return that night in Hindi Short Stories by Dhiru singh books and stories PDF | वापसी उस रात की

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वापसी उस रात की

धीरु एक संवेदनशील मगर साहसी युवक था जो शहर के शोर से दूर एक पुराने जंगल के पास बसे गांव "व्यासपुर" में अपने दादा-दादी के साथ रहता था, जहां बचपन की यादें अभी भी हवा में तैरती थीं और पेड़ों के पत्ते जैसे हर बार कुछ कहना चाहते थे, लेकिन इस गांव की सबसे पुरानी कहानी थी उस "नीम हवेली" की, जो गांव से कुछ दूर एक वीरान पहाड़ी पर खड़ी थी, जहां न दिन में कोई जाता था और न रात में किसी का नाम लिया जाता था, क्योंकि कहा जाता था कि वहां किसी आत्मा की हंसी गूंजती है जो कभी वहां रहने वाली रेखा नाम की लड़की की थी, जिसकी मौत का राज आज तक कोई नहीं समझ सका, और वही रेखा एक दिन धीरु की जिंदगी में फिर से लौटी—सच और भ्रम के बीच झूलती एक मोहब्बत बनकर।

एक शाम जब धीरु जंगल की तरफ अकेला टहल रहा था, उसे एक लड़की की परछाईं दिखी जो सफेद साड़ी में बहुत धीमे-धीमे चल रही थी, उसकी चाल में न भय था, न जल्दी, जैसे वह जानती हो कि कोई उसका पीछा कर रहा है, धीरु ने आवाज़ दी, “कौन हो तुम?”, और लड़की मुड़ी—उसके चेहरे पर एक ठंडी सी मुस्कान थी, और आंखें… जैसे सदियों का इंतज़ार उनमें भरा हो, उसने कहा, “मैं रेखा हूं, तुम्हें शायद याद नहीं लेकिन तुमने मुझसे बचपन में एक वादा किया था कि कभी मुझे अकेला नहीं छोड़ोगे,” धीरु के रोंगटे खड़े हो गए क्योंकि उसे याद आया कि बचपन में उसने नीम हवेली के पास एक लड़की से यही वादा किया था, जो एक दिन अचानक गायब हो गई थी और सबने मान लिया था कि वो मर गई।

रेखा अब इंसान लगती थी, मगर कुछ अलग थी—उसके पास बैठने से हवा भारी हो जाती थी, उसकी आंखों में जैसे कोई झील थी जो तुम्हें डुबो देती थी, और जब वह हंसती तो लगता जैसे पुरानी दीवारें भी कांपने लगतीं, मगर फिर भी धीरु को उसमें मोहब्बत नज़र आती थी, वो मोहब्बत जो समय से परे थी, जो जन्मों की गहराई से आई थी, और धीरु का दिल अब उसके बिना अधूरा लगने लगा था, वो रोज़ रेखा से मिलने उस वीरान जगह पर जाने लगा, जहां अब किसी और को कुछ भी दिखाई नहीं देता था, रेखा और उसका रिश्ता अब हवा में लहराने लगा था, मगर यह सब गांव वालों की नजरों में आने लगा था।

एक दिन गांव की बूढ़ी औरत ने धीरु को रोककर कहा, “बेटा, जिस लड़की से तू मिल रहा है वो अब इस दुनिया की नहीं रही, वो तो उसी रात मर गई थी जब तूने उसका वादा तोड़ा था और वो तन्हा हवेली में इंतज़ार करते-करते जलकर भस्म हो गई थी,” धीरु ने ये सुना तो उसके पैरों के नीचे से ज़मीन खिसक गई, मगर उसका दिल कहता था कि रेखा ज़िंदा है—कम से कम उसकी मोहब्बत ज़िंदा है, और अगर वो आत्मा भी बन गई है, तो भी उसका प्यार सच्चा है, धीरु ने उसी रात रेखा से मिलने का फैसला किया, वह हवेली गया जहां रेखा पहले ही खड़ी उसका इंतज़ार कर रही थी।

उस रात की हवाओं में अजीब सन्नाटा था, और दीवारों पर रेखा की परछाईं बार-बार बदल रही थी, कभी वो लड़की बनती तो कभी राख, रेखा ने कहा, “तुम फिर आ गए… जानते हो न कि मैं अब वो नहीं रही जो तुमसे मोहब्बत करती थी, मैं अब एक शाप हूं, एक इंतज़ार हूं, एक दर्द हूं,” धीरु ने उसके हाथ पकड़ लिए और कहा, “तू जो भी है, मैं हूं तेरा, चाहे तू राख बन जा या आग, मैं तुझमें जलना पसंद करूंगा मगर तुझसे दूर नहीं रह सकता,” तभी हवेली की दीवारें कांपने लगीं, पुराने कमरे खुलने लगे और रेखा की आंखों से आंसू बहने लगे जो आग जैसे जलते थे।

रेखा ने कहा, “अगर तुझे सच में मुझसे प्यार है, तो मेरे साथ उस रात में चल जहां मैं अधूरी रह गई, उस पल में लौट जहां मेरी मौत हुई, और अगर तू ज़िंदा बच सका, तो हम दोनों मुक्ति पाएंगे, वरना तू भी मेरी तरह बन जाएगा, मेरी परछाई, मेरी आत्मा,” धीरु ने बिना कुछ सोचे उसका हाथ थामा और जैसे ही उसने रेखा की आंखों में देखा, वक्त पीछे घूमने लगा, हवेली में फिर से रौशनी फैल गई, सब वैसा ही हो गया जैसे उस रात था जब रेखा जल मरी थी।

एक कमरा खुला जिसमें ज़मींदार की वहशी आंखें थीं, और रेखा को जकड़ा गया था, धीरु ने झपट कर उसे बचाया, मगर उस ज़मींदार की आत्मा अब भी हवेली में थी, और उसने धीरु को पकड़ लिया, तभी रेखा ने चीखकर कहा, “तुम मुझे नहीं रोक सकते, आज मेरा प्यार मेरे लिए खड़ा है,” और उसी पल रेखा के शरीर से एक तेज़ रौशनी निकली जिसने हवेली को हिला दिया, ज़मींदार की आत्मा चीखती हुई राख बन गई और रेखा धीरे-धीरे हवा में विलीन होने लगी।

धीरु ज़मीन पर गिर पड़ा, उसके हाथ में रेखा की चुन्नी का टुकड़ा रह गया, और तभी मंदिर की घंटी बजी—पूरा गांव अचानक शांति से भर गया, हवेली अब वीरान नहीं थी, वह शांत हो चुकी थी, रेखा अब नहीं थी, लेकिन उसका प्यार—धीरु के सीने में आज भी धड़कता है, गांव वाले कहते हैं कि अब नीम हवेली में डर नहीं रहता, वहां अब हर अमावस की रात फूलों की खुशबू आती है, जैसे कोई रेखा अपनी मोहब्बत की कहानी सुना रही हो, और एक लड़का धूप में बैठा बस उसका नाम जप रहा हो—रेखा… रेखा… रेखा…