Tere ishq mi ho jau fana - 12 in Hindi Love Stories by Sunita books and stories PDF | तेरे इश्क में हो जाऊं फना - 12

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तेरे इश्क में हो जाऊं फना - 12

रिटा का जुनून

रिटा के होंठों पर एक शरारती मुस्कान थी। उसकी आँखों में चमक थी, जैसे कोई शिकार अपनी चालाकी पर इतराता हो। वह दानिश के कमरे में खुद को उसकी मौजूदगी में महसूस कर रही थी, उसकी खुशबू तकियों में समाई थी। उसने तकिये को और कसकर पकड़ लिया और आँखें बंद करके एक गहरी सांस ली।

"एक दिन तुम मेरे हो जाओगे, दानिश!" उसने हल्के से फुसफुसाते हुए कहा।

वह उठी और कमरे का मुआयना करने लगी। उसकी नज़र दानिश की टेबल पर रखी किताबों पर गई। उसने एक किताब उठाई, उसकी कवर को सहलाया और फिर पलटने लगी। बीच में रखी एक तस्वीर पर उसकी नज़र गई। यह दानिश की तस्वीर थी—ब्लैक एंड व्हाइट, मगर उसमें भी उसकी आँखों की गहराई झलक रही थी।

"ओह, तुम तो सच में बहुत हॉट हो," रिटा ने तस्वीर को देखकर कहा। उसने तस्वीर को अपने दिल से लगाया और एक धीमी मुस्कान के साथ बिस्तर पर लौट आई।

उसका मन अब बेचैन हो उठा था। उसने तकिये पर अपना सिर रखा और सोचने लगी—कैसे वह दानिश को अपना बना सकती है? उसे पता था कि दानिश सीधा-सादा लड़का नहीं था। उसके आसपास लड़कियों की कोई कमी नहीं थी, मगर वह किसी से भी ज्यादा जुड़ता नहीं था। शायद यही उसकी सबसे बड़ी चुनौती थी और यही आकर्षण का सबसे बड़ा कारण भी।

"लेकिन तुम मुझे अनदेखा नहीं कर सकते, दानिश!" उसने खुद से कहा।

उसका दिल तेजी से धड़क रहा था। उसकी उंगलियाँ तकिये के कोने को मरोड़ने लगीं। उसने अपनी आँखें बंद कर लीं और कल्पना में खो गई—एक ऐसी दुनिया जहाँ दानिश सिर्फ उसका था।

कल्पना की दुनिया

वह खुद को दानिश के साथ देख रही थी। एक खूबसूरत शाम थी, समुद्र के किनारे दोनों हाथों में हाथ डाले टहल रहे थे। हवा उनके बालों से खेल रही थी। दानिश ने उसकी ओर देखा और मुस्कराया।

"तुम्हें पता है, रिटा?" उसने कहा।

"क्या?" उसने दिलचस्पी से पूछा।

"तुम्हारी आँखों में कुछ ऐसा है जो मुझे बाँध लेता है।"

रिटा का दिल तेजी से धड़कने लगा। उसने अपनी कल्पना में देखा कि दानिश उसके और करीब आया और उसके चेहरे को अपने हाथों में लेकर उसके होंठों को छू लिया।

"ओह, दानिश!" उसने तकिये को कसकर भींच लिया और उसकी पकड़ और मजबूत हो गई।

लेकिन तभी हकीकत की ठंडी हवा ने उसकी कल्पना को झकझोर दिया।

हकीकत का सामना

वह झटके से उठी और कमरे में इधर-उधर देखने लगी। दानिश अभी तक वापस नहीं आया था। वह जानती थी कि उसे ज्यादा देर तक यहाँ नहीं रुकना चाहिए, वरना कोई देख लेता तो मुसीबत खड़ी हो सकती थी।

मगर उसका दिल मानने को तैयार नहीं था। वह एक बार फिर दानिश की अलमारी के पास गई। वहाँ उसके कुछ जैकेट्स टंगे थे। उसने एक जैकेट उठाई और उसे अपनी बाहों में लपेट लिया। जैकेट में से दानिश की खुशबू आ रही थी।

"अगर तुम मुझसे दूर भागोगे, तो मैं तुम्हारे और करीब आऊँगी," उसने खुद से कहा।

अब उसके दिमाग में एक योजना बनने लगी थी। उसे पता था कि उसे बस सही मौके का इंतजार करना होगा, और फिर वह दानिश को अपने जाल में फँसा लेगी।

अचानक, उसे बाहर किसी के कदमों की आहट सुनाई दी। वह जल्दी से अलमारी के पास से हटी और बिस्तर की चादर ठीक करने लगी।

दरवाजा खुला और दानिश अंदर आया। वह थोड़ा थका हुआ लग रहा था। उसने रिटा को अपने कमरे में देखा और थोड़ा हैरान हुआ।

"रिटा? तुम  अभी तक यहाँ क्या कर रही हो?"

रिटा ने तुरंत एक मासूमियत भरी मुस्कान ओढ़ ली।

"कुछ नहीं, बस जा ही रही थी।" उसने धीरे से कहा।

दानिश ने अपनी भौंहें चढ़ाईं, लेकिन कुछ बोला नहीं। वह अपनी घड़ी देखने लगा, फिर अलमारी की ओर बढ़ा।

रिटा को एक अजीब-सी खुशी महसूस हुई। वह जानती थी कि यह सिर्फ शुरुआत थी। अब खेल शुरू हो चुका था, और यह खेल वह हर हाल में जीतना चाहती थी।

"तुम्हारा पीछा इतनी आसानी से नहीं छोडूंगी, दानिश!" उसने मन ही मन दोहराया।

माथूर हाउस – समीरा का कमरा

शाम का समय था। सूरज हल्की रोशनी बिखेरते हुए धीरे-धीरे अस्त हो रहा था। हवा में हल्की ठंडक थी, लेकिन कमरे के अंदर एक अलग ही माहौल था। समीरा अपने कमरे में बिस्तर पर बैठी थी। उसकी गोद में एक किताब थी, लेकिन उसका ध्यान कहीं और था। किताब के पन्ने तो पलट रहे थे, लेकिन उसकी आँखें शून्य में टिकी थीं। शायद कोई ख्याल उसके दिमाग में उमड़-घुमड़ रहा था।

कमरे में हल्की रोशनी थी, टेबल लैम्प जल रहा था, जिससे उसकी छाया दीवार पर बड़ी सी दिख रही थी। समीरा का कमरा किसी भी आम किशोरी के कमरे जैसा था – एक तरफ एक बड़ी अलमारी थी जिसमें ढेरों किताबें और कुछ सजावट की चीजें रखी थीं। दीवारों पर कुछ प्रेरणादायक कोट्स लगे हुए थे, और एक कोने में एक छोटी सी स्टडी टेबल थी जिस पर कुछ नोट्स और स्टेशनरी रखी थी।

तभी, अचानक, दरवाजे के पास किसी के कदमों की आहट सुनाई दी। यह हल्की लेकिन स्पष्ट आवाज थी। समीरा जो अभी तक अपने ख्यालों में खोई हुई थी, तुरंत सतर्क हो गई। उसकी आँखें दरवाजे की ओर मुड़ गईं। यह एक जानी-पहचानी आहट थी। शायद उसके डैड थे।

दरवाजा धीरे-धीरे खुला। उसने अपनी आँखों के कोने से देखा कि अंदर आने वाला कोई और नहीं, बल्कि मिस्टर अजय माथूर ही थे। उनके आते ही समीरा को जैसे ही एहसास हुआ कि वे उसे देखने आए हैं, उसने फौरन अपनी किताब पर ध्यान लगाने का नाटक शुरू कर दिया। वह जोर-जोर से पन्ने पलटने लगी और ऐसे दिखाने लगी जैसे वह गहराई से पढ़ाई में डूबी हुई हो।

मिस्टर अजय माथूर दरवाजे पर खड़े होकर अपनी बेटी को गौर से देखने लगे। उनके चेहरे पर हल्की संतुष्टि झलक रही थी। उन्होंने सोचा, "अच्छा है, पढ़ाई में मन लगा रही है।" वे ज्यादा कुछ कहे बिना ही वापस मुड़ गए।

जैसे ही वे कमरे से बाहर निकले, वे अपनी पत्नी राधा से टकरा गए, जो हाथ में ट्रे लेकर आ रही थीं। ट्रे में एक प्लेट में सैंडविच और एक गिलास दूध रखा था।

राधा ने अजय को चौंककर देखा, "अरे, आप अंदर गए भी और बिना कुछ कहे वापस क्यों आ गए?"

अजय ने हल्की मुस्कान के साथ कहा, "समीरा पढ़ाई कर रही थी, इसलिए उसे डिस्टर्ब नहीं किया। वैसे भी, बातचीत तो होती रहेगी, अभी जरूरी यह है कि वह अपनी पढ़ाई पर ध्यान दे।"

राधा ने हल्के मजाकिया लहजे में कहा, "वाह! यह तो वही बात हुई कि खुद तो दिनभर उपदेश देते हो कि समय बर्बाद मत करो और जब बेटी पढ़ाई कर रही हो तो बिना कुछ बोले ही लौट आते हो!"

अजय ने हल्की झेंप के साथ जवाब दिया, "हां भई, जब बच्ची सही काम कर रही हो तो मैं क्यों उसे डिस्टर्ब करूं?"

राधा मुस्कुराई और बोली, "बिल्कुल सही, वैसे मैं उसे खाना देने जा रही थी। कल उसका एग्जाम है, तो मैंने सोचा कि उसे बाहर बुलाने से अच्छा है कि मैं ही  कमरे में दे आऊं। कहीं खाने के लिए आकर वह अपना समय बर्बाद न कर दे।"

राधा ने जानबूझकर यह बात चुटकी लेते हुए कही क्योंकि अजय हमेशा यह बात दोहराते रहते थे कि पढ़ाई के दौरान कोई भी चीज़ समय बर्बाद करने का बहाना नहीं बननी चाहिए।

अजय ने हल्के से सिर हिलाया और मुस्कुराते हुए बोले, "हां, यही तो मैं भी चाहता हूं कि वह पूरी तरह पढ़ाई पर ध्यान दे।"

राधा ने सिर हिलाया और फिर धीरे-धीरे समीरा के कमरे की ओर बढ़ गईं।