Super Villain Series - Part 18 in Hindi Mythological Stories by parth Shukla books and stories PDF | Super Villain Series - Part 18

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Super Villain Series - Part 18

🔥 Part 18: अज्ञान द्वार – अंतिम सामना
साधु की बातों ने अर्णव की आत्मा हिला दी थी।
“त्रैत्य सिर्फ मेरा शत्रु नहीं…
 वो मुझमें ही है…!”
उसके कदम भारी हो चुके थे।
 लेकिन अब पीछे लौटने का कोई रास्ता नहीं था।
 अगला और अंतिम द्वार था —
 "अज्ञान द्वार",
 जहां वो अपनी पहचान, अपनी नियति और अपने अंदर के राक्षस से सामना करेगा।

🔒 द्वार का स्वरूप
अज्ञान द्वार साधारण नहीं था।
 वो किसी पत्थर या काठ का बना हुआ नहीं था…
 बल्कि, अंधकार से बना हुआ एक खाली फ्रेम था।
 उसके भीतर कुछ भी नहीं दिख रहा था — बस शून्य।
साधु (धीरे से): “अर्णव…
 जो तू देखेगा, वह तुझमें पहले से ही है।
 जो तू जानेगा, वह तेरा भविष्य लिखेगा।
 और जो तू चुनेगा… वही तय करेगा —
 क्या तू त्रैत्य का उत्तराधिकारी बनेगा… या उसका अंत।”
अर्णव ने आंखें बंद कीं,
 गहरी सांस ली…
 और अज्ञान द्वार में प्रवेश कर गया।

🌀 भीतर की दुनिया – आत्मा की यात्रा
जैसे ही अर्णव द्वार के पार गया —
 उसका शरीर गिर पड़ा।
 अब केवल उसकी आत्मा यात्रा कर रही थी।
उसने खुद को देखा — एक उजाले और अंधेरे के बीच फंसे हुए।
चारों ओर से आवाजें आ रही थीं —
“तू राक्षस का बेटा है…”
 “तू श्राप है…”
 “तू त्रैत्य है…”
उसने कान बंद करने चाहे… पर आत्मा के पास शरीर नहीं होता।
तभी एक चमकदार प्रकाश के बीच एक आकृति उभरी —
 एक युवक, उसकी ही तरह दिखने वाला… पर आँखें त्रैत्य जैसी जलती हुई।
आकृति: “मैं तेरा सत्य हूं, अर्णव।
 मैं तेरी शक्ति हूं।
 और मैं ही वो बीज हूं जिसे त्रैत्य ने तुझमें रोपा था।”
अर्णव: “अगर तू मेरा हिस्सा है, तो मैं तुझे खुद से अलग कर दूंगा!”
आकृति (हँसते हुए):
 “तू मुझे मिटा नहीं सकता…
 तू जब रोया, मैं था…
 तू जब टूटा, मैं था…
 और तू जब लड़ता है… तो मैं ही तुझमें जागता हूं।”

🧠 अर्णव का आत्मसंघर्ष
अब अर्णव खुद से लड़ रहा था।
 हर वो पल जब उसने गुस्से में किसी को नुकसान पहुँचाया…
 हर वो क्षण जब उसने खुद को शापित समझा…
 वो सब उसके सामने था।
लेकिन तभी…
 एक और आवाज आई —
 “पुत्र…!”
एक नारी-स्पर्श, एक करुणा…
 वो उसकी माँ की आत्मा थी।
माँ: “बेटा, राक्षसों की संतान भी देवता बन सकती है…
 जब उसका हृदय सच्चा हो।
 तू त्रैत्य नहीं है। तू मेरा लाल है…
 और तू इस दुनिया की रक्षक बन सकता है।”
अर्णव की आँखों से आँसू बह निकले।
“मैं… अब खुद को स्वीकार करता हूँ।
 मैं त्रैत्य का बेटा हूं,
 लेकिन मैं उसका अंत बनूंगा।”

🔱 शक्ति का पुनर्जन्म
अर्णव की आत्मा तेजस्वी हो उठी।
 उसका पूरा शरीर प्रकाश से भर गया।
 उसने अपने भीतर छिपे त्रैत्य को बांधना शुरू किया।
“अब मैं तुझसे नहीं डरता।
 तू मेरी शक्ति था —
 अब मैं तुझे अपने अधीन करूँगा!”
अचानक उसके शरीर के चारों ओर
 चार तत्व — अग्नि, वायु, जल और पृथ्वी — घूमने लगे।
और पाँचवा —
 “आत्मज्ञान” —
 उसके मस्तिष्क में प्रवेश कर गया।

🔓 द्वार खुलता है — पुनर्जन्म
जैसे ही ज्ञान पूर्ण हुआ —
 द्वार फिर खुल गया।
अर्णव बाहर आया —
 लेकिन अब वो वही अर्णव नहीं था।
 उसकी आंखों में गहराई थी,
 उसके चेहरे पर शांति थी,
 और उसके शरीर से दिव्यता झलक रही थी।
साधु ने उसे देखा और हाथ जोड़ लिए।
साधु: “तू अब तैयार है।
 तू अब केवल योद्धा नहीं…
 तू रक्षक है।”

🔥 लेकिन…!
तभी धरती काँपी।
 आसमान लाल हो गया।
साधु का चेहरा गंभीर हो गया।
“त्रैत्य की आत्मा जाग रही है…
 और वो तेरे पुत्र के रूप में जन्म लेने वाला है।”
अर्णव का चेहरा सन्न रह गया।
“क्या?? मेरा… पुत्र??
 लेकिन मैं तो अभी…”
साधु: “वही तो रहस्य है…
 जिसे तू अभी तक नहीं जान पाया…”

🎬 Part 18 समाप्त
🔥 अगले भाग में:
अर्णव को मिलेगा एक भविष्य की झलक — उसका पुत्र कौन होगा?


त्रैत्य अब जन्म लेने के लिए दूसरे शरीर की तलाश में है


एक नई शक्ति अर्णव के सामने आएगी — जो तय करेगी, अगला युद्ध कैसे होगा