Dil ne jise Chaha - 5 in Hindi Love Stories by R B Chavda books and stories PDF | दिल ने जिसे चाहा - 5

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दिल ने जिसे चाहा - 5

रुशाली का वह दिन भी पिछली रात की ही तरह बीता – मन में वही डॉक्टर लड़का छाया रहा और साथ ही अपनी माँ की तबीयत को लेकर चिंता भी बनी रही। उसके दिल-दिमाग में कई सवाल और भावनाएँ चल रही थीं। वह डॉक्टर जो हर सुबह राउंड पर आता, कुछ अलग ही था – कुछ खास। अगले दिन सुबह फिर वही डॉक्टर वार्ड में आया, और आज रुशाली ने पहली बार गौर किया कि उसकी आँखों के नीचे काले घेरे थे। उसे यह देखकर समझ आया कि डॉक्टर की ज़िंदगी कितनी कठिन होती है – दिन-रात ड्यूटी, लगातार मेहनत और फिर भी चेहरे पर वही शांति।

आज उस डॉक्टर के पास एक प्यारी सी पिंक कलर की टिक-टिक वाली पेन थी। और हाँ, उसने वही कपड़े पहने हुए थे जो उसने कल भी पहने थे – शायद उसे समय नहीं मिला कपड़े बदलने का या शायद उसकी प्राथमिकताएँ कुछ और थीं। किसी इंसान में अगर इतनी मेहनत, संयम और शांति हो, तो कैसे न मन आकर्षित हो? रुशाली को वह डॉक्टर पहले से भी ज़्यादा अच्छा लगने लगा था।

डॉक्टर ने अपना राउंड शुरू किया और धीरे-धीरे वार्ड के दूसरे हिस्से की ओर चला गया। उस दिन उसके साथ एक और डॉक्टर भी था, और जब वे दोनों वार्ड के दूसरे कोने में पहुँचे तो उस डॉक्टर साथी ने आवाज़ लगाई – “मयूर भाई!” बस, यही पल था जब रुशाली को पहली बार पता चला कि उस डॉक्टर का नाम मयूर है। उस पल से रुशाली उसे अपने मन में "मयूर सर" कहकर बुलाने लगी।

मयूर सर उसे एकदम शांत, सौम्य और सरल स्वभाव के लगे। मन में एक सवाल बार-बार उठता – क्या मयूर सर को कभी गुस्सा आता होगा? क्या वे कभी झुंझलाते होंगे? लेकिन जितना वह उन्हें देखती, उतना ही उनका शांत और संतुलित व्यवहार उसे और भी आकर्षित करता। वह चाहती थी कि काश मयूर सर की एक नज़र उस पर भी पड़े – बस एक बार।

हर दिन मयूर सर आते, अपना काम करते, पेशेंट्स को देखते और चले जाते। वे कभी किसी से ज़्यादा बात नहीं करते, ना ही किसी पर ध्यान देते – कम से कम ऐसा बाहर से दिखता था। फिर एक रात रुशाली को अस्पताल छोड़कर अपने रिश्तेदार के घर जाना पड़ा। अगली सुबह जब वह लौटकर आई तो उसकी माँ ने एक नई बात बताई।

रात में एक लड़की को एडमिट किया गया था, जो बहुत ही पीड़ा में थी। वह अपनी बीमारी से परेशान थी, लेकिन उसका पति उसे छोड़कर कहीं चला गया। फिर देर रात वह पति वापस आया, और तब मयूर सर ने उस आदमी पर बहुत गुस्सा किया। माँ की बात सुनकर रुशाली तो जैसे मयूर सर की फैन ही बन गई थी। उसे लगा कि मयूर सिर्फ एक अच्छे डॉक्टर नहीं, बल्कि एक सच्चे, संवेदनशील इंसान भी हैं – जो अन्याय सहन नहीं कर सकते।

उसी दिन कुछ ऐसा हुआ जिसने रुशाली के दिल को और भी छू लिया। मयूर सर फिर से आए, और इस बार उन्होंने कपड़े भी बदले हुए थे – ऐश कलर की शर्ट और ब्लैक पैंट। जब वे रुशाली की माँ के पास आए, तो माँ के सामने वाले बेड पर नया पेशेंट आया था, जिसे डायलिसिस के लिए ले जाया गया था। तभी एक नर्स ने पूछा – “ये बेड वाला मरीज कहाँ गया?”

मयूर सर ने बड़ी ही सहजता से कहा – “डायलिसिस के लिए ले गए हैं।” लेकिन नर्स ने दोबारा पूछा – “और उसके रिश्तेदार?” इस पर मयूर सर ने मुस्कुराते हुए मज़ाक में कहा – “मेरी जेब में।” यह सुनते ही रुशाली, उसकी माँ और पूरे वार्ड में ठहाके गूंजने लगे। खुद मयूर सर भी हँस पड़े।

उस हँसी में एक खास बात छुपी थी – रुशाली ने देखा कि मयूर सर को गुस्सा तो आता है, लेकिन वो अपने गुस्से को दूसरों पर हावी नहीं होने देते। उनका सेंस ऑफ ह्यूमर और सहजता दिल जीत लेने वाली थी। रुशाली को लगा कि वो भी मयूर सर की तरह ही है – उसे भी अगर कभी गुस्सा आता है, तो वो उसे सामने वाले पर नहीं निकालती। शायद इसी समानता ने उसे और गहराई से जोड़ दिया।

अगले दिन मयूर सर फिर आए – आज उन्होंने नीली चेक्स वाली शर्ट पहनी थी और ब्लैक पैंट। हर दिन उनका नया लुक, उनका प्रोफेशनल और शालीन व्यवहार – सब कुछ रुशाली के दिल को छूने लगा था। लेकिन उस दिन एक और बात खास थी – उसकी माँ को अस्पताल से छुट्टी मिलनी थी।

रुशाली का मन भारी हो गया। इतने दिनों से वह मयूर सर को करीब से देख रही थी, समझ रही थी, पहचान रही थी – लेकिन अब यह सिलसिला टूटने वाला था। वह जानती थी कि शायद अब वह उन्हें रोज़ नहीं देख पाएगी। इतने दिन में उसने उन्हें जानने की बहुत कोशिश की – उनके हावभाव, बात करने का तरीका, मरीजों से उनका व्यवहार – सबकुछ।

माँ को डिस्चार्ज मिल गया और वे घर लौट आए। पर रुशाली के मन में अब एक नई हलचल थी। एक ऐसा एहसास जो पहले कभी नहीं हुआ था। एक ऐसा आकर्षण जो सिर्फ किसी के चेहरे या रूप के लिए नहीं था, बल्कि उनके स्वभाव, उनके विचारों और उनकी संवेदनशीलता के लिए था।  और उस दिल ने जिसे चाहा… वो अब धीरे-धीरे रुशाली की दुनिया बनता जा रहा था। मयूर सर अब उसके लिए सिर्फ एक डॉक्टर नहीं रहे थे – वे उसके मन की गहराइयों में एक ऐसी जगह बना चुके थे, जहाँ कोई जल्दी से नहीं पहुँचता।

रुशाली जानती थी कि अस्पताल से जाने के बाद शायद वह अब उन्हें हर दिन नहीं देख पाएगी, लेकिन एक अनकहा रिश्ता मन में कहीं गहराई से जुड़ चुका था।

"कभी-कभी किसी अनजाने से मुलाक़ात, दिल की वो कहानी लिख जाती है…
जिसे हम समझ नहीं पाते, बस महसूस करते हैं…
और उसी एहसास का नाम होता है – पहली पसंद, पहला लगाव… शायद पहला प्यार।"

क्या मयूर सर कभी रुशाली की नज़रों में झांक पाएंगे?
क्या यह एकतरफा एहसास कभी उनकी ज़िंदगी में कोई जगह बना पाएगा?
या यह बस एक अधूरी दास्तान बनकर रह जाएगी?

जानने के लिए पढ़ते रहिए – दिल ने जिसे चाहा का अगला भाग…

(क्योंकि कुछ कहानियाँ अधूरी होते हुए भी दिल से जुड़ जाती हैं…)