: मायावी नगरी — छल की भूमि
धूलभरे रास्ते पर अर्णव अकेला चल रहा था। चारों ओर सन्नाटा था।
आसमान पर काले बादल जमा थे। जैसे कुछ बहुत भयानक होने वाला हो।
उसके कदम अब अग्निद्वार के पार आ चुके थे।
अब वो जगह आ गई थी — जिसे सदियों से लोग "छल नगरी" कहते थे।
जहाँ सत्य और झूठ की रेखा मिट चुकी थी।
🌫️ प्रवेश — एक मायावी नगर का
अर्णव ने जैसे ही उस भूमि में कदम रखा, एक अजीब-सी ठंडी हवा उसके शरीर से टकराई।
फिज़ा में सुगंध थी — पर उसमें एक डर छुपा था।
चारों ओर रंगीन हवेलियाँ, चकाचौंध रोशनी, और लोग हँसते हुए — लेकिन अर्णव की आत्मा कांप रही थी।
"ये जगह… इतनी सुंदर क्यों लग रही है?
पर अंदर से डर क्यों महसूस हो रहा है?" — अर्णव ने खुद से कहा।
तभी एक बूढ़ा बाबा सामने आया, जिसकी आँखों में गहराई थी।
बाबा: "स्वागत है, अर्णव… त्रैत्य के पुत्र!"
अर्णव एकदम चौक गया।
अर्णव: "क्या?! आप क्या कह रहे हैं? मैं त्रैत्य का पुत्र नहीं हूँ!"
बाबा (धीरे से मुस्कराते हुए): "इस नगरी में सच छिप नहीं सकता…
यहाँ हर चेहरा अपना असली रूप दिखाता है।
देखो, क्या तुम अब भी खुद को नहीं पहचानते?"
🔮 मायावी आईना — रहस्य की झलक
बाबा उसे एक पुराने महल के अंदर ले गया।
वहाँ एक विशाल आईना था — लेकिन ये साधारण नहीं था।
इसमें कोई भी खुद का "असली अतीत" देख सकता था।
बाबा: "इसमें झाँककर देखो, कौन हो तुम…"
अर्णव काँपते हाथों से आईने की ओर बढ़ा।
पहले कुछ नहीं दिखा… फिर धुंध छटी…
और दिखाई दिया — त्रैत्य, जो एक नवजात शिशु को अपनी गोद में उठा रहा था।
“यह मेरा उत्तराधिकारी होगा। मैं इसे किसी को नहीं दूँगा।
यह मेरी चेतना, मेरी शक्ति और मेरी आत्मा का वारिस है!”
अर्णव ने उस बच्चे का चेहरा देखा — वो वही था।
"नहीं... नहीं... ये नहीं हो सकता..."
"मैं उसका बेटा नहीं हूँ!" — अर्णव ज़ोर से चिल्लाया।
आईना टूट गया।
🧠 मानसिक युद्ध — आत्मा की चीख
अर्णव भागते हुए महल से बाहर निकला।
उसकी आँखों से आँसू बह रहे थे।
“अगर मैं त्रैत्य का पुत्र हूँ... तो क्या मैं भी एक राक्षस बनूँगा?”
“क्या मेरी नियति पहले से लिखी जा चुकी है?”
“क्या मैं इस दुनिया को बचाने आया हूँ... या मिटाने?”
सड़कें अब बदलने लगी थीं। हवेलियाँ सड़ने लगी थीं।
हँसते चेहरे अब डरावने चेहरों में बदल गए।
छल नगरी अब अपना असली रूप दिखा रही थी।
हर कोने से आवाज़ें आने लगीं:
“त्रैत्य पुत्र…”
“वापस आओ…”
“हम तुम्हारी राह देख रहे हैं…”
अर्णव का दिमाग टूटने लगा।
लेकिन तभी...
🧘 एक प्रकाश की किरण — सच्चाई की पुकार
कहीं से एक तेज़ उजाला निकला।
एक देवीस्वर गूंजा — “अर्णव, सत्य को स्वीकार कर… लेकिन उसका गुलाम मत बन।”
अर्णव रुका।
आँखें खोलीं।
उसके हाथ में कुछ था — एक प्राचीन ताबीज, जो उसकी माँ ने बचपन में पहनाया था।
“तू त्रैत्य का पुत्र हो सकता है… लेकिन तेरा कर्म तुझे तय करेगा।”
“शक्ति तुझमें है… अब तू तय कर — तू क्या बनेगा?”
अर्णव ने गहरी साँस ली।
पहली बार उसकी आँखों में विश्वास था।
💥 अब अर्णव वापस लौटेगा… लेकिन बदला हुआ
अब वो केवल एक लड़का नहीं है…
वो है — एक यात्री, एक युवराज, और अब कर्मवीर।
उसकी नसों में त्रैत्य का खून है,
पर दिल में उसका नहीं — उसका विरोध है।
“अब मैं अपनी नियति खुद बनाऊँगा…
त्रैत्य को मिटाने के लिए, मुझे खुद को जीतना होगा।”
📌 Part 15 समाप्त — आगे क्या?
अगले Part में:
क्या अर्णव किसी गुरु के पास जाएगा?
क्या वो त्रैत्य के क़िलाफ़ विद्रोह करेगा?
या क्या उसे अपनी शक्ति अभी तक नहीं मिली?