Tere ishq mi ho jau fana - 46 in Hindi Love Stories by Sunita books and stories PDF | तेरे इश्क में हो जाऊं फना - 46

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तेरे इश्क में हो जाऊं फना - 46

बंद दरवाज़े और एक दस्तक

बारिश तेज़ हो गई थी। दानिश खिड़की के पास खड़ा होकर उसे निहार रहा था, लेकिन उसका मन कहीं और था। समीरा का बेरुखी से चेहरा बार-बार उसकी आँखों के सामने आ रहा था। उसने कभी सोचा भी नहीं था कि वह इस तरह से उसे नज़रअंदाज़ कर देगी।

वह कुर्सी पर बैठा और अपना फोन उठाया। उसकी उंगलियाँ स्क्रीन पर रुकीं।

"क्या उसे कॉल करना सही होगा?"

थोड़ी देर सोचने के बाद उसने हिम्मत जुटाई और समीरा का नंबर डायल कर दिया।

एक अनपेक्षित कॉल

समीरा अपने कमरे में बैठी थी, किताबें उसके सामने खुली थीं, लेकिन उसका ध्यान कहीं और था। वह अभी भी सुबह की घटना के बारे में सोच रही थी।

तभी उसका फोन बजा। स्क्रीन पर नाम चमका—दानिश।

उसके मन में हलचल मच गई।

"अब यह क्यों कॉल कर रहा है?" उसने झुंझलाते हुए सोचा।

पहले तो उसने कॉल को अनदेखा करने का मन बनाया, लेकिन फिर जाने क्या सोचकर उसने कॉल रिसीव कर ली।

"हैलो?" उसकी आवाज़ ठंडी थी।

"हैलो, समीरा।" दूसरी तरफ से दानिश की आवाज़ आई। वह संयमित लग रहा था, लेकिन उसके अंदर कई सवाल उमड़ रहे थे।

"क्या चाहिए?" समीरा ने रूखे अंदाज में पूछा।

"क्या हम बस नॉर्मल तरीके से बात नहीं कर सकते?" दानिश ने सीधे सवाल किया।

"मुझे किसी से कोई बात नहीं करनी।"

"क्यों?"

"क्योंकि मुझे अब किसी पर भरोसा नहीं रहा।" समीरा की आवाज़ में कड़वाहट थी।

बीते कल की परछाइयाँ

दानिश ने गहरी साँस ली। वह समझ गया कि यह सिर्फ़ कोई आम नाराज़गी नहीं थी।

"देखो, अगर मुझसे कोई गलती हुई है, तो तुम बता सकती हो। मैं जानना चाहता हूँ कि तुम इतनी नाराज़ क्यों हो।"

समीरा एक पल के लिए चुप रही, फिर उसने कहा, "गलती तुम्हारी नहीं है, गलती मेरी है कि मैंने कभी प्यार पर भरोसा किया।"

दानिश को अब और हैरानी हुई।

"क्या हुआ है, समीरा?"

"कुछ नहीं।"

"तुम झूठ बोल रही हो। कोई तो बात है।"

समीरा को यह सुनकर गुस्सा आ गया। "तुम्हें क्यों जानना है? मेरी ज़िंदगी में जो भी हुआ, उससे तुम्हारा कोई लेना-देना नहीं है।"

"अगर तुम्हें लगता है कि मैं सिर्फ़ एक आम जान-पहचान वाला हूँ, तो तुम गलत सोच रही हो। हाँ, हमारी दोस्ती बहुत गहरी नहीं थी, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि मैं तुम्हारी तकलीफ को नज़रअंदाज़ कर दूँ।"

समीरा को कुछ जवाब नहीं सूझा।

"क्या तुम बस इतना बता सकती हो कि तुम्हें प्यार से इतनी नफ़रत क्यों हो गई?"

समीरा की आँखों में आँसू आ गए, लेकिन उसने खुद को संभाला।

"क्योंकि मैंने अपनी बुआ को प्यार में बर्बाद होते देखा है।"

दानिश अब थोड़ा समझ गया था कि बात क्या थी।

मन के जज़्बातों का सैलाब

"तुम्हारी बुआ?"

"हाँ," समीरा की आवाज़ भारी हो गई, "उन्होंने जिससे प्यार किया, उसने उन्हें छोड़ दिया। और उसके बाद वे टूट गईं। इतना कि उन्हें अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा। और मैं बस बेबस होकर देखती रही।"

दानिश को अब उसकी तकलीफ महसूस होने लगी थी।

"समीरा, मैं समझ सकता हूँ कि यह बहुत दर्दनाक था। लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि हर कोई प्यार में ऐसा ही करता है।"

"मुझे फर्क नहीं पड़ता," समीरा ने कड़वे स्वर में कहा, "अब मैं किसी पर भरोसा नहीं कर सकती।"

"अगर मैं कहूँ कि मैं तुम्हारी सोच बदलना चाहता हूँ?"

समीरा चौंक गई।

"क्या?"

"हाँ, मैं चाहता हूँ कि तुम फिर से प्यार पर विश्वास करो।"

"क्यों?"

"क्योंकि प्यार सिर्फ़ तकलीफ नहीं देता, यह इंसान को जोड़ता भी है, मजबूत भी बनाता है। हाँ, कुछ लोग इसका मान नहीं रखते, लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि प्यार खुद ही बुरा है।"

समीरा चुप रही।

दिल से दिल तक

"मैं तुम्हें कुछ नहीं कहूँगा," दानिश ने कहा, "बस इतना कहूँगा कि हर इंसान को उसकी अपनी कहानी तय करने का हक़ होता है। तुम्हारी बुआ की कहानी दर्दनाक थी, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि तुम्हारी भी होगी।"

समीरा की आँखें भर आईं।

"मुझे अभी इस पर बात नहीं करनी।"

"ठीक है," दानिश ने नरमी से कहा, "लेकिन जब भी तुम्हें लगे कि तुम बात करना चाहती हो, तो मैं यहाँ हूँ।"

समीरा ने धीरे से "हम्म" कहा और फोन रख दिया।

एक नई सुबह की उम्मीद

उस रात समीरा बहुत देर तक सो नहीं पाई। उसके दिमाग़ में दानिश की बातें गूँजती रहीं।

"क्या सच में हर प्यार एक जैसा होता है?"

"क्या प्यार को निभाने वाले लोग अब भी होते हैं?"

वह जानती थी कि उसके सवालों के जवाब एक दिन उसे खुद ही ढूँढने होंगे। लेकिन शायद... शायद दानिश की बातें सही थीं।

शायद अभी उसकी कहानी पूरी नहीं हुई थी।

समीरा का अंतर्द्वंद्व: बाथरूम में अकेले में सोचते हुए

समीरा अपने कमरे में थी, उसके दिल की धड़कन तेज़ थी। हल्की-हल्की ठंडी हवा खिड़की से अंदर आ रही थी, लेकिन उसके अंदर एक अजीब सी गर्मी महसूस हो रही थी। दानिश की बातें उसके दिमाग में घूम रही थीं। उसकी आँखों में जो गहराई थी, उसकी मुस्कान में जो सादगी थी, वो समीरा को न चाहते हुए भी अपनी ओर खींच रही थी। लेकिन वह खुद को रोक रही थी।

"नहीं! मैं ऐसा कुछ नहीं सोच सकती," उसने खुद को समझाया। "अगर मैं उसकी तरफ झुक गई, तो कहीं मेरा भी वही हाल ना हो जाए जो बुआ अंकिता का हुआ था।"

बुआ अंकिता ने भी प्यार किया था, लेकिन उनका प्यार दर्द और आँसुओं में बदल गया था। जब उन्होंने अपने दिल की सुनी थी, तब दुनिया ने उन्हें अकेला छोड़ दिया था। यही सोचकर समीरा डर जाती थी। उसे प्यार से डर लगने लगा था।

उसने अपने सिर को झटका और खुद को इस उलझन से बाहर निकालने के लिए बाथरूम की ओर बढ़ गई। "शायद एक ठंडे पानी की शावर से मेरा दिमाग ठंडा हो जाए," उसने सोचा।

बाथरूम में सुकून की तलाश

समीरा ने बाथरूम का दरवाजा बंद किया और एक लंबी सांस ली। बाथरूम में हल्की नमी थी, शीशे पर पानी की बूंदें जमी हुई थीं। आईने में खुद को देखने लगी। उसकी आँखों में एक उलझन थी, एक सवाल था – "क्या मैं दानिश को पसंद करने लगी हूँ?"

उसने पानी का नल खोला, और जैसे ही ठंडा पानी उसके हाथों से होकर बहा, उसे थोड़ी राहत महसूस हुई। उसने शावर ऑन किया, और पानी की तेज़ धार उसके शरीर पर गिरने लगी। ठंडे पानी की बूँदें उसके माथे से टकराईं और धीरे-धीरे उसके चेहरे पर बहने लगीं।

कहानी आगे और भी नए मोड लेगी पढते रहे |