सुबह की पहली रोशनी
सुबह की हल्की सुनहरी किरणें खिड़की के पर्दों से छनकर कमरे में दस्तक दे रही थीं। समीरा की आँखें धीरे-धीरे खुलीं। कुछ सेकंड तक वह छत की तरफ देखती रही, जैसे कोई सपना देखने के बाद हकीकत में लौटने की कोशिश कर रही हो।
रात का हर लम्हा अब भी उसके ज़ेहन में ताज़ा था—सड़क पर दौड़ती स्पोर्ट्स बाइक, ठंडी हवा की छुअन, दानिश की वो शरारती मुस्कान, और फिर वो कागज़ का टुकड़ा…
उसने करवट ली और तकिए के नीचे हाथ डाला। कागज़ अब भी वहीं था। उसने धीरे से उसे निकाला और खोलकर देखा। वही शब्द—
"अगर कभी ये रात याद आए, तो जान लेना कि कुछ एहसास वक्त से परे होते हैं।"
समीरा की उंगलियां कागज़ के किनारों को हल्के से सहलाने लगीं। उसके होंठों पर एक मुस्कान तैर गई, लेकिन अगले ही पल उसने खुद को संभाला।
"ये सब बस एक रात की बात थी... इससे ज़्यादा कुछ नहीं।"
वह खुद को यही समझाने की कोशिश कर रही थी, लेकिन कहीं न कहीं, उसके दिल के किसी कोने में दानिश की कही बातें गूंज रही थीं।
थोड़ी देर तक बिस्तर में लेटे रहने के बाद उसने अपनी आँखें बंद कीं और लंबी सांस ली।
"अब उठना चाहिए।"
शावर के बहते पानी में घुलती यादें
समीरा ने आलस छोड़कर खुद को बिस्तर से खींचा और बाथरूम का दरवाज़ा बंद कर लिया। जैसे ही उसने शॉवर ऑन किया, गर्म पानी की धार उसके कंधों से टकराई, और ठंड के एहसास को धीरे-धीरे भाप में बदल दिया।
पानी की हर बूंद के साथ उसे रात के लम्हे और गहराई से याद आने लगे।
कैसे उसने झिझकते हुए दानिश के कंधे पर हाथ रखा था…
कैसे उसकी धड़कनों की रफ्तार बाइक के स्पीड से मेल खाने लगी थी…
कैसे उस सुनसान सड़क पर खड़े होकर उन्हें पहली बार एक-दूसरे की मौजूदगी का असली एहसास हुआ था…
पानी उसके गीले बालों से होता हुआ उसकी पीठ पर बह रहा था, और उसकी आँखें अनजाने ही बंद हो गईं।
"क्या सच में कुछ एहसास वक्त से परे होते हैं?"
उसने हल्की मुस्कान के साथ अपने होंठों को भींचा और धीरे से सिर झटक दिया, जैसे खुद को इन खयालों से बाहर निकालने की कोशिश कर रही हो।
गहरी सोच और अनकही बातें
समीरा ने हाथ बढ़ाकर शैंपू उठाया और अपनी उंगलियों से बालों में लगाने लगी। झाग उसके गीले बालों में फैलने लगे, लेकिन उसके ज़ेहन में अब भी वही सवाल थे।
"क्या दानिश के लिए भी ये सब कुछ उतना ही खास था, जितना मेरे लिए?"
"क्या उसने भी मेरी आँखों में वही देखा, जो मैं उसकी आँखों में देख रही थी?"
गर्म पानी लगातार बह रहा था, और उसके साथ जैसे उसकी उलझनें भी बहती जा रही थीं।
समीरा को याद आया कि जब दानिश ने उसे अपनी जैकेट दी थी, तो उसके स्पर्श में एक अलग ही गर्माहट थी। वो एक मामूली इशारा था, लेकिन शायद सिर्फ़ एक इशारा ही काफी था।
उसने धीरे से अपने कंधों को सहलाया, जैसे अब भी वहाँ दानिश की जैकेट का एहसास बचा हो।
"क्या सच में कुछ चीज़ें नाम के मोहताज नहीं होतीं?"
खुद से मुलाकात
शावर बंद करने के बाद समीरा ने तौलिए से अपना चेहरा पोछा। शीशे में उसकी हल्की गुलाबी गालों वाली तस्वीर झलक रही थी।
उसने खुद को गौर से देखा।
आँखें… शायद थोड़ी अलग चमक रही थीं। होंठ… जैसे खुद ही हल्की मुस्कान में ढल गए थे।
"क्या ये सिर्फ़ एक खूबसूरत याद थी, या कुछ और?"
उसने हल्के से अपने बालों को पीछे किया और गहरी सांस ली।
"शायद जवाब अभी जरूरी नहीं।"
फिर उसने मुस्कराते हुए खुद से कहा—
"लेकिन हाँ, कुछ एहसास वाकई वक्त से परे होते हैं।"
नई सुबह, नई सोच
समीरा ने शॉवर से बाहर आकर तौलिए से अपने बालों को हल्के-हल्के रगड़ा। पानी की बूंदें अब भी उसकी त्वचा पर ठहरी हुई थीं, लेकिन उसके अंदर जो हलचल थी, वह ठहरने का नाम नहीं ले रही थी। शीशे में अपनी हल्की गुलाबी गालों वाली छवि को देखकर वह एक पल को ठिठकी। उसके चेहरे पर बीती रात की परछाइयाँ अब भी मौजूद थीं, और शायद यही वजह थी कि उसकी आँखों में एक अनजानी सी चमक थी।
उसने मुस्कराकर खुद को शीशे में देखा।
"अब वक्त है आगे बढ़ने का।"
अपने मन को समझाते हुए वह वार्डरोब की ओर बढ़ी।
कॉलेज के लिए तैयार होना
उसने अलमारी का दरवाजा खोला तो अंदर उसकी ढेरों कपड़ों की तहें करीने से सजी हुई थीं। हाथ बढ़ाकर उसने हल्के नीले रंग का कुर्ता निकाला, जिस पर सफेद कढ़ाई थी। इसे पहनकर वह सहज महसूस करती थी, जैसे यह उसके व्यक्तित्व की ही एक झलक हो।
कुर्ते के साथ उसने सफेद लैगिंग्स पहनी और फिर अपने दुपट्टे को कंधे पर अच्छे से जमाया। कपड़ों का चुनाव करते समय एक पल के लिए उसका मन डगमगाया—क्या अगर वह वही जैकेट पहन ले जो दानिश ने उसे रात को दी थी? लेकिन फिर उसने खुद को टोका।
"नहीं, यह सिर्फ़ एक रात की बात थी…"
उसने जैकेट को वहीं छोड़ दिया और अपने कपड़ों की सलवटें ठीक करते हुए सामने पड़ी घड़ी की ओर देखा।
"ओह! साढ़े आठ बज गए! जल्दी करना पड़ेगा!"
तैयारी की हलचल
अब बारी थी बालों की। समीरा ने अपनी हेयरब्रश उठाई और अपने गीले बालों को सुलझाने लगी। हर बार जब कंघी उसके बालों में फिसलती, वह हल्की-सी सिहर उठती। शायद यह ठंडे बालों की नमी का असर था, या फिर दानिश की यादों की गर्माहट।
उसने हल्का-सा ब्लो ड्रायर चलाया और अपने खुले बालों को सुखाया। बाल अब हल्के लहराते हुए उसकी पीठ पर गिर रहे थे। फिर उसने अपने पसंदीदा चांदी की छोटी-छोटी झुमकियाँ पहनीं, जो हल्की हवा में हौले-हौले हिल रही थीं।
ड्रेसिंग टेबल पर रखी छोटी सी डिब्बी से उसने अपनी पसंदीदा काजल पेंसिल उठाई और अपनी आँखों के किनारों पर हल्का-सा काजल लगाया।
"बस हो गया!"
लेकिन फिर भी, उसे कुछ अधूरा-सा महसूस हुआ। क्या कुछ छूट रहा था?
माँ की पुकार और नाश्ते की जल्दी
"समीरा! जल्दी आओ, नाश्ता कर लो!"
राधा की आवाज़ सुनकर समीरा ने घड़ी की ओर देखा—साढ़े आठ बज चुके थे और उसे जल्दी निकलना था। उसने फटाफट अपना बैग उठाया और मोबाइल चेक किया। कोई नया मैसेज नहीं था। दानिश से भी नहीं।
दिल के किसी कोने में हल्की-सी कसक हुई, लेकिन उसने तुरंत खुद को समझाया—"ये सब बेवजह सोचने की बातें हैं।"
वह जल्दी-जल्दी सीढ़ियाँ उतरकर डायनिंग टेबल तक पहुँची। राधा पहले से ही उसके लिए आलू पराठे और एक कटोरी दही रख चुकी थीं।
"इतनी जल्दी क्यों मचा रखी है? आराम से खा लो," राधा ने प्यार से कहा।
"माँ, देर हो रही है, मैं रास्ते में कुछ खा लूँगी," समीरा ने जल्दी से एक निवाला तोड़ा और मुँह में डाल लिया।
राधा ने उसकी परेशानी को भाँप लिया।
"सब ठीक तो है न?"
समीरा ने जबरदस्ती मुस्कुराकर कहा, "हाँ माँ, सब ठीक है!"