Hanuman Baahuk Rahashy - 6 in Hindi Spiritual Stories by Ram Bharose Mishra books and stories PDF | हनुमान बाहुक रहस्य -प.गंगाराम शास्त्री समीक्षा - 6

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हनुमान बाहुक रहस्य -प.गंगाराम शास्त्री समीक्षा - 6

हनुमान बाहुक रह्स्य –प.गंगाराम शास्त्री समीक्षा  ६ ६ यह पुस्तक संस्कृत और तंत्र के बड़े विद्वान पण्डित गङ्गाराम शास्त्री जी सेंवढ़ा वालों द्वारा गहरे रिसर्च, अध्य्यन, अनुशीलन,खोज, अनुसंधान, तपस्या और प्रयोगों के बाद लिखी गयी है। इसमें बताये गये अर्थ और प्रयोग आम जनता को कृपा स्वरूप ही विद्वान लेखक ने पुस्तक स्वरूप में प्रदान किये हैं।(५१){खेमराज श्रीकृष्णदास  बम्बई छापा में (२२)}कान सुनी विनती जन की तब मारुतनन्दन कीन विचारा। बाहु विशाल पसार कृपा कर शीलनिधान सुजान उदारा। दूर कियो रद के रुज को सुख भूरि दियो यश वेद प्रचारा। सोच विहाय भजौ तुलसी हिरदें कपिनाथ के राम पियारा।मुझ सेवक की विनय जैसे ही हनुमान के कान में पड़ी उन्होंने तुरन्त ही अपने मन में विचार किया कि इस सेवक की पीड़ा को दूर करना है, उन्होंने अपनी विशाल भुजा फैलाकर दांत के रोग को दूर कर दिया। वे बड़े कृपा करने वाले हैं, शील के निधान हैं, सुजान हैं, चतुर हैं और उदार हैं। उन्होंने दांत की पीड़ा दूर कर बड़ा सुख दिया, उनके यश का वेद भी बखान कर प्रचार करते हैं। तुलसीदास कहते हैं कि किसी प्रकार शोक करने की आवश्यकता नहीं, हृदय में राम के प्रिय हनुमान का ध्यान करो जिससे वे कपिनाथ सभी प्रकार की पीड़ा दूर कर देते हैं।प्रयोगदन्तपीड़ा, मसूढ़ों की पीड़ा, पायरिया आदि सभी प्रकार के दन्तरोगों की निवृत्ति के लिए दशनन की व्याधि भई से लेकर कान सुनी विनती तक चारों छन्दों का प्रथम दिन एकसौ आठ पाठ कर हनुमान जी का विधिपूर्वक पूजन करे।फिर प्रतिदिन चारों छन्दों की ग्यारह आवृत्ति करे। पायरिया के रोगी को अनुष्ठानकाल में प्रतिदिन अपामार्ग की दातुन करना चाहिए।प्रयोग 2सामान्य दन्तपीड़ा अथवा दन्तकृमिज पीड़ा शमन के लिए कुल के कपट की वाला छन्द ग्यारह बार पढ़कर लोहे की कील अभिमन्त्रित करे। उस कील को नीम के तने में ठोक कर गाड़ दे। दाढ़ कीलने का एक यह मन्त्र भी बहुपरीक्षित हैओं आचाय न्यूनाय स्वाहा।कीलन का प्रकार ऊपर लिखे अनुसार ही है।(५२){खेमराज श्रीकृष्णदास  बम्बई छापा में (५३)}तात मात द्रोह की कै विप्रवंश कोह की कै, पर नारी उर लाये धोखे काहू जाती की।गुरु सों विरोध की कै अशन अशोध की कै, हरिजन विमुख गये भांति अज्ञाती की।मृषा साख भरे की कै पर धन हरे की कै, कबहुँक लोभ कीन परधन थाती की।तुलसी कहत कर जोर छल छोड़ि नाथ, वेग हरो संभव तें वड़ी पीर छाती की।छाती की पीड़ा होने के कारणों में प्रमुख को गिनाते हुए कहते हैं कि यह पीड़ा माता पिता से वैर करने के कारण, बाह्मण वंश के क्रोध के कारण, किसी अन्य जाति की स्त्री से अनुचित प्रेम संबंध के कारण अथवा किसी शत्रु के द्वारा किसी प्रकार धोखा देकर कुछ खिला पिला देने के कारण अर्थात् दूषीविष के प्रभाव से, गुरु से विरोध करने के कारण, अशुद्ध अन्न के भक्षण के कारण, अशुद्ध अन्न वह होता है जो अनाचार अथवा किसीको सताकर प्राप्त किया गया हो, अथवा किसी भगवान के भक्त से विमुख हो जाने के कारण अनजाने में हरि-भक्तों का सत्कार न कर सकने के कारण, किसी की झूठी गवाही देने के कारण, दूसरे के धन का अन्याय से अपहरण करने के कारण, अथवा लोभ के कारण किसीकी धरोहर उसे वापस न लौटाकर स्वयं हजम कर जाने के कारण, छाती में पीड़ा होती है। इनमें से कारण चाहे जो भी हो, तुलसीदास छल कपट छोड़कर आपसे निवेदन करता है कि अब तो शीघ्र ही छाती की यह पीड़ा दूर कर दीजिये।प्रयोगपार्श्वशूल शमन के लिए छन्द संख्या 52, 53 के प्रतिदिन ग्यारह पाठ करें। हनुमान को बेसन के लडुओं का भोग लगाये। सहजन की समिधा और सोंठ में घी मिलाकर हवन करे।प्रयोग 2हृदयरोग छन्द संख्या 52 की एक सौ आठ आवृत्ति 21 दिन तक करे। अर्जुन वृक्ष की समिधा को घी में डुबोकर हवन करें।(५३){खेमराज श्रीकृष्णदास  बम्बई छापा में (५४)}रचि के सुवेष ठगे संतन द्विजन कैधों मित्र सों विरोध कीन्ह लोभ लाग थाती की। कै धों कुलवन्ती नार घर तें निकार दीन्हीं, प्रीति मान चेरिन सों अति नीच जाती की। तुलसी कहत कैथों कुल की कलंकिनी है कै धों प्रेरी आई काहू दुष्ट द्विजघातीं की। पापनी निशाचरी सी जान के कृपानिधान, महावीर दूर करो पीर बड़ी छाती की।छाती की पीड़ा के संबंध में कहते हैं कि अयोग्य होने पर भी छल कपट से साधु वेष बनाकर ब्राह्मण और सन्तों को धोखा देने के कारण, किसीकी धरोहर के लोभ में आकर उसे हड़पने के लिये, जिसने अपना विश्वास किया हो ऐसे मित्र का विरोध करने के कारण, कुलीन सदाचारिणी स्त्री को घर से निकाल देने के कारण, नीच जाति की किसी दासी से अनुचित प्रेम के कारण, अथवा कुल को कलंक लगाने वाली किसी अनाचारिणी स्त्री के कारण अथवा इनमें से एक भी कारण न होने पर भी किसी ब्रह्महत्या के पातकी द्वारा यन्त्र-मन्त्र के द्वारा प्रेरित किये जाने के कारण छाती में पीड़ा होती है। उसे दूर करने के लिये हनुमान से विनय करते हैं कि कृपा निधान आप इसे पापनी राक्षसी के समान समझकर छाती की बढ़ी हुई पीड़ा को दूर कर दीजिये ।(५४){खेमराज श्रीकृष्णदास  बम्बई छापा में (५५)}जानों नहीं पहिचानत ना कोउ तालु की व्याधि महादुखदाई। कर्मप्रभाव के भोगन तें यह पापनी काहू के प्रेरे तें आई। भेषज युक्त किये सुठि बाढ़त छूटहि वेग सो एक उपाई। करो मन ध्यान भजो तुलसी कपिनाथ सदा जनहेतु सहाई।तालू में पीड़ा होने पर उसे दूर करने के लिये उपाय कहते हैं कि इस तालु में होने वाली पीडा को तो कोई जानता ही नहीं, इस रोग के लक्षण भी पहिचान मे वहीं आते, यह तालु का रोग बड़ा दुख देने वाला है। यह पिछले किये हुए पापकर्मो के फल का भोग हो सकता है। अथवा किसीके अभिचार का प्रयोग करने के कारण है। इसके लिये जितनी भी औषधि का प्रयोग किया जाय यह उतनी ही अधिक बढ़ती जाती है। इसे दूर करने का तो बस एक ही उपाय है कि कपीश्वर हनुमान का ध्यान करते हुए उनका भजन किया जाय। वे भक्तों की सदैव सहायता करने चाले हैं।(५५){खेमराज श्रीकृष्णदास  बम्बई छापा में (५६)}{गीता प्रेस गोरखपुर छन्द क्र (३८)}पांय पीर, पेट पीर, बाहु पीर, मुंह पीर, जरजर सकल सरीर पीर मई है।देव, भूत, पितर, करम, खल, काल, ग्रह मोहिं पर दवरि दमानक सी दई है।हों तों बिन मोल ही विकानो बलि बारे ही तें, ओट रामनाम की ललाट लिख लई है।कुंभज के किंकर विकल बूड़े गोखुरनि, हाय रामराय ऐसी हाल कहूं भई है।पैरों में पीड़ा, पेट में पीड़ा, भुजा में पीड़ा, मुंह में पीड़ा, इस प्रकार सारा शरीर पीड़ा से जर्जर हो रहा है। देवताओं ने, पितरोने, भूत प्रेतों ने, कर्मविपाक ने, दुष्टों ने, प्रतिकूल ग्रहयोग ने, कुसमय ने, एक साथ मेरे ऊपर मानो धावा बोलकर तोपों की बाढ़ सी दाग दी है। मैं तो बचपन से ही आपका बिना मोल का दास बन गया हूँ आपके हाथों बिक गया हूं, मेरे पास अपनी सुरक्षा करने का राम नाम के अतिरिक्त कोई सहारा नहीं है कि बाढ़ से बचने के लिये सैनिक दुर्ग की ओट लेते हैं, मैंने तो इन व्याधियों के आक्रमण से बचने के लिये अपने भाग्य में रामनाम लिख लिया है। यह रामनाम की ओट इतना बड़ा सहारा होते हुए भी मुझपर इन देव पितर भूत प्रेत करम काल गति का एक साथ आक्रमण सफल होना तो उसी प्रकार है कि समुद्र सोख लेने वाले अगस्त्य के किसी सेवक का गोखुर समान जल के गड्ढे में डूब जाना। हाय रामचन्द्र क्या कभी ऐसा भी हुआ है।प्रयोगसर्वांगपीड़ा और सर्वरोगनिवृत्ति के लिए -.सारे शरीर में पीड़ा हो अथवा उदर-व्याधि पार्श्वशूल, शिरःशूल, आधासीसी, ग्लूकोमा, मोतियाबिन्द, बालकोंदृष्टि-मान्य आदि रोगों को दूर करने के लिए रात्रि में हनुमान के मन्दिर में अथवा भगवान राम के मन्दिर में जहां शिव जी और हनुमान की भी प्रतिष्ठा हो, वहां बैठकर मन्त्रसंख्या 55, 56 की एकसौ आठ आवृत्ति करने से लाभ होता है।प्रयोग 2गठिया, लकवा, प्रनसी, हनुस्तम्भ तथा अन्य वातव्याधियों के शमन के लिए- उक्त अनुष्ठान 21 अथवा 49 दिन तक करना चाहिए।प्रयोग3 असाध्य समझे जाने वाले रोगों के लिए अनुष्ठान प्रकरण में वर्णित विधि से पूरे बाहुक के एक हजार पाठ का पुरश्चरण कर लेने के पश्चात् प्रयोजन विशेष के लिए संकल्प के साथ प्रयोग करना चाहिए।(५६){खेमराज श्रीकृष्णदास  बम्बई छापा में (४५)}{गीता प्रेस गोरखपुर छन्द क्र (४३)}सीतापति साहेब सहाय हनुमान नित, हित उपदेस को महेस मानो गुरु कै।मानस वचन काय सरन तिहारे पाय, तुम्हरे भरोसे सुर मैं न जाने सुर कै। व्याधि भूत जनित उपाधि काहू खल की, समाधि कीजे तुलसी को जानि जन फुर कै। कपिनाथ, रघुनाथ भोलानाथ, भूतनाथ, रोगसिन्धु क्यों न डारियत गाय-खुर कै।सीतापति रामचन्द्र मेरे स्वामी हैं, हनुमान सदैव सहायता करने वाले हैं। सदैव मेरा हित चाहने वाले महादेव शिव को मैंने गुरु माना है। मन वचन और कर्म से आप तीनों की शरण पाकर और किसी देवता को मैंने देवता ही नहीं माना। मेरी यह व्याधि किसी भूतबाधा के कारण है अथवा किसी दुष्ट ने मेरे ऊपर किसी प्रकार का जादू टोना अथवा कृत्या अभिचार आदि का प्रयोग किया है, इसे आप अपना ही जन जानकर इस आधि-व्याधि से बचाइये इसका समाधान कीजिये। यहां उपाधि, व्याधि और समाधि तीन शब्द आये हैं, मनुष्य को अन्तिम समय में उपाधि और व्याधि के कारण भगवच्चिन्तन से विचलित करने वाली यही हैं, अन्यथा उसे समाधि की अवस्था प्राप्त हो जाय तुलसीदास के इस छन्द में ध्वनि यही है। हे वानराधीश हनुमान, हे रामचन्द्र, हे भोलानाथ शिव मेरी इस समुद्र के समान बढ़ने वाली व्याधि को गाय के खुर के समान क्यों नहीं बना देते। यहां गोष्पदीकृतवारीश का संकेत है।(५७){खेमराज श्रीकृष्णदास  बम्बई छापा में (४७)}{गीता प्रेस गोरखपुर छन्द क्र (३९)}बाहक सुवाह नीच लीचर मरीच मिलि मुंहपीर केतुजा कुरोग जातुधान हैं।राम नाम जप जाग कियो चाहों सानुराग, काल कैसे दूत भूत कहा मेरे मान हैं। सुमिरे सहाय रामलखन आखर दोउ जिनके समूह साके जागत जहान हैं। तुलसी संभारि ताड़का संहारि भारी भट बेधे बरगद से बनाई बान बान हैं।विश्वामित्र ऋषि के यज्ञ में सुबाहु, मारीच, और ताड़का बाधा पहुंचाया करते थे। उनसे यज्ञ की रक्षा करने के लिये वे राम और लक्ष्मण को लिवा ले गये थे जिन्होंने इन राक्षसों को परास्त किया था। तुलसीदास कहते हैं कि मैं जप यज्ञ करना चाहता हूं जिसमें यह बाहुपीड़ा सुबाहु के समान बाधक है, आलस्य अथवा शरीर की शिथिलता मरीच है, मुख की पीड़ा ताड़का है, अन्य बुरे रोग राक्षसों का समूह है। रामनाम के जप रूपी यज्ञ में ये सभी कालदूत के समान बाधा पहुंचाने वाले हैं। ये काल के दूत बनकर मानो मुझे लेने आये हैं। इनसे मेरी कोई समता नहीं न वे प्रबल शत्रु मुझे मानेंगे। रामनाम का स्मरण करते ही-राम और लक्ष्मण की भांति हो-इन दो अक्षरों रा और म ने मेरी सहायता की। राम और लक्ष्मण की वीरता की कहानी तो संसार में चल रही है। इन दो अक्षर रूपी राम लक्ष्मण ने मुख-पीड़ा रूपी ताड़का का नाश कर अन्य रोगों की सेना का उसी प्रकार बध कर डाला जिस प्रकार विश्वामित्र के यज्ञ में राम और लक्ष्मण ने बड़े बड़े योद्धा राक्षसों-मारीच और सुबाहु को बरगद के फल सा वाण से बींध दिया था। अथवा जैसे कोई मूंज की सीक से बरगद के फल को बींध दे। (५८){खेमराज श्रीकृष्णदास  बम्बई छापा में (३७)}{गीता प्रेस गोरखपुर छन्द क्र (३६)}मतगयन्द सवैया- रामगुलाम तुही हनुमान गुसाई सुसाई सदा अनुकूलो ।पाल्यो हों बाल ज्यों आखर दू पितु मातु ज्यों मंगल मोद समूलो। बांह की वेदन बांह पगार पुकारत आरत आनंद भूलौ । श्री रघुबीर निवारिये पीर रहों दरबार परौ लटि लूलौ। हनुमान आप तो राम के सेवक और मेरे स्वामी है। इस गोस्वामी के आप सुस्वामी हैं। आप इस पर सदा अनुकूल रहे हैं कृपा करते आये हैं। आपने ही राम ये दो अक्षर सिखा कर मुझे पाला पोसा है। यह राम नाम के दो अक्षर ही मेरे लिये माता और पिता के सम्मान आनन्ददायक रहे हैं। हे बड़ी भुजाओं वाले हनुमान, अपनी भुजा फैला कर मेरी बाहुपीड़ा को दूर कर दीजिये। मैं इस पीड़ा के कारण सारा आनन्द भूल गया हूं। पीड़ा से आपको पुकार रहा हूं। रामचन्द्र जी मेरी इस पीड़ा को आप ही दूर कर दीजिये। मैं अच्छा बुरा जैसा भी हूं आपके दरबार में तो पड़ा रहूंगा। इसका अर्थ इस प्रकार भी किया गया है कि मैं आपके दरबार में रह कर भी इस प्रकार दुबला और लंगड़ा अर्थात् असमर्थ बना रहूं। वास्तव में लटों लूलो बुन्देलखण्डी मुहावरा है जिसका अर्थ अच्छा बुरा जैसा भी होता है।(५९){खेमराज श्रीकृष्णदास  बम्बई छापा में (३०)}{गीता प्रेस गोरखपुर छन्द क्र (२४)}लोक परलोक तिलोक न विलोकियत तो सों समरत्य चख चारहूं निहारिये।कर्मकाल लोकपाल अग जग जीव जाल, नाथ हाथ सब निज महिमा विचारिये । दास खास रावरो निवास तेरो तासु उर तुलसी सो देव दुखी देखियत भारिये । बांह तरुमूल बाहुसूलकपिकच्छु बेल, उपजी सकेल कपि खेल ही उखारिये।हनुमान जी आपके समान समर्थ अन्य कोई भी न तो इस लोक में है और न परलोक में। तीनों लोको में आपके समान सामर्थ्यवाला नहीं है। चार चख से देखना मुहावरा है जिसका अर्थ विवेकपूर्वक विचार करना होता है। संचित, प्रारब्ध और क्रियमाण तीन प्रकार के कर्म फल मनुष्य को भोगना पड़ते हैं, तीन प्रकार के काल भूत वर्तमान और भविष्यत् का संबंध रहता है, इन्द्र, अग्नि, यम्, निऋति, वरुण, मरुत, कुबेर और ईश ये आठों दिशाओं के स्वामी कहे जाते हैं, स्थावर जंगम सृष्टि में अण्डज, पिण्डज, स्वेदज और उद्भिज्ज ये चार प्रकार हैं, इन सभी का समुदाय आपके वश में है। कर्मों के फल को आप बदल सकते हैं, कालक्रम में भूत वर्तमान को और वर्तमान भविष्य को प्रभावित करता चलता है उसे भी आप बदल सकते हैं, लोकपाल तो आपके वश में हैं ही इस प्रकार आप अपनी महिमा का विचार तो कीजिये । अपनी इस शक्ति का स्मरण कीजिये। तुलसीदास आपका खास सेवक है, उसके हृदय में आपका निवास है, वह सदैव आपका स्मरण करता है किन्तु वह बड़े कष्ट में है। उसके बाहु रुपी वृक्ष की जड़ में बाहुपीड़ा रूपी केवांच की बेल उग आई है, उसे आप खेल में ही समेट कर उखाड़ कर फेंक दीजिये ।विशेष-वाचनामक लता की फलियां रोयेदार होती है. इन रोयों का त्वचा  से स्पर्श हो जाने पर अत्यन्त जलन होने लगती है जिसे गोबर लगाकर शान्त करना पड़ता है। जहां यह लता उत्पन्न होती है यहां बंदर प्रायः नहीं रहते क्योंकि यदि हवा से उड़कर इसकी फलियों के रोएं शरीर में लग जाए तो बन्दरों को खाज हो जाती है, उनके रोम झड़ने लगते हैं जिसे खुजलाते खुजलाते उनकी मृत्यु तक हो जाती है। इस बात को बन्दर स्वभाव से ही जानते हैं इसलिये यदि कहीं यह बेल उगती दिखाई देती है तो वे इसे उखाड़ कर फेक देते हैं। यही सन्दर्भ यहां दिया गया है। केवांच के बीज अत्यन्त पौष्टिक होते हैं उन्हें भूनकर खाया जाता है, बाजीकरण औषधियों में उनका प्रयोग किया जाता है।(६०){खेमराज श्रीकृष्णदास  बम्बई छापा में (५०)}{गीता प्रेस गोरखपुर छन्द क्र (२०)}जानत जहान हनुमान को निवाज्यो जन, मन अनुमानि बलि बोलि न बिसारिये । सेवा जोग तुलसी कबहूं कहूं चूक परी,साहेब सुभाय कपि साहब संभारिये । अपराधी जानि कीजे सांसति सहस भांति, मोदक मरै जो ताहि माहुर न मारिये। साहसी समीर के दुलारे रघुवीर जू के, बांहपीर महावीर वेग ही निवारिये।संसार जानता है कि यह तुलसीदास हनुमान का कृपा-पात्र है, आप भी मन में विचार कीजिये कि जिसे आपने अपना कह दिया उसे इस प्रकार तो न भुला दीजिये। यह तुलसी आपकी सेवा के योग्य भी तो नहीं, हो सकता है कि कभी कहीं सेवा करते भूल हो गई हो तो आप स्वामी होने के नाते अपने बड़प्पन के अनुसार उसे संभाल लीजिये। यदि मुझे अपराधी ही मानते हैं तो हजार बार डरा धमका और डांट डपट लीजिये। पर यह दुख तो न दीजिये। क्योंकि लोक में भी कहावत है कि "जो गुड़दीन्हें ही मरे क्यों विष दीजे ताहि" जो आपकी प्रताड़ना से ही डरता हो उसे इतना कष्ट तो न दें। हे पवन पुत्र आप बड़े साहसी है, आप रामचन्द्र के बहुत प्रिय हैं, मेरी इस बाहु की पीड़ा को अब तो शीघ्र ही दूर कर दीजिये।