और...
जब देव राधा को देखता है ,तो देखते ही रह जाता है ।
काला कुर्ता ,व्हाइट लेगी ,व्हाइट दुपट्टा भूरे लंबे बाल, सागर की आंखें ,माथे पर छोटी सी बिदी और मुस्कुराता चेहरा।कितनी सुंदर लग रही है राधा।
दरअसल देव ने राधा को इससे पहले इतनी गौर से कभी देखा ही न था।
वह तो राधा की बातों का दीवाना था उसकी कभी न खत्म होने वाली बातें चुंबक की तरह खिंचती थी। राधा की बातों में इतना खो जाता था की कभी कुछ और न देखा न सोचा । उसे तो आज ही पता चला कि राधा इतनी सुंदर भी है। बस निहारता रहा राधा को,फिर बोला _बहुत सुंदर लग रही हो राधे !!
राधा का चेहरा शर्म की लाली से और भी निखर गया उसने पलके झुका ली फिर कहा__
कुछ भी ,, क्या पहली बार देख रहे हो देव..!
नहीं पर.. आज पहली बार खुल कर देखा है तुम्हें, जी चाहता है सारी उम्र तुम्हें बस यूं ही देखता रहूं राधा की आंखों में आंखें डाल कर बोला- देव
अच्छा..!! उसके लिए बहुत कुछ करना पड़ता है बोली -राधा
देव को कुछ समझ नहीं आया तो राधा से पूछा क्या करना पड़ता है ,बताओ .?
राधे तुम्हारे लिए तो मैं कुछ भी करने को तैयार हु।
उफ्फ..!! ये मासूमियत
मन में कहा राधा ने,
फिर देव से बोली_तुम सच में बुद्धू हो।
अरे.. ऐसा क्या कहा मैंने जो बुद्धू बोल रही हो तुमसे तो ज्यादा ही समझदार हुं।
तुमसे तो यह भी नहीं बना कि_पूछ ले देव खाना खाया कि नहीं कितनी देर हो गई है ?
मुझे भूख लगी है और तुमने तो खा ही लिया होगा
नहीं देव मैं तुम्हारा इंतजार कर रही थी।
चलो फिर साथ में खाते हैं।
चलो __जाने कैसे बुद्धू से पाला पड़ा है- बोली राधा
देव बोला- अब क्या कहा मैंने जो फिर से बुद्धू कह रही हो .?
राधा देव के सरल स्वभाव के आगे नतमस्तक थी उसे समझ ही नहींआता था कि क्या कहें देव से अक्सर,
बस यही कहती रहती कि... किस बुद्धू से पाला पड़ा है..!!
सादी के इस समारोह में बहुत से लोग थे और राधा का परिवार भी और कुछ उनकी जान-पहचान के सब एक दूसरे से मिल रहे थे पर ..
राधा और देव अपनी ही दुनिया में मस्त थे लेकिन कुछ लोगों की निगाहें उन दोनों पर ही टिकी थी । कुछ लोग बातें भी बना रहे थे ।
"बहुत छूट दे रखी है मां बाप ने देखो तो कैसे घुम रही है देव के साथ शर्म हया सब बेच दी है "
माया भी सब नोट कर रही थी। उससे यह सब सहन नहीं हो रहा था तो.. थोड़ी देर रुकने के बाद राधा से बोली चलो घर चलते हैं।
राधा और रुकना चाहती थी पर मां के आगे एक न चली । देव से बोली -अब घर जाना पड़ेगा।
देव बोला -हां ठीक है तुम जाओ मैं भी थोड़ी देर में घर निकलता हू ।
राधा लाली को बाय कर के घर चली आई।
आज उसने देव से जी भर कर बातें की थी तो आते ही चैन कि निंद सो गई। नींद इतनी गहरी और मीठी थी कि सुबह उठने में लेट हो गई।
घड़ी में देखा 9:00 बज रहेे थे। राधा तुरंत उठकर किचन में गई चाय बनाने।
वहांं सविता और माया देवी पहले से ही मोजुद थी।
राधा को देखते ही सविता बोली -लो आ गई महारानी उठकर, यही हाल रहा तो हो गया ससुराल में गुजारा 2 दिन भी नहीं टिक पायेगी।
देखो ना मां भाभी क्या कह रही है।
क्या गलत कह रही है? तुम्हारे काम ही ऐसे है, नाक कटवा के रख दी हमारी ।उतनी भीड़ में तुम्हें देव के अलावा कोई और नहीं दिख रहा था। सब लोग तुम्हें ही देख रहे थे, बातें बना रहे थे। आपस में कान्हा फुंसी कर रहे थे।
मेरी परवरिश पर उंगली उठ रही थी और तुम.. अपने ही 'मोह पास 'में बंधी थी। जरा भी ख्याल नहीं किया कि घर पर नहीं हो चार लोगों के बीच में हो।
इसीलिए पढ़ाया लिखाया तुम्हें कि- हमें बेइज्जत करती फिरो , बच्ची नहीं रही अब, जवान हो गई हो।
बेटी सरेआम इश्क फरमा रही है और पिता के लिए अभी बच्ची ही है ।अरे.. देव का क्या वह तो लड़का है उसका कुछ नहीं जाने वाला बदनामी तो सिर्फ लड़की की होती है । वो तो चला जाएगा टाइम पास करके जब अकेली रह जाओगी तब समझ आएगी इस मां की बात.. माया देवी कहती रही और राधा चुपचाप सुनती रही। उसे तो पहले से ही पता था कि कल मां की डांट सुननी पड़ेगी।
बीच-बीच में सविता भी अपनी भड़ास निकाल रही थी।पर... राधा एकदम चुपचाप सुन रही थी।
मां की आवाज इतनी तेज थी कि राधा के पिता की निंद भी खुल गई पर वो बहार नहीं आए बेड पर से ही सुनते रहे। जब माया चुप न हुई तो अन्दर से ही आवाज लगा दी... राधा मेरी चाय बना देना बेटा।
लो ,,उठ गये लाडली बेटी के पापा,
आज तो मैं उन्हें अच्छे से चाय पिलाती हुं कहते हुए माया देवी चाय बनाकर कमरे में ले गई और पता नहीं क्या कहां वृषभानु जी से थोड़ी देर में वे तैयार हो कर घर से बाहर निकल गये।
आज उन्होंने राधा की साइड नहीं ली और न ही राधा से कुछ कहा बस ,,चले गए।
राधा भी अपने कमरे में चली गई।
6 दिन बाद...
राधा देव का इंतजार कर रही थी पर् देव नहीं आया राधा ने सोचा कि मैं ही देव के घर चली जाती हु पर,,, दिया घर पर नहीं थी और उसके पास देव से मिलने का दूसरा कोई बहाना न था इसलिए वह भी नहीं जा सकी ।
दुसरे दिन सुबह से ही घर के सब लोग एक शादी समारोह में जाने को तैयार हो रहे थे। पर राधा नहीं जाना चाहती थी।
माया देवी फिर उसे बातें सुना रही थी... क्यों नहीं जाना है ?यहां क्या करेंगी अकेली।लौटने में रात हो जाएगी हमें।
यु अकेले नहीं छोड़ कर जा सकती तुम्हें..!
चलो चुपचाप तैयार हो जाओ। मैं कुछ नहीं सुनुगी।
भाई भी राधा को चलने के लिए मना रहा था।
तभी सविता बोली इनके तो नखरे ही खत्म नहीं होते । चाहे जब अपनी ही बात पर अड़ी रहती हो।
वृषभानु जी भी सब सुन रहे थे, बाहर आकर बोले अरे भई नहीं जाना चाहती तो रहने दो।
आज तुम कुछ नहीं बोलोगे __माया बोली
क्यों अकेले नहीं छोड़ सकते घर में ,
अपना ही तो घर है इसमें डरने की क्या बात हैं। उसका मन नहीं है तो रहने दो।
फिर राधा को बुला कर पुछा --बेटा तुम्हें डर तो नहीं लगेगा न हमें लौटने में रात हो जाएगी।
अपने ही घर में कैसा डर पापा । मैं रह लूंगी फिर आप तो आ ही रहे हो शाम को । थोड़ी देर हुई तो भी चलेगा। आप लोग आराम से आना।
इन बाप बेटी के आगे तो किसी की नहीं चलती माया देवी फिर बड़बड़ाई। फिर राधा से बोली --ठीक है अपना ध्यान रखना और जरूरत पड़े तो पड़ोस की आंटी को बुला लेना।
राधा ने सहमति में सर हिला दिया। सब लोग चले गए । राधा ने सबको मुस्कुराते हुए बाय कहां और घर के अंदर आ गई।
अंदर आते ही राधा.....