक्ति ने मुझे सब कुछ बताया कि वे शायद अब मुझे राज्य में लौटने भी नहीं देंगे।
सब कुछ छोड़कर मैं जंगल में एक सुनसान रास्ते पर बैठा था। उस समय प्रधान का बेटा जो षड्यंत्र में शामिल था, सिपाहियों के साथ किसी के वस्त्रों की अंतिम यात्रा निकाल रहा था।
मैं खड़ा हुआ और जाना कि कैसे परम ने आदम को हराया और वल्लभराज की मृत्यु के बदले उसे निर्वस्त्र करके जिंदा जलाया गया। उसी समय मेरे मन में भी सुर्यांश से बदला लेने की भावना जागी और मैंने प्रधान के पुत्र को योजना सुनाकर आदम के वस्त्र धारण किए।
बस फिर तो एक के बाद एक को मारता गया। अंत में प्रधान और उसके पुत्र को भी मौत के घाट उतार दिया और राज्य को अंग्रेजों को सौंपा। बदले में मैंने अंग्रेजों से द्युतखाड़ी को मेरे अधीन करने की मांग की। तभी से अब तक मैंने उसे सबसे छिपाकर रखा था।
लेकिन अब तो उसमें सोना भी खत्म हो रहा है, तो छिपाकर रखने का भी क्या फ़ायदा?
ऐसे विकट समय में मुझे पता चला कि चंद्रताला मंदिर में अपार सोना छिपा हुआ है।”
(लोभ में बोलते हुए भोला का चेहरा बहुत ही भयंकर स्वरूप ले रहा था।)
“उस मंदिर के नीचे बहुत सारा सोना है। लेकिन उसका द्वार बंद है। तभी से मैं इस सोने के सभी रहस्यों को जानने लगा। जिसमें वह द्वार खोलने के लिए महा चंद्रयज्ञ करना होगा और राउभानवंशी रक्त की ज़रूरत है।
मुझे कई वर्षों तक यह बात खटकती रही कि चंद्रवंशियों के साथ की लड़ाई में मैंने अपनी बहन को खो दिया। लेकिन नहीं, वह झूठ था – वह ज़िंदा थी।
यह बात मेरी माँ ने मरने से पहले बताई और चल बसी। लेकिन उसने मुझे यह नहीं बताया कि मेरी प्यारी बहन कहाँ है?
मैंने उसे ढूंढ़ने के लिए पूरा पश्चिम बंगाल छान मारा लेकिन कुछ हाथ नहीं लगा। बाद में मुझे कुछ महीने पहले ही पता चला कि मेरी प्यारी बहन वर्षों पहले गुजरात में एक बच्ची को लेकर पहुँची थी।
यह सुनकर मुझे बहुत दुःख हुआ कि वह बच्ची उसकी नहीं थी, बल्कि राजकुमार मदनपाल की थी। जिसके पूरे परिवार को मैंने तड़पाकर मारा – उसी की बेटी के लिए मेरी बहन ने पूरी ज़िंदगी निकाल दी।
खुशी तब मिली जब यह पता चला कि उसी बेटी से मुझे मंदिर में छिपा हुआ अपार सोना मिलेगा।
यह बात मुझे पंडित ने बताई।”
“तुम जैसे देशद्रोही के कारण ही बाहर से आए अंग्रेजों ने देश में दो सौ साल तक राज किया।”
आदम की बात को रोकता हुआ विनय बोला।
यह सब सुन रही जीद हल्के आँसू भरी आँखें उठाकर बोली, “मेरी मम्मी कहाँ हैं?”
“हा... हा... हा...”
आदम एक राक्षसी हँसी हँसा।
***