Samrat- unaware of his truth - 3 in Hindi Anything by Khushwant Singh books and stories PDF | सम्राट- अपने सच से अनजान - 3

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सम्राट- अपने सच से अनजान - 3

पिछली कहानी में हमने पढा़ था कि प्रीत, विजय और वियांशी इंदौर की एक मशहूर यूनिवर्सिटी में अपना एड़मिशन करवाने आए थे। वे तीनों जब प्रिंसिपल से मिलकर ओफिस से बाहर निकलते है तो प्रीत अचानक किसी से टकरा जाती हैं।

अब आगे...........
 
                प्रीत जैसे ही सामने से आ रहे अजनबी से टकराती है तो उसके (सामने वाले व्यक्ति के) हाथ में कुछ पेपर्स थे जो टक्कर की वजह से ज़मीन पर बिखर जाते हैं। प्रीत और वो अजनबी अब ज़मीन पर बिखरे पेपर्स उठाने लगते हैं। प्रीत जैसे ही पेपर्स इकट्ठे करके खडी़ होती है तो वो देखती है कि जिससे वो अभी टकराई थी वो एक लड़की थीं। वो लड़की दिखने में प्रीत जितनी ही सुंदर थीं, ब्लू जींस व व्हाईट शर्ट पहनी हुई व शर्ट को थोडा़ फॉल्ड किये हुए, हाथ में ब्रांडे़ड़ वॉच, उसके खुले लंबे व घने बाल, पैरों में हाई हिल्स और उसकी आँखों पर लगा काला उसकी खूबसूरती को चार चाँद लगा रहे थे। प्रीत ने वो सारे पेपर्स उस लड़की को पकडा़ते हुए बोली- आय एम सो सॉरी! मैंने आपको सामने से आते हुए नहीं देखा और हमारी टक्कर हो गयी। तभी वो लड़की अपनी आँखों से ग्लासेज हटाते हुए प्रीत से बोली- इट्स ओके! इसमें आपकी ही नहीं मेरी भी गलती है मैंने भी आपको सामने से आते नहीं देखा। यह कहकर प्रीत और वो लड़की दोनों मुस्कुरा देती हैं। तभी प्रीत अपना दायाँ हाथ आगे बढा़ते हुए- हाए! मायसेल्फ अक्शीता सिंह राजपुत।नाईस टू मीट यू। तभी वो लड़की भी सामने अपना हाथ आगे बढा़ते हुए- हैलो! मायसेल्फ आयांशी सिंह चौहान। नाईस टू मीट यू टू। फिर प्रीत, आयांशी को विजय और वियांंशी से भी मिलवाती हैं। बातों ही बातों में उन तीनों को पता चलता है कि आयांशी भी उसी यूनिवर्सिटी में एड़मिशन लेने आयी है। वे चारों एक ही क्लास के स्टूडेंट हैं। वे सभी बातें कर ही रहे थे कि तभी प्रीत का फोन बजने लगता है। वो देखती है कि उसके फोन पर माँ का कॉल आ रहा था। वो कॉल रिसीव करती है तभी सामने से नैना जी की आवाज आती है- प्रीत बेटा, तुम तीनों का एड़मिशन हो गया ना। कोई तकलीफ तो नहीं हुई। तभी प्रीत- हाँ माँ, हमारा एड़मिशन हो गया है और हमें कोई तकलीफ नहीं हुई। आप चिंता मत कीजिए हम अभी घर के लिए निकल ही रहे हैं। यह कहकर प्रीत कॉल कट कर देती हैं। और विजय से बोलती है- विजय, तुम भाईसाहब को कॉल करके पूछो कि वो अपनी मीटिंग से फ्री हो गये क्या?? यह सुनकर विजय प्रीत को एक हैरानी की नज़र से देखने लगता है। विजय को ऐसे देख प्रीत थोडी़ कन्फ्यूज हो जाती है पर वियांशी की हँसी निकल जाती है और वो प्रीत से बोलती हैं- दी, आप तो जानती ही हैना कि विजय को भाईसाहब से कितना ड़र लगता है और आप उसे सम्राट भाईसाहब कॉल करने को कह रहे हो। यह सब सुनकर आयांशी थोडी़ कन्फयूज होती है और प्रीत से बोलती है- अगर आपको बुरा न लगे तो क्या मैं ये जान सकती हूँ कि ये सम्राट कौन है और ये विजय उनसे इतना क्यों ड़रते है??? तभी प्रीत आयांशी को बताती है कि सम्राट उसके बडे़ भाईसाहब हैं। वे थोडे़ गुस्से वाले है पर दिल के बहुत अच्छे है। एक बार भाईसाहब ने विजय को डाँट दिया था तब से विजय को उनसे थोडा़ ड़र लगता हैं। यह सुनकर आयांशी हँस देती हैं और विजय को कहती है आपका नाम तो विजय है पर आप तो मुझे थोडे़ ड़रपोक लगते हो! आई मीन आप अपने बडे़ भाई से इतना ड़रते हो। वो कोई बाबर की तोप है क्या??? यह कहकर आयांशी फिर से हँसने लग जाती हैं। फिर प्रीत सम्राट को कॉल लगाती है पर सम्राट कॉल रिसीव नहीं करता है। सम्राट के कॉल रिसीव न करने पर प्रीत कुछ सोचने लग जाती हैं। 





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