संजना और हर्षवर्धन एक बड़े, आलीशान लेकिन सुनसान से वैयर हाऊस के डायनिंग टेबल पर बैठे थे। संजना की थाली में गरम-गरम दाल, चावल, और कुछ सब्जियाँ परोसी गई थीं, लेकिन उसे देखकर ही उसका मुंह बिगड़ गया। उसने चम्मच से दाल को हिलाते हुए नाक सिकोड़ ली और फिर बड़े ही नाटकीय अंदाज में कहा,
"भला ये कैसा बेकार सा खाना है? उफ्फ, मुझे तो पास्ता, बर्गर, पिज्जा जैसी चीज़ें पसंद हैं! ये उबली हुई सब्ज़ियाँ और दाल-चावल कैसे कोई खा सकता है?"
हर्षवर्धन, जो अब तक चुपचाप अपने खाने में व्यस्त था, संजना की बात सुनकर हल्का सा मुस्कुराया और अपनी नज़रे उठाकर उसे देखने लगा। उसकी आँखों में एक अजीब सी शरारत थी। उसने अपनी कुर्सी से थोड़ा झुकते हुए कहा,
"तुम्हें देख कर तो ऐसा नहीं लगता कि तुम बर्गर और पिज्जा की इतनी शौकीन हो। तुम तो इतनी पतली-दुबली हो!"
संजना ने झट से जवाब दिया,
"हां, दरअसल मेरी सुषमा मासी कहती हैं कि मुझे कुछ लगता ही नहीं। मैं कितना भी खा लूं, मेरा वजन कभी बढ़ता ही नहीं। सच बताऊं तो मासी को मेरी चिंता रहती है, लेकिन मैं तो खुश हूँ अपने ऐसे ही रहने से!"
हर्षवर्धन ने उसकी बातें सुनी और धीरे से सिर हिलाते हुए गहरी सांस ली। फिर अपने सख्त लहजे में कहा,
"बहुत अच्छी बात है कि तुम्हें अपने वजन की चिंता नहीं है, लेकिन फिलहाल तुम्हें यहां यही खाना पड़ेगा। मैं तुम्हें यहां तुम्हारे नखरे उठाने के लिए नहीं लाया हूँ। समझी? तुम मेरी कैदी हो, और ये बात हमेशा याद रखना!"
संजना की आँखें चौड़ी हो गईं। उसने अपनी जगह पर थोड़ा असहज होकर कहा,
"कैदी? ओह, फिर से वही डायलॉग! तुम्हें हर वक्त ऐसे क्यों बोलना होता है, जैसे कोई फिल्मी विलेन हो?"
हर्षवर्धन ने हल्की सी हंसी दबाई लेकिन फिर अपने गंभीर चेहरे के साथ कहा,
"और हां, अगली बार गलती से भी यहां से भागने की कोशिश मत करना। क्योंकि यहां चारों तरफ घना जंगल है। और उस जंगल में भयंकर जंगली जानवर हैं… जो सिर्फ मुझे पहचानते हैं। उन्हें मेरी आदत है, लेकिन अगर उन्होंने तुम्हें देख लिया तो…"
उसने बात अधूरी छोड़ दी और अपनी आँखों से संजना को घूरा।
संजना ने घबराकर इधर-उधर देखा और फिर धीरे से बोली,
"सच में?
हर्षवर्धन ने मज़ाकिया अंदाज में कहा,
"बड़ी-बड़ी आँखों वाले उल्लू, डरावनी आवाज़ निकालने वाले भेड़िये, और सबसे खतरनाक—भूखे बाघ!" तुमने देखा भी था भूल गई |
संजना की आँखें और भी बड़ी हो गईं। उसने तुरंत अपनी प्लेट की तरफ देखा और धीरे से एक कौर मुंह में डाल लिया। हर्षवर्धन ने यह देखकर अपनी मुस्कान दबाने की कोशिश की लेकिन उसकी आँखें चमक रही थीं।
थोड़ी देर बाद, संजना ने धीमे स्वर में कहा,
"हम्म… खाना इतना भी बुरा नहीं है जितना मैंने सोचा था। पर इसका मतलब ये नहीं कि मैं यहाँ हमेशा रहूंगी!"
हर्षवर्धन ने जवाब दिया,
"अच्छा? तो तुम भागोगी?"
संजना ने शरारती अंदाज में कहा,
"पता नहीं… हो सकता है!"
हर्षवर्धन ने उसकी इस मासूम सी धमकी पर हल्का सा सिर हिलाया और कहा,
"देखते हैं, मेरी कैदी आखिर कब तक अपनी कैद में रहने के लिए तैयार होती है।"
संजना ने नाक चिढ़ाते हुए अपनी प्लेट से एक और कौर उठाया और मन ही मन सोचा—"कैद? या कुछ और?"
वही दूसरी तरफ संजना के बगले में जब तीनो सहेलियों घर लौटती तो सुषमा मासी ने कहा", कहा रहे गई थी वक्त देखा है मैं सोची कही तुम्हें भी तो किसी ने किडनैप तो नही कर लिया है | लवली ने कहा, " वो हम देर तक कालेज मैं ही पढाई कर रहे थे
(और इसी के साथ, इस कहानी में कहीं न कहीं एक मीठी सी शुरुआत हो चुकी थी!)