"टूटे हुए दिलों का अस्पताल" – फाइनल एपिसोड 02
रात का सन्नाटा अस्पताल में अजीब सी बेचैनी भर रहा था। ऑपरेशन थिएटर की लाल बत्ती जल रही थी, और बाहर खड़े करण, सिया, और बाकी सभी लोगों की आँखों में डर था। अंदर डॉक्टर आदित्य को बचाने की पूरी कोशिश कर रहे थे। हर सेकंड भारी था, हर धड़कन किसी चमत्कार की आस में थी।
भावेश का खेल खत्म?
दूसरी तरफ, भावेश अब भी अपनी जीत के नशे में था। पुलिस अस्पताल के बाहर थी, लेकिन भावेश के आदमी हर तरफ फैले थे। उसने एक बार फिर अस्पताल पर कब्जा जमाने की ठानी थी।
"ये अस्पताल अब मेरा है!" उसने गरजते हुए कहा।
लेकिन उसने नहीं सोचा था कि इस बार आदित्य उसके सामने पहले से ज्यादा मजबूत होकर खड़ा होगा।
आदित्य की वापसी:
डॉक्टरों की मेहनत रंग लाई। ऑपरेशन सफल रहा। आदित्य की आँखें खुलीं, और जैसे ही उसने अपने दोस्तों को देखा, उसे एहसास हुआ कि उसे अभी एक अधूरा काम खत्म करना है।
"अब बहुत हो गया, इस अस्पताल को मैं कभी किसी के नापाक इरादों के हाथों नहीं जाने दूँगा," उसने धीमी आवाज में कहा, लेकिन उसमें अटूट विश्वास था।
वो दर्द में था, लेकिन उठ खड़ा हुआ।
आखिरी जंग:
आदित्य ने करण और सिया को प्लान समझाया। अब वक्त था भावेश से हिसाब चुकता करने का।
भावेश अस्पताल के लॉबी में खड़ा अपने आदमियों से बात कर रहा था जब अचानक पूरे अस्पताल की लाइट बंद हो गई।
"ये क्या हो रहा है?" भावेश चौंका।
अगले ही पल एक स्क्रीन जल उठी। उस स्क्रीन पर भावेश की सारी करतूतें दिखाई जा रही थीं—उसके अपराध, धोखाधड़ी, और अस्पताल को अपने कब्जे में लेने की साजिश।
"ये कैसे हुआ?" भावेश चिल्लाया।
आवाज आई—"खेल खत्म, भावेश!"
आदित्य अपनी पूरी ताकत से सामने आया। करण और सिया ने अस्पताल के सभी कर्मचारियों और मरीजों को सुरक्षित बाहर निकाल दिया था।
भावेश गुस्से में तिलमिला उठा। "तुझे मारने का मौका छोड़ दिया था, ये मेरी गलती थी!" उसने बंदूक तानी।
लेकिन इस बार, आदित्य तैयार था।
आखिरी वार:
भावेश ने गोली चलाई, लेकिन आदित्य तेजी से झुका और पास रखे लोहे के पाइप से सीधे उसके हाथ पर वार कर दिया। बंदूक दूर गिर गई।
अब दोनों के बीच हाथों से लड़ाई शुरू हुई। आदित्य ने अपने अंदर का पूरा गुस्सा निकाल दिया।
"ये अस्पताल मेरी ज़िंदगी है, इसे बर्बाद नहीं होने दूँगा!"
एक ज़ोरदार मुक्के से उसने भावेश को नीचे गिरा दिया।
पुलिस का आगमन:
उसी वक्त पुलिस अंदर आई। भावेश को गिरफ्तार कर लिया गया। उसके सारे गुर्गों को भी पकड़ लिया गया।
अस्पताल में एक नई सुबह हो चुकी थी।
नई शुरुआत:
आदित्य, करण, और सिया ने मिलकर अस्पताल को दोबारा खड़ा करने का फैसला किया। उन्होंने इसे सिर्फ एक अस्पताल नहीं, बल्कि एक उम्मीद की किरण बनाने की ठानी।
अब "टूटे हुए दिलों का अस्पताल" सच में दिलों को जोड़ने वाला बन गया था।
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(THE END - एक नई शुरुआत के साथ)