धीरु शहर से दूर एक छोटे से गांव, चंदनपुर में रहता था, जहां हर चीज़ में सादगी और हर दिल में अपनापन था, लेकिन इस गांव की एक बात बाकी सब चीजों से अलग थी—यहां एक वीरान हवेली थी जिसे लोग "तन्हा हवेली" के नाम से जानते थे, कहते हैं वहां कभी कोई गया तो वापस नहीं लौटा, और जो लौट आया वो फिर कभी पहले जैसा नहीं रहा, गांव के बुज़ुर्ग कहते थे कि उस हवेली की दीवारों में किसी का दर्द कैद है, जो अब तक सुलगा हुआ है, और उसी दर्द की आंच में अब महक का नाम जुड़ने वाला था, एक ऐसी लड़की जो अचानक गांव आई थी, जैसे किसी कहानी की अधूरी कड़ी की तरह, उसकी आंखों में सन्नाटा था और चाल में कोई अनदेखी बेचैनी, और जब धीरु ने पहली बार महक को देखा, तो वक्त जैसे एक पल को ठहर गया, न धूप रही न छांव, बस रह गया उसकी आंखों का गहरापन जिसमें धीरु डूबता चला गया।
महक गांव के पुरानी लाइब्रेरी में अक्सर जाती थी, पुराने कागज़ों की महक उसे सुकून देती थी, एक दिन धीरु ने उससे बात करने की हिम्मत जुटाई और कहा, "तुम यहां नई हो?" महक ने धीमे से जवाब दिया, "शायद… या फिर पुरानी हूं, पर सब भूल गई हूं," इस जवाब ने धीरु को अंदर तक हिला दिया, जैसे कोई पहेली सामने खड़ी हो और जवाब सिर्फ एक दिल में हो, धीरे-धीरे दोनों की बातचीत बढ़ी, और धीरु को यह महसूस हुआ कि महक कुछ छुपा रही है, कुछ ऐसा जो उसकी नींदें चुरा सकता है, पर धीरु अब तक उससे प्यार कर बैठा था, और प्यार में जान भी जाए तो अफसोस नहीं होता, यही सोचकर वो उसके और करीब आने लगा।
महक अक्सर तन्हा हवेली के आस-पास भटकती थी, जैसे वहां कोई उसका इंतज़ार कर रहा हो, एक रात जब पूरा गांव सो रहा था, महक हवेली की तरफ निकल पड़ी, और धीरु भी उसके पीछे-पीछे हो लिया, हवेली के बाहर अजीब सी ठंडक थी, और हवा जैसे किसी पुराने ज़ख्म की कहानी सुना रही हो, दरवाज़ा धीरे से खुला और धीरु ने देखा कि महक अंदर जा चुकी थी, उसके कदम बिना रुके एक खास कमरे की तरफ बढ़ रहे थे, वहां पहुंचकर उसने दीवार पर लगे आईने को छुआ और अचानक उसकी आंखें सफेद हो गईं, जैसे उसकी आत्मा किसी और युग में चली गई हो, धीरु घबरा गया, मगर वो भागा नहीं, उसने महक को ज़ोर से पकड़ा और कहा, "मैं तुम्हें इस अंधेरे में अकेला नहीं छोड़ सकता," तभी एक तेज़ हवा चली और कमरे में रखा पुराना पियानो अपने आप बजने लगा, दीवार पर महक की परछाई के पीछे एक और परछाई उभरने लगी, जो औरत की थी मगर उसकी आंखें जल रही थीं।
महक अब बदल चुकी थी, उसकी आवाज़ भारी हो गई थी, उसने कहा, "धीरु… मैं महक नहीं हूं, मैं उस औरत की संतान हूं जिसे इस हवेली में ज़िंदा जलाया गया था क्योंकि वो किसी ज़मींदार से प्यार कर बैठी थी, अब मैं उसकी आत्मा हूं, और जब तक मैं किसी सच्चे प्रेम की बलि नहीं लूंगी, मेरी मुक्ति नहीं होगी," धीरु की रूह कांप गई, पर उसने अपने दिल पर हाथ रखकर कहा, "अगर तुम्हारा गुनाह सिर्फ मोहब्बत था, तो मेरी जान ले लो, ताकि तुम्हारा प्यार अमर हो जाए," महक—या जो आत्मा उसके अंदर थी—रो पड़ी, उसकी चीख हवेली की दीवारों से टकराई और हवेली कांपने लगी, दीवारों से खून बहने लगा और आईने टूटने लगे, लेकिन महक का शरीर धीरे-धीरे ज़मीन पर गिर गया, और उस आत्मा की कराह के साथ हवा शांत हो गई।
धीरु ने बेहोश महक को गोद में उठाया और हवेली से बाहर लाया, उसकी सांसें चल रही थीं, मगर बहुत धीमी, वो एक मंदिर ले गया जहां पुजारी ने कहा कि महक को बचाने के लिए तुम्हें 40 दिनों तक बिना सोए, बिना बोले और बिना किसी से मिले उसका नाम जपना होगा, धीरु ने बिना कोई सवाल किए वही किया, उसकी आंखों से नींद छीन ली गई थी, होंठ बंद थे और मन सिर्फ महक के लिए धड़क रहा था, और 40वें दिन जब मंदिर की घंटी बजी तो धीरु की आंखों के सामने महक खड़ी थी, वही आंखें, वही मासूम चेहरा, मगर अब उसमें दर्द नहीं था, सिर्फ प्यार था, दोनों ने एक-दूसरे को देखा और सीने से लगा लिया, हवेली अब वीरान नहीं रही थी, वहां मोहब्बत की खुशबू बस चुकी थी।
गांव के लोग अब भी कहते हैं कि तन्हा हवेली अब शांत है, मगर हर पूर्णिमा की रात जब हवाओं में गुनगुनाहट होती है, तो लगता है जैसे कोई प्रेमी अपनी प्रेमिका के लिए कोई गीत गा रहा हो, और उसकी गूंज हर दिल तक जाती है, जैसे मोहब्बत ने मौत को हराकर अपना घर बसा लिया हो।