11 सितंबर 1973 की रात सैंटियागो में सन्नाटा था, पर यह सन्नाटा शांति का नहीं, मौत का था। ऑगस्तो पिनोशे अपने नए मुख्यालय में बैठा था। उसकी मेज पर एक नक्शा बिछा था, जिस पर लाल निशान लगे थे—हर निशान एक दुश्मन का ठिकाना। उसकी उंगलियाँ नक्शे पर रेंग रही थीं, जैसे कोई शिकारी अपने अगले शिकार को चुन रहा हो। बाहर सड़कों पर सैनिकों की बूटों की आवाज गूँज रही थी। हर गली, हर घर में डर का काला साया मंडरा रहा था। ऑगस्तो ने अपनी वर्दी की आस्तीन ऊपर चढ़ाई और अपने कमांडर को बुलाया। "शुरू करो," उसने कहा, और उसकी आवाज में बर्फ-सी ठंडक थी।
अगले कुछ घंटों में चिली एक नरसंहार का गवाह बना। ऑगस्तो ने DINA—Dirección de Inteligencia Nacional—नाम की गुप्त पुलिस को हरी झंडी दी। ये वे लोग थे जो रात के अंधेरे में निकलते थे, बिना चेहरा दिखाए, बिना नाम बताए। उनकी पहचान सिर्फ उनकी क्रूरता थी। सैंटियागो के एक छोटे-से घर में एक परिवार सो रहा था। पिता ने अयेंदे के लिए वोट दिया था। रात के 2 बजे दरवाजा टूटा। काले कपड़ों में छह लोग अंदर घुसे। माँ की चीखें हवा में गूँजीं, बच्चे रो रहे थे, पर कुछ ही पलों में सब शांत हो गया। पिता को सड़क पर घसीटा गया, एक गोली उसके सिर में उतारी गई, और उसका शरीर वहीं छोड़ दिया गया। DINA का पहला शिकार पूरा हुआ।
ऑगस्तो को यह सब पता था। वह अपने कार्यालय में बैठा रेडियो पर खबरें सुन रहा था। "100 गिरफ्तार, 20 मरे," एक आवाज बोली। उसने सिगरेट जलाई और धुआँ हवा में छोड़ा। उसके चेहरे पर कोई भाव नहीं था—न खुशी, न अफसोस। उसके लिए यह सिर्फ एक शुरुआत थी। उसने अपने सैनिकों को साफ आदेश दिया था—"कोई सबूत नहीं छोड़ना, कोई गवाह नहीं बचाना।" अगले दिन सुबह तक सैंटियागो की सड़कों पर लाशें बिछी थीं। खून से सनी गलियाँ, टूटे हुए घर, और रोते हुए लोग—यह ऑगस्तो का नया चिली था।
दोपहर में उसने पहली बार जनता को संबोधित किया। रेडियो पर उसकी आवाज गूँजी—"चिली अब सुरक्षित हाथों में है। जो देश के खिलाफ हैं, वे जीवित नहीं रहेंगे।" उसकी बातें सुनकर लोग काँप गए। कुछ ने उम्मीद की कि शायद अब अयेंदे के बाद शांति आएगी, पर उन्हें नहीं पता था कि ऑगस्तो की शांति का मतलब मौत था। उसने सैन्य अदालतें बनाईं। हर उस शख्स को, जिस पर समाजवादी होने का शक था, पकड़ा गया। एक स्कूल टीचर, जो अयेंदे का समर्थक था, को उसके क्लासरूम से उठाया गया। उसकी पत्नी चिल्लाई, पर सैनिकों ने उसे धक्का दे दिया। अगले दिन उसका शरीर एक नाले में मिला—हाथ बँधे हुए, चेहरा कुचला हुआ।
ऑगस्तो का यह खेल सिर्फ सैंटियागो तक सीमित नहीं था। उसने पूरे चिली में अपने पंजे फैलाए। वालपाराइसो, कॉन्सेप्सियोन, टेमुको—हर शहर में DINA की दहशत थी। लोग रात को सोते वक्त दरवाजे बंद कर लेते थे, पर फिर भी डर बना रहता था। एक मछुआरे को सिर्फ इसलिए मार दिया गया, क्योंकि उसके घर में अयेंदे की तस्वीर थी। उसकी पत्नी ने सैनिकों से रो-रोकर पूछा, "क्यों?" जवाब में उसे एक थप्पड़ मिला और चेतावनी—"अगली बार तू होगी।" ऑगस्तो को इन सबकी खबर मिलती थी, और वह सिर्फ इतना कहता था, "अच्छा।"
रात को ऑगस्तो अपने घर लौटा। उसकी पत्नी लूसिया दरवाजे पर खड़ी थी। उसकी आँखों में सवाल थे, पर वह कुछ नहीं बोली। ऑगस्तो ने उसकी तरफ देखा और कहा, "यह सब देश के लिए है।" लूसिया ने सिर झुकाया और चुपचाप अंदर चली गई। उस रात ऑगस्तो ने अपनी डायरी में लिखा—"खून बहाना जरूरी है। जो कमजोर हैं, वे मरेंगे।" उसकी कलम से स्याही नहीं, बल्कि चिली के लोगों का खून टपक रहा था। यह ऑगस्तो पिनोशे का शासन था—खून से लिखा हुआ, डर से चलाया हुआ।
12 सितंबर 1973 की सुबह सैंटियागो में सूरज निकला, पर उसकी रोशनी किसी को छू नहीं सकी। शहर एक जंगल बन चुका था, जहाँ शिकारी ऑगस्तो पिनोशे था और बाकी सब उसका शिकार। सड़कों पर टैंकों की गड़गड़ाहट अब भी गूँज रही थी। ला मोनेदा की जली हुई इमारत चिली के मरे हुए लोकतंत्र की कब्र की तरह खड़ी थी। ऑगस्तो अपने मुख्यालय में बैठा था। उसके सामने एक लंबी लिस्ट थी—नाम, पते, और उनके खिलाफ आरोप। हर नाम के आगे एक निशान लगाने का मतलब था—मौत। उसकी उंगलियाँ उस लिस्ट पर रेंग रही थीं, और हर निशान के साथ उसकी आँखों में एक अजीब-सी चमक आ रही थी।
DINA अब पूरे जोर पर थी। ऑगस्तो ने इसके मुखिया मैनुएल कॉन्ट्रेरास को बुलाया। कॉन्ट्रेरास एक ऐसा शख्स था, जिसके चेहरे पर मुस्कान थी, पर उसकी आँखें साँप की तरह ठंडी थीं। ऑगस्तो ने उसे कहा, "मुझे हर दुश्मन चाहिए—जिंदा या मुर्दा।" कॉन्ट्रेरास ने सिर झुकाया और बाहर निकल गया। अगले कुछ घंटों में चिली के हर कोने में दहशत फैल गई। सैनिक और DINA के एजेंट घर-घर घूम रहे थे। एक फैक्ट्री वर्कर, जो मजदूर यूनियन का हिस्सा था, अपने बच्चों के साथ नाश्ता कर रहा था। दरवाजे पर दस्तक हुई। उसने खोला तो सामने काले कपड़ों में चार लोग खड़े थे। उसकी पत्नी चिल्लाई, पर सैनिकों ने उसे दीवार से टकरा दिया। वर्कर को घसीटते हुए ले गए। उसकी लाश दो दिन बाद एक खेत में मिली—हाथ-पैर कटे हुए, चेहरा पहचान से बाहर।
ऑगस्तो का यह अंधेरा साम्राज्य सिर्फ मारने तक सीमित नहीं था। उसने नेशनल स्टेडियम को एक विशाल जेल में बदल दिया। वहाँ हजारों लोगों को ठूँसा गया—छात्र, प्रोफेसर, मजदूर, कलाकार। स्टेडियम की सीटें, जहाँ कभी लोग फुटबॉल के लिए तालियाँ बजाते थे, अब चीखों और रोने की आवाजों से भर गई थीं। एक युवा छात्रा को उसके कॉलेज से उठाया गया। उसका जुर्म? उसने अयेंदे के लिए कविता लिखी थी। उसे स्टेडियम में लाया गया। वहाँ सैनिकों ने उससे पूछताछ की—हर सवाल के साथ एक थप्पड़, हर चुप्पी के साथ एक लात। उसकी चीखें स्टेडियम की दीवारों से टकराती रहीं, पर बाहर तक नहीं पहुँचीं। ऑगस्तो को इसकी खबर मिली। उसने सिर्फ इतना कहा, "और सख्ती करो।"
शाम को ऑगस्तो ने अपने पहले फरमान जारी किए। उसने संविधान को खत्म कर दिया। संसद भंग कर दी गई। हर राजनीतिक पार्टी पर बैन लगा दिया गया। उसने रेडियो पर ऐलान किया—"अब चिली में सिर्फ एक नियम है—मेरा नियम।" उसकी आवाज सुनकर लोग काँप गए। कुछ ने सोचा कि शायद यह अस्थायी है, पर ऑगस्तो का इरादा साफ था—वह चिली को अपने लोहे के हाथों में जकड़ना चाहता था। उसने कर्फ्यू लगा दिया। रात 8 बजे के बाद सड़क पर निकलने का मतलब था मौत। एक बूढ़ा आदमी, जो दवा लेने निकला था, को सैनिकों ने देखा। उसने भागने की कोशिश की, पर एक गोली ने उसे वहीं ढेर कर दिया। उसकी लाश सुबह तक सड़क पर पड़ी रही—एक चेतावनी की तरह।
ऑगस्तो का परिवार भी इस अंधेरे का हिस्सा बन रहा था। उसकी पत्नी लूसिया अब चुप नहीं रह सकी। उसने ऑगस्तो से पूछा, "यह कब तक चलेगा?" ऑगस्तो ने उसकी तरफ देखा और कहा, "जब तक देश साफ नहीं हो जाता।" लूसिया की आँखों में आँसू थे, पर वह कुछ नहीं बोली। उस रात ऑगस्तो ने अपनी डायरी में लिखा—"अंधेरा जरूरी है। जो रोशनी चाहते हैं, वे इसके लायक नहीं।" उसका साम्राज्य अब तैयार था—एक ऐसा साम्राज्य जो खून, डर, और सन्नाटे से बना था।