प्रणाली अपने कक्ष में आराम से सो रही है।
तभी कुछ आवाजें आने लगीं... और वो तेज़ होती जा रही थीं।
उसकी आंखें खुलीं। उसने देखा — बहुत सारी दासियां उसके चारों ओर खड़ी थीं।
वो थोड़ा अचंभित हो गई।
प्रणाली (मन में): इतनी दासियां...? ये सब क्या हो रहा है...?
और इनके हाथों में ढालें क्यों हैं?
उसने एक दासी से पूछा:
प्रणाली: ये सब क्या हो रहा है???
एक दासी (घबराई हुई):
राजकुमारी, आप शांत रहिए...!
अब उसे घबराहट होने लगी। वो चिल्लाई:
प्रणाली: हुआ क्या है...? बताओ मुझे अभी...!
दासी:
राजकुमारी... गरुड़ों का हमला है।
उन्होंने हम पर हमला कर दिया है, और महल में युद्ध हो रहा है।
प्रणाली थोड़ा घबरा गई,
लेकिन अगले ही पल अपने बिस्तर से उठी
और अपने लड़ाकू वस्त्र पहनने लगी।
एक दासी (घबरा कर):
ये आप क्या कर रही हैं राजकुमारी...?
वो उसके सामने खड़ी हो गई।
प्रणाली ने उसे अपने हाथों से हटाते हुए कहा:
प्रणाली:
हटो मेरे रास्ते से... मुझे भी युद्ध में भाग लेना है!
वो जाने लगी, तो सारी दासियां उसके सामने आ खड़ी हुईं।
सभी:
नहीं राजकुमारी...!
हम आपको नहीं जाने देंगे।
ये आपके पिता और भाई का आदेश है —
कि आपको कहीं जाने न दिया जाए।
प्रणाली (गुस्से में):
मेरे पिता, भाई और सैनिक अपनी जान पर खेल रहे हैं —
और तुम लोग चाहते हो कि मैं यहां हिफाज़त में रहूं?
(वो सबको धकेलते हुए आगे चल दी)
प्रणाली (पीछे मुड़कर):
खबरदार...! अगर कोई मेरे पीछे आया।
वो अपने कमरे से बाहर निकली।
वहां बाहर सैनिक निगरानी पर खड़े थे।
प्रणाली तेज़ी से भागी।
सभी सैनिक उसे देखकर दंग रह गए।
प्रणाली (तेज़ आवाज़ में):
अगर राज्य की हिफाज़त करनी है,
तो युद्ध के मैदान में तलवार उठाओ —
यहां खड़े रहकर अपनी जान मत बचाओ!
और वो दौड़ पड़ी।
सभी सैनिक उसके पीछे भागने लगे।
प्रणाली युद्ध के मैदान में पहुंची।
चारों ओर खून और लाशें बिछी थीं।
किसी की गर्दन धड़ से अलग थी,
कोई अपनी जान गंवा चुका था।
उसने अपनी तलवार तेज़ की और कस कर मैदान में उतर पड़ी।
उसने एक-एक करके कई दुश्मनों को गिरा दिया।
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अब तक काफी सैनिक शहीद हो चुके थे।
राजा और राजकुमार का दिल पसीज चुका था।
तभी लड़ते हुए उनके पास खबर पहुंची —
"प्रणाली युद्ध में उतर चुकी है।"
महाराज (गंभीर स्वर में):
बेटा... प्रणाली तुम्हारी ज़िम्मेदारी है।
अगर इस युद्ध में मुझे कुछ हो जाए,
तो तुम ही उसके सब कुछ होगे।
राजकुमार (बेचैनी से):
पिताजी, ऐसा मत कहिए।
हम अभी राजकुमारी के पास जाते हैं!
वे राजकुमारी के पास पहुंचे।
राजकुमार (घबराते हुए):
राजकुमारी... कृपया महल लौट आइए।
प्रणाली (दृढ़ स्वर में):
राजकुमार, अभी हम आपकी बहन नहीं — एक योद्धा हैं।
और आप युद्ध के मैदान में हैं,
तो युद्ध की भाषा में ही बात करें।
राजकुमार समझ गया —
अब केवल लड़ना ही विकल्प है।
दोनो भाई-बहन मिलकर बहुत बहादुरी से लड़े।
उन्होंने दुश्मनों की आधी सेना को पराजित कर दिया।
इतना खून, इतनी तलवारें, इतनी लाशें...
जिसका कोई हिसाब नहीं।
लेकिन बीजापुर की सेना ने अंत में दुश्मन को हरा दिया।
आखिरी दुश्मन भी मारा गया।
प्रणाली टूट सी गई —
उसने इतने लोगों को मार दिया था।
उसके हाथ से तलवार गिर पड़ी।
पारस ने देखा — ये उसका पहला युद्ध था।
अब तक तो उसने सिर्फ खेल में तलवार चलाई थी।
वो लाशों के बीच दौड़ते हुए उसके पास पहुंचा
और उसे गले लगा लिया।
पारस (गर्व से):
शाबाश मेरी बहना... शाबाश!
मुझे तुझ पर गर्व है!
प्रणाली (भीगी आंखों से):
ये सब आपकी सीख है, भैया।
पारस (हंसते हुए):
वैसे राजा तो तू भी बन सकती है!
प्रणाली (हल्की सी नाखुश मुस्कान के साथ):
नहीं... वो आप ही बनो।
पारस:
मुझे आज अपनी बहन पर बहुत गर्व हो रहा है।
तू सच में एक योद्धा है प्रणाली!
प्रणाली:
भैया, अब घर चलें।
बाकी लोगों से भी इस युद्ध में हुए नुकसान के लिए माफ़ी मांगनी है।
पारस (सर हिलाते हुए):
हम्म...! चलते हैं।
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दूसरी ओर, महाराज ने भी तलवार नीचे रखी और थोड़ी राहत की सांस ली।
लेकिन उन्हें अपने शहीद सैनिकों का दुख भी था।
वो प्रणाली और पारस की ओर बढ़ ही रहे थे
कि तभी कुछ दिखा...
एक अधमरा दुश्मन होश में आने के लिए तड़प रहा था।
प्रणाली और पारस आगे बढ़ रहे थे...
तभी उस दुश्मन ने अपनी पूरी ताकत लगाई,
किसी की पीठ से तलवार निकाली और प्रणाली की ओर वार कर दिया!
महाराज (चिल्लाते हुए):
राजकुमार... राजकुमारी... बचिए!!!
पारस पीछे मुड़ा,
तो देखा — एक तेज़ रफ्तार में तलवार प्रणाली की ओर आ रही थी...
"बेटा... प्रणाली तुम्हारी ज़िम्मेदारी है।"
(महाराज के शब्द पारस के कानों में गूंजे)
पता नहीं उसके दिमाग में एकाएक क्या आया,
वो उस तलवार और प्रणाली के बीच आकर खड़ा हो गया...
सबकी आंखें फट गईं।
प्रणाली (चीखती हुई):
भैया...!!
महाराज (तूफानी स्वर में):
राजकुमार...!!!
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पारस बचा रहेगा?
क्या अब प्रणाली को भी अपनी असल विरासत या किस्मत की गहराई से सामना होगा...?