ऑगस्तो पिनोशे उगार्ते - एक तानाशाह की सत्य कथा
भाग 1: एक तानाशाह का जन्म
25 नवंबर 1915 की सुबह वालपाराइसो की संकरी गलियों में एक बच्चे की किलकारी गूँजी। ऑगस्तो पिनोशे उगार्ते का जन्म हुआ था। आसमान में बादल छाए थे, और हवा में नमकीन ठंडक थी—समुद्र के किनारे बसा यह शहर उस दिन अनजाने में एक तानाशाह को गले लगा रहा था। उसका घर सादा था—लकड़ी की दीवारें, टीन की छत, और एक छोटा-सा आँगन। पिता ऑगस्तो पिनोशे वेरा सीमा शुल्क का छोटा-मोटा अधिकारी था, और माँ अवेलिना उगार्ते अपने छह बच्चों को पालने में दिन-रात एक कर देती थी। छोटा ऑगस्तो उनके बीच सबसे चुपचाप था—नन्हीं आँखों में एक अजीब-सी चमक, जो कुछ बड़ा करने की भूख दिखाती थी।
बचपन में ऑगस्तो की जिंदगी आसान नहीं थी। गली के बच्चे उसे "पतला" कहकर चिढ़ाते थे। वह कमजोर दिखता था, पर उसकी हड्डियों में आग सुलग रही थी। माँ चाहती थी कि वह पादरी बने—चर्च की घंटियाँ बजाए, प्रार्थनाएँ पढ़े। लेकिन ऑगस्तो का मन कहीं और था। वह सड़क पर सैनिकों को देखता—उनकी चमचमाती वर्दी, कंधे पर लटकी बंदूकें, और वह रौब जो हर कदम में झलकता था। एक दिन उसने घर में ऐलान किया, "मैं सैनिक बनूँगा।" माँ ने हँसकर टाल दिया, पर उसकी आँखों में जो ठंडक थी, वह किसी को नहीं दिखी।
17 साल की उम्र में ऑगस्तो सैन्य स्कूल की देहरी पर पहुँचा। पहली बार में उसे धक्का मारकर बाहर निकाल दिया गया—"तू कमजोर है, यहाँ नहीं टिकेगा।" दूसरी बार भी हार मिली। तीसरी बार में उसकी हिम्मत टूटने लगी थी, पर चौथी कोशिश में, 1933 में, वह अंदर घुस गया। सैन्य स्कूल का पहला दिन उसके लिए नर्क था। सुबह चार बजे की ठंड में उसे बर्फीले पानी से नहलाया गया। सख्त अफसरों की गालियाँ, घंटों की परेड, और थकान से चूर शरीर—हर पल उसे तोड़ना चाहता था। लेकिन ऑगस्तो झुका नहीं। उसने अपने दाँत पीसे और सोचा, "मैं हारा हुआ नहीं हूँ।" 1936 में उसे लेफ्टिनेंट की वर्दी मिली। वह उस रात सोया नहीं—वर्दी पहनकर आईने के सामने खड़ा रहा, जैसे कोई राजा अपने ताज को निहार रहा हो।
वालपाराइसो की हवा अब ऑगस्तो के लिए बदल रही थी। चिली उस समय उथल-पुथल से गुजर रहा था। मजदूर सड़कों पर थे, सरकारें बनती-बिगड़ती थीं, और सेना धीरे-धीरे देश की धड़कन बन रही थी। ऑगस्तो ने इसे मौका समझा। उसकी नजरें अब ऊँची थीं—वह सिर्फ सैनिक नहीं, कुछ और बनना चाहता था। उसने अपने पहले मिशन में हिस्सा लिया—एक छोटे-से विद्रोह को कुचलना। उसने पहली बार खून देखा—एक विद्रोही की छाती से बहता लाल रंग। लोग चीख रहे थे, पर ऑगस्तो शांत था। उस रात उसने अपनी डायरी में लिखा—"खून कमजोरी को धोता है।" यह ऑगस्तो पिनोशे का जन्म था—नन्हा लड़का अब एक शिकारी बन रहा था।
1930 का दशक खत्म होते-होते ऑगस्तो पिनोशे की जिंदगी ने रफ्तार पकड़ ली थी। वह अब लेफ्टिनेंट था, पर उसकी भूख छोटी रैंक से शांत होने वाली नहीं थी। चिली की सेना में उसने अपनी जगह बनानी शुरू की। उसकी वर्दी पर हर नया सितारा एक कसम की तरह था—वह ऊपर जाएगा, चाहे रास्ते में कितना भी खून बहाना पड़े। 1943 में उसकी जिंदगी में एक नया मोड़ आया। उसने लूसिया हिरीआर्ट से शादी की। लूसिया लंबी, तेज-तर्रार, और खूबसूरत थी। उसकी आँखों में वही आग थी जो ऑगस्तो की थी। पहली मुलाकात में उसने ऑगस्तो से पूछा, "तुम क्या बनना चाहते हो?" ऑगस्तो ने जवाब दिया, "वह जो देश को चलाए।" लूसिया मुस्कुराई—उसे अपना शिकारी मिल गया था।
1940 और 1950 का दशक ऑगस्तो के लिए सीखने का समय था। वह चिली की सेना में इन्फैंट्री से घुड़सवार तक हर मोर्चे पर लड़ा। 1948 में उसे कप्तान बनाया गया। उसकी पहली बड़ी जिम्मेदारी थी—एक दूर-दराज के इलाके में कम्युनिस्ट विद्रोह को कुचलना। रात का अंधेरा था, जब वह अपने सैनिकों के साथ जंगल में घुसा। हवा में बारूद की गंध थी। विद्रोहियों ने हमला किया—गोलियाँ चल रही थीं, तलवारें चमक रही थीं। ऑगस्तो ने अपनी बंदूक उठाई और एक विद्रोही के सिर पर निशाना साधा। गोली चली, और खून की फुहार हवा में उड़ी। उसने अपने सैनिकों को चिल्लाकर कहा, "कोई जिंदा नहीं छूटना चाहिए!" सुबह तक जंगल लाशों से पट गया। ऑगस्तो ने लाशों के बीच खड़े होकर सिगरेट जलाई। उसका चेहरा शांत था—जैसे उसने कुछ बड़ा हासिल कर लिया हो।
1950 में ऑगस्तो को विदेश भेजा गया—इक्वाडोर और पेरू में सैन्य प्रशिक्षण के लिए। वहाँ उसने नई रणनीतियाँ सीखीं। एक रात पेरू के जंगल में ट्रेनिंग के दौरान उसने अपने कमांडर से पूछा, "सत्ता कैसे हासिल करते हैं?" कमांडर ने हँसकर कहा, "खून और धोखे से।" ऑगस्तो ने उसकी बात को दिल में बिठा लिया। 1953 में उसे मेजर की रैंक मिली। वह चिली लौटा तो उसकी आँखों में एक नई चमक थी। उसने सैन्य अकादमी में पढ़ाना शुरू किया। वहाँ वह युवा सैनिकों को बताता—"देश को कमजोर लोग नहीं, लोहे की मुट्ठी चाहिए।" उसकी आवाज में एक ठंडी क्रूरता थी, जो सुनने वालों को डरा देती थी।
1960 का दशक आते-आते ऑगस्तो का नाम सेना में गूँजने लगा। उसे ब्रिगेडियर जनरल बनाया गया। लेकिन चिली अब बदल रहा था। सल्वाडोर अयेंदे की समाजवादी लहर मजबूत हो रही थी। ऑगस्तो को यह सब बर्दाश्त नहीं था। वह अयेंदे को देश का कैंसर मानता था। उसने अपने घर में लूसिया से कहा, "ये लोग चिली को बर्बाद कर देंगे।" लूसिया ने उसका हाथ पकड़ा और बोली, "तो तुम इसे रोक दो।" उस रात ऑगस्तो सो नहीं सका। वह अपने बगीचे में खड़ा था, चाँदनी में उसकी छाया एक शिकारी की तरह लंबी हो रही थी। उसने अपनी डायरी में लिखा—"मैं तैयार हूँ। अब शिकार शुरू होगा।" ऑगस्तो अब सिर्फ सैनिक नहीं था—वह सत्ता का भूखा शिकारी बन चुका था।
(क्रमशः)
मनोज संतोकी मानस