डिटेक्टिव विशाल की तहकीकात
रात का अंधेरा गहराने लगा था। चारों ओर सन्नाटा पसरा हुआ था। सड़क पर सिर्फ स्ट्रीट लाइट की पीली रोशनी गिर रही थी, जो माहौल को और भी रहस्यमयी बना रही थी। डिटेक्टिव विशाल अपनी कार से उतरा और सामने खड़ी काले रंग की कार को गौर से देखने लगा। यह वही कार थी जिसमें संजना को किडनैप किया गया था। विशाल की आँखों में सतर्कता झलकने लगी। उसने धीरे से कहा, "ओह, तो यह वही कार है! जब कार यहाँ है, तो संजना भी यहीं कहीं होगी।"
विशाल ने चारों ओर नज़र दौड़ाई। यह जगह शहर के बाहरी इलाके में थी, जहां गिने-चुने घर थे। सामने अंकित का घर था, जिसके दरवाजे पर बड़ा-सा ताला लटका था। विशाल ने ताले को ध्यान से देखा—नया था, जिसका मतलब था कि अभी-अभी लगाया गया होगा। उसने सोचा, "अगर किडनैपर घर में नहीं है, तो ताला क्यों लगाया गया? क्या कोई अंदर मौजूद है?"
घर के चारों ओर घूमते हुए उसे एक खुली खिड़की दिखी। खिड़की काफी ऊँची थी, लेकिन विशाल ने बिना वक्त गँवाए पास रखी एक टूटी कुर्सी का सहारा लिया और किसी तरह खिड़की से अंदर दाखिल हो गया। अंदर घुप्प अंधेरा था, लेकिन उसकी जेब में रखी छोटी टॉर्च ने अंधेरे को चीरते हुए माहौल को साफ कर दिया। विशाल ने इधर-उधर नज़र दौड़ाई—कमरा एकदम साफ-सुथरा था। कहीं भी धूल का नामोनिशान नहीं था।
"मतलब कोई यहाँ रहता है, और अभी कुछ देर पहले ही सफाई हुई है," विशाल ने बुदबुदाया। उसे हवा में फिनाइल की तेज़ गंध महसूस हुई। इसका मतलब था कि यहाँ अभी-अभी सफाई की गई थी, जिससे सबूत मिटाने की कोशिश की गई हो सकती थी।
विशाल ने धीमे कदमों से पूरे कमरे का मुआयना करना शुरू किया। उसने देखा कि टेबल पर दो कॉफी मग रखे थे—एक खाली और एक में थोड़ी कॉफी बची हुई थी। "यानी यहाँ कुछ ही देर पहले कोई था," उसने सोचा। अचानक उसकी नज़र ज़मीन पर पड़ी हल्की खरोंचों पर गई। ऐसा लग रहा था जैसे कुछ भारी चीज़ को घसीटा गया हो। विशाल झुका और ध्यान से देखने लगा। खरोंचें फर्श से होते हुए एक बड़े अलमारी तक जा रही थीं।
उसने धीरे से अलमारी का दरवाजा खोला, लेकिन अंदर सिर्फ कपड़े थे। लेकिन विशाल को कुछ गड़बड़ लगी। उसने अलमारी के पीछे की दीवार को थपथपाया। हल्की आवाज़ आई, जो दर्शा रही थी कि दीवार ठोस नहीं थी। विशाल ने दीवार को ध्यान से देखा, और फिर एक छोटे से दरवाजे का निशान पाया। "यानी इस अलमारी के पीछे एक गुप्त कमरा है!" विशाल के चेहरे पर हल्की मुस्कान आई।
उसने अपनी जेब से छोटी चाकू निकाली और दरवाजे के किनारे पर सावधानी से फँसाकर हल्का सा धक्का दिया। दरवाजा धीरे-धीरे चरमराता हुआ खुलने लगा। अंदर घना अंधेरा था, जिससे कुछ भी साफ दिखाई नहीं दे रहा था। वह धीरे-धीरे भीतर दाखिल हुआ, हर कदम फूँक-फूँक कर रख रहा था ताकि कोई आवाज़ न हो।
कमरे के अंदर पहुँचते ही उसने चारों ओर नजर घुमाई, लेकिन वहाँ कुछ भी असामान्य नहीं दिखा। चारों ओर सिर्फ खामोशी थी, जैसे वह घर लंबे समय से खाली पड़ा हो। अचानक, घर के मुख्य दरवाजे के खुलने की आवाज़ सुनाई दी। उसकी धड़कन तेज़ हो गई। घबराकर वह तुरंत एक कोने में छिप गया, जहाँ से वह आसानी से बाहर झाँक सकता था।
दरवाजे से एक लड़का अंदर आया, जिसकी उम्र करीब 21 साल रही होगी। वह कोई और नहीं, बल्कि उसी घर का मालिक अंकित था। अंकित ने अंदर कदम रखते ही महसूस किया कि कुछ अजीब है। उसे ज़मीन पर ताज़ा मिट्टी दिखी, जो शायद किसी के जूतों से आई थी। उसकी भौंहें सिकुड़ गईं। उसने धीमे मगर दृढ़ स्वर में कहा, "लगता है, घर में कोई है… लेकिन कौन? कहीं कोई चोर तो नहीं?"
वह सतर्क होकर चारों ओर देखने लगा, हर कोने पर उसकी नजरें दौड़ रही थीं। विशाल, जो कोने में छिपा हुआ था, बिना हिले-डुले सांसें रोके बैठा रहा। लेकिन क्या अंकित उसे पकड़ पाएगा? या विशाल समय रहते बच निकलने में सफल होगा?