Super Hero Series – Part 11: रक्त की पुकाररात के तीसरे पहर, अर्णव ध्यान में बैठा था। उसकी साँसें गहरी थीं लेकिन मन अशांत। शरीर पसीने से भीगा हुआ, और आँखों में डर नहीं, बस सवाल थे।
अचानक…
उसके कानों में एक धीमी आवाज़ गूँजी।
“अर्णव…”
वो आवाज़ किसी इंसान की नहीं थी। ना गुस्से से भरी थी, ना करुणा से — बल्कि... जैसे लहू खुद बोल रहा हो। वो आवाज़ उसके भीतर से आई थी, उसके दिल से नहीं, रक्त से।
अर्णव चौंका — उसकी रगें जलने लगीं, और उसके शरीर पर लाल रेखाएँ उभरने लगीं। वो रेखाएँ कोई सामान्य नसें नहीं थीं… वे किसी प्राचीन लिपि की तरह चमक रहीं थीं।
रक्त बोले तो क्या कहे?
“तू जन्मा ही नहीं… तुझे बनाया गया है…”
“तू इंसानों में जन्मा, पर तेरी आत्मा… मेरी है।”
अर्णव चीख पड़ा — “तू कौन है?”
“मैं तेरा स्रोत हूँ… तेरा रक्त… मैं ही तेरा पिता हूँ… त्रैत्य।”
अर्णव की साँसें तेज हो गईं। सब कुछ घुमने लगा। उसे अब तक जो कुछ सिखाया गया था, जो बताया गया, सब झूठ लग रहा था।
आत्मा का युद्ध
अर्णव भागा। वो महातप ऋषि की कुटी की ओर भागा।
लेकिन कुटी जल चुकी थी।
चारों ओर राख थी। बस एक शिला बची थी, और उस पर लिखा था:
“जब पिता राक्षस हो, तो पुत्र को देवता बनना पड़ता है… नहीं तो सृष्टि खत्म हो जाएगी।”
अर्णव टूट चुका था। वो ज़मीन पर बैठ गया। उसकी आँखों से आँसू नहीं, खून बहने लगा।
त्रैत्य की चाल
दूसरी ओर, त्रैत्य अब कोई हमला नहीं कर रहा था।
वो चुप था। शांत। इंतज़ार कर रहा था…
“जब समय आएगा, मेरा पुत्र या तो मेरा उत्तराधिकारी बनेगा… या मेरी पहली बलि।”
उसने माया की एक रक्त-छाया को अर्णव के पास भेजा — एक स्त्री का रूप, जो दिखने में वैसा ही था जैसा अर्णव की माँ को याद करता था।
वो छाया बोली:
“बेटा, क्या तू मुझे पहचानता है?”
अर्णव ठिठक गया।
उसके शब्द रुक गए।
“माँ…?”
भ्रम और भावनाओं की चोट
अर्णव को पता नहीं था कि यह सच है या माया।
लेकिन वह स्त्री उसके पास आई, और उसके माथे पर हाथ रखा। और तभी — अर्णव की रगों में कुछ टूटा।
उसका शरीर काँप उठा। जैसे कोई ताला टूट गया हो।
उसी पल, उसकी आँखें पूरी तरह काली हो गईं… और उसके सिर के पीछे तीन आग की लपटें उभर आईं।
“नहीं!!!” अर्णव चीखा। “मैं राक्षस नहीं हूँ… मैं त्रैत्य नहीं बन सकता…”
विकल्प की तलाश
अर्णव भागता है — लेकिन अब वो खुद से भाग रहा है।
वो एक पुरानी गुफा में छिप जाता है, जहाँ एक वृद्ध औरत मिलती है — जिसे गाँव वाले पागल कहते हैं।
वो महिला अर्णव को देख मुस्कराती है।
“तू आया है… तू ही वो रक्त है… जो खुद को धोएगा, और दूसरों को भी बचाएगा…”
वो अर्णव को एक रहस्यमयी ‘त्रिशक्ति-मंत्र’ देती है — लेकिन बताती है:
“इस मंत्र को साधने के लिए तुझे अपनी सबसे बड़ी चीज़ की बलि देनी होगी…”
अर्णव पूछता है — “क्या?”
वो महिला कहती है — “अपना क्रोध।”
क्या अब निर्णय का समय है?
अब अर्णव के सामने तीन रास्ते हैं:
त्रैत्य की तरह ताकत हासिल करे, और दुनिया को खत्म कर दे — जैसे उसके रक्त में लिखा है।
खुद को मिटा दे — ताकि त्रैत्य का कोई उत्तराधिकारी न बचे।
या फिर खुद को जीतकर एक ऐसा योद्धा बने — जो राक्षसी शक्ति को भी धर्म में बदल सके।
कहानी अब उस मोड़ पर है जहाँ अर्णव का अगला क़दम तय करेगा — वो नायक बनेगा या विनाश।
Part 12 – “रक्तपथ की शुरुआत”
जहाँ अर्णव पहली बार त्रैत्य के सामने खड़ा होगा... लेकिन साथ में नफरत नहीं, प्यार लेकर।