Hanuman Baahuk Rahashy - 4 in Hindi Spiritual Stories by Ram Bharose Mishra books and stories PDF | हनुमान बाहुक रहस्य -प.गंगाराम शास्त्री समीक्षा - 4

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हनुमान बाहुक रहस्य -प.गंगाराम शास्त्री समीक्षा - 4

४ हनुमान बाहुक रह्स्य –प.गंगाराम शास्त्री समीक्षा  ४ यह पुस्तक संस्कृत और तंत्र के बड़े विद्वान पण्डित गङ्गाराम शास्त्री जी सेंवढ़ा वालों द्वारा गहरे रिसर्च, अध्य्यन, अनुशीलन,खोज, अनुसंधान, तपस्या और प्रयोगों के बाद लिखी गयी है। इसमें बताये गये अर्थ और प्रयोग आम जनता को कृपा स्वरूप ही विद्वान लेखक ने पुस्तक स्वरूप में प्रदान किये हैं।

(३१){गीता प्रेस गोरखपुर छन्द क्र (१८)}

सिन्धु तरे बड़े वीर दले खल जारे हैं लंक से बंक मवासे।तैं रन केहरि केहरि के बिदले अरिकुंजर छैल छवा से।तोसो समत्थ  सुसाहेब सेई सहै तुलसी दुख दोष दवा से। वानर बाज़ बड़े खल खेचर लीजत  क्यों न लपेट लवा से।

हनुमान आपने सिंधु  को पार किया। आप बड़े वीर हैं। आपने दुष्टों को नष्ट किया। कुचल डाला। लंका से विकट  दुर्ग को जला डाला। केसरी के पुत्र आपने युद्ध मे सिंह के समान शत्रु पक्ष के बड़े बड़े हाथी के समान वीरों को सामान्य पशु के बच्चों के समान मार डाला। आपके समान समर्थ स्वामी का सेवक होकर भी  तुलसी दास दुःख दोष रूपी आग में जलता रहे यह विचित्र बात है। अदृश्य रूप से अंतरिक्ष में विचरण करने वाली दुष्टात्माएं  और भूत प्रेत पिशाच आकाशचारी पक्षियों के समान बहुत बढ़ गये हैं। आप बाज पक्षी के समान इन सबको लवा की भांति झपट कर पकड़ कर नष्ट क्यों नहीं कर देते।(३२){खेमराज श्रीकृष्णदास  बम्बई छापा में (३६)}{गीता प्रेस गोरखपुर छन्द क्र (१९)}अच्छ-विमर्दन, कानन-भान, दसानन-आनन भाननि-हारो । बारिद-नाद अकंपन कुंभकरन्न से कुंजर-केहरि वारो । रामप्रताप हुतासन कच्छ विपच्छ समीर समीरदुलारो । पाप तें साप तें ताप तिहूं तें सदा तुलसी कंह सो रखवारो।आपने रावण के पुत्र अक्षयकुमार को भार डाला, अशोक वन को तहस नहस कर डाला, दशानन रावण के दसों मुख को मुष्टिका प्रहार से भंजन किया। कहीं दसानन आनन भा न निहारो इस प्रकार अलग पद मानकर यह अर्थ किया गया है कि आपने तेजस्वी रावण के मुख के तेज की ओर देखा तक नहीं। आप केसरी पुत्र केसरी के समान मेघनाद अकम्पन और कुम्भकर्ण रूपी हाथियों को मर्दन करने वाले हैं। राम का प्रताप अग्नि के समान है जिसमें पड़ने वाले शत्रु तिनके के समान है उस आग को धधकाने में पवन के पुत्र हनुमान पवन के समान है। पाप के कारण होने वाली पीडा, शाप के कारण होने वाले दुख और आधिभौतिक आध्यात्मिक और आधिदैविक व्याधियों से हनुमान ही तुलसीदास की रक्षा करने वाले हैं। शत्रुनाशनप्रयोग उक्त दोनों मन्त्रसंख्या 31 और 32 का विधिपूर्वक अनुष्ठान करे। अभियोग से दोषमुक्त होने के लिए-प्रतिदिन मन्त्र संख्या 32 का एक सौ आठ पाठ करते हुए पायस का भोग लगावे। 21 अथवा 49 दिनतक पाठ करके हवन और ब्रहाचारियों को भोजन करावे ।(३३){खेमराज श्रीकृष्णदास  बम्बई छापा में (२४)}{गीता प्रेस गोरखपुर छन्द क्र (३७)}काल की करालता करम कठिनाई कैधौं, पाप के प्रभाव की सुभाव बाव बावरे ।वेदन कुभांति सो सही न जात रातदिन, सोई बांह गही जो गही समीर डावरे।लायो तरु तुलसी तिहारो सो निहारि वारि, सीचिये मलीन भो तयो है तिहूं ताव रे।भूतनि की आपनी पराई हे कृपा-निधान, जानियत सबही की रीति राम रावरे।समझ में नहीं आता मेरा यह रोग किस कारण है। यह कलियुग की भयंकरता के कारण है,अथवा मेरे बुरे दिनों के कारण है,अथवा कर्मफल के परिणाम स्वरूप है,पाप का प्रभाव है अथवा कोई बात-व्याधि है। रात दिन इतनी अधिक पीड़ा हो रही है जिसे सहन नहीं कर पा रहा हूं। ये पीड़ा ग्रस्त वही बांह है जिसे आपने सहारा दिया। पवन-पुत्र, यह तुलसीदास जो तुलसी के पौधे के समान है वह आपका ही लगाया हुआ है, उसे आपने ही समाज में प्रतिष्ठित किया है,इसे अब आप अपनी कृपा-दृष्टि के जल से सीच कर बचाइये क्योंकि यह दैहिक, दैविक और भौतिक तीनों ताप से दग्ध हुआ जा रहा है। कृपानिधान राम यह तो आप ही समझ सकते हैं कि मेरी यह पीड़ा भूतप्रेत की बाधा के कारण है, अपने किसी बुरे कर्म के फलस्वरूपकिसी ने मेरे ऊपर कोई प्रयोग किया है जिसके कारण यह व्याधि यह आ ही जान सकते हैं क्योंकि आप तो सबकी रीति-काम करने के प्रकार जानते हैं।(३५){खेमराज श्रीकृष्णदास  बम्बई छापा में (३२)}{गीता प्रेस गोरखपुर छन्द क्र (३२)}देवी देव दनुज मनुज मुनि सिद्ध नाग छोटे बड़े जीव जेते चेतन अचेत हैं।पूतना पिसाची जातुधानी जातुधान वाम, रामदूत की रजाइ माथे मानि लेत हैं।घोर जंत्र मंत्र  कूट कपट कुजोग रोग, हनुमान आन सुनि छाँड़त  निकेत हैं। कोच कीजे कर्म को प्रबोध कीजे तुलसी को, सोध कीजे तिनको जो दोष दुख देत हैं।देवी देवता, दैत्य, मनुष्य मुनि सिद्ध यक्ष गन्धर्व, किन्नर आदि नाग तथा संसार में और जितने भी छोटे बड़े जड़ अथवा चेतन प्राणी हैं वे हनुमान जी की आज्ञा बड़े सम्मान के साथ मस्तक झुका कर मानते हैं। बालकों को पीड़ा पहुंचाने वाली पूतना, पिसाच, पिसाची , चुडेल आदि, राक्षसी, राक्षस, भूत, प्रेत्, सब आपकी आज्ञा मानते हैं और जानते हैं कि आप राम के दूत हैं। यन्त्रों और मन्त्रों के घोर प्रयोग जिस पर किये गये हों, जिस पर छल से टोना टोटका किया गया हो, ग्रहों के कारण कोई कुयोग हो, किसी भी प्रकार का रोग हो, इन सबमें हनुमान जी की दुहाई देने और उनके शाबर मन्त्रों से आन  बंधाने पर इन सब पीड़ाओं से मुक्ति मिलती है. न दुष्ट ग्रह बाधा पहुंचाते हैं, न उस पर अभिचार जादू टोने का असर होता है, न भूत प्रेत पिसाच चुडेल आदि की बाधा सताती है। जिसे आपकी आन देकर पीड़ित को छोड़ने की आज्ञा दी जाती है, ये सभी बाधाएं उस स्थान से दूर हो जाती हैं। मेरे बुरे कर्मों पर आप क्रोध कीजिये, और जो भी दोष दुख देने वाले हैं-जो इस प्रकार दूसरों को कष्ट देते हैं. उन्हें ठीक कीजिये, उन्हें ठिकाने लगाइये इस प्रकार तुलसीदास को धीरज बंधाइये ।प्रयोगसभी प्रकार की बाधा-निवृत्ति के लिए ग्रहण संक्रान्ति अथवा दीपावली को इस मन्त्र का एक हजार आठ जप करके सिद्ध कर ले। इस मन्त्र से इक्कीस बार अभिमन्त्रित भभूत रोगी के मस्तक पर लगाने अथवा इक्कीस बार अभिमन्त्रित किया हुआ पानी पिलाने से सभी प्रकार की भूत-प्रेत बाधा शान्त होती है।प्रयोग 2मृगी के लिए रोगी इसे कण्ठस्थ कर ले। प्रतिदिन इसे एक बार दुहराता रहे। मृगी का अगला दौर नहीं आयगा।प्रयोग 3परकृत अभिचारशमन- लिसोढ़े अथवा बहेड़े के वृक्ष के नीचे बैठकर ग्यारह दिन तक मन्त्र संख्या 34 के प्रतिदिन एकसौ आठ पाठ करे । गुग्गुल की धूप दे। ग्यारहवें दिन रात्रि के समय उसी वृक्ष की समिधा से सरसों, कालीमिर्च और सत्यानाशी के बीजों को सरसों के तेल में मिलाकर आहुति दे । प्रेतबाधा शमन और घर अथवा गांव में प्रेतजनित उपद्रव शान्त करने के लिए प्रतिदिन एक हजार आवृत्ति करना और अन्त में एक हजार आहुति का ही हवन करना चाहिए।(३५){खेमराज श्रीकृष्णदास  बम्बई छापा में (४९)}{गीता प्रेस गोरखपुर छन्द क्र (४०)}बालपने सधे मन राम सनमुख भयो, राम नाम लेत मांगि खात टूक टाक हों।परर्यो लोकरीति में पुनीत प्रीति रामराय, मोहवस बैठो तोरि तरक तराक हों। खोटे खोटे आचरन आचरत अपनायो, अंजनीकुमार सोध्यो रामपानि पाक हों। तुलसी गुसाईं भयो भोंड़े दिन भूल गयो, ताको फल पावत निदान परिपाक हों।बचपन में मैं पूरी सचाई के साथ राम नाम का स्मरण करता और उसीके सहारे भिक्षा मांग कर उदरपूर्ति करता रहा। फिर मैं गृहस्थ बनकर उसीके फेर में पड़कर रामभक्ति भूल बैठा। ये मेरा मोह था। फिर आचरण भी ठीक न रहा। किन्तु हनुमान जी ने कृपा कर मुझे उस स्थिति में उबारा उन्होंने मुझे अपना कर शुद्ध किया जिससे मैं राम के हाथों पवित्र हुआ। जिस प्रकार किसी वस्तु को पानी से धोकर शुद्ध करते हैं उसी प्रकार मुझे राम नाम के जल से हनुमान ने शुद्ध किया। जिस प्रकार सम्पुट में रख कर किसी औषधि का पुटपाक करते हैं उसी प्रकार हनुमान ने मुझे राम के पाणियुगल से शुद्ध किया। ये तीनों ही भाव यहां संगत हैं। पाक का अर्थ जहां पवित्र लिया गया वहां यह फारसी का शब्द है। जहां पकाना अथवा पुटपाक अर्थ है वहां आयुर्वेद सम्मत है। सोध्यो का अर्थ भी इसी प्रकार शुद्ध करना और औषधि शोधन दोनों ही हैं। इस प्रकार हनुमान की कृपा से यह तुलसीदास गोस्वामी तुलसीदास बन गया, यह पदवी पाकर अपने बुरे दिनों को भूल गया। उसी कर्म के फल के रूप में यह कष्ट भोग रहा हूं।(३६){गीता प्रेस गोरखपुर छन्द क्र (४१)}असन बसन हीन विसम विसाद लीन् देखि दीन दूबरो करे न हाय हाय को।तुलसी अनाथ सों सनाथ रघुनाथ कियो दियो फल सीलसिन्धु आपने सुभाय को। नीच यहि बीच पति पाइ भरुआइ गो, विहाय प्रभु भजन मन बच काय को।तातें तनु पेखियत घोर बरतोर मिस फूटि फूटि निकसत लोन रामराय को।इस तुलसीदास को बचपन में रोटी कपड़ा भी नहीं मिल पाता था। यह भयंकर दुख झेलता था. इसकी उस दीन और दुर्बल दशा को देख कर ऐसा कौन था जो सहानुभूति से हाय हाय न करता हो। भगवान राम तो शील के समुद्र हैं उन्होंने अपने स्वभाव के अनुसार इसे अपना लिया जिससे यह अनाथ से सनाथ हो गया। रामचन्द्र ने इसे अपना कर तदनुरूप फल भी दिया जिससे यह प्रतिष्ठा पाकर बड़ा बन गया। अपनी नीचता के कारण बड़प्पन मिलते ही यह अभिमान में भरकर विवेक खो बैठा। इसने मन, वचन और कर्म से राम का भजन करना छोड़ दिया। ऐसा माना जाता रहा है कि जिसके राज्य में कोई निवास करता है तो वहां के राजा की कृपा से जिसकी जीविका चलती है, उसे राजा का नोन पानी खाना कहा जाता था। इसलिये जो व्यक्ति अवसर पड़ने पर राजभक्ति प्रदर्शित न करे उसे नमक हराम कहा जाता था। उससे लोग घृणापूर्वक कहा करते थे कि जिसका नमक खाया उसकी न निभाने पर यह नमक अंग अंग से फूट फूट कर निकलता है। उसी विश्वास के अनुसार तुलसीदास कहते हैं कि मेरे शरीर में जो अनेक बालतोड़ (व्रण विशेष) हुए हैं ये राम के प्रति नमकहरामी करने का ही फल है, इनके बहाने वह नमक फूट फूट कर रोम रोम से निकल रहा है।विशेष- रामराय शब्द यहां राजा का द्योतक है।विशेष 2भरुआइ, भरुहाइ और भहराय ये तीन पाठ मिलते हैं जिनमें कुछ अर्थ वैशिष्ट्य है। बुन्देली में भहरा जाना, भरा जाना, भर्रायटे पर होना सामान्य मुहावरा है। जिसका अर्थ होता है, छोटे से बड़ा होने के कारण अपनी औकात भूल जाना।(३७){खेमराज श्रीकृष्णदास  बम्बई छापा में (१६)}अपकीरति (अपयश) औरन के सुनके तब नेक नहीं मनमें पछताने।  लोभ तें क्षोभ तें रोसहु ते अपकार पराये किये हित जाने। तासु प्रभाव तें पीर कराल सो कानन के ढिंग आय सुठाने। लखो निज दास दुखी हरिदूत बली तुलसी ढिंग आय तुलाने । दूसरों की बुराई सुन कर प्रसन्न होने वालों को कर्णरोग होते हैं, इस आशय से कहते हैं कि पहिले तो दूसरों की बुराई-निन्दा आदि सुनकर मनमें दूसरों को भी अपने जैसा मानकर कुछ पछतावा नहीं हुआ, लोभवश, किसी पर क्षुब्ध होकर अथवा क्रोध में आकर दूसरों के काम को बिगाड़ा, उसे हानि पहुंचाई, जिसके कारण कानों के समीप भयंकर पीड़ा होने लगी। कराल पीड़ा ने कानों के पास अच्छा स्थान पाकर मानो डेरा जाल दिया हो। बलवान रामचन्द्र के दूत हनुमान ने जब अपने सेवक को कान की पीड़ा से दुखी देखा तो तुरन्त पास आकर पीड़ा दूर कर दी।(३८){खेमराज श्रीकृष्णदास  बम्बई छापा में (१७)}कर्म के प्रभाव की के काल के सुभाव की कै रोस के प्रभाव की कै विप्र अपमान की। परनारी नेह की कै नीचगेह भोग की कै, गमनी तू धोखें प्रेरी काहू अज्ञान की। तुलसी पुकार कहे भाग री निगोड़ी पीर श्रवण समीप देख बाहु बलवान की।आन कपिराज की सपथ सत्य साज की दुहाई हनुमान की जो रहे पीर कान की।कान की इस पीड़ा के होने के कारणों के संबंध में कहते हैं कि यह कान की पोड़ा कर्मों के फल का प्रभाव है, काल की गति के अनुसार हुई है, अथवा क्रोध के कारण है, अथवा ब्राह्मण का अपमान करने के कारण हुई है। पराई स्त्री से अनुचित प्रेम-संबंध के कारण है अथवा किसी नीच के घर रहकर भोग करने के कारण है, अथवा किसीके द्वारा किसी तन्त्र अथवा टोटका के द्वारा इसे प्रेरित किया गया है जो किसी अन्य के धोखे से यहां आ गई है। जो कुछ भी कारण हो उस कान की पीड़ा से तुलसीदास पुकार कर कहे देते हैं कि मेरे कानों के समीप बलवान हनुमान जी की अभय बांह रक्षा के लिये है इसलिये तू मेरा कुछ न बिगाड़ सकेगी अतः भाग कर दूर हो जा। तू असमर्थ है अज्ञान है। निगोड़ी का अर्थ किसी ने गोड़-पांव रहित होने से असमर्थ किया है। वास्तव में इस शब्द का अर्थ अज्ञानी अधिक ठीक हो सकता है। इसका मूल शब्द गुरु से संबंध है, साधुओं में जिस किसीने गुरु से दीक्षा न ली हो जिसने किसी को गुरु न बनाया हो उसे निगुरा कहते हैं यही निगुरा-निगुड़ा-निगोड़ा और स्त्री लिंग में निगोड़ी बन गया है। कान की पीड़ा को कपिराज कीआन है ,सत्य साज अर्थात सत्य संकल्प की शपथ है हनुमान की दुहाई देकर कहता हूं जो अब कान की पीड़ा रह जाये।(३९){खेमराज श्रीकृष्णदास  बम्बई छापा में (१८)}कूर कुजातिन श्रवणन के ढिग  व्याप रही मनो रावन रानी। अंजनीनन्दन के पग ध्यावत दूर पराय लजाय डरानी। श्रवनन शूल न व्यापहि फेर कहों प्रण रोप सुनो नर ज्ञानी। मान प्रतीति भजौ तुलसी सहि नाम भलौ हनुमान सुदानी ।कान की पीड़ा दूर हो जाने पर कहते हैं कि यह क्रूर कठोर कुजात कान की पीड़ा थी वह कानों में इस प्रकार फैली हुई थी मानो रावन की पत्नी कोई निशाचरी हो। अंजनी के पुत्र हनुमान के चरणों का स्मरण करते ही वह इसी प्रकार भाग कर लज्जित होकर दूर चली गई जिस प्रकार लंका में हनुमान को देखकर रावण के राजमहल में निशाचरीगण लज्जित होकर डर कर भाग जाती थी। मैं ज्ञानी पुरुषों को सुनाकर यह प्रतिज्ञा करके कहता हूं कि कानों में फिर कभी पीड़ा हो ही नहीं सकती यदि मनुष्य विश्वास के साथ परमकल्याणकारी हनुमान का नाम स्मरण करता रहे।कर्मविपाक के अनुसार 'अपयश औरन के सुनके' और 'कर्म के प्रभाव की कै' इन दो छन्दों में तुलसीदास ने उन कार्यों को गिनाया है जिन पापों के कारण कर्णपीड़ा हो सकती है। वीरसिंहावलोक नामक ग्रन्थ में बताया गया है कि-"मातापित्रोर्देवब्राह्मणानां गुरूणां चान्येन क्रियमाणां यो निन्दां श्रुणोति स कर्णशूली प्रस्त्रवत्पूयशोणितो भवति ।जो माता, पिता, बाह्मण और गुरुजनों की निन्दा किसी अन्य के द्वारा किये जाने पर सुनता है, उसे कर्णशूल रोग होता है। अथवा कान में से रक्त अथवा पीव बहता है।"कान की तात्कालिक पीड़ा शान्त करने के लिये तो अनेक उपाय हैं, उनमें सबसे उत्तम और शीघ्रलाभकारी चन्दन का तेल डालना है, उसके दो बूंद कान में डालते ही किसी भी कारण से पीड़ा हो रही हो तो तत्काल ठीक हो जाती है। कान की पीड़ा के लिये यह शाबर मन्त्र भी प्रभावकारी है-आसमीन नगोट वन्ही कर्म ही जायले दोहाई महावीर की जो रहे पीर कान कीबधिरता और कर्ण स्राव के लिये इन तीनों कवित्तों का पाठ इक्कीस दिन तक करने से लाभ होता है। बाईसवें दिन बेल की अथवा पलाश की समिधा लेकर 108 आहुति घी और काले तिल का हवन करे।(४०){खेमराज श्रीकृष्णदास  बम्बई छापा में (१३)}लोचन पीर प्रवेश कियौ तब पण्डित लोग सुनो परवाना। औषधि मूल विचारि हिये कर मारुतनन्दन के पग ध्याना। होइहि लोचन स्वच्छ सुहावन छूटहि पाप व्यथा बलवाना। रामकृपा बल पाय प्रतीति सदाई भजो तुलसी हनुमाना।तुलसीदास कहते हैं कि यदि नेत्रों में पीड़ा हो तो उसके विषय में प्रामाणिक उपचार कहता हूं। यह हृदय में विचार कर ले कि सब औषधियों की मूल औषधि यही है कि हनुमान के चरणों का ध्यान कर। इससे नेत्रों की लाली, कीचड़, आंसू आना आदि दूर होकर नेत्र स्वच्छ हो जायेंगे और यदि किसी पाप के कारण यह पीड़ा हुई होगी तो वह भी दूर हो जायगी। इसलिये राम की कृपा का बल पाकर सदैव विश्वासपूर्वक हनुमान का भजन कीजिये ।