गर्मी की छुट्टियों में दस पुराने दोस्त—धीरेंद्र, स्नेहा, राज, विशाल, समीर, अमन, आदित्य, करण, नवीन और रोहित—ने प्लान बनाया कि वे शहर की भागदौड़ से दूर किसी शांत पहाड़ी इलाके में कुछ दिन बिताएंगे, पुराने किस्सों को दोहराएंगे और एक साथ ज़िंदगी के सबसे यादगार पल जिएंगे, इंटरनेट पर सर्च करते हुए उन्हें उत्तराखंड के एक छोटे गांव में एक पुरानी हवेली दिखी जो अब वीरान थी लेकिन किराये पर मिल रही थी, गांव वालों ने साफ मना किया कि वहां मत जाओ, वो हवेली शापित है, लेकिन धीरेंद्र और बाकी दोस्तों ने इस चेतावनी को मज़ाक समझा और 10 दोस्तों की टोली हँसते-मुस्कुराते पहाड़ों की ओर निकल पड़ी, रास्ते भर उन्होंने मस्ती की, फोटो खिंचाई, गाने गाए और पुरानी यादें ताज़ा कीं, शाम होते-होते वे हवेली के पास पहुंचे जो सच में बहुत डरावनी और जर्जर हालत में थी, छत की बीमें झुक गई थीं, खिड़कियां टूटी हुई थीं और एक अजीब सड़ी लाश जैसी बदबू हवाओं में घुली हुई थी, लेकिन दोस्तों ने इस डर को रोमांच समझा और अंदर दाखिल हो गए, कमरों का बंटवारा हुआ, धीरेंद्र और स्नेहा ऊपर वाले कोने के कमरे में गए, बाकी दोस्त अलग-अलग कमरों में चले गए, पहले दिन कुछ खास नहीं हुआ लेकिन रात में हवेली की दीवारों पर अजीब परछाइयां नजर आने लगीं, शीशे में अजनबी चेहरे दिखे, खिड़कियां खुद-ब-खुद खड़कने लगीं, सुबह राज ने बताया कि रात को उसने किसी को कमरे के बाहर रेंगते देखा था, किसी अंधेरे साये को जो इंसान नहीं लग रहा था, सब हँसे—"भूत-वूत कुछ नहीं होते", लेकिन अगली रात रोहित अचानक गायब हो गया, उसका मोबाइल, बैग और जूते सब वहीं पड़े थे, लेकिन वो खुद गायब था, खोजबीन शुरू हुई लेकिन कुछ नहीं मिला, अगले दिन अंकित भी ऐसे ही गायब हुआ और पीछे सिर्फ खून के छींटे बचे थे, तब सभी के चेहरे से हंसी गायब हो गई, और डर के साए भारी होने लगे, हवेली से निकलना अब मुमकिन नहीं था क्योंकि तूफान के चलते गांव से संपर्क टूट चुका था, इसी बीच आदित्य का बर्ताव अजीब होने लगा, वो अकेले बड़बड़ाता, दीवारों से बातें करता और बार-बार खुद को शीशे में देख कर हँसता, एक रात करण की चीख ने सबको नींद से जगा दिया, जब सभी दौड़े तो देखा करण की बॉडी खून में लथपथ थी, चेहरा इतना बिगड़ा था जैसे किसी जानवर ने नोचा हो, और वहीं पास में आदित्य खून से सना खड़ा था, आंखें लाल, दांत पैने और शरीर से धुंआ निकल रहा था, तब सबको समझ में आया कि आदित्य अब इंसान नहीं रहा, वो कोई राक्षसी शक्ति का शिकार हो गया है, एक आदमखोर शैतान बन गया है, विशाल और समीर ने हमला करने की कोशिश की लेकिन आदित्य ने समीर को दीवार से दे मारा और विशाल की गर्दन एक झटके में तोड़ दी, हवेली अब नरक बन चुकी थी, धीरेंद्र ने स्नेहा का हाथ पकड़ा और उसे ऊपर के कोने वाले कमरे में छुपाया, फिर वो अकेले नीचे गया और देखा कि अब सिर्फ नवीन, अमन और राज ही बाकी हैं, सबने तहखाने में जाकर छुपने का फैसला किया, वहां उन्हें पुरानी तांत्रिक किताबें मिलीं जिनमें हवेली का रहस्य लिखा था—सौ साल पहले एक तांत्रिक इसी हवेली में शैतानी साधना करता था, उसने अमरता के लिए इंसानों की बलि देनी शुरू की, गांव वालों ने उसे जिंदा जला दिया लेकिन उसकी आत्मा हवेली में ही रह गई और हर सौ साल में वो किसी इंसान के शरीर में घुस जाती है—और इस बार वो बना आदित्य, तभी तहखाने का दरवाजा धड़ाम से खुला और आदित्य अंदर घुसा, नवीन ने खुद को आगे किया लेकिन आदित्य ने उसका सीना चीर डाला, अमन ने भागने की कोशिश की लेकिन शैतान ने उसकी टांगें तोड़ दीं, धीरेंद्र ने स्नेहा का हाथ पकड़ा और हवेली के पीछे के रास्ते से जंगल की ओर दौड़ा, बारिश हो रही थी, हवा तेज थी, और हवेली अब जलती लाल आंखों वाले आदित्य की चीखों से गूंज रही थी, दौड़ते हुए देव भी मिला, लेकिन आदित्य ने उसे पीछा कर पेड़ से टकरा कर गिरा दिया, अब सिर्फ धीरेंद्र और स्नेहा बचे थे, दोनों जंगल के मंदिर की ओर भागे जहां उन्हें एक पुजारी मिला जिसने बताया कि इस शैतानी आत्मा को सिर्फ अग्नि में ही खत्म किया जा सकता है, धीरेंद्र ने तय किया कि अब और भागना नहीं, अब उसे खत्म करना होगा, वो वापस हवेली लौटा, पुराने तेल के ड्रम को खोला और बीच हॉल में फैलाया, स्नेहा ने मंदिर से लाई हवन अग्नि से मशाल जलाई, आदित्य ने हमला किया लेकिन धीरेंद्र ने उसे पीछे धकेल कर तेल में गिरा दिया, स्नेहा ने आग लगा दी, पूरी हवेली जलने लगी, आदित्य की चीखें हवाओं में गूंजने लगीं, उसकी राक्षसी आत्मा जलकर राख हो गई, और सुबह जब गांव वाले पहुंचे तो सिर्फ धीरेंद्र और स्नेहा जिंदा मिले, खून से सने, थके लेकिन आंखों में जीत की चमक थी, उन्होंने न सिर्फ अपने दोस्तों की आत्मा को बदला दिलाया बल्कि शैतानी शक्ति को मिटा कर इंसानियत की रक्षा की, और बन गए शापित हवेली के आखिरी योद्धा—धीरेंद्र और स्नेहा।