Tere ishq mi ho jau fana - 24 in Hindi Love Stories by Sunita books and stories PDF | तेरे इश्क में हो जाऊं फना - 24

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तेरे इश्क में हो जाऊं फना - 24

😃 हैलो गाईज यहाँ मैं आपसे कहना चाहती हूं मैं बताना चाहती हूं कि मैं एक दूसरे ऐप जिसे स्टोरी मिनिया कहते हैं उसे पर भी बहुत सारी अच्छी-अच्छी कहानी लिखती हूं रोमांटिक नॉवेलस, तो अगर आपको मेरी यह नॉवेल अच्छी लग रही है तो वह भी बेहद अच्छी लगेगी तो अगर आपका मन हो तो आप जरूर उसे ऐप को डाउनलोड करके बड़े आराम से वह कहानी पढ़ सकते हैं   please सपोर्ट करें स्टोरी मिनिया पर आकर वह सभी नोवेल्स पद के इंजॉय भी करें और मुझे सपोर्ट भी करें धन्यवाद 🙏💕

 

दानिश का गुस्सा—एक खौफनाक साज़िश

घड़ी की टिक-टिक केबीन में गूंज रही थी। एक बड़ी सी चमचमाती शीशे की टेबल के सामने, काले कोट में खड़ा शख्स सिर झुकाए खड़ा था। उसकी हथेलियों में पसीना आ गया था, लेकिन उसने हिम्मत नहीं हारी। उसके सामने, चमड़े की आरामदायक कुर्सी पर बैठा था दानिश—एक खतरनाक और बेइंतहा गुस्सैल लग रहा था, जिसकी नज़रों में सिर्फ जुनून था।

दानिश की मुट्ठियां भिंच चुकी थीं। उसकी आंखों में खून उतर आया था। टेबल पर रखा फोन उसकी पकड़ में था, स्क्रीन पर वही वीडियो चल रही थी—समीरा और अनमोल बारिश में भीग रहे थे, एक-दूसरे की हंसी में खोए हुए। बारिश की बूंदों से समीरा के बाल चिपक गए थे, उसकी आंखों में मासूमियत थी, और अनमोल उसे देखकर मुस्कुरा रहा था।

“ये हरगिज़ बर्दाश्त नहीं कर सकता मैं!”

दानिश गुस्से में बिफर पड़ा। उसने टेबल पर ज़ोर से मुक्का मारा। उसकी सांसें तेज़ हो गईं। उसकी नज़रों में नफरत की चिंगारी थी।

"समीरा सिर्फ मेरी है! कोई और उसके करीब कैसे जा सकता है?"

उसका चेहरा लाल हो गया था। उसकी आंखों में आग जल रही थी। उसने फोन से नज़रें हटाकर काले कोट वाले शख्स को देखा।

"कौन है ये लड़का?" उसकी आवाज़ में गरज थी।

काले कोट वाला आदमी कांप उठा। उसने झिझकते हुए कहा, "सर, ये अनमोल है... समीरा के कॉलेज का दोस्त।"

"दोस्त?" दानिश की हंसी कड़वी थी। उसने फोन को ज़ोर से दीवार पर दे मारा। फोन के टुकड़े ज़मीन पर बिखर गए।

"मेरी समीरा के साथ कोई भीग रहा था और तू कह रहा है दोस्त? ये लड़का जिंदा नहीं बचेगा।"

कमरे में सन्नाटा छा गया। बाहर तेज़ हवा चल रही थी, खिड़कियों के शीशे रह-रहकर हिल रहे थे। दानिश उठा, उसकी लंबी कद-काठी उसे और भी डरावना बना रही थी। उसने अपने बालों में हाथ फेरा और धीरे-धीरे चलते हुए खिड़की के पास आकर खड़ा हो गया।

बारिश अब भी हो रही थी। उसकी बूंदें खिड़की के शीशों से टकरा रही थीं। दानिश की आंखें चमक उठीं। उसने मुट्ठी भींच ली और अपनी ठोड़ी पर हाथ रखा।

"मुझे ये लड़का चाहिए… अभी के अभी। इसे पकड़ कर मेरे 'खास' जगह पर लेकर आओ।"

काले कोट वाला आदमी घबरा गया। उसने सर हिलाया और तुरंत कमरे से निकल गया।

दानिश ने एक गहरी सांस ली। उसके चेहरे पर एक भयानक मुस्कान थी। वह वापस अपनी कुर्सी पर बैठ गया और धीरे-धीरे अपनी अंगुलियां टेबल पर बजाने लगा।

"अनमोल... अब तू मेरे गुस्से से नहीं बच पाएगा।"

बारिश की बूंदें और तेज़ हो गईं थीं। दानिश का गुस्सा भी उसी तरह भड़क रहा था, जैसे समुंदर में उठता तूफान।

कमरे की हल्की रोशनी में दानिश की आंखें चमक रही थीं। उसकी उंगलियां अभी भी टेबल पर धीमे-धीमे तबले की थाप जैसी बज रही थीं। बाहर बारिश का शोर बढ़ गया था, लेकिन उसके भीतर का तूफान उससे भी कहीं ज्यादा खतरनाक था।

दरवाजा खुला, और काले कोट वाला आदमी अंदर आया। उसके चेहरे पर हल्की परेशानी थी, मगर उसने खुद को संभाला।

"सर, हम अनमोल तक पहुंच चुके हैं। वो अपने अपार्टमेंट में अकेला है। आपके आदेश का इंतजार कर रहे हैं।"

दानिश की आंखों में क्रूरता आ गई। उसने हल्के से सिर झुकाया और गहरी सांस ली।

"बहुत अच्छे... उसे उठा लो और मेरी 'खास' जगह पर ले आओ। मगर ध्यान रहे—कोई शक न हो। सबकुछ इतनी सफाई से हो कि किसी को भनक भी न लगे।"

काले कोट वाले ने तुरंत सिर झुकाया और बाहर निकल गया।

अनमोल के लिए मौत का बुलावा

रात के करीब दो बजे थे। अनमोल अपने कमरे में बैठा था। खिड़की से बारिश की बूंदें टकरा रही थीं। उसने चाय का एक घूंट लिया और अपनी नोटबुक में कुछ लिखने लगा। अचानक दरवाजे पर दस्तक हुई।

"इतनी रात को कौन हो सकता है?" उसने खुद से कहा।

जैसे ही उसने दरवाजा खोला, दो नकाबपोश आदमी अंदर घुसे और उसकी नाक पर एक कपड़ा रख दिया।

"उम्म्म…!" अनमोल कुछ बोल भी नहीं पाया। उसकी आंखें घूम गईं और वह बेहोश हो गया।

दानिश की 'खास' जगह

अनमोल की आंखें धीरे-धीरे खुलीं। उसका सिर भारी लग रहा था। उसने चारों तरफ देखा—यह एक पुरानी, अंधेरी जगह थी। कमरे में एक बल्ब टिमटिमा रहा था, जिसकी रोशनी पीली और डरावनी थी। दीवारों पर सीलन और फफूंद लगी थी।

"क... कहाँ हूँ मैं?" अनमोल की आवाज़ कांप रही थी।

तभी एक धीमी मगर खतरनाक हंसी गूंजी।

"आखिरकार जाग ही गए तुम।"

अनमोल ने सामने देखा—दानिश कुर्सी पर बैठा था, हाथ में एक गिलास व्हिस्की का। उसके चेहरे पर वहशियाना मुस्कान थी।

"तुम... तुम मुझे यहां क्यों लाए हो?" अनमोल की आवाज में डर था।

"क्योंकि तुमने जो किया, उसकी सजा मिलेगी तुम्हें।"

अनमोल कुछ समझ नहीं पाया।

"क्या मतलब?"

दानिश उठा और धीरे-धीरे अनमोल के पास आया। उसने उसकी ठुड्डी को मजबूती से पकड़ा और उसकी आंखों में झांका।

"समीरा..."

अनमोल की आंखें चौड़ी हो गईं।

"क्या...? समीरा? लेकिन मैंने क्या किया?"

दानिश की आंखों में ज्वालामुखी धधक उठा। उसने एक ज़ोरदार मुक्का अनमोल के पेट में मारा। अनमोल कराहते हुए नीचे गिर पड़ा।

"मेरी समीरा के साथ बारिश में भीग रहे थे? हंस रहे थे? मजे कर रहे थे? तुमने सोचा, मैं ये सब बर्दाश्त कर लूंगा?"

अनमोल ने दर्द से कराहते हुए कहा, "हम सिर्फ दोस्त हैं! समीरा और मैं… कुछ भी गलत नहीं किया मैंने!"

"झूठ!" दानिश ने एक और लात मारी।

अनमोल के होंठों से खून बहने लगा। उसने खुद को संभालने की कोशिश की।

"प्लीज़... मुझ पर भरोसा करो। मैं और समीरा सिर्फ दोस्त हैं।"

दानिश ने गहरी सांस ली। उसके चेहरे पर गुस्सा और जलन का अजीब मिश्रण था।

"मुझे तुम्हारी बातें नहीं सुननी। मुझे बस इतना पता है कि तुमने मेरी समीरा को छुआ।"

दानिश ने अपने आदमियों को इशारा किया।

"इसे रस्सियों से बांध दो।"

समीरा की बेचैनी

उसी समय, समीरा अपने कमरे में थी। उसे कुछ अजीब लग रहा था। दिल बेचैन था, जैसे कोई अनहोनी होने वाली हो। उसने फोन उठाया और अनमोल को कॉल की।

"फोन क्यों बंद है?" उसने बड़बड़ाया।

उसका मन घबरा गया।

"कुछ तो गड़बड़ है।"

दानिश की हदें

अनमोल अब रस्सियों में जकड़ा हुआ था। दानिश ने एक लोहे की छड़ी उठाई।

"अब तुम समझोगे कि मेरी चीज़ों को छूने का अंजाम क्या होता है।"

अनमोल की आंखों में डर था, लेकिन उसने हिम्मत नहीं हारी।

"तुम पागल हो, "

दानिश हंस पड़ा।

"शायद... मगर मैं वही करता हूं जो मुझे सही लगता है।"