Tere ishq mi ho jau fana - 45 in Hindi Love Stories by Sunita books and stories PDF | तेरे इश्क में हो जाऊं फना - 45

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तेरे इश्क में हो जाऊं फना - 45

अंकिता बुआ धीरे-धीरे डिप्रेशन में जाने लगीं। उन्होंने खुद को दुनिया से काट लिया, अपनी मुस्कान कहीं खो दी। उनके अपनों ने उन्हें संभालने की कोशिश की, लेकिन प्यार की चोट इतनी गहरी थी कि किसी भी दवा या सहानुभूति से वह भर नहीं सकती थी। और फिर, एक दिन अचानक उनकी हालत इतनी बिगड़ गई कि उन्हें अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा। डॉक्टरों ने बताया कि मानसिक आघात की वजह से उनकी हालत इतनी नाज़ुक हो गई थी कि उन्होंने अपने होश ही खो दिए।

समीरा की आँखों में अब प्यार के लिए नफ़रत थी। "अगर प्यार सिर्फ़ दर्द और तकलीफ ही देता है, तो लोग इसे भगवान क्यों मानते हैं? अगर प्यार इतना ही सच्चा होता, तो बुआ को अकेला क्यों छोड़ दिया गया?" उसकी आवाज़ में गुस्सा और तकलीफ दोनों थी।

रिया ने उसे सांत्वना देने के लिए उसके कंधे पर हाथ रखा और धीरे से कहा, "पता है समीरा, प्यार खुद में बुरा नहीं होता। बुरा तब होता है जब कोई इंसान इसे निभाने की हिम्मत नहीं रखता। बुआ का प्यार सच्चा था, लेकिन जिसे उन्होंने अपना समझा, वह शायद इस प्यार के काबिल ही नहीं था।"

समीरा ने दर्द भरी हंसी हंसी और बोली, "तो फिर क्या फ़ायदा ऐसे प्यार का, जो सिर्फ़ तकलीफ दे? मैं अब प्यार पर कभी भरोसा नहीं कर सकती। प्यार सिर्फ़ एक छलावा है, एक धोखा।"

रिया उसे देखती रही। वह समझ सकती थी कि इस वक्त समीरा को कोई तर्क समझाना बेकार था। वह जानती थी कि समय ही इस दर्द को कम कर सकता है। उसने बस इतना कहा, "कभी-कभी हमें वक्त को अपना काम करने देना चाहिए। हो सकता है कि आज तुझे प्यार सबसे बड़ा धोखा लग रहा हो, लेकिन शायद कभी कोई ऐसा भी आए जो तेरा यह विश्वास फिर से लौटा दे।"

समीरा ने कोई जवाब नहीं दिया। वह बस अंकिता बुआ का हाथ थामे बैठी रही, शायद मन ही मन यह प्रार्थना कर रही थी कि काश समय पीछे लौट जाए और सब कुछ फिर से ठीक हो जाए। लेकिन हकीकत यह थी कि समय कभी पीछे नहीं जाता। वह बस आगे बढ़ता है, और कभी-कभी अपने साथ इंसानों को भी घसीटकर आगे बढ़ा देता है, चाहे वे तैयार हों या नहीं।

प्यार, तकलीफ और एक नई शुरुआत

समीरा अब प्यार पर भरोसा नहीं कर सकती थी। अंकिता बुआ की हालत ने उसके अंदर एक अजीब सी नफ़रत भर दी थी। वह हर उस इंसान से चिढ़ने लगी थी जो प्यार की बातें करता था। उसे लगता था कि यह सब सिर्फ़ एक छलावा है, एक भ्रम, जो इंसान को अंदर तक तोड़ देता है।

आज सुबह भी वह इसी सोच में डूबी थी जब उसने अपनी स्कूटी निकाली और कॉलेज जाने के लिए निकल पड़ी। सड़क पर हल्की ठंडी हवा चल रही थी, लेकिन उसे कोई फर्क नहीं पड़ा। उसके कानों में ईयरफ़ोन थे और वह तेज़ आवाज़ में गाने सुन रही थी ताकि दिमाग़ में चल रहे विचारों से थोड़ी राहत पा सके।

कुछ ही देर में वह एक चौक पर पहुँची, जहाँ सिग्नल रेड था। उसने ब्रेक लगाया और रुक गई। तभी अचानक, उसकी नजर बगल में खड़ी एक कार पर पड़ी। कार के अंदर बैठा लड़का उसकी तरफ़ देख रहा था। वह दानिश था।

अचानक हुई मुलाकात

समीरा ने उसे देखते ही चेहरा घुमा लिया और अजीब सा मुंह बना लिया, जैसे उसे उसकी मौजूदगी बिल्कुल भी पसंद न आई हो। दानिश यह देखकर चौंक गया।

"क्या हुआ? इसने ऐसा रिएक्शन क्यों दिया?" उसने खुद से पूछा।

आज जब उसने समीरा को इस तरह अपने प्रति नापसंदगी दिखाते हुए देखा, तो उसे अच्छा नहीं लगा। वह समझ नहीं पाया कि समीरा उससे इतनी चिढ़ी हुई क्यों थी।

भूतकाल की परछाइयाँ

समीरा की नाराज़गी का कारण दानिश नहीं जानता था, लेकिन समीरा को अच्छे से पता था। उसे अब प्यार पर विश्वास नहीं था और दानिश उन लोगों में से था जो अपने खुले विचारों और आकर्षक व्यक्तित्व के कारण लड़कियों के बीच काफ़ी मशहूर था। उसे देखकर समीरा को बस यही लगता था कि यह भी उन लोगों में से एक होगा जो प्यार की बड़ी-बड़ी बातें करते हैं, लेकिन निभाने की हिम्मत नहीं रखते।

सिग्नल अभी भी रेड था। समीरा ने दानिश की तरफ़ बिना देखे ही अपनी स्कूटी थोड़ी आगे बढ़ा ली।

दानिश को समझ आ गया कि कुछ तो गलत है। उसने कार की खिड़की नीचे की और हल्की आवाज़ में कहा, "सब ठीक है?"

समीरा ने उसकी तरफ़ देखा, लेकिन कोई जवाब नहीं दिया। उसकी आँखों में ठंडापन था, जैसे वह उससे कोई रिश्ता ही नहीं रखना चाहती हो।

दिल में उठे सवाल

सिग्नल ग्रीन होते ही समीरा तेज़ी से स्कूटी आगे बढ़ा ले गई। दानिश कुछ पल रुका रहा, फिर उसने भी कार आगे बढ़ा दी।

उसके दिमाग़ में कई सवाल घूमने लगे। "क्या मैंने कभी कुछ गलत कहा था? या कुछ ऐसा किया था जिससे उसे बुरा लगा हो?"

उधर, समीरा भी अपने मन में उलझी हुई थी। उसे खुद पर गुस्सा आ रहा था। "मैं इतनी असभ्य क्यों बन गई हूँ? वह तो शायद मुझसे बस बात ही करना चाहता था। लेकिन मुझे किसी से भी बात करने की जरूरत नहीं। मुझे किसी की परवाह नहीं। प्यार ने सिर्फ़ तकलीफ दी है, और अब मैं किसी को भी अपने करीब नहीं आने दूँगी।"

अधूरी बातें और अनकहे एहसास

दानिश अपनी ऑफिस केबिन में बैठा हुआ था। उसके सामने लैपटॉप खुला था, लेकिन उसका ध्यान स्क्रीन पर नहीं था। उसकी आँखें बस एक जगह टिकी हुई थीं—उस खालीपन पर, जो उसके दिल में किसी अनकहे सवाल की तरह गूँज रहा था।

उसने टेबल पर रखे कॉफी मग को उठाया, एक घूँट लिया, लेकिन स्वाद का एहसास तक नहीं हुआ। उसका दिमाग अभी भी उसी सुबह की घटना में उलझा हुआ था। समीरा का वो ठंडा, बेरुखी से भरा चेहरा उसकी आँखों के सामने बार-बार घूम रहा था। उसने आखिर ऐसा रिएक्शन क्यों दिया?

अनकही नाराज़गी

दानिश ने कभी नहीं सोचा था कि समीरा उससे इतनी नफरत करेगी। उनकी बातचीत ज्यादा नहीं हुई थी, लेकिन जितनी भी हुई थी, उसमें तो कोई ऐसी बात नहीं थी कि वह इस तरह का बर्ताव करे। पहले वह कम से कम हेलो-हाय तो कर लिया करती थी, लेकिन आज उसने तो सीधे नजरें फेर लीं, जैसे वह उसे जानती ही न हो।

"क्या मैंने कुछ गलत कह दिया था?"

"या फिर कोई ऐसी बात कर दी थी, जिससे उसे बुरा लगा हो?"

उसके मन में सवालों का भँवर उठ रहा था, लेकिन कोई भी जवाब सामने नहीं आ रहा था। वह जानता था कि कुछ तो था, जो समीरा उसे नहीं बता रही थी। लेकिन क्या?

दानिश ने अपनी कुर्सी पीछे खिसकाई और खिड़की के पास जाकर खड़ा हो गया। बाहर हल्की बारिश हो रही थी। वह बूँदों को गिरते हुए देख रहा था, लेकिन असल में वह अतीत की किसी याद में खो चुका था।