(सूर्यास्त का समय है, सूरज पूर्व से पश्चिम की यात्रा पूरी कर चुका है। अपनी इस यात्रा में उसने अनगिनत कहानियों की शुरुआत होते देखी होगी और कई कथाओं का अंत भी उसने देखा होगा। वह हर एक पल में रोया भी होगा और हर क्षण में हँसा भी होगा। यह उसका रोज़ का काम था। परंतु आज वही सूरज निराश होकर ढल गया था और चाँद को भी आने से मना कर दिया था। कौन जाने, शायद आज उसे किसी कहानी का अंत पसंद नहीं आया हो या राम जाने, उसने चाँद को भी साफ़ मना कर दिया था।)
रात लगभग आठ बजे ही घना अंधेरा छा गया था। आकाश बादलों से ढँक गया था। उस रात हवा भी जैसे दुःख जता रही हो, उसकी रफ्तार तेज होती जा रही थी। अमावस की उस रात में एक सुंदर लड़की, जिसने आच्छा रख्या रंग की चनिया-चोली पहन रखी थी, सड़क पर चल रही थी। पूर्णिमा की चाँदनी की चमक जैसे उसके आस-पास चमक रही थी। वह कन्या जैसे चाँद को भी पछाड़ दे, ऐसा श्रृंगार किए हुए रास्ते पर चल रही थी। सड़क के दोनों ओर लगे स्ट्रीट लाइट का उजाला जब उसकी चनिया-चोली पर पड़ता, तो वह लाइटें भी फीकी लगने लगती थीं। जैसे आसमान से नीचे उतरी हुई चाँदनी आज सूने रास्ते पर अकेली निकल पड़ी हो, ऐसा प्रतीत हो रहा था। शायद वह चाँदनी किसी की शादी से या किसी बड़े फंक्शन से लौट रही हो। उसके 'ऊँची हील के सैंडल' उसके चलने की रफ्तार में बाधा डाल रहे थे। गर्मी के मौसम में हवा के झोंके उसके सामने से आ रहे थे और वे हवा उसके बालों को उड़ाकर बिखेरने की असफल कोशिश कर रही थी। उसकी तेजी से घूमती नजरें देखकर ऐसा लग रहा था कि वह किसी मुसीबत में है। उसके एक हाथ में पर्स और दूसरे हाथ में लाल रंग के कवर वाली एक किताब थी।
उसी समय अचानक ही उसकी सामने एक काले रंग की गाड़ी आकर रुकी और बिलकुल उसके पास आकर हॉर्न बजाया। गाड़ी की लाइट से उसकी आँखें चौंधिया गईं, गाड़ी में कौन है, वह दिखाई नहीं दे रहा था। हॉर्न की आवाज़ सुनकर वह घबराकर पीछे की ओर दौड़ने लगी और तभी उस कार की ड्राइवर सीट की खिड़की से एक लंबी बालों वाली, चश्मा पहने सुंदर लड़की ने मुँह बाहर निकालकर ऊँचे स्वर में पुकारा, "जीद... मैं हूँ माहि। रुकी रह जा!"
जीद के कानों में आवाज़ पहुँचते ही वह धीमी पड़ गई।
माहि बोली, "क्यों आज डर के भाग गई? स्कूल में तो बहुत बड़ी-बड़ी बातें करती थी, रुक जा। मैं ही हूँ।"
उसकी आवाज़ सुनकर जीद रुक जाती है और तुरंत ही गाड़ी की तरफ दौड़ने लगती है। जीद गाड़ी का दरवाज़ा खोलकर फौरन अंदर बैठ जाती है।
काफी समय बाद जीद और माहि फिर से मिले थे। माहि, जीद को देखकर अपनी आँखों से बहते आँसुओं को रोककर बोली, “आर यू फाइन?”
माहि उसे हाई-हैलो नहीं कहती, सीधा उसकी तबीयत के बारे में पूछती है। वह भी अंग्रेज़ी में। जबकि वह अभी-अभी कोलकाता से पाटन आई थी। उसे नहीं पता कि जीद के साथ क्या हुआ है।
जीद सिर हिलाकर “हाँ!” कहती है और अचानक ही आँखें नीचे करके जीद कहती है, “तो चलें अब अहमदाबाद?”
माहि, जीद को आश्चर्य से देखकर फिर बोली, “और मेरी आंटी के घर नहीं जाना है?”
“तू तो मुझे लेने ही आई थी और मैं तो तेरे साथ ही हूँ।” जीद माहि को घबराहट में जवाब देती है।
जीद का चेहरा फीका पड़ गया था। शरीर भी काँप रहा था। जीद की हालत देखकर माहि कोई और सवाल नहीं करती। उसकी बात मानकर माहि एक हाथ स्टेयरिंग पर और दूसरा हाथ गाड़ी के गियर पर रखकर हँसते हुए बोलती है, "हां! ऑन द वे अहमदाबाद।"
जीद ने अपना पर्स गाड़ी की पिछली सीट पर रख दिया लेकिन वह किताब उसने अपने पास ही रखी। गाड़ी में पानी की बॉटल थी। जीद ने उस बॉटल से सारा पानी पी लिया। उसके हाथ अभी भी काँप रहे थे। माहि ने चलती गाड़ी में अपना एक हाथ जीद के माथे पर रखा। जीद का माथा गर्म था, मतलब उसे बुखार था। उसकी सुंदर आँखों का रंग बदल गया था। आँखें गहरे लाल रंग से भर गई थीं। जीद बार-बार अपने हाथ में रखी उस किताब को खोलने की कोशिश करती, लेकिन किसी कारणवश रुक जाती।
माहि ने जीद से बात करना शुरू किया।
“जीद! तू रुही की शादी से कितने बजे निकली?”
“अभी एक घंटा पहले ही निकली।” जीद माहि की तरफ अपनी गहरी लाल आँखों से देखती हुई बोली।
“क्या रुही ने मुझे याद किया था?” माहि अपनी नजरें रास्ते पर रखे हुए ही बोली।
जीद थोड़ी मुस्कुरा कर बोली, “हाँ, वो तो तुझसे नाराज़ है। रुही तो कह रही थी, मैं माहि को छोड़ूँगी तो नहीं! स्कूल में जब सबसे आखिर में आती थी, तब मैं ही उसे बचाती थी और आज मेरी शादी में आने का उसके पास टाइम नहीं है? नहीं छोड़ूँगी उस चश्मिश को।”
माहि जीद की तरफ तीखी नजर से देखकर थोड़ी झिझक कर बोली, “मुझे तो लगता है, जीद! उसी ने उसे चढ़ाया होगा। नहीं तो रुही कभी मुझसे नाराज़ ही नहीं होती।” इतना कहकर वह पीछे से थोड़ी मुस्कुराई। माहि के दाहिने गाल में हँसी की वजह से गड्ढा पड़ रहा था, लेकिन जीद उसकी बाईं तरफ बैठी थी।
जीद नखरे से थोड़ी नाराज़ होकर अपनी लाल आँखों से बचती हुई एक लंबी साँस लेकर बोली, “एक तो तुझे सच्चाई बताऊँ और तू सब मुझ पर ही थोपे। तू तो अब भी नहीं सुधरी, ये तो वैसा ही है जैसे ‘कुत्ते की पूँछ चाहे जैसे भी बांधो, टेढ़ी की टेढ़ी।’ और एक मैं हूँ कि तुझे रुही के सामने अच्छा दिखाती रही।”
माहि जीद की तरफ देखकर हँसकर बोली, “ओके... ओके। छोड़। तू तो उससे भी ज्यादा नाराज़ हो गई। (थोड़ा सोचकर।) ओह हाँ! तू तो मिस हॉट की फेवरेट स्टूडेंट थी ना!” इतना कहकर माहि जोर से हँसने लगी।
“हम्म... तुझे तो मेरी सब बातें पता ही हैं!” उसकी बात सुनकर जीद शांत होकर बोली।
“हाँ! मैं तो चेक कर रही थी कि तू वही जीद है ना, जिसे मैं छोड़कर गई थी।”
“नहीं... मैं अब बदल गई हूँ।”
“हाँ, वो तो मैंने देख लिया।” माहि जीद की तरफ मुँह करके फिर हँसने लगी।
जीद माहि को याद दिलाते हुए आँखें उठाकर बोली,
“तू नहीं सुधरी, याद है ना जब हम छोटी थीं, तेरी ऐसी ही शरारतों की वजह से तेरे पाँच जोड़ी चश्मे टूट गए थे!”
“हाँ, कैसे भूल सकती हूँ! वो मेरे अंकल ने मेरे लिए कोलकाता से मँगवाए थे।”
जीद माहि की ओर देखकर आँखों में नमी भरकर बोली, “सच में तू कोलकाता में खुश है?”
“क्यों, तुझे गुजरात छोड़ने का मन नहीं करता?” माहि थोड़ी कठोर होकर रास्ते पर नजर टिकाकर बोली।
थोड़े अफ़सोस के साथ लंबी साँस लेकर जीद बोली, “हाँ! मुझे तो यहीं रहना था। जहाँ मेरा बचपन बीता, जहाँ मेरी सभी सहेलियाँ मुझे मिली थीं। लेकिन, समय के साथ वे सभी बिखर गईं। एक चश्मिश कोलकाता चली गई, एक मुंबई शादी करके निकल गई, आख़िर में मैं और रुही ही बचे थे और आज वो भी चली जाएगी।”
माहि भी जीद की ओर देखती है। दोनों की आँखों में पुरानी यादें थीं। माहि अपने साँसों की गति धीमी करके मुँह की लार को गले में उतारकर बोली, “तुझे बुखार है। दो-तीन दिन रुही की शादी में खूब मजा किया होगा तुम सबने। इसलिए अब ज़्यादा मत सोच और सो जा, बाद में सब बात करेंगे।”
जीद थक चुकी थी, इसलिए सिर हिलाकर सो गई। माहि के मन में भी कई सवाल उमड़ रहे थे। (जीद ऐसे अकेली रास्ते पर क्यों? उसने आंटी के घर जाने से इनकार क्यों किया?)
उसके बाद लगभग लगातार तीन घंटे गाड़ी चलाने के बाद वे अहमदाबाद पहुँच गए। रात के ग्यारह बजे उन्होंने अहमदाबाद में प्रवेश किया। वे सीधे चाँदखेड़ा होते हुए नवरंगपुरा पहुँच गए। वहाँ उसके अंकल का एक फ्लैट चांदरौड़ी सोसाइटी में था। माहि ने चांदरौड़ी में गाड़ी मोड़ी। उसकी नजर मारुति बिल्डिंग को ढूँढ रही थी। उस बिल्डिंग में तीसरी मंज़िल पर उसके अंकल का फ्लैट था। माहि को मारुति बिल्डिंग दिखी और जैसे ही उसने गाड़ी बिल्डिंग की ओर मोड़ी, तभी गाड़ी किसी चीज़ से टकरा गई और गाड़ी का एक टायर किसी वस्तु पर चढ़ गया हो जैसे *फच...* की आवाज़ आई और टायर ने किसी चीज़ को कुचल दिया।
माहि ने तुरंत ब्रेक मारा और गाड़ी रोक दी।
ब्रेक लगते ही जीद अचानक जाग गई और माहि की तरफ देखने लगी।
जीद कुछ बोले उससे पहले उसकी नजर माहि की पीछे की सीट के काँच पर पड़ी और उसके मुँह से चीख निकल गई, “आ...आ..अ काँच पर खून…!!”
इतना कहकर वह झट से दरवाज़ा खोलकर बाहर निकल गई। माहि भी उसके पीछे-पीछे बाहर आ गई।
तभी माहि ने देखा कि उसकी गाड़ी के नीचे एक बिल्ली आ गई थी।
माहि ने भी अपनी नाक पर हाथ रख लिया।
“ओह नो… ये मुझसे क्या हो गया।” अफसोस से माहि बोली।
जीद ने माहि को सँभालते हुए घर चलने का इशारा किया और माहि धीरे-धीरे गाड़ी में बैठ गई।
दोनों माहि के अंकल के फ्लैट में पहुँचे। गाड़ी नीचे पार्क करके वे दोनों जल्दी से तीसरी मंज़िल तक सीढ़ियों से पहुँच गईं।
फ्लैट का दरवाज़ा खोलकर माहि ने पहले लाइट के लिए दरवाज़े की बाईं ओर लगे बोर्ड का पहला स्विच ऑन किया। लेकिन लाइट नहीं हुई, तो उसने पास वाला स्विच दबाया और एक नाईट लैम्प जैसी बल्ब जली। माहि ने सारे स्विच दबा दिए लेकिन मुख्य लाइट नहीं हुई। अब छोटी लाइट में ही जीद अंदर आई और अपने हाथ में रखी किताब को माहि के बैग में रख दिया।
सोफे के पास रखी एक छोटी घड़ी देखकर जीद ने फ्लैट में पड़ी घड़ी में टाइम सेट करके अलार्म लगाने को कहा।
दोनों बहुत थक चुकी थीं और नींद भी आ रही थी, इसलिए कुछ कहे या देखे बिना वहीं सोफे पर सो गईं।
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