MUZE JAB TI MERI KAHAANI BAN GAI - 5 in Hindi Love Stories by Chaitanya Shelke books and stories PDF | MUZE जब तू मेरी कहानी बन गई - 5

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MUZE जब तू मेरी कहानी बन गई - 5

Chapter 5 : जब इकरार से डर लगे, मगर इनकार मुमकिन न हो

 

मुंबई की गलियों में अब सर्दी की हल्की दस्तक होने लगी थी। हवा में ठंडक तो थी, लेकिन आरव और काव्या के बीच एक नई सी गर्मी थी — एहसासों की, उम्मीदों की।

आरव अब पहले से ज़्यादा मुस्कुराने लगा था। उसकी कहानियाँ अब सिर्फ डायरी तक सीमित नहीं थीं, वो काव्या की मुस्कान में भी झलकने लगी थीं। वहीं काव्या, जो कैमरे के सामने भी अपना असली चेहरा नहीं दिखाती थी, अब आरव के सामने बेझिझक हँसने लगी थी।

एक दिन, आरव ने उसे एक थिएटर शो में चलने का न्योता दिया। शो कोई बहुत बड़ा नहीं था — एक लोकल ड्रामा, जिसका नायक आरव का दोस्त था। लेकिन आरव के लिए ये खास था। और काव्या के लिए खास थी वो शाम।

शो के बाद दोनों एक पुराने कैफ़े में गए, जो आरव की फेवरिट जगहों में से एक थी। दीवारों पर टाइपराइटर के पुराने हिस्से लटके थे, और कोनों में किताबें सजी थीं।

"यहाँ पहली बार आया हूँ," काव्या ने इधर-उधर देखते हुए कहा।

"मैं यहाँ तब आता था जब कोई नहीं होता था मेरे साथ," आरव ने कहा। "अब तू है, तो ये जगह और भी खूबसूरत लग रही है।"

काव्या ने मुस्कुरा कर कहा, "तू हर जगह को कहानी बना देता है।"

आरव बोला, "और तू हर कहानी को जिंदा कर देती है।"

कैफ़े की उस छोटी सी टेबल पर दो कप कॉफ़ी और दो धड़कते दिल बैठे थे। एक ने इकरार करना चाहा, दूसरे ने सुनने की उम्मीद की। लेकिन दोनों ही डरते थे — एक नामुकम्मल हो जाने से, दूसरा सबकुछ खो देने से।

इसी बीच, एक नया मोड़ उनकी ज़िन्दगी में आ गया। काव्या को एक बड़ा वेब सीरीज़ ऑफर हुआ — लीड रोल में। लेकिन शर्त थी, शूट दुबई में होगा, तीन महीने के लिए।

उसने ये बात आरव को बताई।

आरव थोड़ी देर चुप रहा, फिर बोला, "ये तो बहुत बड़ी बात है। तुझे ये करना ही चाहिए।"

काव्या ने कहा, "लेकिन मैं नहीं चाहती कि हम फिर से दूर हो जाएँ।"

"हम कभी पास थे ही कहाँ?" आरव ने मुस्कुराते हुए कहा, "दिल के अलावा, बाकी सब तो दूर ही था।"

वो मज़ाक नहीं कर रहा था, लेकिन काव्या की आँखों में नमी आ गई।

"तू चाहता क्या है, आरव?"

आरव ने उसकी आँखों में देखा, फिर धीरे से कहा, "तुझे खुश देखना। भले वो खुशी मुझसे दूर क्यों न ले जाए।"

अगले दिन काव्या ने कॉन्ट्रैक्ट साइन कर दिया। तीन दिन बाद उसकी फ्लाइट थी। लेकिन उससे पहले, आरव ने उसे एक तोहफा दिया — उसकी डायरी की फोटोकॉपी, जिसमें सिर्फ एक पेज पर कुछ लिखा था:

"अगर तू कभी लगे कि थक गई है, या खो गई है, तो इन शब्दों को पढ़ लेना — मैं यहीं हूँ, हमेशा के लिए।"

काव्या ने उसे गले लगाया, बिना कुछ कहे। शायद शब्द अब ज़रूरी नहीं थे।

तीन दिन बाद एयरपोर्ट पर, भीड़ में, आरव दूर खड़ा बस उसे देखता रहा। काव्या ने मुड़कर देखा, और एक हल्की सी मुस्कान दी — वो मुस्कान जिसमें वादा था, और इंतज़ार भी।

फ्लाइट उड़ चुकी थी, लेकिन कहानी वहीं रुकी थी — जहाँ इकरार से डर लगता है, मगर इनकार मुमकिन नहीं होता।