Augusto Pinochet Ugarte - The True Story of a Dictator - 4 in Hindi Fiction Stories by MaNoJ sAnToKi MaNaS books and stories PDF | ऑगस्तो पिनोशे उगार्ते - एक तानाशाह की सत्य कथा - भाग 4

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ऑगस्तो पिनोशे उगार्ते - एक तानाशाह की सत्य कथा - भाग 4

13 सितंबर 1973 को सैंटियागो में सूरज फिर निकला, पर उसकी गर्मी किसी को नहीं छू सकी। शहर अब एक खामोश कब्रगाह था। ऑगस्तो पिनोशे अपने कार्यालय में बैठा था। उसकी मेज पर दुनिया भर के अखबारों की कटिंग्स बिछी थीं—"चिली में तख्तापलट," "अयेंदे की मौत," "सैन्य शासन की शुरुआत।" उसने एक अखबार उठाया और पढ़ा। उसके होंठों पर हल्की-सी मुस्कान आई—वह अब सिर्फ चिली का नहीं, दुनिया का हिस्सा बन चुका था। लेकिन यह मुस्कान खुशी की नहीं, बल्कि एक विजेता की थी, जो अपने दुश्मनों को कुचल चुका था।

दुनिया की नजर अब ऑगस्तो पर थी। अमेरिका ने चुपचाप उसकी पीठ थपथपाई। CIA के एक एजेंट ने उसे फोन किया—"शानदार काम, जनरल।" ऑगस्तो ने जवाब दिया, "यह तो बस शुरुआत है।" अमेरिका को चिली में समाजवाद का अंत चाहिए था, और ऑगस्तो ने वह दे दिया। लेकिन यूरोप और लैटिन अमेरिका के बाकी देशों में गुस्सा भड़क रहा था। लंदन में लोग सड़कों पर उतरे—"पिनोशे हत्यारा है!" उनकी तख्तियों पर लिखा था। मेक्सिको ने चिली के साथ कूटनीतिक रिश्ते तोड़ दिए। ऑगस्तो को यह सब पता था, पर उसे परवाह नहीं थी। उसने अपने सहायक से कहा, "कुत्ते भौंकते हैं, कारवाँ चलता है।"

चिली के अंदर उसका आतंक बढ़ता जा रहा था। DINA अब हर साँस पर नजर रख रही थी। एक प्रोफेसर, जो विदेश में पढ़ा था, अपने घर में किताबें जला रहा था—मार्क्स, लेनिन, कुछ भी जो उसे "कम्युनिस्ट" साबित कर सके। लेकिन फिर भी सैनिक आए। उसकी पत्नी ने दरवाजा खोला। सैनिकों ने उसे धक्का दिया और प्रोफेसर को उठा ले गए। उसकी चीखें पड़ोस तक गईं, पर कोई मदद के लिए नहीं आया। अगले दिन उसकी लाश एक नदी के किनारे मिली—गले में रस्सी, आँखें निकाली गईं। ऑगस्तो को रिपोर्ट मिली। उसने सिर्फ इतना कहा, "अगला।"

दोपहर में ऑगस्तो ने अपने पहले विदेशी मेहमान से मुलाकात की—एक अमेरिकी राजदूत। उसने ऑगस्तो को बधाई दी और कहा, "हमें आप पर भरोसा है।" ऑगस्तो ने जवाब दिया, "मुझे आपकी मदद चाहिए—हथियार, पैसा, और खामोशी।" राजदूत ने सिर हिलाया। यह सौदा था—अमेरिका ऑगस्तो को सपोर्ट करेगा, और बदले में ऑगस्तो चिली को समाजवाद से "मुक्त" रखेगा। उस रात वाशिंगटन में एक गुप्त मीटिंग हुई। वहाँ फैसला लिया गया कि ऑगस्तो को हर हाल में सत्ता में रखना है।

शाम को ऑगस्तो ने अपने सैनिकों को बुलाया। उसने कहा, "दुनिया हमें देख रही है। हमें मजबूत दिखना होगा।" उसने नेशनल स्टेडियम में कैदियों की संख्या बढ़ाने का आदेश दिया। वहाँ हालात अब नर्क जैसे हो गए थे। एक युवा संगीतकार, जिसने अयेंदे के लिए गीत लिखा था, को स्टेडियम में लाया गया। सैनिकों ने उसके हाथ तोड़ दिए। उसकी उंगलियाँ, जो कभी गिटार बजाती थीं, अब खून से लथपथ थीं। उसने चिल्लाकर कहा, "मुझे मार दो!" सैनिक हँसे और बोले, "अभी नहीं।" ऑगस्तो को यह खबर मिली। उसने कहा, "उसे जिंदा रखो—दर्द उसका सबक होगा।"

रात को ऑगस्तो अपने घर लौटा। उसकी बेटी इनेस ने पूछा, "पापा, लोग आपको क्यों गालियाँ दे रहे हैं?" ऑगस्तो ने उसकी तरफ देखा और कहा, "क्योंकि वे कमजोर हैं।" उसकी आवाज में कोई प्यार नहीं था, सिर्फ एक ठंडी हकीकत थी। उस रात उसने अपनी डायरी में लिखा—"दुनिया मेरी है। जो खिलाफ हैं, वे मरेंगे।" ऑगस्तो अब सिर्फ चिली का तानाशाह नहीं था—वह एक ऐसा नाम बन चुका था, जिसे सुनकर दुनिया काँपती थी।

14 सितंबर 1973 की सुबह सैंटियागो में सूरज एक घने कोहरे के पीछे छिपा था। शहर की सड़कें अब खामोश थीं, पर यह खामोशी किसी तूफान से पहले की शांति थी। ऑगस्तो पिनोशे अपने नए सैन्य मुख्यालय में बैठा था। उसकी मेज पर एक मोटी फाइल थी—उसमें उन लोगों के नाम थे, जिन्हें वह "दुश्मन" मानता था। हर नाम एक कहानी थी, हर कहानी एक मौत। उसकी उंगलियाँ फाइल के पन्नों पर रेंग रही थीं, जैसे कोई मकड़ी अपने जाल में फँसे शिकार को चुन रही हो। बाहर सड़कों पर सैनिकों की भारी बूटों की गड़गड़ाहट गूँज रही थी, और हर घर में डर का साया मंडरा रहा था। ऑगस्तो ने अपनी सिगरेट जलाई, धुआँ हवा में लहराया, और उसकी आँखों में एक ठंडी चमक थी—वह अब चिली का भगवान बन चुका था।

तख्तापलट के तीन दिन बीत चुके थे। सल्वाडोर अयेंदे की लाश अब ठंडी हो चुकी थी, और ला मोनेदा की जली हुई दीवारें चिली के मरे हुए लोकतंत्र की गवाही दे रही थीं। ऑगस्तो ने अपने शासन को मजबूत करने का काम शुरू कर दिया था। उसने DINA—Dirección de Inteligencia Nacional—को और ताकत दी। यह गुप्त पुलिस अब उसका सबसे बड़ा हथियार थी। DINA के एजेंट काले भूतों की तरह रात के अंधेरे में निकलते थे। उनके चेहरों पर कोई भाव नहीं, सिर्फ क्रूरता। सैंटियागो के एक छोटे-से मोहल्ले में एक परिवार अपने घर में छिपा था। पिता, जो कभी अयेंदे के लिए रैलियों में नारे लगाता था, अब अपने बच्चों को सीने से लगाए बैठा था। रात के 3 बजे दरवाजा टूटा। काले कपड़ों में पाँच लोग अंदर घुसे। माँ ने चीखने की कोशिश की, पर एक सैनिक ने उसका मुँह बंद कर दिया। पिता को घसीटते हुए ले गए। सुबह उसकी लाश एक गली में मिली—गले में रस्सी, चेहरा कुचला हुआ। DINA ने अपना काम किया, और ऑगस्तो को सिर्फ एक पंक्ति की रिपोर्ट मिली—"एक और दुश्मन खत्म।"

ऑगस्तो का आतंक अब सिर्फ सैंटियागो तक सीमित नहीं था। उसने पूरे चिली को अपने जाल में जकड़ लिया था। वालपाराइसो की बंदरगाहों से लेकर टेमुको के ठंडे जंगलों तक, हर जगह DINA की दहशत थी। लोग अपने घरों में किताबें जला रहे थे—मार्क्स, लेनिन, या कोई भी चीज जो उन्हें "कम्युनिस्ट" साबित कर सके। लेकिन इससे कोई फर्क नहीं पड़ता था। एक स्कूल शिक्षिका, जिसने कभी अयेंदे की नीतियों की तारीफ की थी, को उसके क्लासरूम से उठाया गया। बच्चे रो रहे थे, पर सैनिकों ने उन्हें चुप करा दिया। शिक्षिका को नेशनल स्टेडियम ले जाया गया। वहाँ, अंधेरे तहखाने में, उसे बिजली के झटके दिए गए। उसकी चीखें दीवारों से टकराती रहीं, पर बाहर तक नहीं पहुँचीं। ऑगस्तो को यह खबर मिली। उसने सिर्फ इतना कहा, "अच्छा। और तेज करो।"

नेशनल स्टेडियम अब चिली का सबसे बड़ा नर्क बन चुका था। वहाँ हजारों लोग ठूँसे गए थे—छात्र, मजदूर, प्रोफेसर, कलाकार। कभी यह स्टेडियम फुटबॉल के लिए जाना जाता था, जहाँ लोग तालियाँ बजाते थे। अब यहाँ सिर्फ चीखें और रोने की आवाजें गूँजती थीं। एक युवा कवि को स्टेडियम में लाया गया। उसका जुर्म? उसने अयेंदे के लिए एक कविता लिखी थी। सैनिकों ने उससे पूछा, "क्या लिखा था तूने?" उसने जवाब दिया, "आजादी।" एक सैनिक ने हँसकर उसका हाथ तोड़ दिया। कवि की उंगलियाँ, जो कभी कागज पर सपने लिखती थीं, अब खून से लथपथ थीं। उसने चिल्लाकर कहा, "मुझे मार दो!" सैनिक ने जवाब दिया, "अभी नहीं। पहले तुझे आजादी का मतलब सिखाएँगे।" ऑगस्तो को यह सब बताया गया। उसने सिगरेट का एक लंबा कश लिया और कहा, "उसे जिंदा रखो। दर्द उसका गुरु होगा।"

दोपहर में ऑगस्तो ने अपने पहले बड़े फरमान जारी किए। उसने चिली की हर स्वतंत्र संस्था को खत्म कर दिया। यूनियनों पर बैन, प्रेस पर सेंसरशिप, और हर विरोधी आवाज को चुप करने का आदेश। रेडियो पर उसकी आवाज गूँजी—"चिली अब मेरे नियमों से चलेगा। जो मेरे खिलाफ है, वह देश का दुश्मन है।" उसकी आवाज में एक ऐसी ठंडक थी कि सुनने वाले काँप गए। लोग अपने घरों में छिप गए, पर डर उनके साथ था। एक बूढ़ी औरत, जो दवा लेने सड़क पर निकली, को सैनिकों ने देखा। उसने भागने की कोशिश की, पर एक गोली ने उसे वहीं ढेर कर दिया। उसकी लाश सड़क पर पड़ी रही—एक चेतावनी की तरह।

ऑगस्तो का परिवार भी इस आतंक का हिस्सा बन रहा था। उसकी पत्नी लूसिया अब और चुप नहीं रह सकी। उसने रात को ऑगस्तो से पूछा, "यह सब कब रुकेगा?" ऑगस्तो ने उसकी तरफ देखा, उसकी आँखें बर्फ की तरह ठंडी थीं। "जब तक देश मेरे कब्जे में नहीं आ जाता," उसने जवाब दिया। लूसिया की आँखों में आँसू थे, पर वह चुप रही। वह जानती थी कि ऑगस्तो अब वही लड़का नहीं था, जिससे उसने शादी की थी। वह एक तानाशाह बन चुका था—एक ऐसा शख्स जिसके लिए खून और सत्ता एक ही थे।

शाम को ऑगस्तो अपने कार्यालय में अकेला बैठा था। उसके सामने चिली का झंडा लटक रहा था, पर वह अब उसका निजी झंडा बन चुका था। उसने रेडियो चालू किया। एक खबर आई—"200 और गिरफ्तार, 50 मरे।" उसने सिगरेट का आखिरी कश लिया और धुआँ हवा में छोड़ा। उसकी मुस्कान में कोई गर्मी नहीं थी, सिर्फ एक विजेता का घमंड। उसने अपनी डायरी खोली और लिखा—"14 सितंबर 1973। डर मेरा हथियार है। चिली मेरा है।" बाहर सैंटियागो की सड़कें खामोश थीं, पर हर घर में एक सवाल गूँज रहा था—यह नरसंहार कब रुकेगा? ऑगस्तो के पास इसका जवाब था—कभी नहीं।