वैयर हाउस की रहस्यमयी रात
संजना का दिल तेज़ी से धड़क रहा था। हर्षवर्धन ने उसे गिरने से बचा लिया था, लेकिन उसके मजबूत हाथों की पकड़ ने उसके भीतर अजीब-सी हलचल मचा दी। उसने पहली बार इतने करीब से हर्षवर्धन की आँखों में झाँका। वे आँखें जितनी कठोर लग रही थीं, उतनी ही गहरी भी थीं—जैसे कोई छिपा हुआ दर्द उन्हें काला और रहस्यमयी बना रहा हो।
संजना की साँसें भारी हो गईं। हर्षवर्धन की पकड़ अभी भी उसकी कमर पर थी। उसकी नज़दीकियों ने उसके अंदर हलचल मचा दी थी, लेकिन वह खुद को सँभालने की कोशिश कर रही थी।
"मुझे छोड़ो..." उसने धीमी, लेकिन काँपती हुई आवाज़ में कहा।
हर्षवर्धन ने एक पल के लिए उसकी आँखों में देखा, फिर अचानक उसे छोड़ दिया। संजना खुद को सँभालते हुए थोड़ा पीछे हटी, लेकिन उसकी नज़रों में अब तक हर्षवर्धन का चेहरा बसा हुआ था।
हर्षवर्धन का अजीब एहसास
हर्षवर्धन भी खुद को विचलित महसूस कर रहा था। वह तो संजना को सिर्फ एक मोहरा मानता था—बदले की एक गूंगी गवाह, जिससे वह अपने दुश्मन को दर्द दे सके। फिर क्यों उसे ऐसा लगा कि वह कुछ पलों के लिए उस नफरत को भूल गया था?
"ये बेवकूफी है!" उसने खुद से कहा।
वह खुद को संभालते हुए तेजी से दरवाजे की ओर बढ़ा, लेकिन तभी संजना की आवाज़ ने उसे रोक लिया—
"तुम कौन हो, हर्षवर्धन?"
हर्षवर्धन ठिठक गया। उसकी मुट्ठियाँ कस गईं। उसने बिना मुड़े ही कहा, "तुम्हारे लिए सिर्फ एक दुश्मन, और कुछ नहीं।"
"लेकिन तुमने अभी मुझे गिरने से बचाया। कोई दुश्मन ऐसा करता है?"
हर्षवर्धन पलटा और उसकी ओर कदम बढ़ाने लगा। संजना की धड़कनें फिर तेज़ हो गईं। उसने देखा कि हर्षवर्धन के चेहरे पर क्रोध था, लेकिन उसकी आँखों में कुछ और था—कुछ जिसे वह समझ नहीं पा रही थी।
"तुम्हें क्या लगता है, संजना? कि मैं तुमसे प्यार करने लगूँगा?" हर्षवर्धन ने ठंडी आवाज़ में कहा।
संजना को उसकी बात सुनकर झटका लगा। उसने कुछ कहने के लिए मुँह खोला, लेकिन कोई शब्द नहीं निकला।
हर्षवर्धन उसके और करीब आ गया।
"ये जो भी हो रहा है, इसे कोई नाम मत देना। मैं सिर्फ अपने बदले के लिए यहाँ हूँ। तुम सिर्फ एक मोहरा हो, और मोहरे कभी दिल से नहीं खेले जाते।"
संजना का विरोध और हर्षवर्धन की उलझन
संजना ने अपनी हिम्मत जुटाई और कहा, "अगर मैं सिर्फ एक मोहरा हूँ, तो फिर जब भी मैं तकलीफ में होती हूँ, तुम क्यों आकर मुझे बचा लेते हो?"
हर्षवर्धन कुछ पल के लिए चुप रहा। उसकी उँगलियाँ मुट्ठियों में बदल गईं।
"तुम ये सब जानने के लिए ज़िंदा नहीं बचोगी, संजना," उसने सख्त लहज़े में कहा और तेजी से कमरे से बाहर निकल गया।
संजना वहीं खड़ी रह गई। उसके भीतर अजीब-सी बेचैनी थी। हर्षवर्धन जितना खुद को उससे दूर रखना चाहता था, उतना ही उसके करीब आता जा रहा था।
हर्षवर्धन की यादें और उसकी जंग
हर्षवर्धन अपने कमरे में पहुँचते ही ज़ोर से दीवार पर मुक्का मारा। उसकी साँसें तेज़ हो गई थीं। उसे खुद पर गुस्सा आ रहा था।
"मैं क्या कर रहा हूँ?" उसने खुद से कहा।
वह फिर से दीवार पर टंगी तस्वीर की ओर मुड़ा। निशा की हँसती हुई तस्वीर उसे देख रही थी।
"मैं अपने मिशन से नहीं भटक सकता।"
लेकिन संजना की बड़ी-बड़ी मासूम आँखें उसके दिमाग में घूमने लगीं। उसकी नज़दीकियाँ उसे बेचैन कर रही थीं।
"नहीं, ये सिर्फ एक खेल है। एक ऐसा खेल जिसमें प्यार और नफरत की कोई जगह नहीं।"
सन्नाटे में एक हलचल
रात गहरी हो चुकी थी। वैयर हाउस में एक अजीब-सा सन्नाटा था, लेकिन इस सन्नाटे के पीछे कई हलचलें थीं।
संजना अपने बिस्तर पर लेटी थी, लेकिन उसकी आँखों से नींद कोसों दूर थी। वह अब तक के हर लम्हे को याद कर रही थी।
"क्या मैं हर्षवर्धन के लिए कुछ महसूस करने लगी हूँ?"
उसने खुद को समझाने की कोशिश की कि यह सिर्फ उसके डर और कैद का असर है। लेकिन दिल इतनी आसानी से मानने को तैयार नहीं था।
उधर, हर्षवर्धन अपने कमरे में बेचैन था। वह अपने दिल की इस जंग को रोकना चाहता था। लेकिन शायद जंग तो अब शुरू हुई थी—एक ऐसी जंग जिसमें दिल और बदले की आग आमने-सामने थे।
रात और गहरी हो गई। लेकिन इस वैयर हाउस में सिर्फ अंधेरा नहीं था... कहीं न कहीं, एक हल्की-सी रोशनी भी थी—जो दो दिलों के बीच पनप रहे एक नए एहसास की थी।