Ishq aur Ashq - 43 in Hindi Love Stories by Aradhana books and stories PDF | इश्क और अश्क - 43

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इश्क और अश्क - 43



बेटा... प्रणाली तुम्हारी ज़िम्मेदारी है, तुम्हें उसका ख़याल रखना होगा।
(महाराज के शब्द पारस के कानों में गूंजने लगे और पता नहीं, उसके दिमाग में एकाएक क्या विचार आया।)

वो उस तलवार और प्रणाली के बीच आकर खड़ा हो गया।

सबकी आंखें फट गईं।

प्रणाली (चिल्लाई): भैया...?

महाराज: राजकुमार...?

पर तब तक वह तलवार राजकुमार की पीठ में धंस गई, और राजकुमार वहीं ध्वस्त हो गए।

वो नीचे गिरा... प्रणाली उसे संभालते-संभालते धरती पर बैठ गई,
उसके दोनों हाथों में उसका भाई बेजान पड़ा है।
वार इतना तीखा था कि पारस को कुछ आखिरी अल्फ़ाज़ भी बोलने का वक्त नहीं मिला।
प्रणाली की आंखों से आंसू बाहर बहने लगे।

महाराज जितनी गति संभव थी, उतनी गति से अपने पुत्र के पास पहुंचे।

महाराज (रोते हुए):
पुत्र... आंखें खोलिए! देखिए, आपके पिता आपको आदेश दे रहे हैं...

(इतना बोलकर वो फूट-फूट कर रो पड़े।)

सारे सैनिक अपनी तलवारों को ज़मीन की तरफ झुका कर उन्हें सलामी देने लगे।

महाराज: उन गरुड़ वंशजों ने हमारे पुत्र की बलि ले ली...

प्रणाली (चौंकते हुए): गरुड़ वंशज...?

महाराज: यह युद्ध धरती से नहीं था, यह गरुड़ लोक से था।

प्रणाली (आंसू पोंछते हुए):
पर स्वर्ग लोक के रक्षकों — गरुड़ वंशजों — का धरती के आम राज्य से क्या लेना-देना?
हमें नहीं लगता कि ऐसा कुछ है, यह बस एक राज्य विस्तार का युद्ध था।

महाराज: राजकुमार को महल तक ले चलो।

सब लोग महल पहुंचे।
राज वैद्य को बुलाया गया।

महाराज (विनती करते हुए):
राज वैद्य... कृपया करके हमारे पुत्र को ठीक कर दीजिए।

राज वैद्य कुछ जांच कर रहे हैं, ज़ख्म को अच्छे से देख रहे हैं...
बहुत देर तक सोचने और देखने के बाद बोले:

राज वैद्य: अब कुछ नहीं हो सकता...

प्रणाली: ऐसा न कहिए वैद्य जी... आप कुछ तो करिए!

राज वैद्य: मेरी जड़ी-बूटियां केवल इनकी सांसे चला सकती हैं, वो भी कुछ वक्त के लिए,
किंतु इन्हें होश में नहीं ला सकतीं।

महाराज: पर ऐसा क्यों?

राज वैद्य:
क्योंकि इस तलवार पर एक प्रकार का विष लगा हुआ है — और वह विष धरती का नहीं...
यह गरुड़ लोक की एक विशेष वनस्पति से बनाया गया है।

प्रणाली (मन में): इसका मतलब पिताजी का शक ठीक था...

वो गुस्से में अपनी तलवार निकालती है और जाने लगती है।

मालविका: कहां जा रही हो तुम?

प्रणाली: मां... हमारा रास्ता छोड़िए! हम उन गरुड़ों का सर्वनाश कर देंगे!

मालविका:
आपकी जान के लिए आपके भाई ने अपनी जान दे दी...
और आप खुद मौत के मुंह में जाकर उसके इस बलिदान का उपहास कर रही हैं?

प्रणाली (अचंभित): क्या...? हमारी जान बचाने के लिए...?

मालविका:
यकीनन! ये पूरा युद्ध, वो हमला — केवल और केवल आपके लिए था।

प्रणाली: पर हमारे लिए क्यों?

मालविका:
क्योंकि आप इस कुल की दस पीढ़ियों के बाद पहली कन्या हैं —
और तालिस्मी शक्तियों की वारिस।

राज वैद्य:
जहां का ज़हर होता है, दवा भी वहीं की लगती है।

महाराज: हम आपका आशय समझे नहीं?

राज वैद्य:
गरुड़ लोक तो राजकुमारी को जाना ही होगा,
क्योंकि इस विष का तोड़ भी वहीं मिलेगा।

प्रणाली: क्या है उस दवा का नाम?

राज वैद्य: गरुड़ पुष्प।

राज वैद्य:
किंतु... जल्द से जल्द लाना होगा उसे...

प्रणाली:
आप भैया का इलाज जारी रखिए...
मैं उसे जल्द से जल्द लाने की कोशिश करूंगी!

महाराज: पर तुम गरुड़ लोक कैसे जाओगी?
वहां किसी इंसान का प्रवेश वर्जित है!

प्रणाली:
पिता जी, कोई तो रास्ता होगा...?
अगर उन्होंने धरती पर आकर हमसे युद्ध करने का विचार किया है,
तो बेशक हमारे पास भी कुछ तो उनसे ताकतवर हथियार हैं।

महाराज (मन में):
हम आपको कैसे बताएं पुत्री... कि वो हथियार और वो कारण... आप ही हैं!

प्रणाली: पिता जी... आप क्या सोच रहे हैं? बताइए ना...

महाराज:
हम आपको रास्ता बताएंगे,
पर आपको ये वादा करना होगा कि आप एक सप्ताह में वापस आ जाएंगी — और सही-सलामत!

प्रणाली: एक सप्ताह क्यों?

महाराज:
क्योंकि हमें प्रजा से अपने वचन अनुसार उनका राजा देना है।

प्रणाली:
पर पिता जी... एक सप्ताह में भैया पूरी तरह कैसे ठीक होंगे?

महाराज:
बीजापुर का अगला राजा आप हैं प्रणाली...
हमने अपनी प्रजा से वादा किया था कि उनके राजा का राज्याभिषेक एक सप्ताह में होगा।

प्रणाली की आंखें खुली रह गईं, वो दो कदम पीछे हट गई।

प्रणाली (कांपती आवाज में):
पिता जी...? हम ये नहीं कर सकते...


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