Super Hero Series – Part 4
“अर्णव की पहली झलक – और वो सपना जो उसके रोंगटे खड़े कर देता है…”
रात का तीसरा पहर था।
गाँव के उत्तर में एक पुराना शिव मंदिर था, जहाँ बरसों से कोई दीप नहीं जला था।
लेकिन उस रात… हवा अचानक थम गई। मंदिर की घंटियाँ अपने-आप बजने लगीं।
पास ही, गाँव के बाहर एक टूटी हुई झोपड़ी में,
एक 18-19 साल का युवक बिस्तर पर करवटें बदल रहा था।
उसका नाम था — अर्णव।
एक अनाथ लड़का, जो पास के स्कूल में पढ़ाता था,
पर उसका मन हमेशा बेचैन रहता था… जैसे कुछ अधूरा हो।
सपना जो हर रात लौटता है…
उसने आँखें मूँदी थीं, लेकिन अंदर कुछ और ही चल रहा था।
“बचाओ… कोई है…?”
एक बच्चे की चीखें…
एक तांत्रिक हँसी…
और फिर…
“तू भाग नहीं सकता… तू मेरा अंश है…”
अर्णव एकदम हड़बड़ाकर उठ बैठा।
साँसें तेज़, माथा पसीने से भीगा हुआ।
वो बुदबुदाया —
“वो फिर आया… वही दस सिर वाला राक्षस… वो मुझे क्यों देखता है ऐसे…?”
सुबह… एक अद्भुत घटना
अर्णव मंदिर की सीढ़ियों पर बैठा था।
उसने आँखें बंद कीं, और मन ही मन सोचा:
“कौन हूँ मैं? क्यों हर रात वही सपना आता है?”
“क्या मेरा अतीत कुछ और था…?”
तभी एक बूढ़ा साधु वहाँ आया, जो वर्षों से कभी किसी से नहीं बोला था।
वो धीरे से बोला:
“तेरे माथे की रेखाओं में कुछ अजीब है…”
“क्या कभी तूने किसी को देखे बिना उसका चेहरा महसूस किया है?”
अर्णव चौंक गया।
“हाँ… एक आदमी है… दस सिर वाला… जैसे वो मुझसे कुछ माँग रहा हो…”
“वो तेरा अतीत है… और शायद भविष्य भी…”
साधु की बात खत्म होते ही मंदिर की सीढ़ियों पर हल्की कम्पन हुई।
शिवलिंग से एक प्रकाश की लकीर निकली — और सीधे अर्णव के माथे को छू गई।
उसी पल…
अर्णव को एक झलक दिखी —
एक तांत्रिक गुफा, काली रेखाओं से घिरी हुई…
एक नवजात बच्चा…
और तांत्रिकों की आवाज़ें:
“त्रैत्य का पुत्र सुरक्षित है… अग्नि में छिपा दो इसे… कोई इसे ढूंढ न पाए…”
अर्णव चीख उठा —
“नहीं… मैं कौन हूँ…?”
गाँव की हलचल और रहस्य का बीज
उस शाम गाँव के कुएँ से काली धुआँ सी भाप निकलने लगी।
लोग डरने लगे —
बच्चे बोले, “चाचा, कल सपना आया था… एक राक्षस कह रहा था —
‘मैं आ रहा हूँ… मेरा बेटा जाग गया है…’”
गाँव के पुजारी ने मंत्र पढ़ा, और डरते हुए कहा:
“ध्यान रखो… अब उसका वंश जाग गया है…”
अब क्या होगा?
अर्णव अब जानता है कि वो सामान्य नहीं है।
पर वो यह नहीं जानता कि...
वो उसी राक्षस का रक्त है,
जिसे एक दिन पूरी दुनिया में “त्रैत्य” के नाम से जाना जाएगा।
और त्रैत्य?
उसे नहीं पता कि उसका सबसे बड़ा शत्रु…
उसका अपना पुत्र है।
Part 4 Summary:
1. अर्णव की पहली झलक — मासूम लेकिन रहस्यमयी।
2. उसे डरावने सपने आते हैं, जिनमें कोई अजीब तांत्रिक दिखता है।
3. शिव मंदिर में उसे अपने अतीत की एक झलक मिलती है।
4. गाँव में काली परछाइयाँ फैलनी शुरू हो गई हैं।
5. और अब कहानी मोड़ लेने जा रही है — क्योंकि "बेटा" जाग चुका है।
Super Hero Series – Part 5
"काले रक्त की पहली बूँद – त्रैत्य की पुकार"
कहीं दूर… एक जला हुआ जंगल…
सारा वातावरण राख बन चुका था।
धरती पर जीवन का कोई निशान नहीं था, सिर्फ़ एक गहराई से आती आवाज़ गूँज रही थी —
“वो जाग गया है… मेरा अंश… मेरी आत्मा का टुकड़ा…”
कहीं ज़मीन की दरारों से एक लालचट काला तरल ऊपर आ रहा था —
जैसे रक्त… पर किसी मानव का नहीं।
त्रैत्य अपने ध्यान से बाहर आया।
उसने आँखें खोलीं — उसकी दसों आँखों से एक साथ आग निकली।
“मेरे पुत्र… तू अब सुलगने लगा है… बहुत हुआ तेरा छिपा रहना।
अब तुझे मेरी तरफ़ आना होगा… चाहे तुझे याद हो या नहीं।”
दूसरी ओर – अर्णव की बेचैनी बढ़ती जा रही है
तीन रातों से अर्णव को नींद नहीं आई थी।
हर बार सपना और भी भयानक होता जा रहा था।
एक रात वो मंदिर के पास पहाड़ी की चोटी पर खड़ा था।
अचानक उसे ऐसा लगा… जैसे किसी ने उसे पुकारा।
“आ… मेरे पास आ… ये अग्नि तुझे नहीं जलाएगी, तुझे जन्म देगी…”
अर्णव की आँखें एक पल के लिए चमकीं।
वो होश में नहीं था। उसके क़दम खुद-ब-खुद पहाड़ी की ओर बढ़ते गए…
और तभी… पहाड़ी के नीचे से ज़मीन फटी —
और एक काली मूरत बाहर आई।
"त्रैत्य का पहला दूत" – नरकपाल की एंट्री
वो राक्षस, त्रैत्य का पहला दूत था —
जिसका नाम था नरकपाल — आधा मानव, आधा हड्डियों का जाल।
उसकी आंखें नहीं थीं — सिर्फ़ गहरे काले गड्ढे थे,
जिनसे धुआँ और डर निकलता था।
उसने कहा —
“बालक… तू जिसे ‘मैं’ समझता है… वो सिर्फ़ एक खोल है।
तेरी आत्मा मेरा स्वामी माँग चुका है…”
अर्णव काँप गया।
“मैं कौन हूँ…? क्यों मुझे खींचा जा रहा है?”
नरकपाल ने ज़ोर से हँसते हुए कहा —
“क्योंकि तेरी रगों में बहता है त्रैत्य का रक्त…”
अर्णव को लगा जैसे उसके भीतर कुछ टूट रहा है —
और फिर… एक झटका!
उसकी आँखें जलने लगीं। उसके सीने से एक रौशनी निकली —
और वो बेहोश होकर गिर पड़ा।
तीसरा दृश्य – त्रैत्य का क्रूर संकल्प
त्रैत्य ने आकाश की ओर देखा, और बड़बड़ाया:
“देवों ने मुझे रोका था… मैं रुका…
उन्होंने मुझे बाँधा… मैं बँधा…
पर अब मेरा रक्त पृथ्वी पर चल रहा है…
अब या तो वो आएगा… या मैं उसे खींच लूंगा!”
और उसने तीन मंत्र बोले —
जिससे पंचतत्व में विकृति शुरू हो गई।
हवा उलटी दिशा में बहने लगी।
आग ने जलाना छोड़ दिया।
पानी पत्थर बन गया।
पृथ्वी से धुआँ उठने लगा।
आकाश में बिजली चमककर रुक गई।
गाँव में हलचल – और रहस्य गहराता है
गाँव में साधु बोले –
“अब समय आ गया है…
जब धर्म का बेटा, अधर्म के गर्भ से जन्मा होगा।”
और तब… पहली बार
अर्णव के माथे पर एक त्रिकोण चिन्ह उभर आया —
लोगों ने देखा, डर से थर्रा उठे।
इस Part में क्या हुआ:
त्रैत्य को पता चल गया कि अर्णव जाग चुका है।
उसने अपना पहला दूत "नरकपाल" भेजा।
अर्णव को अपने रक्त का पहला संकेत मिला — और वो बेहोश हो गया।
पाँचों तत्व बिगड़ने लगे — त्रैत्य का प्रभाव अब बढ़ने लगा है।