Chapter 2: टकराव से तकरार तक
मुंबई के बादलों ने उस सुबह भी आसमान को घेर रखा था, जैसे मौसम भी किसी उलझन में था। पर आरव के चेहरे पर हल्की सी मुस्कान थी — उसकी पिछली मुलाकात अब तक ज़हन में ताज़ा थी। वो जानता था, कुछ तो था उस मुलाकात में जो बाकी सबसे अलग था।
वो उसी प्रोडक्शन ऑफिस में एक नई स्क्रिप्ट की पिचिंग के लिए गया था, जहाँ पिछली बार काव्या से तकरार हुई थी। पर आज माहौल थोड़ा अलग था — कमरा वही था, पर उस कमरे में कुछ नया जुड़ गया था। दरवाज़ा खुला और काव्या अंदर आई — पूरी रौनक के साथ, जैसे बारिश में धूप झांक गई हो।
"फिर से मिले," उसने कहा।
"तक़दीर है शायद, या स्क्रिप्ट की ज़रूरत," आरव ने मुस्कुरा कर जवाब दिया।
काव्या ने उसे ध्यान से देखा, "तेरी मुस्कान में ताना कम और ताज्जुब ज़्यादा है आज। सब ठीक?"
"सब तो नहीं," उसने कहा, "पर तू आ गई, तो कुछ बेहतर ज़रूर लग रहा है।"
मीटिंग शुरू हुई, नए प्रोजेक्ट की स्क्रिप्ट पर चर्चा होने लगी। डायरेक्टर ने पूछा, "हम इस बार कुछ फ्रेश और रियल चाहते हैं। कुछ ऐसा जो दिल को छू जाए।"
काव्या ने फौरन कहा, "तब तो आरव की कलम को चलने दो, इसका दर्द असली है।"
आरव थोड़ा हैरान हुआ, फिर बोला, "अभी तक तो मेरी कलम में कमी निकाल रही थी, अब तारीफ़?"
"बात तारीफ़ की नहीं, समझ की है," काव्या ने जवाब दिया, "पहले तुझसे तकरार थी, अब थोड़ा सा तालमेल भी हो गया है शायद।"
वो मीटिंग खत्म हुई, लेकिन आरव और काव्या की बातचीत वहीं से शुरू हुई जहाँ पिछली बार
छूटी थी। इस बार चाय की दुकान पर मुलाकात हुई — कोई तामझाम नहीं, कोई स्टारडम नहीं, बस दो लोग, जो एक-दूसरे को थोड़ा और जानना चाहते थे।
"तू इतना गम्भीर क्यों रहता है?" काव्या ने पूछा।
"क्योंकि जिनके पास खोने को कम होता है, वो चीजों को ज़्यादा संभाल कर रखते हैं," आरव ने शांत स्वर में कहा।
काव्या थोड़ी देर खामोश रही, फिर बोली, "तेरी आँखों में ना, कोई अधूरी कहानी बसी है।"
"और तेरे लहजे में कोई अधूरी चाहत," आरव ने पलटकर जवाब दिया।
उन दोनों की बातचीत अब चुटकियों से निकलकर एहसास की गहराइयों तक पहुँचने लगी थी। एक अजीब सी जुड़ाव था — अनकहा, लेकिन गहरा।
अगले दिन शूट शुरू हुआ — इस बार आरव ने स्क्रिप्ट लिखी थी और काव्या उसमें लीड थी। सीन रोमांटिक था, पर शॉट देने से पहले दोनों थोड़े असहज थे।
"सिर्फ कैमरे के लिए एक्टिंग करनी है, रियल लाइफ वाला इमोशन नहीं लाना," काव्या ने मज़ाक में कहा।
"तेरा नाम काव्या है, पर बातों में नाटक बहुत है," आरव ने मुस्कराते हुए ताना मारा।
"और तू राइटर होकर भी हर जवाब तैयार रखता है, वाह!"
शूट हुआ — और इतना बेहतरीन हुआ कि क्रू ताली बजाने लगा। पर आरव और काव्या के बीच कुछ ऐसा था जो कैमरे के आगे नहीं, अंदर चल रहा था।
शाम को जब शूट खत्म हुआ, तो दोनों पास की सड़क पर टहलने निकल पड़े। बिना सोचे, बिना बोले — बस साथ चलना अच्छा लग रहा था।
"कभी लगा था तू किसी राइटर के साथ ऐसे बैठेगी?" आरव ने पूछा।
"नहीं," काव्या हँसी, "और कभी सोचा था तू किसी स्टार के साथ ऐसे टहलेगा?"
"नहीं," आरव भी हँस पड़ा।
उस पल में कुछ था — जो लफ्ज़ों में नहीं, पर महसूस किया जा सकता था।
रात को आरव ने डायरी में लिखा: "हर बार वो कुछ कह जाती है, और मैं कुछ महसूस कर लेता हूँ। शायद यही शुरुआत है, बिना कहे समझने की।"
और काव्या ने अपने वीडियो ब्लॉग में बोला: "आज पहली बार लगा कि कोई है, जो मुझे मेरी लाइफ से बाहर, मेरी सच्चाई में भी समझ सकता है।"