Hanuman Baahuk Rahashy - 5 in Hindi Spiritual Stories by Ram Bharose Mishra books and stories PDF | हनुमान बाहुक रहस्य -प.गंगाराम शास्त्री समीक्षा - 5

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हनुमान बाहुक रहस्य -प.गंगाराम शास्त्री समीक्षा - 5

हनुमान बाहुक रह्स्य –प.गंगाराम शास्त्री समीक्षा  ५ ५ यह पुस्तक संस्कृत और तंत्र के बड़े विद्वान पण्डित गङ्गाराम शास्त्री जी सेंवढ़ा वालों द्वारा गहरे रिसर्च, अध्य्यन, अनुशीलन,खोज, अनुसंधान, तपस्या और प्रयोगों के बाद लिखी गयी है। इसमें बताये गये अर्थ और प्रयोग आम जनता को कृपा स्वरूप ही विद्वान लेखक ने पुस्तक स्वरूप में प्रदान किये हैं।(४१){खेमराज श्रीकृष्णदास  बम्बई छापा में (१४)}पूरब कुचाल की कराल बाड़ी नयन पीर, भाग भाग मान के प्रतीति मेरे बैन की ।नातर सजाय तोहि देंहिगे समीरसुत, बावरी न होय वाणी जान ज्ञान एन की।तुलसी समीप रहे रामदूत वीर बांके विरद बखाने वेद जनसुखदेन की । आन रामदूत की शपथ वायुपूत की दुहाई बुध एन की जो रहै पीर नैन की।किसी पूर्व जन्म के बुरे आचरण-खोटे काम के कारण जो भयंकर पीड़ा नेत्रों में हो रही है, तो हे पीड़ा, मेरी बात मानकर तू मेरे कहने पर विश्वास कर शीघ्र भाग जा, दूर हो जा। नहीं तो तुझे पवनपुत्र हनुमान सजा देंगे, तू पागल मत बन, इसे ज्ञान-निधान हनुमान का ही कहना समझ ले। तुलसीदास कहते हैं कि मैं उन बांके वीर हनुमान के समीप रहा हूं जिनका यश वेद वर्णन करते हैं जो भक्तों को सुखदेने वाले हैं। तुझे रामदूत हनुमान की आन है, पवनपुत्र की सौगन्ध है जो बुद्धि के अयन हैँ आलय हैं उनकी दुहाई है जो अब नेत्रों की पीड़ा रह जाय ।नेत्राधिष्यन्द-आई आंख की पीड़ा दूर करने के लिए नमक की डली लेकर अभिमन्त्रित  करते हुए आंखों को मन्त्र से झाड़े। पांच या सात बार झाड़कर इस नमक को किसी शुष्क तालाब अथवा जलाशय में फेंक दे। इस प्रकार दो तीन दिन झाड़ने से आई आंख की पीड़ा दूर होती है।(४२){खेमराज श्रीकृष्णदास  बम्बई छापा में (१५)}मारुतनन्दन के पग ध्यावत संचित जन्मन के अघ जाई। नयनन के ढिग  पीर न आवहि गावहि वेद सदा सुखदाई। नूतन निर्मल होइ सदा दृग निरखत दुष्ट डरै समुदाई। पाय प्रतीति सप्रीति हृदय हनुमान भजौ तुलसी सचु पाई।हनुमान का ध्यान करने से जन्म जन्म के संचित पाप दूर हो जाते हैं। उनके गुणों का गान वेद करते हैं. नेत्रपीड़ा तो नेत्रों के पास आ ही नहीं सकती। उनके स्मरण से नेत्र इतने नवीन और निर्मल हो जाते हैं कि उन्हें देखकर दुष्टों का समूह डरने लगता है। इस प्रकार विश्वास करके देख लो और प्रेम के साथ हनुमान का भजन कीजिये जिससे सुख मिले।प्रयोगआंखों की सभी प्रकार की पीड़ा और रोग दूर करने के लिये अनार अथवा अडूसे का झोंका लेकर उससे मन्त्र संख्या 40 की ग्यारह आवृत्ति करके झाड़ दे।प्रयोग नेत्राभिष्यन्द तो इस प्रकार तीन बार झाड़ने से ही ठीक हो जाता है, अन्य परवाल, मोतियाबिन्द आदि के लिये यह प्रयोग 21 दिन करना चाहिये ।(४३){खेमराज श्रीकृष्णदास  बम्बई छापा में (९)}कर्म के पाप परिताप कैधौं श्रापहू तें बाढ़ी सीस पीर सो तो महा दुखदाई है। यन्त्र मन्त्र टोटकादि औषधि अनेक किये घटत न नेक मानो अवलम्ब पाई है।/(और बल पाई है।)तुलसी कहत कर जोर छल छोड़नाथ तुम तें बली न जग और अधिकाई है। विनय मान महावीर दूर कीजे सीस पीर रामदूत तेरो यश सर्व वेद गाई है।तुलसीदास अपनी शिरोवेदना सिर की पीडा के सम्बन्ध में कहते हैं कि यह किसी बुरे कर्म का फल है. अथवा पाप की असह्य पीड़ा है अथवा किसी के शाप के कारण यह सिर की पीड़ा बढ़ गई है जिसके कारण बड़ा दुख हो रहा है। इसे दूर करने के लिये अनेक प्रकार के प्रयत्न किये, यन्त्र मन्त्रों से इसे दूर करना चाहा, टोटका भी किये, औषधियों का सेवन भी किया पर इन सबके द्वारा पीड़ा  दूर होना अथवा घटना तो दूर, यह उलटे इन सभी उपचारों से मानो बल पाकर और बढ़ रही है। हनुमान से बिना किसी छल कपट के कहते हैं कि है नाथ आपसे बढ़कर सँसार में अन्य कोई बली नहीं जिससे मैं अपनी पीड़ा दूर करने के लिये निवेदन करूं। इसलिये हे महा बली हनुमान, आप रामचन्द्र के दूत हैं, मेरी प्रार्थना पर ध्यान देकर सिर की पीड़ा को दूर कर दीजिये, आपका सुयश तो सभी वेदों में गाया गया है।(४४){खेमराज श्रीकृष्णदास  बम्बई छापा में (१०)}राम काज लागि अवतार लीन्हों कीशराय, जन की सहाय हेतु देर ना लगाइये। शीलधाम पूर्णकाम आठों जाम लेत नाम, कीशपति कृपा करि रोष बिसराइये । दास शीश पीर वीर कालनेमि सम जानि, वायुपूत लूम में लपेट के भमाइये। डाट के चपेट मार दूर डार कीशनाह पुण्यवाहु तुलसी के सीस ढिग ल्याइये।हनुमान जी आपने रामचन्द्र जी के कार्यसाधन के लिये अवतार लिया है, मैं राम का सेवक हूं अथवा आपका सेवक हूं अपने इस सेवक के काम के लिये आप देर न करें। आप शील के निवास स्थान हैं, स्वयं पूर्णकाम है और दूसरों की कामना पूर्ण करने वाले हैं, मैं तो दिनरात आठों पहर आपका ही नाम लेता रहता हूं, मेरी किसी भूल के कारण यदि आप अप्रसन्न हों तो मेरी उस भूल को क्षमा कर क्रोध न करें। मेरे सिर की यह पीड़ा कालनेमि के समान है जिसे आपने पूंछ में लपेट कर पछाड़ा था, उसी प्रकार मेरे सिर की इस पीड़ा को भी पूंछ में लपेट के घुमाते हुए इसे डांटते हुए एक ही चपेट में दूर कर दीजिये। हे वानरपति, अपना पवित्र हाथ मेरे सिर पर रखिये जिससे यह पीड़ा दूर हो।(४५){खेमराज श्रीकृष्णदास  बम्बई छापा में (११)}पाप के प्रभाव की कै कर्म के सुभाव की के काल की करालता कै प्रेरी काहू रीस की। मन्त्र यन्त्र टोटकी कै दुराचार मोट की कै पूर्व द्विजद्रोह अघ ओघ विसे बीस की। एते हेतु सम्भव पिशाची रूप शिखा पीर भाग जाहि वेगि बाणी जान बली कीश की। आन हनुमान की शपथ बलवान की दुहाई कपि ईश की जो रहे पीर शीश की।यह सिर की पीड़ा किसी पाप के प्रभाव के कारण है अथवा स्वभाव के अनुसार मिलने वाले कर्म का फल है, अथवा इस कलिकाल की भयंकरता के साथ है अथवा किसीने क्रोध कर इसे मुझ पर प्रेरित किया है। अथवा किसीने कोई मन्त्र टोटका किया है जिसके कारण मुझे यह पीड़ा है, अथवा मेरे खोटे आचरणों का फल है, अथवा पूर्व जन्म में मैंने किसी अथवा किन्हीं ब्राह्मणों से बैर किया हो उसके कारण मेरे पापों के समूह के फलस्वरूप है। यह बीसों विस्वे अर्थात् पूरी तौर से इनमें से किसी कारण है। इन्हीं कारणों से यह पिशाचिनी सिर की पीड़ा होती है। इसके इतने ही कारण हो सकते हैं। यह तुलसीदास का कथन नहीं, इसे हनुमान की आज्ञा समझ कर तू शीघ्र ही दूर हो जा। तुझे हनुमान की आन है, बलवान हनुमान की सौगन्ध है, दुहाई हनुमान की जो मेरे सिर की पीड़ा रहे।(४६){खेमराज श्रीकृष्णदास  बम्बई छापा में (३३)}{गीता प्रेस गोरखपुर छन्द क्र (३३)}तेरे बल वानर जिताये रन रावन सो तेरे घाले जातुधान भये घर घर के। तेरे बल राम राज किये सब सुरकाज,सकल समाज साज साजे रघुबर के। तेरे गुन-गान सुनि गीरवान पुलकित्, सजल विलोचन विरंचि हरि हर के। तुलसी के माथे पर हाथ फेरो कीस नाथ, देखिये न दास दुखी तोसे कनिगर के।आपके बल के सहारे ही वानरों ने रावण को युद्ध में जीता। आपके द्वारा सताये हुए राक्षस कहीं के न रहे वे बिना ठौर ठिकाने मारे मारे फिरे। उन्हें कोई आश्रय न दे सका। आपके बल से ही रामचन्द्र ने देवताओं के सभी कार्य किये। आपने ही राम के और उनके समाज के सभी काम भलीभांति सम्पन्न किये। आपके गुणों का वर्णन सुनकर देवता भी अत्यन्त प्रसन्न होते हैं। बह्मा, विष्णु, और शिव के भी आखों में प्रेमाश्रु छलकने लगते हैं। हनुमान जी, आप तुलसीदास के मस्तक पर अपना हाथ फेर कर उसे सान्त्वना दीजिये, उसे अपने वरद हस्त की छाया में ले लीजिये। आपके समान मर्यादा का पालन करने वाला होने पर भी आपके सेवक को दुखी नहीं रहना चाहिये।(४७){खेमराज श्रीकृष्णदास  बम्बई छापा में (१२)}आरत बैन पुकारत ही कपिनाथ न नेक अवार लगाये। राघवदूत अकूत बली जनहेतु विशाल लंगूल लफाये। शीश की पीर निशाचरि लंकिनि पुच्छ समेट पछारि भमाये। गात सुभाग भये तबहीं जबहीं तुलसी हनुमान मनाये।इस प्रकार व्याकुल होकर पुकारते ही हनुमान ने कुछ भी देर नहीं की। रामचन्द्र के दूत हनुमान ने जो अतुल बलशाली हैं, उसी समय अपनी पूंछ को घुमाया और उसमें सिर की पीड़ा रूप लंकिनी को लपेट कर पछाड़ दिया। जिस प्रकार उन्होंने पूंछ में लपेट कर लंकिनी को पछाड़ा था, उसी प्रकार मेरी पीड़ा दूर कर दी। जैसे ही हनुमान का स्मरण कर मनौती की, उसी समय शरीर स्वस्थ हो गया, सारी पीड़ा दूर हो गई।प्रयोग'कर्म के पाप परिताप से लेकर हनुमान मनाये' तक पांच छन्दों को ग्यारह बार पढ़ कर सिर पर फूंक मार कर झाड़ने से लाभ होता है। इसके साथ ही रोगी को चाहिये कि अपनी तर्जनी अंगुली के अगले दो पोर की नाप के बराबर लोहे की कील लेकर बड़े प्रातःकाल नीम के पेड़ में गाड़ दे। कील गाड़ने तक न तो रोगी को कोई टोके और न वह किसी से बोले ।प्रयोग 2आधासीसी के दर्द में रोगी के आधे दायें अथवा बायें भाग में सूर्योदय के साथ ही दर्द होने लगता है, यह पीड़ा सूर्य के तेज होने के साथ दोपहर तक बढ़ती जाती है, फिर धीरे धीरे कम होकर सूर्यास्त के समय बिलकुल नहीं रहती। इसके लिये उक्त मन्त्रों से ग्यारह बार झाड़ने के साथ ही रविवार अथवा बुधवार को इन्हीं मन्त्रों से अभिमन्त्रित लाल अपामार्ग की जड़ को रोगी के कान से बांध देने से अगले दिन से आधासीसी की पीड़ा नहीं होती। हां इतना अवश्य है कि इस प्रयोग के दिन अन्य दिनों की अपेक्षा कुछ अधिक ही पीड़ा प्रतीत होती है। परन्तु इससे घबड़ाकर उस औषधि को अलग नहीं करना चाहिये ।(४८){खेमराज श्रीकृष्णदास  बम्बई छापा में (१९)}दशनन की व्याधि भई छाया ग्रहनी समान भेषज तें घटे ना न डरे काहू आन को। कहों बार बार ही पुकार सुनो ज्ञानी लोग विनय सुनावो वेग वीर हनुमान को। करेंगे न वार कीशनाथ हैं उदार, रामदूत भले जानत हैं रीति प्रीति ध्यान को। हरेंगे विषम पीर राख के प्रतीत धीर तुलसी मनाउं हिये कीश बलवान को।समुद्र में एक राक्षसी रहती थी जो आकाश में उड़ने वाले पक्षियों की छाया पड़ते ही उन्हें आकर्षित कर पकड़ कर खा जाती थी । तुलसीदास कहते हैं कि मेरी दांतों की पीड़ा भी छाया के समान हो रही है जो औषधि का सेवन करने से कम नहीं होती और किसी भी देवी देवता की आन नहीं मानती। इसलिये ज्ञानी लोगों से पुकार कर मैं बार बार कहे देता हूं कि ऐसी विकट दन्तपीड़ा  होने पर देर न करते हुए शीघ्र ही हनुमान से विनती करना चाहिये। हनुमान बड़े ही उदार हैं, वे देर न करेंगे, वे राम के दूत ध्यान करने की रीति और सच्ची प्रीति को जानते हैं। धैर्य  धारण कर विश्वास रखिये वे भयंकर पीड़ा को दूर कर देंगे, तुलसीदास तो मन में केवल बलवान हनुमान को ही मनाता है।(४९){खेमराज श्रीकृष्णदास  बम्बई छापा में (२०)}पूरब अघमोट की है कैधौं रोष टोटकी है कैधौं  भई बड़े विप्र वंश के दुखाव सों। भेषज न माने तू हठीली बड़ी एते वार दीन्हें दुख धोके कूर कर्म के प्रभाव सों। तुलसी पुकार कहे भाग भाग वेग अब नातर गहेंगे कीश ईश बल भाव सों। मारेंगे पछार तोहि लंकिनी समान जान डारि देहें दूर कहूं लूम के लफाव सों।तुलसीदास पीड़ा से कहते हैं कि तू मेरे किसी पूर्वजन्म के पापों के समूह के कारण हुई है अथवा किसीने क्रोध कर कोई यन्त्र मन्त्र टोटका करके तुझे मेरे पास प्रेरित किया है अथवा किसी ब्राह्मण वंश को मैंने दुख पहुंचाया जिसके कारण यह पीड़ा हुई। तुझे दूर करने के लिये जिस किसी दवा का प्रयोग किया जाता है, उसका कोई प्रभाव नहीं होता। तू बड़ी हठीली है, हठ करके सता रही हैं, इतनी देर हो चुकी है। तूने बड़ा कष्ट दिया है। किसी के द्वारा क्रूर कर्म मारण आदि का प्रयोग किये जाने से तू धोखा खाकर यहां मेरे पास आ गई है, तुझे नहीं मालूम कि मैं हनुमान का सेवक हूँ। अब पुकार कर कहे देता हूं कि तू शीघ्र ही भाग जा, नहीं तो हनुमान तुझे अपने बल का स्मरण कर पकड़ लेंगे और तुझे लंकिनी के समान समझकर पछाड़ कर मार डालेंगे अथवा अपनी पूंछ में लपेट कर कहीं बहुत दूर घुमा कर फेंक देंगे।(50){खेमराज श्रीकृष्णदास  बम्बई छापा में (२१)}कुल के कपट की के रोष के दपट की के मोह के झपट तें प्रगट भई तू पातकी। विप्र मानभंग की के वसे नीच संग की के साधु सों विवाद कीन्हें झूठ हठ बात की। तुलसी कहत एते सम्भवित रद रोग भाग भाग वाणी अब जान वातजात की। आन हनुमन्त की शपथ बलवन्त की दुहाई महावीर की जो रहे पीर दांत की।इतने पर भी पीड़ा शान्त न होने पर कहते हैं कि वंश में किसीसे कपट व्यवहार करने के कारण तू पैदा हुई है, अथवा क्रोध की प्रबलता के कारण है, अथवा मोह के आवेग के कारण तू पापिनी पीड़ा प्रकट हुई है। किसी ब्राह्मण का अनादर करने के कारण तो यह पीड़ा नहीं है, अथवा किसी नीच की संगति के पाप का फल है, अथवा किसी साधु पुरुष से झूठा हठ ठान कर विवाद करने के कारण यह पीड़ा हो रही है। इतने ही पापों के कारण दांतों के रोग हो सकते हैं। इनमें से कारण जो भी कुछ हो, पर अब तो तुझे हनुमान की आज्ञा मानकर भागना ही पड़ेगा तू भाग जा। मैं हनुमान की आन से कहता हूँ, बलवान कीशराज की शपथ से कहता हूं, महावीर की दुहाई दे रहा हूं कि अब मेरी जो यह दांत की पीड़ा रह जाय।