डॉक्टर की रिपोर्ट
करीब पंद्रह मिनट बाद डॉक्टर बाहर आए। उनके चेहरे पर गंभीरता थी।
"डॉक्टर, मेरी बहन कैसी है?" अजय ने घबराकर पूछा।
डॉक्टर ने एक लंबी साँस ली और बोले, "अभी इनकी हालत नाजुक है। ब्रेन की कुछ गतिविधियाँ बहुत धीमी हो गई हैं। हमने कुछ जरूरी टेस्ट किए हैं, जिनकी रिपोर्ट आने में कुछ घंटे लगेंगे। फिलहाल इन्हें ऑक्सीजन और जरूरी दवाएँ दी जा रही हैं।"
"क्या… क्या वो ठीक हो पाएँगी?" अजय ने चिंता से पूछा।
"फिलहाल कुछ कह पाना मुश्किल है। हम पूरी कोशिश कर रहे हैं।" डॉक्टर ने कहा और आगे बढ़ गए।
अजय वहीं बैठ गईं। उनकी आँखों से आँसू बह रहे थे। राधा ने उनका हाथ थामा और कहा, "हमें हिम्मत रखनी होगी। अंकिता ठीक हो जाएगी।"
इंतजार और उम्मीद
रात बढ़ रही थी। समीरा, राधा और अजय अस्पताल के बाहर बेंच पर बैठे थे। समीरा लगातार भगवान से प्रार्थना कर रही थी। अजय का मन बेचैन था। उन्होंने कई बार नर्सों से जाकर अंकिता की हालत के बारे में पूछा, लेकिन हर बार उन्हें सिर्फ इतना जवाब मिलता कि "डॉक्टर अपनी पूरी कोशिश कर रहे हैं।"
अस्पताल के गलियारों में एक अजीब सी बेचैनी थी। स्ट्रेचर पर मरीजों को ले जाया जा रहा था, कुछ मरीज दर्द से कराह रहे थे, तो कुछ रिश्तेदार डॉक्टरों से उम्मीद भरी नजरों से सवाल पूछ रहे थे। समीरा ने एक नजर अपने माता-पिता पर डाली। उनकी आँखों में डर साफ झलक रहा था।
सुबह की पहली किरण
रात भर इंतजार करने के बाद सुबह के पाँच बजे डॉक्टर फिर से बाहर आए। उनके चेहरे पर हल्की राहत झलक रही थी।
"हमने सारे टेस्ट कर लिए हैं," डॉक्टर ने कहा।
"क्या… क्या कोई सुधार है?" अजय ने घबराकर पूछा।
डॉक्टर ने हल्का सा मुस्कराते हुए कहा, "हाँ, अंकिता जी की हालत स्थिर हो रही है। उनके ब्रेन में कुछ हलचल देखी गई है। यह अच्छा संकेत है। लेकिन अभी भी निगरानी की जरूरत है।"
अजय की आँखों में उम्मीद की चमक आ गई। समीरा और राधा ने भी राहत की साँस ली।
"क्या हम उन्हें देख सकते हैं?" समीरा ने पूछा।
डॉक्टर ने सिर हिलाया, "हाँ, लेकिन सिर्फ कुछ मिनट के लिए।"
समीरा, अजय और राधा जैसे ही जाने लगे तो डाॅक्टर ने कहा,
कोमा में जाने मरीज के लिए कुछ कहा नहीं जा सकता है लेकिन हम अपनी तरफ से पूरी कोशिश करेगे कि वो जल्द से जल्द कोमा से बाहर आ जाए, " डाॅक्टर ने आत्म विश्वास दिलाता हुए कहा |
उम्मीद की रोशनी
अजय, समीरा और राधा धीरे-धीरे अस्पताल के आईसीयू वार्ड की ओर बढ़े। उनके कदम भारी थे, दिल की धड़कनें तेज़ थीं। जैसे ही उन्होंने अंदर झाँका, अंकिता को मशीनों से घिरा पाया। मॉनिटर पर उसकी धड़कनों की धीमी रफ्तार दिखाई दे रही थी, और ऑक्सीजन मास्क उसके चेहरे पर था।
अजय को अपनी बहन की यह हालत देखी नहीं जा रही थी। उसकी आँखों से आँसू छलक पड़े। समीरा और राधा ने उसके कंधे पर हाथ रखा, लेकिन इस समय कोई भी शब्द उसे सांत्वना नहीं दे सकते थे।
अजय अंकिता के पास बैठ गया और उसका हाथ थाम लिया। उसकी उँगलियों की हल्की ठंडक ने अजय के दिल में एक अजीब सा डर भर दिया। उसे अपनी बहन की हँसी याद आ रही थी, उसकी बातें, उसके बचपन के नखरे।
"तू हमेशा कहती थी कि दुनिया में कुछ भी हो जाए, तेरा भाई तेरे साथ खड़ा रहेगा। देख, मैं यहाँ हूँ… तेरे साथ…" अजय की आवाज़ भर्रा गई। "लेकिन तू भी तो अपना वादा निभा… उठ जा न, प्लीज़…"
राधा एक कोने में खड़ी थी। उसकी आँखों में भी आँसू थे। समीरा हाथ जोड़कर भगवान से प्रार्थना कर रही थी, "भगवान, प्लीज़ अंकिता को ठीक कर दो। उसके बिना ये घर सूना हो जाएगा।"
डॉक्टरों की कोशिश
डॉक्टरों की टीम हर कुछ घंटे में अंकिता की हालत जाँच रही थी। वे लगातार दवाओं और मशीनों के ज़रिए उसकी स्थिति को स्थिर बनाए रखने की कोशिश कर रहे थे।
डॉ. मेहरा अजय के पास आए और बोले, "देखिए, अभी अंकिता की हालत गंभीर बनी हुई है, लेकिन हम उम्मीद नहीं छोड़ सकते। उसका ब्रेन रेस्पॉन्स कर रहा है, और यह अच्छा संकेत है।"
"क्या कोई संभावना है कि वह जल्दी कोमा से बाहर आ जाएगी?" अजय ने हिम्मत जुटाकर पूछा।
डॉक्टर ने गहरी साँस ली, "हम कुछ नहीं कह सकते, लेकिन कई बार मरीज प्यार और अपनों की आवाज़ सुनकर भी कोमा से बाहर आ जाते हैं। आप लोग उसे बातें सुनाते रहिए, उससे जुड़ी यादें शेयर करिए। इससे उसका दिमाग एक्टिव हो सकता है।"
अजय ने तुरंत अंकिता का हाथ पकड़ा, "सुन रही है न तू? डॉक्टर कह रहे हैं कि तुझे हमारी बातें सुनाई दे सकती हैं। तू जल्दी से उठ जा, तेरे बिना कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा।
उम्मीद और डर के बीच
समय बहुत धीमे बीत रहा था। हर पल अजय को भारी लग रहा था। अस्पताल की सफ़ेद दीवारें, मशीनों की बीप-बीप की आवाज़, सब कुछ उसे डरावना लगने लगा था।
राधा ने अंकिता की कुछ पुरानी तस्वीरें निकालीं, जो वे अक्सर साथ देखती थीं। उसने तस्वीरें अंकिता के सामने रखीं और कहा, "याद है, हमने ये तस्वीरें कॉलेज ट्रिप पर ली थीं? कितनी मस्ती की थी न हमने? तू तो सबसे ज्यादा शरारती थी। अब उठ जा, हम फिर से वैसी ही मस्ती करेंगे।"
समीरा ने धीमी आवाज़ में अंकिता का पसंदीदा भजन गुनगुनाना शुरू किया। हर कोई अपनी तरफ से कोशिश कर रहा था कि किसी तरह अंकिता को होश आ जाए।
प्यार: एक उम्मीद या एक दर्द?
अंकिता बुआ कोमा में थी। उनकी नाज़ुक हालत देखकर समीरा भीतर तक टूट चुकी थी। अस्पताल के उस कमरे में सफ़ेद चादरों में लिपटी अंकिता की निर्जीव देह पड़ी थी। चारों ओर दवाइयों की महक, मॉनिटर पर टिमटिमाती लाइटें और धीमे-धीमे बीप की आवाज़ पूरे माहौल को और बोझिल बना रही थी। समीरा के ठीक पास रिया बैठी थी, जो उसकी भावनाओं को समझने की कोशिश कर रही थी, मगर वह खुद भी असमंजस में थी।
समीरा की आँखों में आँसू थे, और दर्द उसकी आवाज़ में छलक रहा था। उसने भारी मन से कहा, "मुझे यकीन नहीं हो रहा कि प्यार ने बुआ को इस हालत में पहुँचा दिया। प्यार, जिसे लोग भगवान कहते हैं, वही बुआ के लिए सबसे बड़ा अभिशाप बन गया। अगर वह आदमी उन्हें छोड़कर न गया होता, तो शायद आज बुआ हमारे साथ होती, खुश होतीं।"
रिया ने उसकी बात को ध्यान से सुना और धीरे से बोली, "यार, मैं सच में कुछ समझ नहीं पा रही हूँ। क्या प्यार वाकई इतना निर्दयी हो सकता है? लेकिन तुझे खुद को संभालना होगा।"
समीरा ने एक गहरी सांस ली और अंकिता बुआ का ठंडा हाथ अपने हाथों में थाम लिया। उसकी आँखों के सामने बीते कुछ सालों की घटनाएँ घूम गईं। बुआ कितनी खुश थीं जब उन्हें अपना प्यार मिला था। हर बात में उनकी आँखें चमकती थीं, हर मुस्कान में सच्चा सुख झलकता था। लेकिन जब वही इंसान, जिसे उन्होंने अपनी ज़िंदगी मान लिया था, उन्हें अकेला छोड़कर चला गया, तो उनका सारा संसार बिखर गया।