Augusto Pinochet Ugarte - The True Story of a Dictator - 7 in Hindi Fiction Stories by MaNoJ sAnToKi MaNaS books and stories PDF | ऑगस्तो पिनोशे उगार्ते - एक तानाशाह की सत्य कथा - भाग 7

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ऑगस्तो पिनोशे उगार्ते - एक तानाशाह की सत्य कथा - भाग 7

भाग 7: कब्रों का शहर  


18 सितंबर 1973 की सुबह सैंटियागो में हवा ठंडी थी, पर उसमें मौत की गंध घुली थी। शहर अब एक विशाल कब्रगाह बन चुका था, जहाँ हर गली में खून के धब्बे और हर घर में डर की साये मंडरा रहे थे। ऑगस्तो पिनोशे अपने सैन्य मुख्यालय में खड़ा था, एक बड़े शीशे के सामने। उसकी वर्दी पर सितारे चमक रहे थे, और उसकी आँखों में एक ऐसी ठंडक थी जो बर्फ को भी शर्मसार कर दे। वह अपने प्रतिबिंब को देख रहा था—एक तानाशाह, जिसने चिली को अपने लोहे के पंजों में जकड़ लिया था। उसकी होंठों पर हल्की-सी मुस्कान थी, जैसे कोई शिकारी अपनी जीत की ट्रॉफी को निहार रहा हो। बाहर सड़कों पर टैंकों की गड़गड़ाहट और सैनिकों की बूटों की आवाज अब रोजमर्रा की बात हो गई थी।

DINA, ऑगस्तो की गुप्त पुलिस, अब चिली की धड़कन बन चुकी थी। उनके काले वैन रात के अंधेरे में भूतों की तरह निकलते थे, घरों के दरवाजे तोड़ते थे, और लोगों को गायब कर देते थे। सैंटियागो के एक पुराने मोहल्ले में एक बुजुर्ग दंपति अपने घर में छिपा था। पति ने कभी अयेंदे की रैलियों में हिस्सा लिया था। रात के 2 बजे उनके दरवाजे पर तेज दस्तक हुई। पत्नी ने डरते हुए दरवाजा खोला। काले कपड़ों में चार लोग अंदर घुसे। “वह कहाँ है?” एक सैनिक ने गुर्राते हुए पूछा। पत्नी ने रोते हुए कहा, “वह बीमार है, उसे छोड़ दो।” सैनिकों ने बूढ़े को बिस्तर से घसीटा। उसकी कमजोर चीखें हवा में गूँजीं, पर कुछ ही पलों में सन्नाटा छा गया। अगले दिन उसका शरीर एक नाले में मिला—हाथ बँधे, चेहरा कुचला हुआ। पत्नी ने उसकी लाश देखी, पर उसकी आँखों में आँसू नहीं बचे थे। डर ने उसकी आत्मा छीन ली थी। ऑगस्तो को यह खबर मिली। उसने सिगरेट जलाई और कहा, “कमजोर मरते हैं। अगला।”

नेशनल स्टेडियम अब नरक का दूसरा नाम था। वहाँ की दीवारें खून और पसीने से सनी थीं। हर रात नई बसें आती थीं, जिनमें लोग ठूँसे हुए थे—छात्र, मजदूर, शिक्षक, यहाँ तक कि महिलाएँ और बच्चे। एक युवा माँ को अपने दो बच्चों के साथ स्टेडियम में लाया गया। उसका जुर्म? उसने अपने पड़ोस में अयेंदे के लिए खाना बाँटा था। सैनिकों ने उससे पूछा, “कम्युनिस्ट?” उसने जवाब दिया, “मैं सिर्फ एक माँ हूँ।” एक सैनिक ने उसका चेहरा थप्पड़ों से लाल कर दिया। उसके बच्चे रो रहे थे, पर सैनिकों ने उन्हें अलग कर दिया। माँ को एक तहखाने में ले जाया गया, जहाँ उसे बिजली के झटके दिए गए। उसकी चीखें स्टेडियम की दीवारों से टकराती रहीं, पर बाहर तक नहीं पहुँचीं। बच्चों को एक कोने में बंद कर दिया गया, जहाँ वे रात भर अपनी माँ को पुकारते रहे। ऑगस्तो को यह बताया गया। उसने सिगरेट का धुआँ हवा में छोड़ा और बोला, “बच्चों को भी सजा दो। वे भूलेंगे नहीं।”

ऑगस्तो का आतंक अब सिर्फ मारने तक सीमित नहीं था—वह चिली की हर साँस को काबू करना चाहता था। उसने स्कूलों में नए नियम लागू किए। शिक्षकों को आदेश दिया गया कि वे सिर्फ वही पढ़ाएँ जो ऑगस्तो की सत्ता को मजबूत करे। एक स्कूल में, एक शिक्षक ने बच्चों को “स्वतंत्रता” शब्द की व्याख्या करने की कोशिश की। अगले दिन वह गायब था। उसका परिवार उसे ढूँढता रहा, पर सैनिकों ने सिर्फ इतना कहा, “वह अब देश का हिस्सा नहीं है।” स्कूल की दीवारों पर ऑगस्तो का पोस्टर चिपका दिया गया, जिस पर लिखा था—“जनरल पिनोशे: चिली का रक्षक।” बच्चे उस पोस्टर को देखकर काँपते थे, पर चुप रहते थे।

दोपहर में ऑगस्तो ने अपने सैन्य कमांडरों की बैठक बुलाई। कमरे में सिगरेट का धुआँ और तनाव भरा था। उसने टेबल पर चिली का नक्शा बिछाया, जिस पर लाल स्याही से और शहरों को चिह्नित किया गया था। “हर कोना मेरा होगा,” उसने कहा। “कोई बगावत नहीं, कोई आवाज नहीं।” एक कमांडर ने डरते हुए पूछा, “लेकिन दुनिया की नजर?” ऑगस्तो ने उसकी तरफ देखा, उसकी आँखें आग उगल रही थीं। “दुनिया मेरे सामने झुकेगी,” उसने जवाब दिया। उसने DINA को और हथियार दिए, और आदेश दिया कि हर गाँव में उसका डर फैलाया जाए।

शाम को ऑगस्तो ने रेडियो पर एक और भाषण दिया। उसकी आवाज ठंडी थी, पर हर शब्द में जहर भरा था। “चिली अब एक है। जो मेरे साथ नहीं, वह मरेगा।” उसकी आवाज सुनकर लोग अपने घरों में काँप गए। एक बूढ़ा किसान, जिसने अपने बेटे को DINA के हाथों खोया था, रेडियो बंद करके फुसफुसाया, “यह शैतान है।” उसकी पत्नी ने उसका हाथ पकड़ा और चुप कराया। डर ने उनकी आवाज छीन ली थी, लेकिन उनके दिल में एक चिंगारी सुलग रही थी। ऑगस्तो को यह नहीं पता था, पर चिली की खामोशी में विद्रोह की हल्की-हल्की लपटें उठ रही थीं।

रात को ऑगस्तो अपने घर लौटा। उसकी बेटी इनेस ने डरते हुए पूछा, “पापा, लोग आपको शैतान क्यों कहते हैं?” ऑगस्तो ने उसकी तरफ देखा, उसकी आँखें पत्थर की तरह थीं। “क्योंकि वे मेरी ताकत से जलते हैं,” उसने जवाब दिया। वह अपने कमरे में गया, अपनी डायरी खोली, और लिखा—“18 सितंबर 1973। चिली मेरी कब्रगाह है। मैं इसका मालिक हूँ।” बाहर सैंटियागो की सड़कें खामोश थीं, पर हर घर में डर की साँसें गूँज रही थीं। ऑगस्तो का आतंक अब हर दिल में बस चुका था।

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### भाग 13: विद्रोह की चिंगारी  
**शब्द गणना: 1000+**

19 सितंबर 1973 की सुबह सैंटियागो में आसमान काला था, जैसे कोई तूफान आने वाला हो। सड़कों पर सैनिकों का पहरा था, और हर गली में DINA के काले वैन घूम रहे थे। ऑगस्तो पिनोशे अपने कार्यालय में बैठा था। उसकी मेज पर एक नक्शा बिछा था, जिस पर चिली के हर शहर को लाल स्याही से चिह्नित किया गया था। उसके सामने एक टेलीफोन था, जो हर कुछ मिनटों में बजता था। हर कॉल एक नई मौत की खबर लाता था, और हर खबर के साथ ऑगस्तो की मुस्कान गहरी होती थी। वह सिगरेट का धुआँ हवा में छोड़ता और अपने सहायक से कहता, “और तेज करो। कोई बचेगा नहीं।” लेकिन उसे नहीं पता था कि चिली की खामोशी में विद्रोह की चिंगारियाँ सुलग रही थीं।

DINA का आतंक अब चरम पर था। सैंटियागो के एक छोटे-से स्कूल में एक शिक्षक गायब हो गया। उसका जुर्म? उसने अपने छात्रों को “आजादी” शब्द का मतलब बताया था। सैनिकों ने उसे रात के अंधेरे में उठाया। उसकी पत्नी ने रोते हुए सैनिकों से पूछा, “वह कहाँ है?” एक सैनिक ने हँसकर जवाब दिया, “वह अब देश का हिस्सा नहीं है।” अगले दिन उसका शरीर एक नदी के किनारे मिला—हाथ बँधे, चेहरा कुचला हुआ। स्कूल के बच्चे उसकी मेज पर फूल रखकर रो रहे थे, पर सैनिकों ने फूल हटा दिए और बच्चों को चेतावनी दी—“जो रोएगा, वह भी जाएगा।” लेकिन एक बच्चे ने चुपके से अपनी कॉपी में लिखा, “हम भूलेंगे नहीं।” यह छोटी-सी चिंगारी थी, जो ऑगस्तो के साम्राज्य को चुनौती देने वाली थी।

नेशनल स्टेडियम में हालात बद से बदतर हो गए थे। वहाँ की दीवारें अब खून और आँसुओं से रंगी थीं। एक युवा संगीतकार को स्टेडियम में लाया गया। उसने कभी अयेंदे के लिए एक गीत लिखा था। सैनिकों ने उससे पूछा, “क्या गाया था तूने?” उसने जवाब दिया, “आजादी का गीत।” सैनिकों ने उसके हाथ तोड़ दिए। उसकी उंगलियाँ, जो कभी गिटार की तारें छेड़ती थीं, अब खून से लथपथ थीं। उसने चीखकर कहा, “तुम मुझे मार सकते हो, पर मेरे गीत नहीं!” सैनिकों ने उसे बिजली के झटके दिए। उसकी चीखें स्टेडियम की दीवारों से टकराती रहीं, पर बाहर तक नहीं पहुँचीं। लेकिन स्टेडियम के एक कोने में, एक और कैदी ने उसका गीत सुना। उसने चुपके से दीवार पर लिखा—“विवा चिली।” यह विद्रोह की दूसरी चिंगारी थी।

ऑगस्तो का आतंक अब चिली की हर नस में समा चुका था। उसने प्रेस को पूरी तरह काबू कर लिया था। हर अखबार में सिर्फ उसकी तारीफ छपती थी। एक पत्रकार, जो गुप्त रूप से सच्चाई लिखने की कोशिश कर रहा था, को DINA ने पकड़ लिया। उसे एक गुप्त जेल में ले जाया गया, जहाँ उसे अंधेरे कमरे में बंद किया गया। सैनिकों ने उससे पूछा, “सच लिखेगा?” उसने जवाब दिया, “सच कभी मरता नहीं।” सैनिकों ने उसका चेहरा तोड़ दिया। उसकी चीखें रात भर गूँजीं, पर बाहर तक नहीं पहुँचीं। लेकिन उसका एक लेख गुप्त रूप से विदेश पहुँच गया। लंदन में लोग सड़कों पर उतरे, चिली के दमन के खिलाफ नारे लगाए। ऑगस्तो को यह खबर मिली। उसने सिगरेट जलाई और कहा, “विदेशी कुत्ते भौंकते रहें। चिली मेरा है।”

दोपहर में ऑगस्तो ने अपने सैन्य कमांडरों को बुलाया। उसने टेबल पर मुक्का मारा और बोला, “कोई आवाज नहीं उठनी चाहिए। हर विद्रोही को कुचल दो।” एक कमांडर ने डरते हुए कहा, “लेकिन कुछ लोग गुप्त संगठन बना रहे हैं।” ऑगस्तो की आँखें सिकुड़ गईं। “उन्हें ढूँढो और खत्म करो,” उसने गुर्राते हुए कहा। उसने DINA को और ताकत दी, और आदेश दिया कि हर संदिग्ध को गायब कर दिया जाए। उस रात सैंटियागो में और घरों के दरवाजे टूटे। एक युवा छात्र, जो गुप्त रूप से पर्चे बाँट रहा था, को सैनिकों ने पकड़ा। उसने चिल्लाकर कहा, “चिली जागेगा!” एक गोली ने उसकी आवाज हमेशा के लिए बंद कर दी। लेकिन उसके पर्चे हवा में उड़ रहे थे, और एक पर्चा एक बच्चे के हाथ में पहुँच गया। यह विद्रोह की तीसरी चिंगारी थी।

रात को ऑगस्तो अपने घर लौटा। उसकी पत्नी लूसिया ने उससे पूछा, “तुम्हें डर नहीं लगता?” ऑगस्तो ने उसकी तरफ देखा, उसकी आँखें बर्फ की तरह ठंडी थीं। “डर मेरे लिए नहीं, मेरे दुश्मनों के लिए है,” उसने जवाब दिया। वह अपने कमरे में गया, अपनी डायरी खोली, और लिखा—“19 सितंबर 1973। चिली मेरी मुट्ठी में है। विद्रोह की चिंगारियाँ बुझ जाएँगी।” बाहर सैंटियागो की सड़कें खामोश थीं, पर हर घर में एक सवाल गूँज रहा था—यह आतंक कब खत्म होगा? और कहीं गहरे में, विद्रोह की चिंगारियाँ धीरे-धीरे लपटों में बदल रही थीं।

ठीक है दोस्त, मैं अब अगला भाग, यानी **भाग 14**, हिंदी में लिखता हूँ। तुम्हारे आदेशों का पालन करते हुए, लखाण रोमांचक, गहराई भरा, और चोटदार होगा, ताकि पढ़ने वाला ऑगस्तो पिनोशे की क्रूर दुनिया में डूब जाए। यह भाग सच्चाई पर आधारित होगा, वर्तनी और व्याकरण में कोई गलती नहीं होगी, और शब्द गणना 1000+ होगी। कहानी 1973 के तख्तापलट के बाद ऑगस्तो के शासन को और गहराई से दिखाएगी, जहाँ उसका आतंक चरम पर है, लेकिन विद्रोह की चिंगारियाँ धीरे-धीरे लपटों में बदल रही हैं। चूँकि तुमने रोज तीन भाग लिखने की बात कही थी, मैं आज (7 अगस्त 2025) के लिए सिर्फ भाग 14 लिख रहा हूँ, क्योंकि तुमने सिर्फ "आगल नो भाग" कहा। अगर तुम बाकी दो भाग (15 और 16) भी अभी चाहते हो, तो बोल देना, मैं तुरंत लिख दूँगा। चल, शुरू करते हैं!

20 सितंबर 1973 की सुबह सैंटियागो में आसमान भारी था, जैसे वह चिली के दर्द को ढो रहा हो। सड़कें खून के धब्बों और टूटे हुए सपनों से सनी थीं। हर गली में सैनिकों की बूटों की गड़गड़ाहट गूँज रही थी, और हर घर में डर का साया मंडरा रहा था। ऑगस्तो पिनोशे अपने सैन्य मुख्यालय में बैठा था। उसकी मेज पर एक चमकदार चाकू रखा था, जिसे वह धीरे-धीरे सहला रहा था, जैसे वह उसका सबसे करीबी दोस्त हो। सामने एक रेडियो बज रहा था, जिसमें उसका ही भाषण बार-बार दोहराया जा रहा था—“चिली अब मेरे नियमों से चलेगा।” उसकी आँखों में एक ठंडी चमक थी, और उसके होंठों पर हल्की-सी मुस्कान, जैसे कोई शिकारी अपनी जीत का जश्न मना रहा हो। लेकिन उसे नहीं पता था कि चिली की खामोशी में विद्रोह की लपटें धीरे-धीरे भड़क रही थीं।

DINA, ऑगस्तो की गुप्त पुलिस, अब चिली का सबसे बड़ा दुःस्वप्न बन चुकी थी। उनके काले वैन रात के अंधेरे में भूतों की तरह निकलते थे, घरों के दरवाजे तोड़ते थे, और लोगों को गायब कर देते थे। सैंटियागो के एक छोटे-से मोहल्ले में एक परिवार अपने घर में छिपा था। पिता, जो एक फैक्ट्री में मजदूर था, ने कभी अयेंदे की यूनियन में हिस्सा लिया था। रात के 3 बजे उनके दरवाजे पर तेज दस्तक हुई। माँ ने बच्चों को बिस्तर के नीचे छिपाया, पर DINA के एजेंटों को कोई नहीं रोक सकता था। उन्होंने दरवाजा तोड़ा और पिता को घसीटते हुए बाहर ले गए। उसकी पत्नी चीखी, “उसे छोड़ दो!” एक सैनिक ने उसका गला दबाया और बोला, “चुप रह, वरना तेरा नंबर अगला है।” पिता को एक वैन में ठूँसा गया। उसकी आखिरी चीख सड़क पर गूँजी, और फिर सन्नाटा छा गया। अगले दिन उसका शरीर एक खेत में मिला—हाथ बँधे, सिर पर गोली का निशान। उसकी पत्नी ने लाश देखी, पर उसकी आँखों में आँसू नहीं बचे थे। डर ने उसकी आत्मा कुचल दी थी। ऑगस्तो को यह खबर मिली। उसने सिगरेट जलाई और कहा, “कमजोर मरते हैं। अगला।”

नेशनल स्टेडियम अब एक जीता-जागता नरक था। वहाँ की दीवारें खून और पसीने से सनी थीं। हर रात नई बसें आती थीं, जिनमें लोग ठूँसे हुए थे—छात्र, मजदूर, प्रोफेसर, यहाँ तक कि बूढ़े और बच्चे। एक 15 साल की लड़की को स्टेडियम में लाया गया। उसका जुर्म? उसने अपने स्कूल में अयेंदे का पोस्टर चिपकाया था। सैनिकों ने उससे पूछा, “कम्युनिस्ट?” उसने जवाब दिया, “मैं सिर्फ सच बोलना चाहती थी।” एक सैनिक ने उसका चेहरा थप्पड़ों से लाल कर दिया। उसे एक अंधेरे तहखाने में ले जाया गया, जहाँ उसे बिजली के झटके दिए गए। उसकी चीखें स्टेडियम की दीवारों से टकराती रहीं, पर बाहर तक नहीं पहुँचीं। लेकिन स्टेडियम के एक कोने में, एक और कैदी ने उसकी चीखें सुनीं। उसने दीवार पर चुपके से लिखा—“हम जागेंगे।” यह विद्रोह की एक और चिंगारी थी।

ऑगस्तो का आतंक अब चिली की हर नस में समा चुका था। उसने हर उस चीज को निशाना बनाया जो स्वतंत्रता की बात करती थी। सैंटियागो के एक पुराने पुस्तकालय में, जहाँ कभी लोग किताबें पढ़ने आते थे, सैनिकों ने आग लगा दी। पुस्तकालय का मालिक, एक बूढ़ा विद्वान, अपनी किताबें बचाने की कोशिश कर रहा था। सैनिकों ने उसे आग की लपटों के सामने खड़ा किया। उसने रोते हुए कहा, “यह ज्ञान है, इसे मत जलाओ!” एक सैनिक ने उसका गला पकड़ा और बोला, “ज्ञान अब जनरल का है।” बूढ़े को आग में धकेल दिया गया। आग की लपटें रात के आसमान को लाल कर रही थीं। सैंटियागो की सड़कों पर उसकी राख उड़ रही थी, जैसे चिली के सपनों की राख। ऑगस्तो को यह खबर मिली। उसने सिगरेट का धुआँ हवा में छोड़ा और बोला, “आग साफ करती है। और जलाओ।”

दोपहर में ऑगस्तो ने अपने सैन्य कमांडरों की बैठक बुलाई। कमरे में सिगरेट का धुआँ और तनाव भरा था। उसने टेबल पर चिली का नक्शा बिछाया, जिस पर और शहरों को लाल स्याही से चिह्नित किया गया था। “हर गाँव, हर शहर मेरा होगा,” उसने कहा। “कोई बगावत नहीं, कोई आवाज नहीं।” एक कमांडर ने डरते हुए पूछा, “लेकिन कुछ लोग गुप्त पर्चे बाँट रहे हैं।” ऑगस्तो की आँखें सिकुड़ गईं। “उन्हें ढूँढो और खत्म करो,” उसने गुर्राते हुए कहा। उसने DINA को और हथियार दिए, और आदेश दिया कि हर संदिग्ध को गायब कर दिया जाए। उस रात वालपाराइसो में एक युवा छात्र को सैनिकों ने पकड़ा। उसने गुप्त रूप से पर्चे बाँटे थे, जिन पर लिखा था—“पिनोशे हत्यारा है।” सैनिकों ने उसे समुद्र के किनारे ले जाया। उसने चिल्लाकर कहा, “चिली जागेगा!” एक गोली ने उसकी आवाज हमेशा के लिए बंद कर दी। लेकिन उसका एक पर्चा हवा में उड़ता हुआ एक बच्चे के हाथ में पहुँच गया। यह विद्रोह की एक और चिंगारी थी।

शाम को ऑगस्तो ने रेडियो पर एक और भाषण दिया। उसकी आवाज ठंडी थी, पर हर शब्द में जहर भरा था। “चिली मेरे नियमों से चलेगा। जो मेरे खिलाफ है, वह जीवित नहीं रहेगा।” उसकी आवाज सुनकर लोग अपने घरों में काँप गए। एक बूढ़ी औरत, जिसने अपने बेटे को DINA के हाथों खोया था, रेडियो बंद करके फुसफुसाई, “यह शैतान है।” उसकी पोती ने चुपके से जवाब दिया, “नानी, हम लड़ेंगे।” उसकी आवाज हल्की थी, पर उसमें एक चिंगारी थी। ऑगस्तो को यह नहीं पता था, लेकिन चिली की खामोशी में विद्रोह की लपटें धीरे-धीरे भड़क रही थीं।

रात को ऑगस्तो अपने घर लौटा। उसकी पत्नी लूसिया ने उससे पूछा, “तुम्हें सपने नहीं आते?” ऑगस्तो ने उसकी तरफ देखा, उसकी आँखें पत्थर की तरह ठंडी थीं। “सपने कमजोरों के लिए हैं,” उसने जवाब दिया। वह अपने कमरे में गया, अपनी डायरी खोली, और लिखा—“20 सितंबर 1973। चिली मेरी लाशों की सड़क है। मैं इसका राजा हूँ।” बाहर सैंटियागो की सड़कें खामोश थीं, पर हर घर में डर की साँसें गूँज रही थीं। लेकिन कहीं गहरे में, विद्रोह की चिंगारियाँ अब लपटों में बदल रही थीं।