कमरे के अंदर – समीरा की प्रतिक्रिया
समीरा अपने कमरे में अकेली बैठी थी। किताब उसकी गोद में खुली पड़ी थी, लेकिन उसका ध्यान कहीं और था। खिड़की से आती हल्की हवा के झोंके ने पर्दों को धीमे-धीमे हिलाया, और कमरे में एक सुकून भरी शांति थी। वह कुछ देर तक किताब के पन्नों को घूरती रही, लेकिन उसकी सोच इधर-उधर भटक रही थी।
तभी, उसने हल्की आहट सुनी। उसकी अनुभवी समझ ने तुरंत भांप लिया कि उसकी माँ दरवाजे के पास हैं। अगले ही पल दरवाजा खुलने की आवाज आई, और उसने झट से किताब के पन्ने पलटकर पढ़ने का नाटक करना शुरू कर दिया। वह जानती थी कि उसकी माँ को यह देखकर अच्छा लगेगा कि वह पढ़ाई में मग्न है।
राधा कमरे में दाखिल हुईं और ट्रे को टेबल पर रखते हुए मुस्कुराईं। उनकी मुस्कान में ममता भरी थी। उन्होंने अपनी बेटी को किताब में पूरी तरह डूबे हुए देखा और मन ही मन गर्व महसूस किया।
"बेटा, थोड़ा कुछ खा लो। तुमने काफी देर से कुछ नहीं खाया," राधा ने प्यार से कहा।
समीरा ने सिर उठाया और बिना किसी झिझक के बोली, "मम्मा, अभी मेरा पूरा ध्यान पढ़ाई में है, बाद में खा लूंगी।"
राधा ने उसकी चालाकी भांप ली, लेकिन उन्होंने कुछ नहीं कहा। बस हल्की हँसी हंसते हुए बोलीं, "अच्छा! मतलब किताब से नजरें हटाने का भी समय नहीं है?"
समीरा ने हल्की मुस्कान के साथ कहा, "हां, क्योंकि एग्जाम की तैयारी बहुत जरूरी है, और आप ही तो हमेशा कहती हैं कि पढ़ाई के साथ कोई लापरवाही नहीं होनी चाहिए।"
राधा ने प्यार से समीरा के सिर पर हाथ फेरा और कहा, "हां बेटा, लेकिन पढ़ाई के साथ सेहत भी जरूरी है। खाना खा लो, फिर आराम से पढ़ाई करना।"
समीरा ने ट्रे की ओर देखा और धीरे से प्लेट उठा ली। खाना देखकर उसे अहसास हुआ कि वाकई उसे भूख लगी थी। उसने बिना कुछ कहे धीरे-धीरे खाना खाना शुरू कर दिया।
राधा ने संतोष की सांस ली और बोलीं, "अच्छी बात है, और हां, जरूरत से ज्यादा तनाव मत लेना।"
समीरा ने सिर हिलाया और अपने खाने में लग गई। इस बार वह सच में पढ़ाई के बारे में सोचने लगी थी, क्योंकि उसे लगा कि यदि पढ़ाई का नाटक करना है तो थोड़ा बहुत पढ़ भी लेना चाहिए।
बाहर हॉल में – अजय और राधा की बातचीत
राधा जब कमरे से बाहर आईं, तो उन्होंने देखा कि अजय हॉल में खड़े थे। वह अपने मोबाइल में कुछ देख रहे थे, लेकिन उनकी नजरें बीच-बीच में समीरा के कमरे की ओर जा रही थीं।
राधा ने मुस्कुराते हुए कहा, "समीरा तो नाटक करने में भी उस्ताद हो गई है।"
अजय ने भौहें चढ़ाकर पूछा, "मतलब?"
राधा ने हँसते हुए कहा, "मतलब ये कि बेटी तुम्हारी है, तुम्हारी आदतें उसमें आ गई हैं। जब जरूरत होती है तो काम करने का दिखावा भी करना आना चाहिए।"
अजय ने मुस्कान दबाते हुए कहा, "हम्म... लेकिन कम से कम वह सही चीज़ का नाटक कर रही है – पढ़ाई का!"
राधा ने सिर हिलाया और कहा, "हाँ, और यही तुम्हारी सख्ती का असर है कि वह भी हर समय खुद को पढ़ाई में व्यस्त दिखाने की कोशिश करती है।"
अजय ने गहरी सांस ली और कहा, "मुझे बस इतना चाहिए कि वह अपने करियर को लेकर गंभीर रहे।"
राधा ने प्यार भरी नजरों से उन्हें देखा और कहा, "वह है भी, लेकिन उसे कभी-कभी थोड़ा आराम भी देने की जरूरत है।"
अजय ने सहमति में सिर हिलाया और दोनों मुस्कुराते हुए किचन की ओर बढ़ गए।
कमरे में – समीरा की सोच
इधर, समीरा अब सचमुच अपनी किताब पर ध्यान देने लगी थी। उसने महसूस किया कि जब वह अपनी माँ को दिखाने के लिए पढ़ाई का नाटक कर रही थी, तब भी वह कुछ न कुछ सीख ही रही थी। उसे अपनी परीक्षा की चिंता थी, लेकिन साथ ही वह यह भी जानती थी कि उसका दिमाग थका हुआ महसूस कर रहा है।
उसने कुछ देर तक किताब पढ़ी, लेकिन फिर खिड़की की तरफ देखने लगी। बाहर चिड़ियों की चहचहाहट थी, और हल्की हवा चल रही थी। उसे लगा कि शायद थोड़ा टहलने से उसका मन तरोताजा हो जाएगा। लेकिन फिर उसे याद आया कि अगर वह बाहर गई, तो उसके माता-पिता को लगेगा कि वह पढ़ाई से भाग रही है।
समीरा ने एक लंबी सांस ली और सोचा, क्या मैं सच में पढ़ाई को लेकर इतनी गंभीर हूँ, या बस मम्मी-पापा को खुश करने के लिए पढ़ने का दिखावा कर रही हूँ?
यह ख्याल उसे थोड़ा परेशान कर गया।
उसे अपने माता-पिता से बहुत प्यार था, और वह उन्हें निराश नहीं करना चाहती थी। लेकिन उसे यह भी समझ में आया कि अगर वह खुद को जबरदस्ती पढ़ाई में धकेलेगी, तो उसका मन पढ़ाई से उचट जाएगा।
समीरा ने किताब बंद कर दी और कुछ देर के लिए अपनी आँखें बंद कर लीं। उसे अहसास हुआ कि माँ सही कह रही थीं – पढ़ाई जरूरी है, लेकिन सेहत भी उतनी ही जरूरी है। उसने तय किया कि वह थोड़ा आराम करेगी और फिर तरोताजा होकर पढ़ाई करेगी।
थोड़ी देर बाद, समीरा ने अपनी किताब फिर से खोली और पूरे मन से पढ़ाई में जुट गई। अब वह केवल दिखावा नहीं कर रही थी, बल्कि वाकई में सीखने का प्रयास कर रही थी |
पुराना गोदाम: डॉन दानिश सानियाल के खिलाफ साजिश
शहर के बाहरी इलाके में स्थित यह पुराना गोदाम अब खंडहर में तब्दील हो चुका था। एक समय यह व्यापारियों की मालगाड़ी का ठिकाना हुआ करता था, लेकिन अब यहाँ बस धूल, जंग लगे लोहे की चादरें और अंधेरे कोनों में छिपे चूहे और कीड़े ही दिखाई देते थे। गोदाम के अंदर एक कमजोर बल्ब की रोशनी टिमटिमा रही थी, जिससे वहां की डरावनी छाया और भी भयानक लग रही थी। जगह-जगह टूटे हुए लकड़ी के बक्से और फटे-पुराने टायर पड़े थे। हवा में सीलन और सिगरेट के धुएँ की गंध घुली हुई थी।
एक बड़ी लोहे की टेबल के चारों ओर पाँच आदमी बैठे थे। उनके चेहरे गंभीर और इरादे सख्त थे। मेज पर एक पुराना नक्शा और कुछ कागज़ बिखरे हुए थे, जिन पर अंडरवर्ल्ड की दुनिया से जुड़े कुछ नाम लिखे थे।
पहला आदमी, जिसका नाम इकबाल था, उसने टेबल पर जोर से मुक्का मारा। वह उम्र में सबसे बड़ा था और इस गैंग का पुराना सदस्य था। उसकी आँखें गुस्से से लाल हो रही थीं। उसने बाकी लोगों की तरफ देखा और कहा,
"दानिश के रहते हम कभी कामयाब नहीं हो सकते! वह हमें मुसीबत में डाल रहा है। इस धंधे को हमने पैदा किया था, लेकिन सारा मुनाफा वही खा जाता है। अब और बर्दाश्त नहीं होगा। उसे खत्म करना ही होगा!"
दूसरा आदमी, जिसका नाम करीम था, उसने सिर झटका और धीरे से कहा,
"दानिश नहीं, डॉन कहो! तुम अच्छी तरह जानते हो कि वह कितना खतरनाक है। वह किसी को भी मौत के घाट उतारने से पहले एक पल भी नहीं सोचता। हमें बहुत ही संभलकर कदम उठाना होगा। अगर हम किसी गलती कर बैठे, तो हमारी लाशें भी किसी को नहीं मिलेंगी!"
तीसरा आदमी, अली, जो करीम की इस बात से गुस्से में आ गया, उसने अपने चाकू को टेबल पर पटका और चिल्लाया,
"चुप कर, डरपोक! तू क्या कहना चाहता है? हम हाथ पर हाथ रखकर बैठे रहें? तू भूल गया कि तेरे भाई को मारने वाला वही दानिश था! अगर हम आज भी चुप रहे, तो कल हमारा भी यही हाल होगा। इस काली दुनिया को अब एक नए डॉन की जरूरत है!"