🌀 Part 17: मोह द्वार – अपनों से लड़ाई
अर्णव ने अब “भय द्वार” पार कर लिया था।
वो अपने सबसे बड़े डर से लड़ा… और जीता।
अब बारी थी — मोह द्वार की।
साधु ने संकेत किया,
"अब तुझे अपना दिल थाम कर जाना होगा।
यहां तेरा शरीर नहीं, तेरा मन परखा जाएगा।"
🚪 द्वार खुलता है…
अर्णव जैसे ही द्वार के भीतर गया —
सब कुछ बदल गया।
ना कोई अंधकार था,
ना सन्नाटा…
बल्कि सामने एक खुशियों से भरा गाँव था।
जहां बच्चे खेल रहे थे,
महिलाएं हँस रही थीं,
और लोग प्रेम से जी रहे थे।
ये वही दृश्य था… जो कभी अर्णव का बचपन था।
वही माँ का चेहरा… जो उसे बचपन में गोद में सुलाती थी।
वो दौड़ कर माँ के पास गया…
माँ ने उसे गले लगा लिया।
माँ: “तू लौट आया बेटा… अब कहीं मत जाना।”
अर्णव (रुँधे स्वर में): “माँ… मैं कितना तरसा इस एक क्षण के लिए।”
🧠 लेकिन कुछ अजीब था…
हर कोई बहुत खुश था,
पर अर्णव को सब कुछ ज्यादा परफेक्ट लग रहा था।
जैसे कोई सपना हो… या जाल।
तभी अचानक उसकी नजर पड़ी —
सामने वही साधु खड़ा था, जो द्वार पर मिला था…
पर अब उसकी आँखें लाल थीं।
साधु (गंभीर स्वर में):
"क्या तू जानता है ये सब क्या है?"
अर्णव: “ये… मेरा घर है, मेरा बचपन, मेरी माँ…”
साधु: “नहीं बेटा, ये सब तेरी मोह की छाया है…
त्रैत्य ने तुझे रोकने के लिए तेरा मोह ही हथियार बनाया है।”
💔 भावनात्मक संग्राम
अचानक सब गायब हो गया।
सामने एक दर्पण प्रकट हुआ।
उसमें दिखा — अर्णव खुद,
पर उसकी आंखों में त्रैत्य की आग थी।
दर्पण का अर्णव:
“तू मुझे क्यों मिटाना चाहता है?
क्या भूल गया तेरी शक्ति कहाँ से आई है?
मैं तेरा हिस्सा हूं… तेरी ही परछाईं।”
असली अर्णव:
“मैं तुझसे नहीं डरता।
तू सिर्फ मेरी परछाईं है… और अब मैं उजाला बन चुका हूं!”
अर्णव ने दोनों हाथ सामने फैलाए,
और जोर से वही मंत्र बोला जो साधु ने सिखाया था:
“ॐ अज्ञान-नाशाय तेजसे नमः”
दर्पण चटक गया… और मोह द्वार टूट गया।
🔓 द्वार टूटते ही…
वो फिर उसी गुफा में लौट आया,
जहां साधु उसकी प्रतीक्षा कर रहे थे।
साधु: “तू अपने मोह से भी बाहर आ गया…
अब तू तैयार हो रहा है।
लेकिन अब अंतिम द्वार आएगा — अज्ञान द्वार,
जहाँ तुझे मिलेगा अपना सत्य… और एक बड़ा झटका।”
🔮 बड़ा खुलासा (सस्पेंस!)
साधु ने पहली बार अर्णव से नज़रें चुराईं।
अर्णव: “क्या हुआ?
क्या अब और कोई रहस्य बाकी है?”
साधु (धीरे से):
“हाँ…
एक ऐसी बात जो तुझे अभी तक पता नहीं…
और शायद जिसे जानने के बाद तू खुद से ही नफरत करने लगे…”
अर्णव: “बताइए गुरुदेव… अब कुछ भी छिपाइए मत।”
साधु ने सिर झुकाया और बोला:
“त्रैत्य… सिर्फ तेरा पिता नहीं है…
वो तुझमें ही छिपा है।
जब तू पैदा हुआ…
तब त्रैत्य ने अपनी आधी आत्मा तेरे शरीर में छिपा दी थी…
ताकि समय आने पर वो तुझसे ही दोबारा जन्म ले सके।”
अर्णव सन्न रह गया।
“तो क्या मैं… उसका पुनर्जन्म हूं…?”
साधु: “नहीं, बेटा। तू उसका अंत बन सकता है —
अगर तू खुद को पूरी तरह पहचान पाए।”
🌑 अंत की शुरुआत…
अब अगला द्वार था — अज्ञान द्वार।
जहाँ अर्णव को मिलेगा — उसका सच्चा रूप, और…
वो भयानक कड़ी, जिससे त्रैत्य फिर से जन्म लेने वाला है।
“क्या अर्णव खुद को बचा पाएगा?”
“या उसके भीतर की आग, उसे ही जलाकर राख कर देगी?”
✅ Part 17 समाप्त
🔥 अगले भाग में:
अर्णव पहुंचेगा अज्ञान द्वार में — जहाँ उसे मिलेगा अपना सच्चा अतीत
एक प्राचीन रहस्य खुलेगा — जिससे उसका जन्म, उसका अस्तित्व और उसकी शक्ति जुड़ी है
और… त्रैत्य की आत्मा फिर से जागने लगेगी…