MUZE JAB TI MERI KAHAANI BAN GAI - 13 in Hindi Love Stories by Chaitanya Shelke books and stories PDF | MUZE जब तू मेरी कहानी बन गई - 3

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MUZE जब तू मेरी कहानी बन गई - 3

Chapter 3: उलझनों की पहली सीढ़ी

 

मुंबई की गलियाँ और ट्रैफिक जितना बाहर शोर मचाते हैं, उससे कहीं ज़्यादा अंदर की ज़िन्दगियाँ चुपचाप उलझी होती हैं। आरव और काव्या के बीच की दोस्ती अब एक अलग मोड़ पर पहुँच चुकी थी — वो एक-दूसरे को महसूस करने लगे थे, समझने लगे थे, पर बयां करने से डरते थे।

एक शाम, जब शूट के बाद सब थक कर जा चुके थे, काव्या ने आरव से पूछा, "कभी सोचा है तू क्यों लिखता है?"

आरव ने हल्की मुस्कान के साथ जवाब दिया, "शब्दों में जो बात कह सकता हूँ, वो ज़ुबान से नहीं निकलती। शायद इसी लिए।"

काव्या ने गंभीर होते हुए कहा, "और कभी ये सोचा है कि अगर तुझे कुछ मिल गया — नाम, शोहरत, पैसा — तो क्या तू बदल जाएगा?"

आरव थोड़ी देर चुप रहा। फिर बोला, "अगर वो सब मुझे बदल दे, तो शायद मैं उसके काबिल ही नहीं था।"

इन बातों के पीछे कुछ ऐसा था जो दोनों को खींच रहा था — जैसे दो अलग-अलग पृष्ठभूमियों के किरदार किसी एक कहानी में मिलने की कोशिश कर रहे हों।

एक दिन काव्या ने आरव को अपने पर्सनल शूट लोकेशन पर बुलाया — ये एक फार्महाउस था, शहर से थोड़ा बाहर। वहाँ की शांति, हरियाली और हवाओं में कुछ ऐसा था जो काव्या को सुकून देता था।

"तू यहाँ आती है सुकून के लिए या भागने के लिए?" आरव ने पूछा।

"दोनों," काव्या ने धीरे से कहा। "इस ग्लैमर की दुनिया में सब कुछ दिखता है, लेकिन असली मैं कहीं खो जाती हूँ। ये जगह मुझे खुद से मिलाती है।"

वो बैठकर बातें कर रहे थे, जब अचानक काव्या ने पूछा, "तेरी ज़िन्दगी में कोई था कभी?"

आरव ने थोड़ा सा हिचकते हुए जवाब दिया, "थी। पर वो चली गई। ज़िन्दगी में कुछ लोग आते हैं सिखाने के लिए, टिकने के लिए नहीं।"

काव्या ने उसकी आँखों में झाँकते हुए कहा, "और मैं? मैं क्या सिखा रही हूँ तुझे?"

आरव मुस्कराया, "शायद ये कि डर के आगे भी कुछ होता है — कोई ऐसा जिससे डरने का मन न करे।"

काव्या ने हल्की हँसी में कहा, "तेरी बातें फिल्मी होती जा रही हैं।"

"और तू मेरी असल ज़िन्दगी की फिल्म बनती जा रही है," आरव ने धीरे से कहा।

वो पल उनके बीच बहुत कुछ कह गया। कुछ ऐसा जो किसी स्क्रिप्ट में नहीं लिखा गया था, लेकिन दिलों में दर्ज हो गया था।

उस दिन फार्महाउस से लौटते वक्त, आरव ने गाड़ी ड्राइव की, और काव्या खिड़की से बाहर देखते हुए बस मुस्कुराती रही। वो जानती थी कि कुछ तो बदल रहा है — न सिर्फ उसके आस-पास, बल्कि उसके अंदर भी।

अगले दिन एक इवेंट में काव्या को जाना था — रेड कारपेट, कैमरे, मीडिया। लेकिन इस बार उसका ध्यान सिर्फ एक शख्स पर था — जो भीड़ में नहीं था, लेकिन दिल में था।

इवेंट खत्म होते ही उसने आरव को कॉल किया, "कहाँ है तू?"

"वहीं जहाँ तेरी यादें आती हैं — उस छत पर जहाँ कहानियाँ जन्म लेती हैं।"

काव्या ने हँसते हुए कहा, "कल मिल? बिना कैमरे, बिना स्क्रिप्ट, बस हम दो।"

"कल नहीं," आरव बोला, "हर दिन। जब तक तू कहे।"

रात को आरव ने डायरी में लिखा: "आज उसकी आँखों में खुद को देखा — ऐसा आईना जो 

तोड़ना नहीं चाहता, बस थाम कर रखना चाहता हूँ।"

और काव्या ने अपने ब्लॉग में कहा: "कभी-कभी किसी की ख़ामोशी, आपके सबसे शोरगुल भरे दिन को भी शांत कर देती है। शायद प्यार ऐसा ही होता है।"

उनकी कहानी अब सिर्फ मुलाकातों की नहीं रही थी — अब ये एहसासों का वो सिलसिला बन चुकी थी, जहाँ हर अगला कदम उन्हें एक नई उलझन और एक नई सच्चाई की ओर ले जा रहा था।