अंकित के कमरे में जाने के बाद विशाल को मौका मिल गया था। उसने बिना समय गँवाए घर से बाहर कदम रखा और अपनी कार की ओर बढ़ा। गली में हल्का अंधेरा था, सड़कें सुनसान थीं, और चारों तरफ सन्नाटा पसरा हुआ था। उसकी कार कुछ ही दूरी पर खड़ी थी। विशाल ने जल्दी से कार का दरवाज़ा खोला, सीट पर बैठा, और इंजन स्टार्ट कर दिया। उसकी साँसें तेज़ चल रही थीं। संजना के लापता होने का मामला उसके दिमाग़ में लगातार घूम रहा था।
जैसे-जैसे उसने कार आगे बढ़ाई, उसके दिमाग़ में सवालों का सैलाब उमड़ने लगा। उसे समझ नहीं आ रहा था कि आख़िरकार संजना कहाँ है। उसने देखा था कि जिस कार में संजना को किडनैप किया गया था, वो अंकित के घर के बाहर गली के आख़िर में मिली थी, लेकिन संजना वहाँ नहीं थी। ये बात उसके लिए बहुत अजीब थी। अगर किसी को किडनैप किया जाता है, तो या तो किडनैपर उसे लेकर भाग जाते हैं, या फिर अगर कुछ गलत हो जाए, तो कोई सुराग पीछे छूट जाता है। लेकिन यहाँ कुछ भी नहीं मिला था। ये बहुत ही पेचीदा मामला बनता जा रहा था।
विशाल ने अपनी कार को एक वीरान रास्ते पर मोड़ लिया। वहाँ दूर-दूर तक कोई नहीं था। उसने कार को धीमा किया और सड़क किनारे रोक दिया। फिर वह स्टीयरिंग पर हाथ रखकर सोचने लगा। हवा ठंडी थी और वातावरण में एक अजीब-सा सन्नाटा था। विशाल के दिमाग़ में कई विचार घूम रहे थे—क्या हो सकता है?
विशाल को अंकित पर हमेशा से शक़ था। अंकित का व्यवहार हमेशा संदिग्ध लगता था। जैसे वो कुछ छुपा रहा हो। लेकिन अगर अंकित ही किडनैपर था, तो उसने संजना को क्यों और कहाँ छुपाया? और अगर उसने उसे मार दिया था, तो इतनी जल्दी लाश कहाँ ठिकाने लगाई होगी?
विशाल को यकीन था कि संजना को किडनैप करने वाली कार वही थी, लेकिन फिर वहाँ संजना का कोई सुराग क्यों नहीं मिला? कम से कम कुछ तो होना चाहिए था—कोई निशान, कोई सबूत, कुछ भी। लेकिन वहाँ कुछ भी नहीं था, जो इस केस को और उलझा रहा था।विशाल के मन में एक और संभावना आई। हो सकता है कि संजना को किडनैप तो उसी कार में किया गया हो, लेकिन उसे कहीं और ले जाया गया हो। शायद किडनैपर पहले से ही इस बात के लिए तैयार थे कि अगर पुलिस या कोई और उनकी गाड़ी तक पहुँच भी जाए, तो उन्हें कोई सुराग न मिले।
अगर ऐसा था, तो ये किसी साधारण अपराधी का काम नहीं था। ये पूरी प्लानिंग के साथ किया गया था। इसका मतलब था कि संजना को कहीं छुपाकर रखा गया था, और ये जगह कहीं भी हो सकती थी—किसी पुराने घर में, किसी गुप्त ठिकाने पर, या फिर किसी सुनसान जगह पर।
विशाल ने अपने फोन से अंकित की कॉल डिटेल निकालने की कोशिश की। अगर अंकित इसमें शामिल था, तो हो सकता है कि उसने किडनैपिंग के वक्त किसी से बात की हो। लेकिन उसके नंबर से कुछ खास हाथ नहीं लगा।विशाल के पास ज़्यादा समय नहीं था। उसे जल्द ही कुछ करना था। अगर उसने जल्दबाज़ी नहीं दिखाई, तो हो सकता है कि संजना को हमेशा के लिए खो दे। उसे पता था कि अगर किडनैपर ज़्यादा देर तक इंतजार नहीं करने वाले थे।
उसने तय किया कि वह सबसे पहले उस जगह पर फिर से जाएगा, जहाँ किडनैपिंग हुई थी। शायद वहाँ कुछ ऐसा मिले जो पहली नज़र में छूट गया हो। इसके अलावा, उसे अंकित की गतिविधियों पर भी नज़र रखनी थी। अंकित पर शक़ करना सही था या नहीं, ये जल्द ही साफ़ होने वाला था।
जब विशाल अपनी सोच में डूबा था, तभी अचानक उसने झाड़ियों के पीछे से एक हल्की-सी आवाज़ सुनी। उसने तुरंत अपना ध्यान वहाँ लगाया। क्या कोई उसकी कार के पास आया था? या फिर ये उसका वहम था?
उसने धीरे से कार का दरवाज़ा खोला और बाहर निकला। उसने चारों तरफ़ नज़रें दौड़ाईं, लेकिन वहाँ कुछ भी नहीं था। फिर उसने अपनी टॉर्च निकाली और झाड़ियों की तरफ़ रोशनी डाली। कुछ पल के लिए वहाँ कुछ नहीं दिखा, लेकिन फिर... उसने देखा कि ज़मीन पर कुछ पड़ा था।
वह धीरे-धीरे आगे बढ़ा और झुककर देखा। लेकिन ये क्या ये तो कुछ ऐसे ही था |
उसके दिमाग़ में अब एक ही बात चल रही थी—"मैं तुम्हें ढूँढ कर रहूँगा, संजना!"