Augusto Pinochet Ugarte - The True Story of a Dictator - 5 in Hindi Fiction Stories by MaNoJ sAnToKi MaNaS books and stories PDF | ऑगस्तो पिनोशे उगार्ते - एक तानाशाह की सत्य कथा - भाग 5

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ऑगस्तो पिनोशे उगार्ते - एक तानाशाह की सत्य कथा - भाग 5

15 सितंबर 1973 की रात सैंटियागो में आसमान काला था, जैसे चिली का भविष्य उसमें डूब गया हो। नेशनल स्टेडियम की ऊँची दीवारों के पीछे चीखें गूँज रही थीं, जो शहर की खामोश गलियों तक पहुँचती थीं। ऑगस्तो पिनोशे अपने सैन्य मुख्यालय में बैठा था। उसकी मेज पर एक पुराना रेडियो बज रहा था, जिसमें उसका ही भाषण बार-बार दोहराया जा रहा था—“चिली अब सुरक्षित है। दुश्मनों का सफाया होगा।” उसकी उंगलियाँ रेडियो के बटन पर थिरक रही थीं, और उसकी आँखों में एक ठंडी चमक थी—वह न सिर्फ सत्ता का स्वामी था, बल्कि डर का देवता बन चुका था। बाहर हवा में बारूद और खून की गंध थी, और हर साँस में मौत का अहसास।

DINA, ऑगस्तो की गुप्त पुलिस, अब चिली की रीढ़ बन चुकी थी। उनके काले वैन रात के अंधेरे में भूतों की तरह घूमते थे, घरों के दरवाजे तोड़ते थे, और लोगों को गायब कर देते थे। सैंटियागो के एक छोटे-से अपार्टमेंट में एक युवा पत्रकार अपनी पत्नी के साथ छिपा था। उसने अयेंदे की सरकार के लिए कुछ लेख लिखे थे। रात के 1 बजे दरवाजे पर तेज दस्तक हुई। उसकी पत्नी ने उसे कोठरी में छिपाया, पर DINA के एजेंटों को धोखा देना आसान नहीं था। उन्होंने दीवारें तोड़ीं, कोठरी खोली, और पत्रकार को घसीटते हुए बाहर ले गए। उसकी पत्नी चीखी, “उसे छोड़ दो!” एक एजेंट ने उसका गला दबाया और बोला, “चुप रह, वरना तू भी जाएगी।” पत्रकार को एक वैन में ठूँसा गया। उसकी आखिरी चीख सड़क पर गूँजी, और फिर सन्नाटा। सुबह उसकी पत्नी को उसका टूटा हुआ चश्मा सड़क पर मिला—बस इतना ही बचा था।

ऑगस्तो को इन सबकी खबर थी। वह अपने कार्यालय में बैठा DINA के मुखिया मैनुएल कॉन्ट्रेरास की रिपोर्ट पढ़ रहा था। “300 गिरफ्तार, 80 मरे,” कॉन्ट्रेरास ने लिखा था। ऑगस्तो ने सिगरेट का एक लंबा कश लिया और मुस्कुराया—एक ऐसी मुस्कान जो साँप की फुफकार से भी खतरनाक थी। उसने कॉन्ट्रेरास को बुलाया और कहा, “और तेज करो। कोई बचेगा नहीं।” कॉन्ट्रेरास ने सिर झुकाया और बाहर निकल गया। उसकी आँखों में वही क्रूरता थी जो ऑगस्तो की थी। अगले कुछ घंटों में चिली के और घरों में चीखें गूँजीं। एक विश्वविद्यालय के प्रोफेसर को उसके बिस्तर से उठाया गया। उसका जुर्म? उसने अपने छात्रों को “स्वतंत्रता” का पाठ पढ़ाया था। उसे स्टेडियम ले जाया गया, जहाँ सैनिकों ने उसके नाखून उखाड़ दिए। उसकी चीखें रात भर गूँजीं, पर ऑगस्तो के कानों तक सिर्फ जीत की आवाज पहुँची।

नेशनल स्टेडियम अब एक विशाल नरक था। वहाँ की दीवारें खून और पसीने से सनी थीं। कैदियों को लाइन में खड़ा किया जाता था, जैसे मवेशियों को कत्लखाने में ले जाया जाता हो। एक युवा मजदूर, जो कभी अयेंदे की रैलियों में झंडा लहराता था, को सैनिकों ने घेर लिया। उन्होंने उससे पूछा, “कम्युनिस्ट कहाँ हैं?” उसने जवाब दिया, “मुझे नहीं पता।” एक सैनिक ने उसकी पसलियों पर लात मारी। मजदूर गिर गया, खून उसके मुँह से बहने लगा। सैनिकों ने हँसकर कहा, “बोल दे, वरना यहीं मरेगा।” मजदूर ने आखिरी साँस में कहा, “विवा चिली!” एक गोली ने उसकी आवाज हमेशा के लिए बंद कर दी। ऑगस्तो को यह खबर मिली। उसने सिर्फ इतना कहा, “बेवकूफ। अगला।”

ऑगस्तो का आतंक अब सिर्फ मारने तक सीमित नहीं था। उसने चिली की आत्मा को कुचलना शुरू किया। स्कूलों में किताबें जल रही थीं, विश्वविद्यालयों में प्रोफेसर गायब हो रहे थे, और हर गली में सैनिकों का पहरा था। एक बूढ़ा चित्रकार, जिसने कभी अयेंदे के लिए एक पोस्टर बनाया था, अपने स्टूडियो में छिपा था। सैनिकों ने उसका दरवाजा तोड़ा। उन्होंने उसके कैनवस फाड़ दिए, रंगों को जमीन पर बिखेर दिया। चित्रकार ने रोते हुए कहा, “यह मेरी जिंदगी है!” एक सैनिक ने उसका गला पकड़ा और बोला, “तेरी जिंदगी अब हमारी है।” उसे स्टेडियम ले जाया गया, जहाँ उसकी उंगलियाँ तोड़ दी गईं। ऑगस्तो को यह बताया गया। उसने सिगरेट का धुआँ हवा में छोड़ा और कहा, “कला अब मेरे लिए होगी।”

रात को ऑगस्तो अपने घर लौटा। उसकी बेटी इनेस ने दरवाजे पर उसका इंतजार किया। उसने डरते हुए पूछा, “पापा, लोग क्यों मर रहे हैं?” ऑगस्तो ने उसकी तरफ देखा, उसकी आँखें पत्थर की तरह ठंडी थीं। “क्योंकि वे कमजोर हैं,” उसने जवाब दिया। इनेस की आँखों में आँसू थे, पर वह चुप रही। ऑगस्तो अपने कमरे में गया, अपनी डायरी खोली, और लिखा—“15 सितंबर 1973। नरक मेरा घर है। चिली मेरा शिकार।” बाहर सैंटियागो की सड़कें खामोश थीं, पर हर घर में एक ही सवाल गूँज रहा था—यह कब रुकेगा?

16 सितंबर 1973 की सुबह सैंटियागो में हवा ठंडी थी, पर उसमें खून की गंध घुली थी। ऑगस्तो पिनोशे अपने कार्यालय में खड़ा था, एक बड़े शीशे के सामने। उसकी वर्दी चमक रही थी, और उसकी छाती पर लगे मेडल्स सूरज की रोशनी में झिलमिला रहे थे। वह अपने प्रतिबिंब को देख रहा था—एक तानाशाह, जिसने चिली को अपने पंजों में जकड़ लिया था। उसकी होंठों पर हल्की-सी मुस्कान थी, जैसे कोई शिकारी अपनी ट्रॉफी को निहार रहा हो। बाहर सड़कों पर टैंकों की गड़गड़ाहट अब रोज की बात हो गई थी। लोग अपने घरों में कैद थे, और हर दरवाजे पर DINA का डर मंडरा रहा था।

ऑगस्तो ने अपनी सत्ता को और मजबूत करने का फैसला किया। उसने अपने सैन्य सलाहकारों को बुलाया। कमरे में सिगरेट का धुआँ और तनाव भरा था। ऑगस्तो ने टेबल पर मुक्का मारा और बोला, “चिली को मेरे नियमों से चलना होगा। कोई विरोध नहीं, कोई आवाज नहीं।” उसके सलाहकारों ने सिर हिलाया। एक ने डरते हुए पूछा, “लेकिन जनता का गुस्सा?” ऑगस्तो ने उसकी तरफ देखा, उसकी आँखें आग उगल रही थीं। “गुस्सा? मैं उसे कुचल दूँगा।” उसने DINA को और हथियार दिए, और आदेश दिया कि हर शहर, हर गाँव में उसका डर फैलाया जाए।

DINA ने ऑगस्तो के आदेश को बखूबी निभाया। वालपाराइसो में एक मछुआरे को उसके घर से उठाया गया। उसका जुर्म? उसने अपने दोस्तों से अयेंदे की तारीफ की थी। सैनिकों ने उसे समुद्र के किनारे ले गए। उसकी पत्नी रो रही थी, पर सैनिकों ने उसे धक्का दे दिया। मछुआरे को एक चट्टान पर खड़ा किया गया। एक सैनिक ने उससे पूछा, “कुछ कहना है?” उसने जवाब दिया, “तुम लोग हारोगे।” एक गोली उसके सिर में उतारी गई, और उसका शरीर समुद्र में गिर गया। लहरें उसे निगल गईं, जैसे चिली की उम्मीदें निगली जा रही थीं। ऑगस्तो को यह खबर मिली। उसने सिगरेट जलाई और कहा, “समुद्र अब हमारा दोस्त है।”

सैंटियागो में ऑगस्तो ने एक नया नियम लागू किया—हर नागरिक को अपनी वफादारी साबित करनी होगी। लोग अपने पड़ोसियों की जासूसी करने लगे। एक बूढ़ा दुकानदार, जो कभी अयेंदे का समर्थक था, ने अपने घर में पुराने अखबार जलाए। लेकिन उसके पड़ोसी ने DINA को खबर कर दी। रात को सैनिक आए। दुकानदार को उसकी दुकान के सामने घसीटा गया। सैनिकों ने उससे पूछा, “कम्युनिस्ट?” उसने रोते हुए कहा, “नहीं, मैं सिर्फ एक दुकानदार हूँ।” सैनिकों ने हँसकर उसकी दुकान में आग लगा दी। आग की लपटें रात के आसमान को लाल कर रही थीं। दुकानदार की चीखें पड़ोस तक गईं, पर कोई बाहर नहीं आया। ऑगस्तो को यह बताया गया। उसने कहा, “आग सिखाती है। और जलाओ।”

दोपहर में ऑगस्तो ने अपने पहले विदेशी समर्थन की पुष्टि की। एक अमेरिकी प्रतिनिधि ने गुप्त मुलाकात की। उसने ऑगस्तो को हथियारों और पैसे का वादा किया। “हमें समाजवाद का अंत चाहिए,” प्रतिनिधि ने कहा। ऑगस्तो ने जवाब दिया, “वह मर चुका है। अब सिर्फ मैं हूँ।” सौदा पक्का हो गया। अमेरिका ने ऑगस्तो को हरी झंडी दी, और बदले में ऑगस्तो ने चिली को उनके लिए खोल दिया। उस रात वाशिंगटन में शैंपेन की बोतलें खुलीं, पर सैंटियागो में खून बह रहा था।

शाम को ऑगस्तो ने अपने सैनिकों को बुलाया। उसने कहा, “दुनिया हमें देख रही है। हमें कमजोर नहीं पड़ना है।” उसने नेशनल स्टेडियम में और कैदियों को ठूँसने का आदेश दिया। वहाँ एक युवा वकील को लाया गया, जिसने मानवाधिकारों की बात की थी। सैनिकों ने उससे पूछा, “कानून की बात करेगा?” वकील ने जवाब दिया, “कानून मर नहीं सकता।” सैनिकों ने उसकी उंगलियाँ तोड़ दीं। उसकी चीखें स्टेडियम की दीवारों से टकराईं। ऑगस्तो को यह खबर मिली। उसने कहा, “कानून अब मैं हूँ।”

रात को ऑगस्तो अपने घर लौटा। उसकी पत्नी लूसिया ने उससे पूछा, “तुम रुक क्यों नहीं जाते?” ऑगस्तो ने उसकी तरफ देखा और बोला, “क्योंकि सत्ता मेरा नशा है।” उसकी आवाज में कोई पछतावा नहीं था, सिर्फ एक तानाशाह का घमंड। उसने अपनी डायरी में लिखा—“16 सितंबर 1973। चिली मेरा गुलाम है। मैं उसका मालिक।” बाहर सैंटियागो की सड़कें खामोश थीं, पर हर घर में डर की साँसें गूँज रही थीं। ऑगस्तो का नशा अब चरम पर था।