Chandrvanshi - 5 - 5.1 in Hindi Mythological Stories by yuvrajsinh Jadav books and stories PDF | चंद्रवंशी - अध्याय 5 - अंक 5.1

Featured Books
Categories
Share

चंद्रवंशी - अध्याय 5 - अंक 5.1

सांझ

सांझ के समय संध्या खिली है। चारों तरफ़ चकलियाँ ही चकलियाँ उड़ रही हैं। तेज़ी से पंख फड़फड़ाती हुई महल के ऊपर गोल-गोल उड़ रही थीं। महल की दीवारें और नक्काशियाँ डूबते सूरज की अंतिम रौशनी का एहसास कर रही थीं। ऊपर चकलियाँ, सामने सूरज और पहाड़ों से टकरा कर लौट रही हवाएँ वातावरण को मोहक बना रही थीं। उसी समय महल की सुंदरता में भाग लेने राजकुमारी संध्या भी खिड़की पर आकर खड़ी हो गई। राजकुमारी की आँखों का काजल थोड़ा फैलकर पलकों से नीचे आ गया था। सफेद जरीदार साड़ी में सूरज की किरणें पड़ते ही राजकुमारी के चारों ओर प्रकाश फैल गया।
उसी समय महल से कुछ दूर एक ऊँचे टीलें पर दो आदमी खड़े थे। उनमें से एक बोला,  
“देखा राजकुमार, हम इतनी दूर खड़े हैं फिर भी राजकुमारी संध्या हमें दिख रही हैं।”  
“हम्म... तेरी बात तो सही निकली।” मुस्कराते हुए वह राजकुमार बोला।
राजकुमारी से ध्यान हटाते हुए, जिस काम के लिए दास आया था, उसकी ओर इशारा करते हुए वह बोला,  
“आदमराज देखिए, वह ताक़तवर, सुंदर और होशियार सिपाही।”  
“कहाँ है?”  
“राजकुमारी जिस दिशा में मुँह करके खड़ी है, ठीक उसी रेखा में देखिए। वह बाकी सभी सिपाहियों से अलग दिख रहा है। जिसने सूरज की आकृति वाला कवच पहना है।” दास की आवाज़ ऊँची हो गई।  
“हाँ दिखाई दिया... दिखाई दिया, लेकिन वह कौन है? और चंद्रवंश का सिपाही होकर भी सूर्यवंशियों की पोशाक क्यों पहने है?” आदम उस सिपाही को देखकर चकित होकर बोला।  
“आदमराज, वह मदनपाल का मित्र है और लोगों में ऐसी चर्चा है कि, मदनपाल के राजा बनते ही वह उसे ही सेनापति घोषित करेगा।” दास ऐसे बोल रहा था, जैसे वह सिपाही आदम का दुश्मन हो।
“हाँ तो उसमें क्या हुआ!” आदम बात समझ नहीं पा रहा था।  
“राजकुमार, आप भूल रहे हैं कि आप उस मदनपाल के राज्य और सिपाही को देख रहे हैं, जिसने आपके पिता को हरा कर सूबेदार बना दिया है और आपके पिता की इच्छा है कि, उनका राज्य अब आप वापस दिलवाएँ।”  
आदमराज को अब समझ में आया कि, क्यों उसे ग्रहरीपू के राज्य की ओर दिखाया जा रहा है। इसलिए आदम बोला,  
“अब, तुम्हारा मतलब है कि, मेरे राज्य को वापस पाने के लिए दो रास्ते हैं। पहला – मैं राजकुमारी से विवाह करूँ, और दूसरा – मैं युद्ध करूँ।”  
“जी हाँ राजकुमार।” दास चमक गया।  
“परंतु, तूने अब तक मुझे यह जवाब नहीं दिया कि वह सिपाही सूर्यवंशियों की पोशाक क्यों पहने है।” आदम दास की ओर लाल आँखें करते हुए बोला।  
दास माफ़ी माँगता हुआ बोला,  
“मैंने ऐसा सुना है कि कई वर्षों पहले यहाँ सूर्यवंशियों का राज्य था। जिनका एकमात्र उत्तराधिकारी था – सूर्याशं।”  
“तो वह सिपाही राजवंशी है!”  
“हाँ...! आदमराज, वह सूर्याशं एक राजवंशी सिपाही है। जिनके पूर्वज सौ–डेढ़ सौ साल पहले इस प्रदेश में सूर्यवंशियों का राज्य रखते थे। जिन्होंने बक्सर के युद्ध में अपने सिपाही भेजे थे।”  
“बक्सर के युद्ध में?”  
यह बात सुनकर आदम भी चौंक गया।  
“हाँ आदमराज! हालाँकि उस समय नवाब मीरक़ासिम, शाहआलम और अवध के नवाब ही हारे थे। पर जब अंग्रेजों को पता चला कि अवध के नवाब की मदद एक हिन्दू राजा ने भी की थी, तब मीरजाफ़र से कहकर उन्होंने सूर्यवंशियों के साथ युद्ध छेड़ दिया। परंतु, एक तो आधा युद्ध हार चुके सिपाही और छोटा-सा राज्य रखने वाले सूर्यवंशी उनके सामने टिक नहीं पाए और अंत में वीरगति को प्राप्त हुए।”  
“तो यह सूर्याशं यहाँ कैसे आया?” आदम ने एक और सवाल किया।  
“जब युद्ध हुआ, उस समय राजा की एक रानी गर्भवती थी और उसे बचाने के लिए राजा ने उसे मायके भेज दिया।”  
“मतलब कि सूर्याशं चंद्रवंशियों और सूर्यवंशियों को जोड़ने वाली कड़ी है।” आदम अपनी बुद्धि लगाकर बोला।  
“जी राजकुमार।”
दूसरी ओर संध्या भी डूबते सूरज और उसकी रक्षा करने आए सूर्यवंशी, यानी सूर्याशं को एकटक देख रही थी। प्रकाशित चेहरा, शक्तिशाली शरीर और रौबदार व्यक्तित्व। हमेशा सतर्क रहने वाला। राज्य की आपत्ति में मदनपाल का साथ देने वाला सूर्याशं, मदनपाल का परममित्र था।  

***

**रात**

“महाराज, यह है सूबेदार ज़ंगीमल, जो आपके शरण में आया है और उसे हमारी सभी शर्तें मंज़ूर हैं।” महाराज का वज़ीर बोला।
महाराज ग्रहरीपू के सामने झुके मुँह के साथ खड़े ज़ंगीमल को देखकर दरबार में आए मदनपाल और सूर्याशं उसकी बात में आने को तैयार नहीं थे। परंतु राजा ग्रहरीपू के सामने वे दोनों कुछ नहीं बोल सके। इसके बाद ज़ंगीमल को भी उस सभा में स्थान दिया गया। ग्रहरीपू का मानना है कि, इस समय हमारे असली दुश्मन अंग्रेज़ हैं और उन्हें भारत से कैसे दूर करें – यही सबसे बड़ा सवाल है।  
“मैं चंद्रवंशी महाराज ग्रहरीपू आप सबका मेरी सभा में स्वागत करता हूँ।” ग्रहरीपू बोला।
उसी समय एक सिपाही सभा में बैठे सूर्याशं के पास आया और सूर्याशं सभा के बीच से खड़ा होकर बाहर निकल गया। मदनपाल और बाकी लोग बस उसे जाते देखते रह गए। क्योंकि चंद्रहाट्टी में राजा के आदेश के बिना पत्ता भी नहीं हिलता और यहाँ राजा की सभा से उसकी अनुमति लिए बिना ही सूर्याशं सभा छोड़कर चला गया। यह ग्रहरीपू को बिल्कुल नहीं पसंद आया। लेकिन, दूसरे नए जुड़े सूबेदारों के सामने उसने आज कुछ नहीं कहा और सबका ध्यान खींचने के लिए फिर अपनी बात पर आ गया।
“आज चंद्रहाट्टी की शान बढ़ाने में एक और राज्य जुड़ा है और उसके साथ हमारी सभा में एक और राज्य का सूबेदार जुड़ चुका है – सूबेदार ज़ंगीमल। अब वह हमारे साथ है और...”  
ग्रहरीपू आगे बोलने जा ही रहा था कि, सूर्याशं फिर से सभा में लौट आया और राजा की बात काटते हुए बोला,  
“महाराज!”
ग्रहरीपू और वहाँ बैठे सभी लोगों का ध्यान उसकी ओर गया। ग्रहरीपू को एक तो चलती सभा में बिना अनुमति जाना और आकर बीच में बात रोकना बिल्कुल पसंद नहीं था। फिर भी ग्रहरीपू ने उसे शांति से जवाब देते हुए कहा,  
“बेटा सूर्याशं! यूँ बीच में बात मत रोको। मैं अभी सभा पूरी करके तुमसे मिलूँगा। तब तक तुम बाहर सभा पूरी होने का इंतज़ार करो।”
सूर्याशं कोई आपात बात लेकर आया था और अभी वह नया-नया सिपाही बना था। इसलिए उसे यह ज्ञान नहीं था कि राज्य में राजा का क्या मूल्य होता है! हालांकि इसका मुख्य कारण ग्रहरीपू ही था। वह हमेशा लोक सेवा में रहता और लोगों के बीच ही रहता। जिससे, लोगों और राजा में फर्क पहचानना मुश्किल हो जाता। फिर भी इतने उदार राजा को आपत्ति के समय लोगों का साथ नहीं मिलता था। इसका मुख्य कारण यह था कि, लोगों ने हमेशा ग़ुलामी ही की थी। जिससे, आज़ादी मिलने पर वे मनमर्जी करने लगे थे। उसी समस्या के बारे में प्रस्ताव आज सुबह ही प्रधान ने राजा के समक्ष रखा था। जो अभी भी ग्रहरीपू के मन में घूम रहा था। ऐसे में राजा की बात न मानते हुए सूर्याशं फिर बोला,  
“परंतु महाराज! मेरी बा.... (बात ज़रूरी है।)”  
सूर्याशं आगे बोले उससे पहले ही ग्रहरीपू उग्र होकर बोला,  
“तुझे मेरी बात समझ नहीं आई? मैं सभा पूरी होने के बाद तुझसे मिलूँगा।”  
“सूर्याशं, अभी सभा पूरी करके मिलते हैं।” मदनपाल चकित था, फिर भी शांति से बोला।  
“अम्म... हाँ... ना...” सूर्याशं उलझन में ही बोलता-बोलता बाहर निकल गया। बाहर खड़े सिपाही से कुछ कहा और फिर अपनी धुन में चलने लगा।
“अब तक तो सुना ही था, पर आज देख भी लिया कि चंद्रहाट्टी में प्रजा स्वतंत्र है।”  
ज़ंगीमल बोला। उसी समय बाहर से दूसरा सिपाही बिना अनुमति के आया और महाराज ग्रहरीपू के सामने आकर कुछ बोलने ही वाला था कि, उससे पहले ही ज़ंगीमल एक मीठा कटाक्ष बोला,  
“महाराज, वास्तव में स्वतंत्रता की कोई सीमा ही नहीं होती। मैं अपने राज्य में कठोर रहता था, क्योंकि मैं जानता हूँ कि, प्रजा को सुख स्वतंत्रता में नहीं मिलता। बल्कि, उन्हें नीचे दबाकर रखें और कभी-कभी तोहफ़े के रूप में थोड़ी-सी स्वतंत्रता दें। तभी वे सुखी रहेंगे।”
ज़ंगीमल की बातों में आ गए राजा ने उस सिपाही को सीधे जेल में डाल दिया। उग्र हो चुके ग्रहरीपू से सभा का वातावरण बदल गया। लोगों की मुक्ति की माँग छोड़, राज्य पर नियंत्रण रखने की चर्चा शुरू हो गई।  

***