Chandrvanshi - 2 - 2.2 in Hindi Women Focused by yuvrajsinh Jadav books and stories PDF | चंद्रवंशी - अध्याय 2 - अंक 2.2

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चंद्रवंशी - अध्याय 2 - अंक 2.2

सुबह आठ बजे के आसपास जिद की आंखें खुल गईं। उसने एक भयानक सपना देखा था। उसके माथे पर चिंता की रेखाएं उभर आई थीं। उसका चेहरा पानी-पानी हो गया था और वह अपने मुंह में जमा थूक को बाहर निकालने के लिए बिस्तर से उठने के लिए अपनी चादर हटाकर नीचे पैर रखकर खड़ी हुई। जिद ने वही रात वाले कपड़े पहने हुए थे। वह वॉशरूम में जाकर फ्रेश हो गई और माही को उठाते हुए बोली –  
“माही उठ... जाग जा... तूने मुझसे कहा था कि कल हम चलेंगे और मेरी मम्मी को तार भेजेंगे।  
जाग जल्दी से।”  
जिद को जैसे सपने में कुछ बेहद बुरा दिखा हो ऐसा लग रहा था। उसके हावभाव से तो साफ लग रहा था कि उसने अपनी मम्मी को लेकर कुछ सपना देखा है।  
माही जाग गई और एकदम से बोली – “ओह... हां मैं तो भूल ही गई थी। कल रात की पार्टी ही ऐसी थी कि सब कुछ भूलवा दिया।”  
हँसते हुए जिद की तरफ देख रही माही का हँसना बंद हो गया। उसने थोड़ी घबराई हुई जिद को देखकर पूछा –  
“जिद... तू ठीक तो है न! किसी ने कुछ कहा?”  
“हां माही मैं बिलकुल ठीक हूँ बस...”  
जिद के मुँह से निकले इस वाक्य के अंतिम शब्द ने माही को सोच में डाल दिया।  
“बस क्या जिद! कल ऑफिस में जो हुआ उसके कारण या कोई और चिंता है तुझे?”  
“नहीं। मुझे कुछ भी चिंता नहीं है बस आज सुबह-सुबह एक डरावना सपना देखा इसलिए थोड़ी नर्वस हूँ।”  
“सपना!”  
“हां सपना जिसमें मेरी मम्मी इस दुनिया से...” जिद पूरा नहीं बोल पाई। उसके अधूरे वाक्य में उसका डर झलक रहा था, इसलिए वाक्य पूरा करते हुए माही बोली –  
“क्या आंटी दुनिया को छोड़कर...” इससे ज्यादा माही बोल ही नहीं पाई और उससे पहले ही जिद रोने लगी। माही का वाक्य सही था। वह जिद को नीचे बैठाकर उसे चुप कराने लगी। जिद के रोने से उसकी आंखें थोड़ी लाल हो गईं। माही ने जिद से कहा – “चलो अभी ही आंटी को तार भेजने चलते हैं। मैं बस दो मिनट में नहाकर आती हूँ।”  
माही के दो मिनट का मतलब कम से कम बीस मिनट ये तो जिद अच्छे से जानती थी। लेकिन वह कुछ समझ नहीं पा रही थी क्योंकि आज उसका दूसरा दिन था। जब पहली बार ही जिद अपनी मम्मी से दूर रही है और कभी उससे अलग नहीं रही। तो अब तक उसकी मम्मी ने कोई संपर्क क्यों नहीं किया? जिद के इस सवाल ने उसे अपने पुराने ख्यालों में डाल दिया।  
जब भी मैं मम्मी से पूछती। मम्मी मेरी सारी सहेलियों के पापा हमेशा उन्हें स्कूल छोड़ने आते हैं। रोज उन्हें नई-नई चॉकलेट्स देते हैं। वो चॉकलेट्स तो मुझे भी नहीं चाहिए लेकिन मेरे पापा कहां हैं? आपने कभी उनका नाम भी मुझे नहीं बताया!  
तुझे पता है परीक्षा में मेरे पास बैठी एक लड़की तो मुझे ये कहकर चिढ़ाती थी कि, तू अपनी मम्मी को सड़क से मिली है।  
तो क्या मम्मी, सच में मैं सड़क पर पड़ी थी?  
तब मम्मी मुझ पर गुस्सा हो जाती और मैं चुपचाप बैठ जाती। फिर वह शांति से मुझे मनाती और रोज मुझे अपनी राजकुमारी कहकर ही बुलाती।  
थोड़ी बड़ी हुई तो मम्मी से ऐसे सवाल करने का वक्त ही नहीं मिलता। मैं पढ़ाई में व्यस्त हो गई थी और आज वही सवाल फिर से उठ रहा है।”  
उसी समय माही बाहर आकर अपने कपड़े पहनने लगी। उसने कपड़े पहनने के बाद मेरी तरफ देखकर कहा – “कैसी लग रही हूँ मैं?”  
जिद की नजर माही पर नहीं थी। इसलिए वह एक झटके से चेहरा इधर-उधर घुमा कर उसकी तरफ देखती है। थोड़ा सांस लेकर वह बोली – “हम्म... ओह... हां तू तो बहुत अच्छी लग रही है।”  
माही खुश होकर अपनी वाइट शर्ट को थोड़ा टाईट करके इनसर्ट करती है और उस पर काला सूट पहनकर खुले बाल बांधकर तैयार हो जाती है।  
जिद ने हमेशा सादे कपड़े पहने थे। वह अभी नई आई थी इसलिए उसे थोड़ा समय लगेगा सब कुछ स्वीकारने में। फिर दोनों नीचे जाकर किचन में जाती हैं।  
पूरा किचन बिखरा पड़ा था। कल रात की पार्टी के कारण किचन की हालत किसी कचरा पेटी जैसी हो गई थी। उस कचरे में से माही ने टोस्ट मशीन ढूंढकर उसे चालू कर दिया। उसी समय माही की मम्मी अंदर आकर दोनों को चाय बना कर देती है। माही और जिद डाइनिंग टेबल पर बैठकर नाश्ता करने लगती हैं।  
उसी समय माही की मम्मी पास में खड़ी थी इसलिए माही अपनी मम्मी से एक सवाल पूछती है – “मम्मी, सुबह-सुबह देखा गया सपना क्या सच होता है?”  
“हां जब तक मुझे याद है, मैंने बहुत सारे लोगों से सुना है कि सुबह का सपना हमेशा सच होता है।”  
“लेकिन क्या सब ही सच होते हैं?”  
जिद से रहा नहीं गया तो वह एकदम से बीच में बोल पड़ी।  
“वो तो जैसी जिसकी मान्यता। हालांकि, मैं खुद उसमें बहुत कम मानती हूँ बेटा।”  
नाश्ता करके माही और जिद खड़ी हुईं। दोनों अपनी फाइल और बड़ा पर्स लेकर निकल गईं। पहले तो दोनों दार्जीपाड़ा से निकलकर बीडन स्ट्रीट हेड ऑफिस पहुंचती हैं। वहां वे तार का एक कागज लेकर पूरा लेकिन छोटा-सा पता लिखती हैं। समय और शब्दों की गिनती भी करती हैं और ये सब करने के बाद वे तार भेजती हैं।  
जब तक जिद तार भेजने की प्रक्रिया में थी, तब तक माही वहां बैठे दो व्यक्ति, जो सेवा में थे और जिनकी उम्र शायद अब रिटायर होने की थी, उनकी बात सुन रही थी। वे बंगाली भाषा में बात कर रहे थे और काफी समय बंगाल में रहने के कारण माही को वह भाषा समझ आ गई थी। वे बंगाली भाषा में कुछ ऐसा बोल रहे थे –  
“एक लंबी मूंछों वाले व्यक्ति ने अपनी सफेद मूंछों को ताव देते हुए अपनी पास बैठी कुर्सी पर बैठे नमुस्ये से कहा – 'जब मैं इस नौकरी में आया था तब इसका जमाना था और मेरे दादाजी तो खुश होकर उसी दिन मेरे लिए बहू देख लाए।'”  
“अरे...! तेरी तो क्या किस्मत थी। मुझे पता चला कि मैं इसमें लग गया। उसी दिन मैं तो अपने बगल के गांव की रेखा को लेकर भाग गया।” नमुस्या बोला।  
लंबी मूंछों वाले ने उसकी बात सुनकर हँसते हुए कहा – “भले ही अंग्रेजों ने हमें गुलाम बनाया लेकिन इन राजाओं से तो छुटकारा मिला। वही शिक्षा लेकर आए और गांधीजी जैसे को जगाया। वरना राजा तो बगल के गांव की सरहद पार करते ही युद्ध कर देते।”  
“पढ़ाई से याद आया। जब मैं अंग्रेज जेम्स की मदद से आवेदन लिखकर आया की ऑफिस पहुंचा। तब उस अंग्रेज साहब ने मुझसे एक सवाल पूछा।” नमुस्या बोला।  
“अरे! क्या सवाल पूछा उसने?” लंबी मूंछों वाला चौंकते हुए बोला।  
“वह तो अंग्रेजी में बोल रहा था लेकिन बगल वाला हमारी भाषा में बोला – भारत में तार सेवा कब शुरू हुई, पता है?”  
लंबी मूंछों वाला सोचते हुए पूछता है –  
“फिर तूने क्या जवाब दिया?”  
“मैं... कुछ कह ही नहीं पाई थी जब ऐसा सवाल सुना।”  
लेकिन बगल में खड़े एक भले इंसान ने मुझे धीरे से कहा – “5 नवम्बर 1850।”  
और मैंने वही बोल दिया। बस फिर तो घर भी नहीं गया, सीधा तुम्हारी भाभी को लेकर आता रहा।”  
दोनों हँसने लगे और आखिर में दोनों एक साथ बोले – “अब बस रिटायर होने का इंतजार है।”  
माही की नजर उनसे हट गई। वे दोनों ऑफिस की ओर निकल पड़ीं।  
लगभग बिल्कुल समय पर ऑफिस पहुंचीं। श्रेया के पास आज समय नहीं था। उसने अपनी असिस्टेंट रिहाज़ को कह दिया था कि जब जिद आए तो उसकी फाइल मेरी टेबल पर रख देना।  
इसलिए उनके आते ही रोमियो उनके सामने आया।  
जिद का मुंह बिगड़ गया था क्योंकि अब पूरे दिन उसे इस डफर का चेहरा देखना पड़ेगा।  
वह उनकी तरफ चलते हुए आ ही रहा था कि अचानक उसे कोई काम याद आया और वह बगल की सीढ़ी से नीचे जाने लगा।  
जिद ने राहत की सांस ली। माही और जिद श्रेया के ऑफिस गईं लेकिन वह वहां नहीं थी, तो दोनों अपने काम में लग गईं।  
जिद अपने अकाउंट ऑफिस में एंट्री करती है। अंदर जाते ही वह अपना कंप्यूटर स्टार्ट कर देती है। सायना उसके पीछे वाली डेस्क पर बैठी थी और जिद को देखकर वह उसकी बगल की खाली डेस्क की तरफ देखकर वहां आ जाती है।  
“यह कंप्यूटर तो हमारी सदी के टॉप कंप्यूटर हैं न!” सायना ने बात शुरू की।  
जिद उसकी तरफ देखकर बोली – “हां, कंप्यूटर तो बहुत अच्छे हैं। ये कंप्यूटर तो हमारी कॉलेज में केवल प्रिंसिपल के ऑफिस में ही देखने को मिलता था।”  
सायना अपनी शर्ट के साथ बंधी टाई को ठीक करते हुए बोली – “हां, ये सारे कंप्यूटर बहुत कीमती हैं। जिन्हें पूरे ऑफिस में सिर्फ हम ही चला सकते हैं।”  
जिद सायना की तरफ आश्चर्य से देखते हुए एक सवाल करती है – “मैं सोच रही हूँ कि इतना अच्छा गुजराती तो कोई गुजराती भी बोलने में हिचके। जब तू बांग्लादेशी होते हुए भी इतना अच्छा गुजराती जानती है। यह बात बड़ी हैरान करती है। कहां से सीखा गुजराती?”  
जिद का सवाल सायना के दिल को छू गया। जैसे अब उसे जीने की एक नई आशा मिल गई हो, वह बोली – “एक सच्चे गुजराती से।”  
“सच्चा गुजराती?”  
जिद चौंकते हुए बोली।

***